"नादिर शाह": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
No edit summary
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
| उपाधि = फ़ारस का शाह
| उपाधि = फ़ारस का शाह
| चित्र = [[Image:Full Potrait of Nadir Shah.jpg|200px|Nader Shah’s portrait from the collection of the [[Smithsonian Institution]]]]
| चित्र = [[Image:Full Potrait of Nadir Shah.jpg|200px|Nader Shah’s portrait from the collection of the [[Smithsonian Institution]]]]
| समय = [[1736]]–[[1747]]
| समय = [[१७३६]]–[[१७४७]]
| coronation =
| coronation =
| पूर्वाधिकारी = [[अब्बास तृतीय]]
| पूर्वाधिकारी = [[अब्बास तृतीय]]
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
| father =
| father =
| mother =
| mother =
| जन्म तिथि = [[ 6 अगस्त]], [[1698]]
| जन्म तिथि = [[ अगस्त]], [[१६९८]]
| जन्म स्थान =
| जन्म स्थान =
| मृत्यु तिथि = [[19 जून]], [[1747]]
| मृत्यु तिथि = [[१९ जून]], [[१७४७]]
| मृत्यु स्थान =
| मृत्यु स्थान =
| दफ़नाने की जगह = [[मशहद]]
| दफ़नाने की जगह = [[मशहद]]
पंक्ति 21: पंक्ति 21:




'''नादिर शाह अफ़्शार''' (या ''नादिर कोली बेग़'') (1688 - 1747) [[फ़ारस]] का शाह था (1736 - 1747) और उसने सदियों के बाद क्षेत्र में ईरानी प्रभुता स्थापित की थी । उसने अपना जीवन दासता से आरंभ किया था और फारस का शाह ही नहीं बना बल्कि उसने उस समय ईरानी साम्राज्य के सबल शत्रु [[उस्मानी साम्राज्य]] और [[रूसी साम्राज्य]] को ईरानी क्षेत्रों से बाहर निकाला ।
'''नादिर शाह अफ़्शार''' (या ''नादिर कोली बेग़'') (१६८८ - १७४७) [[फ़ारस]] का शाह था (१७३६ - १७४७) और उसने सदियों के बाद क्षेत्र में ईरानी प्रभुता स्थापित की थी। उसने अपना जीवन दासता से आरंभ किया था और फारस का शाह ही नहीं बना बल्कि उसने उस समय ईरानी साम्राज्य के सबल शत्रु [[उस्मानी साम्राज्य]] और [[रूसी साम्राज्य]] को ईरानी क्षेत्रों से बाहर निकाला।


उसने अफ़्शरी वंश की स्थापना की थी और उसका उदय उस समय हुआ जब ईरान में पश्चिम से [[उस्मानी साम्राज्य]] (ऑटोमन) का आक्रमण हो रहा था और पूरब से अफ़गानों ने [[सफ़ावी]] राजधानी [[इस्फ़हान]] पर अधिकार कर लिया था । उत्तर से [[रूस]] भी फ़ारस में साम्राज्य विस्तार की योजना बना रहा था । इस परिस्थिति में भी उसने अपनी सेना संगठित की और अपने सैन्य अभियानों की वज़ह से उसे ''फ़ारस का नेपोलियन'' या ''एशिया का अन्तिम महान सेनानायक'' जैसी उपाधियों से सम्मानित किया जाता है ।
उसने अफ़्शरी वंश की स्थापना की थी और उसका उदय उस समय हुआ जब ईरान में पश्चिम से [[उस्मानी साम्राज्य]] (ऑटोमन) का आक्रमण हो रहा था और पूरब से अफ़गानों ने [[सफ़ावी]] राजधानी [[इस्फ़हान]] पर अधिकार कर लिया था। उत्तर से [[रूस]] भी फ़ारस में साम्राज्य विस्तार की योजना बना रहा था। इस परिस्थिति में भी उसने अपनी सेना संगठित की और अपने सैन्य अभियानों की वज़ह से उसे ''फ़ारस का नेपोलियन'' या ''एशिया का अन्तिम महान सेनानायक'' जैसी उपाधियों से सम्मानित किया जाता है।


वो [[भारत]] विजय के अभियान पर भी निकला था । [[दिल्ली]] की सत्ता पर आसीन [[मुग़ल]] बादशाह [[मुहम्मद शाह आलम]] को हराने के बाद उसने वहाँ से अपार सम्पत्ति अर्जित की जिसमें [[कोहिनूर]] हीरा भी शामिल था । इसके बाद वो अपार शक्तिशाली बन गया और उसका स्वास्थ्य भी बिगड़ता गया । अपने जीवन के उत्तरार्ध में वो बहुत अत्याचारी बन गया था । सन् 1747 में उसकी हत्या के बाद उसका साम्राज्य जल्द ही तितर-बितर हो गया ।
वो [[भारत]] विजय के अभियान पर भी निकला था। [[दिल्ली]] की सत्ता पर आसीन [[मुग़ल]] बादशाह [[मुहम्मद शाह आलम]] को हराने के बाद उसने वहाँ से अपार सम्पत्ति अर्जित की जिसमें [[कोहिनूर]] हीरा भी शामिल था। इसके बाद वो अपार शक्तिशाली बन गया और उसका स्वास्थ्य भी बिगड़ता गया। अपने जीवन के उत्तरार्ध में वो बहुत अत्याचारी बन गया था। सन् १७४७ में उसकी हत्या के बाद उसका साम्राज्य जल्द ही तितर-बितर हो गया।


==गुमनामी से आग़ाज़ ==
==गुमनामी से आग़ाज़ ==
नादिर का जन्म [[खोरासान]] (उत्तर पूर्वी [[ईरान]]) में अफ़्शार क़ज़लबस कबीले में एक साधारण परिवार में हुआ था । उसके पिता एक साधारण किसान थे जिनकी मृत्यु नादिर के बाल्यकाल में ही हो गई थी । नादिर के बारे में कहा जाता है कि उसकी माँ को उसके साथ उज़्बेकों ने दास (ग़ुलाम) बना लिया था । पर नादिर भाग सकने में सफ़ल रहा और वो एक अफ़्शार कबीले में शामिल हो गया और कुछ ही दिनों में उसके एक तबके का प्रमुख बन बैठा । जल्द ही वो एक सफल सैनिक के रूप में उभरा और उसने एक स्थानीय प्रधान बाबा अली बेग़ की दो बेटियों से शादी कर ली ।
नादिर का जन्म [[खोरासान]] (उत्तर पूर्वी [[ईरान]]) में अफ़्शार क़ज़लबस कबीले में एक साधारण परिवार में हुआ था। उसके पिता एक साधारण किसान थे जिनकी मृत्यु नादिर के बाल्यकाल में ही हो गई थी। नादिर के बारे में कहा जाता है कि उसकी माँ को उसके साथ उज़्बेकों ने दास (ग़ुलाम) बना लिया था। पर नादिर भाग सकने में सफ़ल रहा और वो एक अफ़्शार कबीले में शामिल हो गया और कुछ ही दिनों में उसके एक तबके का प्रमुख बन बैठा। जल्द ही वो एक सफल सैनिक के रूप में उभरा और उसने एक स्थानीय प्रधान बाबा अली बेग़ की दो बेटियों से शादी कर ली।


नादिर एक लम्बा, सजीला और शोख काली आँखों वाला नौजवान था । वो अपने शत्रुओं के प्रति निर्दय था लेकिन अपने अनुचरों और सैनिकों के प्रति उदार । उसे घुड़सवारी बहुत पसन्द थी और घोड़ों का बहुत शौक था । उसकी आवाज़ बहुत गम्भीर थी और ये भी उसकी सफलता की कई वज़हों में से एक माना जाता है । वह एक तुर्कमेन था और उसके कबीले ने [[शाह इस्माइल प्रथम]] के समय से ही साफ़वियों की बहुत मदद की थी ।
नादिर एक लम्बा, सजीला और शोख काली आँखों वाला नौजवान था। वो अपने शत्रुओं के प्रति निर्दय था लेकिन अपने अनुचरों और सैनिकों के प्रति उदार। उसे घुड़सवारी बहुत पसन्द थी और घोड़ों का बहुत शौक था। उसकी आवाज़ बहुत गम्भीर थी और ये भी उसकी सफलता की कई वज़हों में से एक माना जाता है। वह एक तुर्कमेन था और उसके कबीले ने [[शाह इस्माइल प्रथम]] के समय से ही साफ़वियों की बहुत मदद की थी।


==साफवियों का अन्त ==
==साफवियों का अन्त ==
उस समय फ़ारस की गद्दी पर [[साफ़वी वंश|साफ़वियों]] का शासन था । लेकिन नादिर शाह का भविष्य शाह के तख़्तापलट के कारण नहीं बना जो कि प्रायः कई सफल सेनानयकों के साथ होता है । उसने साफवियों का साथ दिया । उस समय साफ़वी अपने पतनोन्मुख साम्राज्य में नादिर शाह को पाकर बहुत प्रसन्न हुए । एक तरफ से [[उस्मानी साम्राज्य]] (ऑटोमन तुर्क) तो दूसरी तरफ़ से [[अफ़ग़ान|अफ़गानों]] के विद्रोह ने साफवियों की नाक में दम कर रखा था । इसके अलावा उत्तर से [[रूसी साम्राज्य]] भी निगाहें गड़ाए बैठा था । [[शाह सुल्तान हुसैन]] के बेटे तहमास्य (तहमाश्प) को नादिर का साथ मिला । उसके साथ मिलकर उसने उत्तरी ईरान में [[मशहद]] ([[ख़ोरासान]] की राजधानी) से अफगानों को भगाकर अपने अधिकार में ले लिया । उसकी इस सेवा से प्रभावित होकर उसे ''तहमास्य कोली ख़ान'' ('तहमास्प का सेवक' या 'गुलाम-ए-तहमास्य') की उपाधि मिली । यह एक सम्मान था क्योंकि इससे उसे शाही नाम मिला था । पर नादिर इतने पर मुतमयिन (संतुष्ट) हो जाने वाला सेनानायक नहीं था ।
उस समय फ़ारस की गद्दी पर [[साफ़वी वंश|साफ़वियों]] का शासन था। लेकिन नादिर शाह का भविष्य शाह के तख़्तापलट के कारण नहीं बना जो कि प्रायः कई सफल सेनानायकों के साथ होता है। उसने साफवियों का साथ दिया। उस समय साफ़वी अपने पतनोन्मुख साम्राज्य में नादिर शाह को पाकर बहुत प्रसन्न हुए। एक तरफ़ से [[उस्मानी साम्राज्य]] (ऑटोमन तुर्क) तो दूसरी तरफ़ से [[अफ़ग़ान|अफ़गानों]] के विद्रोह ने साफवियों की नाक में दम कर रखा था। इसके अलावा उत्तर से [[रूसी साम्राज्य]] भी निगाहें गड़ाए बैठा था। [[शाह सुल्तान हुसैन]] के बेटे तहमास्य (तहमाश्प) को नादिर का साथ मिला। उसके साथ मिलकर उसने उत्तरी ईरान में [[मशहद]] ([[ख़ोरासान]] की राजधानी) से अफगानों को भगाकर अपने अधिकार में ले लिया। उसकी इस सेवा से प्रभावित होकर उसे ''तहमास्य कोली ख़ान'' ('तहमास्प का सेवक' या 'गुलाम-ए-तहमास्य') की उपाधि मिली। यह एक सम्मान था क्योंकि इससे उसे शाही नाम मिला था। पर नादिर इतने पर मुतमयिन (संतुष्ट) हो जाने वाला सेनानायक नहीं था।


नादिर ने इसके बाद हेरात के अब्दाली अफ़ग़ानों को परास्त किया । तहमाश्प के दरबार में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के बाद उसने १७२९ में राजधानी इस्फ़हान पर कब्ज़ा कर चुके अफ़ग़ानों पर आक्रमण करने की योजना बनाई । इस समय एक [[यूनानी]] व्यापारी और पर्यटक बेसाइल वतात्ज़ेस ने नादिर के सैन्य अभ्यासों को आँखों से देखा था । उसने बयाँ किया - ''नादिर अभ्यास क्षेत्र में घुसने के बाद अपने सेनापतियों के अभिवादन की स्वीकृति में अपना सर झुकाता था । उसके बाद वो अपना घोड़ा रोकता था और कुछ देर तक सेना का निरीक्षण एकदम चुप रहकर करता था । वो अभ्यास आरंभ होने की अनुमति देता था । इसके बाद अभ्यास आरंभ होता था - चक्र, व्यूह रचना और घुड़सवारी इत्यादि.. '' नादिर खुद तीन घंटे तक घोड़े पर अभ्यास करता था ।
नादिर ने इसके बाद हेरात के अब्दाली अफ़ग़ानों को परास्त किया। तहमाश्प के दरबार में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के बाद उसने १७२९ में राजधानी इस्फ़हान पर कब्ज़ा कर चुके अफ़ग़ानों पर आक्रमण करने की योजना बनाई। इस समय एक [[यूनानी]] व्यापारी और पर्यटक बेसाइल वतात्ज़ेस ने नादिर के सैन्य अभ्यासों को आँखों से देखा था। उसने बयाँ किया - ''नादिर अभ्यास क्षेत्र में घुसने के बाद अपने सेनापतियों के अभिवादन की स्वीकृति में अपना सर झुकाता था। उसके बाद वो अपना घोड़ा रोकता था और कुछ देर तक सेना का निरीक्षण एकदम चुप रहकर करता था। वो अभ्यास आरंभ होने की अनुमति देता था। इसके बाद अभ्यास आरंभ होता था - चक्र, व्यूह रचना और घुड़सवारी इत्यादि.. '' नादिर खुद तीन घंटे तक घोड़े पर अभ्यास करता था।


सन 1729 के अन्त तक उसने अप़गानों को तीन बार हराया और इस्फ़हान वापस अपने नियंत्रण में ले लिया । उसने अफ़गानों को महफ़ूज (सुरक्षित) तरीके से भागने दे दिया । इसके बाद उसने भारी सैन्य अभियान की योजना बनाई । जिसके लिए उसने शाह तहमाश्प को कर वसूलने पर मजबूर किया । पश्चिम की दिशा से उस्मानी तुर्क (ऑटोमन) प्रभुत्व में थे । अभी तक नादिर के अभियान उत्तरी, केन्द्रीय तथा पूर्वी ईरान, और उससे सटे अफ़गानिस्तान तक सीमित रहे थे । उसने उस्मानियों को पश्चिम से मार भगाया और उसके तुरत बाद वह पूरब में हेरात की तरफ़ बढ़ा जहां पर उसने हेरात पर नियंत्रण कर लिया ।
सन १७२९ के अन्त तक उसने अप़गानों को तीन बार हराया और इस्फ़हान वापस अपने नियंत्रण में ले लिया। उसने अफ़गानों को महफ़ूज (सुरक्षित) तरीके से भागने दे दिया। इसके बाद उसने भारी सैन्य अभियान की योजना बनाई। जिसके लिए उसने शाह तहमाश्प को कर वसूलने पर मजबूर किया। पश्चिम की दिशा से उस्मानी तुर्क (ऑटोमन)प्रभुत्व में थे। अभी तक नादिर के अभियान उत्तरी, केन्द्रीय तथा पूर्वी ईरान, और उससे सटे अफ़गानिस्तान तक सीमित रहे थे। उसने उस्मानियों को पश्चिम से मार भगाया और उसके तुरंत बाद वह पूरब में हेरात की तरफ़ बढ़ा जहाँ पर उसने हेरात पर नियंत्रण कर लिया।


उसकी सैन्य सफलता तहमाश्प से देखी नहीं गई । उसे तख्तापलट का डर होने लगा । उसने अपनी सैन्य योग्यता साबित करने के मकसद से उस्मानों के साथ फिर से युद्ध शुरु कर दिया जिसका अन्त उसके लिए शर्मनाक रहा और उसे नादिर द्वारा जीते हुए कुछ प्रदेश उस्मानों को लौटाने पड़े । नादिर जब [[हेरात]] से लौटा तो यह देखकर क्षुब्ध हुआ । उसने जनता से अपना समर्थन माँगा । इसी समय उसने इस्फ़हान में एक दिन तहमाश्प (तहमास्य) को नशे की हालत में ये समझाया कि वो शासन के लिए अयोग्य है और उसके ये इशारे पर दरबारियों ने तहमाश्प के नन्हें बेटे [[अब्बास]] को गद्दी पर बिठा दिया । उसके राज्याभिषेक के समय नादिर ने घोषणा की कि वो कन्दहार, दिल्ली, बुखारा और [[इस्ताम्बुल]] के शासकों को हराएगा । दरबार में उपस्थित लोगों को लगा कि ये आत्मप्रवंचना का चरम के अतिरिक्त कुछ नहीं है । पर आने वाले समय में उनको पता चला कि ऐसा नहीं था । । उसने पश्चिम की दिशा में उस्मानों पर आक्रमण के लिए सेना तैयार की । पर अपने पहले आक्रमण में उसे पराजम मिली । उस्मानों ने बग़दाद की रक्षा के लिए एक भारी सेना भेज दी जिसका नादिर कोई जबाब नहीं दे पाया । लेकिन कुछ महीनों के भीतर उसने सेना फिर से संगठित की । इस बार उसने [[किरकुक]] के पास उस्मानियों को हरा दिया । [[येरावन]] के पास जून 1735 में उसने रूसियों की मदद से उस्मानियों को एक बार फिर से हरा दिया । इस समझौते के तहत रूसी भी फारसी प्रदेशों से वापस कूच कर गए ।
उसकी सैन्य सफलता तहमाश्प से देखी नहीं गई। उसे तख्तापलट का डर होने लगा। उसने अपनी सैन्य योग्यता साबित करने के मकसद से उस्मानों के साथ फिर से युद्ध शुरू कर दिया जिसका अन्त उसके लिए शर्मनाक रहा और उसे नादिर द्वारा जीते हुए कुछ प्रदेश उस्मानों को लौटाने पड़े। नादिर जब [[हेरात]] से लौटा तो यह देखकर क्षुब्ध हुआ। उसने जनता से अपना समर्थन माँगा। इसी समय उसने इस्फ़हान में एक दिन तहमाश्प (तहमास्य) को नशे की हालत में ये समझाया कि वो शासन के लिए अयोग्य है और उसके ये इशारे पर दरबारियों ने तहमाश्प के नन्हें बेटे [[अब्बास]] को गद्दी पर बिठा दिया। उसके राज्याभिषेक के समय नादिर ने घोषणा की कि वो कन्दहार, दिल्ली, बुखारा और [[इस्ताम्बुल]] के शासकों को हराएगा। दरबार में उपस्थित लोगों को लगा कि ये आत्मप्रवंचना का चरम के अतिरिक्त कुछ नहीं है। पर आने वाले समय में उनको पता चला कि ऐसा नहीं था। उसने पश्चिम की दिशा में उस्मानों पर आक्रमण के लिए सेना तैयार की। पर अपने पहले आक्रमण में उसे पराजम मिली। उस्मानों ने बग़दाद की रक्षा के लिए एक भारी सेना भेज दी जिसका नादिर कोई जबाब नहीं दे पाया। लेकिन कुछ महीनों के भीतर उसने सेना फिर से संगठित की। इस बार उसने [[किरकुक]] के पास उस्मानियों को हरा दिया। [[येरावन]] के पास जून १७३५ में उसने रूसियों की मदद से उस्मानियों को एक बार फिर से हरा दिया। इस समझौते के तहत रूसी भी फारसी प्रदेशों से वापस कूच कर गए।


==नादिर शाह ==
==नादिर शाह ==
नादिर ने 1736 में अपने सेनापतियों, प्रान्तपालों तथा कई समर्थकों के समक्ष खुद को शाह घोषित कर दिया ।
नादिर ने १७३६ में अपने सेनापतियों, प्रान्तपालों तथा कई समर्थकों के समक्ष खुद को शाह घोषित कर दिया।
===धार्मिक नीति===
===धार्मिक नीति===
ईरान के धार्मिक इतिहास में [[शिया]] इस्लाम और सुन्नियों द्वारा उनपर ढाए जुल्म का बहुत महत्व है । सफ़वी शिया थे और उनके तहत शिया लोगों को अरबों (सुन्नियों) के जुल्म से छुटकारा मिला था । आज ईरान की जनता शिया है और वहाँ शुरुआती तीन [[ख़लीफा|खलीफाओं]] को गाली देने की परम्परा है । नादिर शाह ने अपनी गद्दी सम्हालने वक्त ये शर्त रखी कि लोग उन खलीफाओं के प्रति ये अनादर भाव छोड़ देंगे । इससे उसे फ़ायदा भी मिला । ईरान में शिया सुन्नी तनाव तो कम हुआ ही साथ ही ईरान को इस्लाम के दूसरे केन्द्र के रूप में देखा जाने लगा ।
ईरान के धार्मिक इतिहास में [[शिया]] इस्लाम और सुन्नियों द्वारा उनपर ढाए जुल्म का बहुत महत्त्व है। सफ़वी शिया थे और उनके तहत शिया लोगों को अरबों (सुन्नियों) के जुल्म से छुटकारा मिला था। आज ईरान की जनता शिया है और वहाँ शुरुआती तीन [[ख़लीफा|खलीफाओं]] को गाली देने की परम्परा है। नादिर शाह ने अपनी गद्दी सम्हालने वक्त ये शर्त रखी कि लोग उन खलीफ़ाओं के प्रति ये अनादर भाव छोड़ देंगे। इससे उसे फ़ायदा भी मिला। ईरान में शिया सुन्नी तनाव तो कम हुआ ही साथ ही ईरान को इस्लाम के दूसरे केन्द्र के रूप में देखा जाने लगा।


नादिर अर्मेनियों के साथ भी उदार धार्मिक सम्बंध रखता था । उसका शासन [[यहूदी|यहूदियों]] को लिए भी एक सुकून का समय था । अपने साम्राज्य के अन्दर (फारस में) उसने सुन्नी मजहब को जनता पर लादने की कोई कोशिश नहीं कि लेकिन सम्राज्य के बाहर वो सुन्नी परिवर्तित राज्य के शाह के रूप में जाना जाने लगा । उसकी तुलना उस्मानी साम्राज्य से की जाने लगी जो उस समय इस्लाम का सर्वेसर्वा थे । [[मक्का]] उस समय उस्मानियों के ही अधीन था ।
नादिर अर्मेनियों के साथ भी उदार धार्मिक सम्बंध रखता था। उसका शासन [[यहूदी|यहूदियों]] को लिए भी एक सुकून का समय था। अपने साम्राज्य के अन्दर (फारस में) उसने सुन्नी मज़हब को जनता पर लादने की कोई कोशिश नहीं कि लेकिन सम्राज्य के बाहर वो सुन्नी परिवर्तित राज्य के शाह के रूप में जाना जाने लगा। उसकी तुलना उस्मानी साम्राज्य से की जाने लगी जो उस समय इस्लाम का सर्वेसर्वा थे। [[मक्का]] उस समय उस्मानियों के ही अधीन था।


===भारत पर आक्रमण ===
===भारत पर आक्रमण ===
पश्चिम की दिशा में संतुष्ट होने के बाद नादिर शाह ने पूरब की ओर अपना ध्यान केंद्रित किया । सैन्य खर्च का भार जनता पर पड़ा । उसने [[कन्दहार]] पर अधिकार कर लिया । इस बात का बहाना बना कर कि मुगलों ने अफ़गान भगोड़ों को शरण दे रखी है उसने मुगल साम्राज्य की ओर कूच किया । [[काबुल]] पर कब्जा़ करने के बाद उसने [[दिल्ली]] पर आक्रमण किया । [[करनाल]] में मुगल राजा मोहम्मद शाह और नादिर की सेना के बीच लड़ाई हुई । इसमें नादिर की सेना मुग़लों के मुकाबले छोटी थी पर अपने बारूदी अस्त्रों के कारण फ़ारसी सेना जीत गई । उसके मार्च 1739 में दिल्ली पहुँचने पर ये अफवाह फैली कि नादिर शाह मारा गया । इससे दिल्ली में भगदड़ मच गई और फारसी सेना का कत्ल शुरु हो गया । उसने इसका बदला लेने के लिए दिल्ली में भयानक खूनखराबा किया और एक दिन में कोई 20,000 - 22,000 लोग मार दिए । इसके अलावा उसने शाह से भयानक धनराशि भी ली । मोहम्मद शाह ने सिंधु नदी के पश्चिम की सारी भीमि भी नादिरशाह को दान में दे दी । हीरे जवाहरात का एक ज़खीरा भी उसे भेंट किया गया जिसमें [[कोहेनूर]] (''कूह - ए - नूर'') , ''दरिया - नूर'' और ''ताज - ए - मह'' शामिल थे जिनकी एक अपनी खूनी कहानी है । नादिर को जो सम्पदा मिली वो करीब 70 करोड़ रुपयों की थी । यह राशि अपने तत्कालीन [[सप्तवर्षीय युद|सातवर्षीय युद्ध]] (1756-1763) के तुल्य था जिसमें [[फ्रांस]] की सरकार ने [[ऑस्ट्रिया]] की सरकार को दिया था । नादिर ने दिल्ली में साम्राज्य विस्तार का लक्ष्य नहीं रखा । उसका उद्देश्य अपनी सेना के लिए आवश्यक धनराशि इकठ्ठा करनी थी जो उसे मिल गई थी । कहा जाता है कि दिल्ली से लौटने पर उसके पास इतना धन हो गया था कि अगले तीन वर्षों तक उसने जनता से कर नहीं लिया था ।
पश्चिम की दिशा में संतुष्ट होने के बाद नादिर शाह ने पूरब की ओर अपना ध्यान केंद्रित किया। सैन्य खर्च का भार जनता पर पड़ा। उसने [[कन्दहार]] पर अधिकार कर लिया। इस बात का बहाना बना कर कि मुगलों ने अफ़गान भगोड़ों को शरण दे रखी है उसने मुगल साम्राज्य की ओर कूच किया। [[काबुल]] पर कब्जा़ करने के बाद उसने [[दिल्ली]] पर आक्रमण किया। [[करनाल]] में मुगल राजा मोहम्मद शाह और नादिर की सेना के बीच लड़ाई हुई। इसमें नादिर की सेना मुग़लों के मुकाबले छोटी थी पर अपने बारूदी अस्त्रों के कारण फ़ारसी सेना जीत गई। उसके मार्च १७३९ में दिल्ली पहुँचने पर ये अफ़वाह फैली कि नादिर शाह मारा गया। इससे दिल्ली में भगदड़ मच गई और फारसी सेना का कत्ल शुरू हो गया। उसने इसका बदला लेने के लिए दिल्ली में भयानक खूनखराबा किया और एक दिन में कोई २०,००० - २२,००० लोग मार दिए। इसके अलावा उसने शाह से भयानक धनराशि भी ली। मोहम्मद शाह ने सिंधु नदी के पश्चिम की सारी भीमि भी नादिरशाह को दान में दे दी। हीरे जवाहरात का एक ज़खीरा भी उसे भेंट किया गया जिसमें [[कोहेनूर]] (''कूह - ए - नूर'') , ''दरिया - नूर'' और ''ताज - ए - मह'' शामिल थे जिनकी एक अपनी खूनी कहानी है। नादिर को जो सम्पदा मिली वो करीब ७० करोड़ रुपयों की थी। यह राशि अपने तत्कालीन [[सप्तवर्षीय युद|सातवर्षीय युद्ध]] (१७५६-१७६३) के तुल्य था जिसमें [[फ्रांस]] की सरकार ने [[ऑस्ट्रिया]] की सरकार को दिया था। नादिर ने दिल्ली में साम्राज्य विस्तार का लक्ष्य नहीं रखा। उसका उद्देश्य अपनी सेना के लिए आवश्यक धनराशि इकठ्ठा करनी थी जो उसे मिल गई थी। कहा जाता है कि दिल्ली से लौटने पर उसके पास इतना धन हो गया था कि अगले तीन वर्षों तक उसने जनता से कर नहीं लिया था।


==दिल्ली के बाद==
==दिल्ली के बाद==
[[Image:Afsharid Dynasty 1736 - 1802 (AD).PNG|thumb|400px|left|नादिर शाह के [[अफ़्शरी वंश]] (1736-1802) का साम्राज्य]]
[[Image:Afsharid Dynasty 1736 - 1802 (AD).PNG|thumb|400px|left|नादिर शाह के [[अफ़्शरी वंश]] (१७३६-१८०२) का साम्राज्य]]
दिल्ली से लौटने पर उसे पता चला कि उसके बेटे [[रज़ा कोली]], जिसे कि उसने अपनी अनुपस्थिति में वॉयसराय बना दिया था, ने साफ़वी शाह तहामाश्प और अब्बास की हत्या कर दी है । इससे उसको भनक मिली कि रज़ा उसके ख़िलाफ भी षडयंत्र रच रहा है । इसी डर से उसने रज़ा को वायसराय से पदच्युत कर दिया । इसके बाद वो [[तुर्केस्तान]] के अभियान पर गया और उसके बाद [[दागेस्तान]] के विद्रोह को दमन करने निकला । पर यहाँ पर उसे सफलता नहीं मिली । लेज़्गों ने खंदक युद्ध नीति अपनाई और रशद के कारवाँ पर आक्रमण कर नादिर को परेशान कर डाला । जब वो दागेस्तान (1742) में था तो नादिर को खबर मिली कि रज़ा उसको मारने की योजना बना रहा है । इससे वो क्षुब्ध हुआ और उसने रज़ा को अंधा कर दिया । रज़ा ने कहा कि वो निर्दोष है पर नादिर ने उसकी एक न सुनी । लेकिन कुछ ही दिन बाद नादिर को अपनी ग़लती पर खेद हुआ । इस समय नादिर बीमार हो चला था और अपने बेटे को अंधा करने के कारण बहुत क्षुब्ध । नादिरशाह ने आदेश दिया कि उन सरदारों के सिर उड़ा दिए जायें जिन्होंने उसके बेटे रीज़ा कुली की आंखें फ़ोड़ी जाते देखा है। नादिरशाह ने उन सरदारों की ग़लती यह ठहराई कि उनमें से किसी ने ये क्यों नहीं कहा कि रीज़ा कुली के बजाये उसकी आंखें फ़ोड़ दी जायें । दागेस्तान की असफलता भी उसे खाए जा रही थी । धीरे धीरे वह और अत्याचारी बनता गया । उसने दागेस्तान से खाली हाथ वापस लौटने के बाद उसने अपनी सेना एक बहुत पुराने लक्ष्य के लिए फिर से संगठित की - पश्चिम का उस्मानी साम्राज्य । उस समय जब सेना संगठित हुई तो उसकी गिनती थी - 3,75,000 सैनिक । इतनी बड़ी सेना उस समय शायद ही किसी साम्राज्य के पास हो । ईरान की ख़ुद की सेना इतनी बड़ी 1980 - 1988 के [[ईरान - इराक युद्ध]] से पहले फ़िर कभी नहीं हुई ।
दिल्ली से लौटने पर उसे पता चला कि उसके बेटे [[रज़ा कोली]], जिसे कि उसने अपनी अनुपस्थिति में वॉयसराय बना दिया था, ने साफ़वी शाह तहामाश्प और अब्बास की हत्या कर दी है। इससे उसको भनक मिली कि रज़ा उसके ख़िलाफ़ भी षडयंत्र रच रहा है। इसी डर से उसने रज़ा को वायसराय से पदच्युत कर दिया। इसके बाद वो [[तुर्केस्तान]] के अभियान पर गया और उसके बाद [[दागेस्तान]] के विद्रोह को दमन करने निकला। पर यहाँ पर उसे सफलता नहीं मिली। लेज़्गों ने खंदक युद्ध नीति अपनाई और रशद के कारवाँ पर आक्रमण कर नादिर को परेशान कर डाला। जब वो दागेस्तान (१७४२) में था तो नादिर को ख़बर मिली कि रज़ा उसको मारने की योजना बना रहा है। इससे वो क्षुब्ध हुआ और उसने रज़ा को अंधा कर दिया। रज़ा ने कहा कि वो निर्दोष है पर नादिर ने उसकी एक न सुनी। लेकिन कुछ ही दिन बाद नादिर को अपनी ग़लती पर खेद हुआ। इस समय नादिर बीमार हो चला था और अपने बेटे को अंधा करने के कारण बहुत क्षुब्ध। नादिरशाह ने आदेश दिया कि उन सरदारों के सिर उड़ा दिए जायें जिन्होंने उसके बेटे रीज़ा कुली की आँखें फ़ोड़ी जाते देखा है। नादिरशाह ने उन सरदारों की ग़लती यह ठहराई कि उनमें से किसी ने ये क्यों नहीं कहा कि रीज़ा कुली के बजाये उसकी आँखें फ़ोड़ दी जायें। दागेस्तान की असफलता भी उसे खाए जा रही थी। धीरे-धीरे वह और अत्याचारी बनता गया। उसने दागेस्तान से खाली हाथ वापस लौटने के बाद उसने अपनी सेना एक बहुत पुराने लक्ष्य के लिए फिर से संगठित की - पश्चिम का उस्मानी साम्राज्य। उस समय जब सेना संगठित हुई तो उसकी गिनती थी - ,७५,००० सैनिक। इतनी बड़ी सेना उस समय शायद ही किसी साम्राज्य के पास हो। ईरान की ख़ुद की सेना इतनी बड़ी १९८० - १९८८ के [[ईरान - इराक युद्ध]] से पहले फ़िर कभी नहीं हुई।


सन् 1743 में उसने उस्मानी [[इराक]] पर हमला किया । शहरों को छोड़ कर कहीँ भी उसे बहुत विरोध का समाना नहीं करना पड़ा । [[किरकुक]] पर उसका अधिकार हो गया लेकिन [[बग़दाद]] और [[बसरा]] में उसे सफलता नहीं मिली । [[मोसूल]] में उसके महत्वाकांक्षा का अंत हुआ और उसे उस्मानों के साथ समझौता करना पड़ा । नादिर को ये समझ में आया कि उस्मानी उसके नियंत्रण में नहीं आ सकते । इधर नए उस्मानी सैनिक उसके खिलाफ भेजे गए । नादिरशाह के बेटे नसिरुल्लाह ने इनमें से एक को हराया जबरि नादिर में येरावन के निकट 1745 में एक दूसरे जत्थे को हराया । पर यह उसकी आख़िरी बड़ी जीत थी । इसमें उस्मानों ने उसे [[नज़फ़]] पर शासन का अधिकार दिया ।
सन् १७४३ में उसने उस्मानी [[इराक]] पर हमला किया। शहरों को छोड़ कर कहीं भी उसे बहुत विरोध का सामना नहीं करना पड़ा। [[किरकुक]] पर उसका अधिकार हो गया लेकिन [[बग़दाद]] और [[बसरा]] में उसे सफलता नहीं मिली। [[मोसूल]] में उसके महत्त्वाकांक्षा का अंत हुआ और उसे उस्मानों के साथ समझौता करना पड़ा। नादिर को ये समझ में आया कि उस्मानी उसके नियंत्रण में नहीं आ सकते। इधर नए उस्मानी सैनिक उसके खिलाफ़ भेजे गए। नादिरशाह के बेटे नसिरुल्लाह ने इनमें से एक को हराया जबरि नादिर में येरावन के निकट १७४५ में एक दूसरे जत्थे को हराया। पर यह उसकी आख़िरी बड़ी जीत थी। इसमें उस्मानों ने उसे [[नज़फ़]] पर शासन का अधिकार दिया।


==अन्त और चरित==
==अन्त और चरित==
[[Image:Nadershahtomb.jpg|thumb|right|400px|[[मशहद]] में नादिर शाह का मकबरा - एक पर्यटक स्थल ]]
[[Image:Nadershahtomb.jpg|thumb|right|400px|[[मशहद]] में नादिर शाह का मकबरा - एक पर्यटक स्थल ]]
नादिर का अन्त उसकी बीमारियों से घिरा रहा । वह दिनानुदिन बीमार, अत्याचारी और कट्टर हो चला था । अपने आख़िरी दिनों में उसने जनता पर भारी कर लगाए और यहाँ तक कि अपने करीबी रिश्तेदारों से भी धन की माँग करने लगा था । उसका सैन्य खर्च काफ़ी बढ़ गया था । उसके भतीजे [[अली कोली]] ने उसके आदेशों को मानने से मना कर दिया । जून 1747 में [[मशहद]] के निकट उसके अपने ही अंगरक्षकों ने उसकी हत्या कर डाली ।
नादिर का अन्त उसकी बीमारियों से घिरा रहा। वह दिनानुदिन बीमार, अत्याचारी और कट्टर हो चला था। अपने आख़िरी दिनों में उसने जनता पर भारी कर लगाए और यहाँ तक कि अपने करीबी रिश्तेदारों से भी धन की माँग करने लगा था। उसका सैन्य खर्च काफ़ी बढ़ गया था। उसके भतीजे [[अली कोली]] ने उसके आदेशों को मानने से मना कर दिया। जून १७४७ में [[मशहद]] के निकट उसके अपने ही अंगरक्षकों ने उसकी हत्या कर डाली।


नादिर शाह की उपलब्धियाँ अधिक दिनों तक टिक नहीं सकीं । उसके मरने के बाद अली कोली अपने को शाह घोषित कर दिया । उसने अपना नाम [[आदिल शाह]] रख लिया । नादिर के मरने के बाद सेना तितर बितर हो गई और साम्राज्य को क्षत्रपों ने स्वतंत्र रूप से शासन करना शुरु कर दिया । यूरोपीय प्रभाव भी बढ़ता ही गया ।
नादिर शाह की उपलब्धियाँ अधिक दिनों तक टिक नहीं सकीं। उसके मरने के बाद अली कोली अपने को शाह घोषित कर दिया। उसने अपना नाम [[आदिल शाह]] रख लिया। नादिर के मरने के बाद सेना तितर बितर हो गई और साम्राज्य को क्षत्रपों ने स्वतंत्र रूप से शासन करना शुरू कर दिया। यूरोपीय प्रभाव भी बढ़ता ही गया।


नादिर को यूरोप में एक विजेता के रूप में ख्याति मिली थी । सन् 1768 में [[डेनमार्क]] के [[क्रिश्चियन सप्तम]] ने [[सर विलियम जोन्स]] को नादिर के इतिहासकार मंत्री [[मिर्ज़ा महदी अस्तराब्दाली]] द्वारा लिखी उसकी जीवनी को [[फ़ारसी]] से [[फ्रेंच]] में अनुवाद करने का आदेश दिया । 1739 में उसकी भारत विजय के बाद [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] को मुग़लों की कमजोरी का पता चला और उन्होंने भारत में साम्राज्य विस्तार को एक मौका समझ कर दमखम लगाकर कोशिश की । अगर नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण नहीं करता तो ब्रिटिश शायद इस तरह से भारत में अधिकार करने के बारे शायद सोच भी नहीं पाते या इतने बड़े पैमाने पर भारतीय शासन को चुनौती नहीं देते ।
नादिर को यूरोप में एक विजेता के रूप में ख्याति मिली थी। सन् १७६८ में [[डेनमार्क]] के [[क्रिश्चियन सप्तम]] ने [[सर विलियम जोन्स]] को नादिर के इतिहासकार मंत्री [[मिर्ज़ा महदी अस्तराब्दाली]] द्वारा लिखी उसकी जीवनी को [[फ़ारसी]] से [[फ्रेंच]] में अनुवाद करने का आदेश दिया। १७३९ में उसकी भारत विजय के बाद [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] को मुग़लों की कमज़ोरी का पता चला और उन्होंने भारत में साम्राज्य विस्तार को एक मौका समझ कर दमखम लगाकर कोशिश की। अगर नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण नहीं करता तो ब्रिटिश शायद इस तरह से भारत में अधिकार करने के बारे शायद सोच भी नहीं पाते या इतने बड़े पैमाने पर भारतीय शासन को चुनौती नहीं देते।


[[श्रेणी:ईरान का इतिहास]]
[[श्रेणी:ईरान का इतिहास]]

14:58, 13 जुलाई 2008 का अवतरण

साँचा:ज्ञानसन्दूक शासक


नादिर शाह अफ़्शार (या नादिर कोली बेग़) (१६८८ - १७४७) फ़ारस का शाह था (१७३६ - १७४७) और उसने सदियों के बाद क्षेत्र में ईरानी प्रभुता स्थापित की थी। उसने अपना जीवन दासता से आरंभ किया था और फारस का शाह ही नहीं बना बल्कि उसने उस समय ईरानी साम्राज्य के सबल शत्रु उस्मानी साम्राज्य और रूसी साम्राज्य को ईरानी क्षेत्रों से बाहर निकाला।

उसने अफ़्शरी वंश की स्थापना की थी और उसका उदय उस समय हुआ जब ईरान में पश्चिम से उस्मानी साम्राज्य (ऑटोमन) का आक्रमण हो रहा था और पूरब से अफ़गानों ने सफ़ावी राजधानी इस्फ़हान पर अधिकार कर लिया था। उत्तर से रूस भी फ़ारस में साम्राज्य विस्तार की योजना बना रहा था। इस परिस्थिति में भी उसने अपनी सेना संगठित की और अपने सैन्य अभियानों की वज़ह से उसे फ़ारस का नेपोलियन या एशिया का अन्तिम महान सेनानायक जैसी उपाधियों से सम्मानित किया जाता है।

वो भारत विजय के अभियान पर भी निकला था। दिल्ली की सत्ता पर आसीन मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह आलम को हराने के बाद उसने वहाँ से अपार सम्पत्ति अर्जित की जिसमें कोहिनूर हीरा भी शामिल था। इसके बाद वो अपार शक्तिशाली बन गया और उसका स्वास्थ्य भी बिगड़ता गया। अपने जीवन के उत्तरार्ध में वो बहुत अत्याचारी बन गया था। सन् १७४७ में उसकी हत्या के बाद उसका साम्राज्य जल्द ही तितर-बितर हो गया।

गुमनामी से आग़ाज़

नादिर का जन्म खोरासान (उत्तर पूर्वी ईरान) में अफ़्शार क़ज़लबस कबीले में एक साधारण परिवार में हुआ था। उसके पिता एक साधारण किसान थे जिनकी मृत्यु नादिर के बाल्यकाल में ही हो गई थी। नादिर के बारे में कहा जाता है कि उसकी माँ को उसके साथ उज़्बेकों ने दास (ग़ुलाम) बना लिया था। पर नादिर भाग सकने में सफ़ल रहा और वो एक अफ़्शार कबीले में शामिल हो गया और कुछ ही दिनों में उसके एक तबके का प्रमुख बन बैठा। जल्द ही वो एक सफल सैनिक के रूप में उभरा और उसने एक स्थानीय प्रधान बाबा अली बेग़ की दो बेटियों से शादी कर ली।

नादिर एक लम्बा, सजीला और शोख काली आँखों वाला नौजवान था। वो अपने शत्रुओं के प्रति निर्दय था लेकिन अपने अनुचरों और सैनिकों के प्रति उदार। उसे घुड़सवारी बहुत पसन्द थी और घोड़ों का बहुत शौक था। उसकी आवाज़ बहुत गम्भीर थी और ये भी उसकी सफलता की कई वज़हों में से एक माना जाता है। वह एक तुर्कमेन था और उसके कबीले ने शाह इस्माइल प्रथम के समय से ही साफ़वियों की बहुत मदद की थी।

साफवियों का अन्त

उस समय फ़ारस की गद्दी पर साफ़वियों का शासन था। लेकिन नादिर शाह का भविष्य शाह के तख़्तापलट के कारण नहीं बना जो कि प्रायः कई सफल सेनानायकों के साथ होता है। उसने साफवियों का साथ दिया। उस समय साफ़वी अपने पतनोन्मुख साम्राज्य में नादिर शाह को पाकर बहुत प्रसन्न हुए। एक तरफ़ से उस्मानी साम्राज्य (ऑटोमन तुर्क) तो दूसरी तरफ़ से अफ़गानों के विद्रोह ने साफवियों की नाक में दम कर रखा था। इसके अलावा उत्तर से रूसी साम्राज्य भी निगाहें गड़ाए बैठा था। शाह सुल्तान हुसैन के बेटे तहमास्य (तहमाश्प) को नादिर का साथ मिला। उसके साथ मिलकर उसने उत्तरी ईरान में मशहद (ख़ोरासान की राजधानी) से अफगानों को भगाकर अपने अधिकार में ले लिया। उसकी इस सेवा से प्रभावित होकर उसे तहमास्य कोली ख़ान ('तहमास्प का सेवक' या 'गुलाम-ए-तहमास्य') की उपाधि मिली। यह एक सम्मान था क्योंकि इससे उसे शाही नाम मिला था। पर नादिर इतने पर मुतमयिन (संतुष्ट) हो जाने वाला सेनानायक नहीं था।

नादिर ने इसके बाद हेरात के अब्दाली अफ़ग़ानों को परास्त किया। तहमाश्प के दरबार में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के बाद उसने १७२९ में राजधानी इस्फ़हान पर कब्ज़ा कर चुके अफ़ग़ानों पर आक्रमण करने की योजना बनाई। इस समय एक यूनानी व्यापारी और पर्यटक बेसाइल वतात्ज़ेस ने नादिर के सैन्य अभ्यासों को आँखों से देखा था। उसने बयाँ किया - नादिर अभ्यास क्षेत्र में घुसने के बाद अपने सेनापतियों के अभिवादन की स्वीकृति में अपना सर झुकाता था। उसके बाद वो अपना घोड़ा रोकता था और कुछ देर तक सेना का निरीक्षण एकदम चुप रहकर करता था। वो अभ्यास आरंभ होने की अनुमति देता था। इसके बाद अभ्यास आरंभ होता था - चक्र, व्यूह रचना और घुड़सवारी इत्यादि.. नादिर खुद तीन घंटे तक घोड़े पर अभ्यास करता था।

सन १७२९ के अन्त तक उसने अप़गानों को तीन बार हराया और इस्फ़हान वापस अपने नियंत्रण में ले लिया। उसने अफ़गानों को महफ़ूज (सुरक्षित) तरीके से भागने दे दिया। इसके बाद उसने भारी सैन्य अभियान की योजना बनाई। जिसके लिए उसने शाह तहमाश्प को कर वसूलने पर मजबूर किया। पश्चिम की दिशा से उस्मानी तुर्क (ऑटोमन)प्रभुत्व में थे। अभी तक नादिर के अभियान उत्तरी, केन्द्रीय तथा पूर्वी ईरान, और उससे सटे अफ़गानिस्तान तक सीमित रहे थे। उसने उस्मानियों को पश्चिम से मार भगाया और उसके तुरंत बाद वह पूरब में हेरात की तरफ़ बढ़ा जहाँ पर उसने हेरात पर नियंत्रण कर लिया।

उसकी सैन्य सफलता तहमाश्प से देखी नहीं गई। उसे तख्तापलट का डर होने लगा। उसने अपनी सैन्य योग्यता साबित करने के मकसद से उस्मानों के साथ फिर से युद्ध शुरू कर दिया जिसका अन्त उसके लिए शर्मनाक रहा और उसे नादिर द्वारा जीते हुए कुछ प्रदेश उस्मानों को लौटाने पड़े। नादिर जब हेरात से लौटा तो यह देखकर क्षुब्ध हुआ। उसने जनता से अपना समर्थन माँगा। इसी समय उसने इस्फ़हान में एक दिन तहमाश्प (तहमास्य) को नशे की हालत में ये समझाया कि वो शासन के लिए अयोग्य है और उसके ये इशारे पर दरबारियों ने तहमाश्प के नन्हें बेटे अब्बास को गद्दी पर बिठा दिया। उसके राज्याभिषेक के समय नादिर ने घोषणा की कि वो कन्दहार, दिल्ली, बुखारा और इस्ताम्बुल के शासकों को हराएगा। दरबार में उपस्थित लोगों को लगा कि ये आत्मप्रवंचना का चरम के अतिरिक्त कुछ नहीं है। पर आने वाले समय में उनको पता चला कि ऐसा नहीं था। उसने पश्चिम की दिशा में उस्मानों पर आक्रमण के लिए सेना तैयार की। पर अपने पहले आक्रमण में उसे पराजम मिली। उस्मानों ने बग़दाद की रक्षा के लिए एक भारी सेना भेज दी जिसका नादिर कोई जबाब नहीं दे पाया। लेकिन कुछ महीनों के भीतर उसने सेना फिर से संगठित की। इस बार उसने किरकुक के पास उस्मानियों को हरा दिया। येरावन के पास जून १७३५ में उसने रूसियों की मदद से उस्मानियों को एक बार फिर से हरा दिया। इस समझौते के तहत रूसी भी फारसी प्रदेशों से वापस कूच कर गए।

नादिर शाह

नादिर ने १७३६ में अपने सेनापतियों, प्रान्तपालों तथा कई समर्थकों के समक्ष खुद को शाह घोषित कर दिया।

धार्मिक नीति

ईरान के धार्मिक इतिहास में शिया इस्लाम और सुन्नियों द्वारा उनपर ढाए जुल्म का बहुत महत्त्व है। सफ़वी शिया थे और उनके तहत शिया लोगों को अरबों (सुन्नियों) के जुल्म से छुटकारा मिला था। आज ईरान की जनता शिया है और वहाँ शुरुआती तीन खलीफाओं को गाली देने की परम्परा है। नादिर शाह ने अपनी गद्दी सम्हालने वक्त ये शर्त रखी कि लोग उन खलीफ़ाओं के प्रति ये अनादर भाव छोड़ देंगे। इससे उसे फ़ायदा भी मिला। ईरान में शिया सुन्नी तनाव तो कम हुआ ही साथ ही ईरान को इस्लाम के दूसरे केन्द्र के रूप में देखा जाने लगा।

नादिर अर्मेनियों के साथ भी उदार धार्मिक सम्बंध रखता था। उसका शासन यहूदियों को लिए भी एक सुकून का समय था। अपने साम्राज्य के अन्दर (फारस में) उसने सुन्नी मज़हब को जनता पर लादने की कोई कोशिश नहीं कि लेकिन सम्राज्य के बाहर वो सुन्नी परिवर्तित राज्य के शाह के रूप में जाना जाने लगा। उसकी तुलना उस्मानी साम्राज्य से की जाने लगी जो उस समय इस्लाम का सर्वेसर्वा थे। मक्का उस समय उस्मानियों के ही अधीन था।

भारत पर आक्रमण

पश्चिम की दिशा में संतुष्ट होने के बाद नादिर शाह ने पूरब की ओर अपना ध्यान केंद्रित किया। सैन्य खर्च का भार जनता पर पड़ा। उसने कन्दहार पर अधिकार कर लिया। इस बात का बहाना बना कर कि मुगलों ने अफ़गान भगोड़ों को शरण दे रखी है उसने मुगल साम्राज्य की ओर कूच किया। काबुल पर कब्जा़ करने के बाद उसने दिल्ली पर आक्रमण किया। करनाल में मुगल राजा मोहम्मद शाह और नादिर की सेना के बीच लड़ाई हुई। इसमें नादिर की सेना मुग़लों के मुकाबले छोटी थी पर अपने बारूदी अस्त्रों के कारण फ़ारसी सेना जीत गई। उसके मार्च १७३९ में दिल्ली पहुँचने पर ये अफ़वाह फैली कि नादिर शाह मारा गया। इससे दिल्ली में भगदड़ मच गई और फारसी सेना का कत्ल शुरू हो गया। उसने इसका बदला लेने के लिए दिल्ली में भयानक खूनखराबा किया और एक दिन में कोई २०,००० - २२,००० लोग मार दिए। इसके अलावा उसने शाह से भयानक धनराशि भी ली। मोहम्मद शाह ने सिंधु नदी के पश्चिम की सारी भीमि भी नादिरशाह को दान में दे दी। हीरे जवाहरात का एक ज़खीरा भी उसे भेंट किया गया जिसमें कोहेनूर (कूह - ए - नूर) , दरिया - नूर और ताज - ए - मह शामिल थे जिनकी एक अपनी खूनी कहानी है। नादिर को जो सम्पदा मिली वो करीब ७० करोड़ रुपयों की थी। यह राशि अपने तत्कालीन सातवर्षीय युद्ध (१७५६-१७६३) के तुल्य था जिसमें फ्रांस की सरकार ने ऑस्ट्रिया की सरकार को दिया था। नादिर ने दिल्ली में साम्राज्य विस्तार का लक्ष्य नहीं रखा। उसका उद्देश्य अपनी सेना के लिए आवश्यक धनराशि इकठ्ठा करनी थी जो उसे मिल गई थी। कहा जाता है कि दिल्ली से लौटने पर उसके पास इतना धन हो गया था कि अगले तीन वर्षों तक उसने जनता से कर नहीं लिया था।

दिल्ली के बाद

नादिर शाह के अफ़्शरी वंश (१७३६-१८०२) का साम्राज्य

दिल्ली से लौटने पर उसे पता चला कि उसके बेटे रज़ा कोली, जिसे कि उसने अपनी अनुपस्थिति में वॉयसराय बना दिया था, ने साफ़वी शाह तहामाश्प और अब्बास की हत्या कर दी है। इससे उसको भनक मिली कि रज़ा उसके ख़िलाफ़ भी षडयंत्र रच रहा है। इसी डर से उसने रज़ा को वायसराय से पदच्युत कर दिया। इसके बाद वो तुर्केस्तान के अभियान पर गया और उसके बाद दागेस्तान के विद्रोह को दमन करने निकला। पर यहाँ पर उसे सफलता नहीं मिली। लेज़्गों ने खंदक युद्ध नीति अपनाई और रशद के कारवाँ पर आक्रमण कर नादिर को परेशान कर डाला। जब वो दागेस्तान (१७४२) में था तो नादिर को ख़बर मिली कि रज़ा उसको मारने की योजना बना रहा है। इससे वो क्षुब्ध हुआ और उसने रज़ा को अंधा कर दिया। रज़ा ने कहा कि वो निर्दोष है पर नादिर ने उसकी एक न सुनी। लेकिन कुछ ही दिन बाद नादिर को अपनी ग़लती पर खेद हुआ। इस समय नादिर बीमार हो चला था और अपने बेटे को अंधा करने के कारण बहुत क्षुब्ध। नादिरशाह ने आदेश दिया कि उन सरदारों के सिर उड़ा दिए जायें जिन्होंने उसके बेटे रीज़ा कुली की आँखें फ़ोड़ी जाते देखा है। नादिरशाह ने उन सरदारों की ग़लती यह ठहराई कि उनमें से किसी ने ये क्यों नहीं कहा कि रीज़ा कुली के बजाये उसकी आँखें फ़ोड़ दी जायें। दागेस्तान की असफलता भी उसे खाए जा रही थी। धीरे-धीरे वह और अत्याचारी बनता गया। उसने दागेस्तान से खाली हाथ वापस लौटने के बाद उसने अपनी सेना एक बहुत पुराने लक्ष्य के लिए फिर से संगठित की - पश्चिम का उस्मानी साम्राज्य। उस समय जब सेना संगठित हुई तो उसकी गिनती थी - ३,७५,००० सैनिक। इतनी बड़ी सेना उस समय शायद ही किसी साम्राज्य के पास हो। ईरान की ख़ुद की सेना इतनी बड़ी १९८० - १९८८ के ईरान - इराक युद्ध से पहले फ़िर कभी नहीं हुई।

सन् १७४३ में उसने उस्मानी इराक पर हमला किया। शहरों को छोड़ कर कहीं भी उसे बहुत विरोध का सामना नहीं करना पड़ा। किरकुक पर उसका अधिकार हो गया लेकिन बग़दाद और बसरा में उसे सफलता नहीं मिली। मोसूल में उसके महत्त्वाकांक्षा का अंत हुआ और उसे उस्मानों के साथ समझौता करना पड़ा। नादिर को ये समझ में आया कि उस्मानी उसके नियंत्रण में नहीं आ सकते। इधर नए उस्मानी सैनिक उसके खिलाफ़ भेजे गए। नादिरशाह के बेटे नसिरुल्लाह ने इनमें से एक को हराया जबरि नादिर में येरावन के निकट १७४५ में एक दूसरे जत्थे को हराया। पर यह उसकी आख़िरी बड़ी जीत थी। इसमें उस्मानों ने उसे नज़फ़ पर शासन का अधिकार दिया।

अन्त और चरित

मशहद में नादिर शाह का मकबरा - एक पर्यटक स्थल

नादिर का अन्त उसकी बीमारियों से घिरा रहा। वह दिनानुदिन बीमार, अत्याचारी और कट्टर हो चला था। अपने आख़िरी दिनों में उसने जनता पर भारी कर लगाए और यहाँ तक कि अपने करीबी रिश्तेदारों से भी धन की माँग करने लगा था। उसका सैन्य खर्च काफ़ी बढ़ गया था। उसके भतीजे अली कोली ने उसके आदेशों को मानने से मना कर दिया। जून १७४७ में मशहद के निकट उसके अपने ही अंगरक्षकों ने उसकी हत्या कर डाली।

नादिर शाह की उपलब्धियाँ अधिक दिनों तक टिक नहीं सकीं। उसके मरने के बाद अली कोली अपने को शाह घोषित कर दिया। उसने अपना नाम आदिल शाह रख लिया। नादिर के मरने के बाद सेना तितर बितर हो गई और साम्राज्य को क्षत्रपों ने स्वतंत्र रूप से शासन करना शुरू कर दिया। यूरोपीय प्रभाव भी बढ़ता ही गया।

नादिर को यूरोप में एक विजेता के रूप में ख्याति मिली थी। सन् १७६८ में डेनमार्क के क्रिश्चियन सप्तम ने सर विलियम जोन्स को नादिर के इतिहासकार मंत्री मिर्ज़ा महदी अस्तराब्दाली द्वारा लिखी उसकी जीवनी को फ़ारसी से फ्रेंच में अनुवाद करने का आदेश दिया। १७३९ में उसकी भारत विजय के बाद अंग्रेज़ों को मुग़लों की कमज़ोरी का पता चला और उन्होंने भारत में साम्राज्य विस्तार को एक मौका समझ कर दमखम लगाकर कोशिश की। अगर नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण नहीं करता तो ब्रिटिश शायद इस तरह से भारत में अधिकार करने के बारे शायद सोच भी नहीं पाते या इतने बड़े पैमाने पर भारतीय शासन को चुनौती नहीं देते।