"आर्द्रभूमि": अवतरणों में अंतर
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पानी से संतृप्त (सचुरेटेड) भूभाग को आर्द्रभूमि ( wetland ) कहते हैं। कई भूभाग वर्षभर आर्द्र रहते हैं और अन्य कुछ विशेष मौसम में। जैवविविधता की दृष्टि से आर्द्रभूमियाँ अंत्यंत संवेदनशील होती हैं। विशेष प्रकार की वनस्पतियाँ ही आर्द्रभूमि पर उगने और फलने-फूलने के लिये अनुकूलित होती हैम्।
ईरान के रामसर शहर में १९७१ में पारित एक अभिसमय (convention) के अनुसार आर्द्रभूमि ऐसा स्थान है जहाँ वर्ष में आठ माह पानी भरा रहता है। रामसर अभिसमय के अन्तर्गत वैश्विक स्तर पर वर्तमान में कुल १९२९ से अधिक आर्द्रभूमियाँ हैं।.[1]
भारत में आर्द्रभूमि
भारत सरकार में शुष्क भूमि को भी रामसर आर्द्रभूमियों के अंतर्गत ही शामिल किया है। वर्तमान में भारत में कुल २५ रामसर आर्द्रभूमियाँ अधिसूचित हैं। भारत द्वारा २०१० में ३८ नये आर्द्रभूमियों को शामिल करने के लिए चिह्नित किया गया है। रामसर आर्द्रभूमि के रजिस्टर मॉण्ट्रक्स रिकॉर्ड्स के तहत उन आर्द्रभूमियों को शामिल किया जाता है, जो खतरे में हैं अथवा आ सकती हैं। इसके अनुसार भारत में केवलादेव (राजस्थान) और लोकटक झील (मणिपुर) खतरे में पड़ी आर्द्रभूमियाँ हैं। चिल्का झील (उड़ीसा) को इस रिकॉर्ड से बाहर कर दिया गया है।
आर्द्रभूमि संरक्षण और प्रबंधन अधिनियम २०१० (भारत)
वर्ष २०११ में भारत सरकार ने आर्द्रभूमि संरक्षण और प्रबंधन अधिनियम २०१० की अधिसूचना जारी किया है। इस अधिनियम के तहत आर्द्रभूमियों को निम्नलिखित छः वर्गों में बाँटा गया है।
- अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमियाँ।
- पर्यावरणीय आर्द्रभूमियाँ। यथा- राष्ट्रीय उद्यान, गरान आदि।
- यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल आर्द्रभूमियाँ।
- समुद्रतल से २५०० मीटर से कम ऊँचाई की ऐसी आर्द्रभूमियाँ जो ५०० हेक्टेयर से अधिक का क्षेत्रफल घेरती हों।
- समुद्रतल से २५०० मीटर से अधिक ऊँचाई किंतु ५ हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल।
- ऐसी आर्द्रभूमियाँ जिनकी पहचान प्राधिकरण ने की हो।
इस अधिनियम के तहत केंद्रीय आर्द्रभूमि विनियामक प्राधिकरण की स्थापना की गयी है। इस प्राधिकरण में अध्यक्ष सहित कुल १२ सदस्य होंगे। इसी अधिनियम के तहत ३८ नयी आर्द्रभूमियाँ पहचानी गयी हैं।