"वामनावतार": अवतरणों में अंतर

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'''वामन''' [[विष्णु]] के पाँचवे तथा [[त्रेता युग]] के पहले अवतार थे। इसके साथ ही यह विष्णु के पहले ऐसे अवतार थे जो मानव रूप में प्रकट हुए — अलबत्ता बौने ब्राह्मण के रूप में। इनको [[दक्षिण भारत]] में '''उपेन्द्र''' के नाम से भी जाना जाता है।
'''वामन''' [[विष्णु]] के पाँचवे तथा [[त्रेता युग]] के पहले अवतार थे। इसके साथ ही यह विष्णु के पहले ऐसे अवतार थे जो मानव रूप में प्रकट हुए — अलबत्ता बौने ब्राह्मण के रूप में। इनको [[दक्षिण भारत]] में '''उपेन्द्र''' के नाम से भी जाना जाता है।
==उत्पत्ति==
== उत्पत्ति ==
वामन ॠषि [[कश्यप]] तथा उनकी पत्नी [[अदिति]] के पुत्र थे।<ref>[http://www.sacred-texts.com/hin/vp/vp075.htm मनुस्मृति] सन् १८४० ई. में होरेस हेमैन विल्सन द्वारा अनुवादित [[विष्णु पुराण]] की पुस्तक संख्या ३ अध्याय १ में श्लोक २६५:२२</ref> वह [[आदित्य|आदित्यों]] में बारहवें थे। ऐसी मान्यता है कि वह [[इन्द्र]] के छोटे भाई थे।
वामन ॠषि [[कश्यप]] तथा उनकी पत्नी [[अदिति]] के पुत्र थे।<ref>[http://www.sacred-texts.com/hin/vp/vp075.htm मनुस्मृति] सन् १८४० ई. में होरेस हेमैन विल्सन द्वारा अनुवादित [[विष्णु पुराण]] की पुस्तक संख्या ३ अध्याय १ में श्लोक २६५:२२</ref> वह [[आदित्य|आदित्यों]] में बारहवें थे। ऐसी मान्यता है कि वह [[इन्द्र]] के छोटे भाई थे।
==कथा==
== कथा ==
[[File:Vamana1.jpg|thumb|वामन को तीन पैरों वाला दर्शाया गया है। एक पैर धरती पर, दूसरा आकाश अर्थात् देवलोक पर तथा तीसरा बली के सिर पर।]]
[[चित्र:Vamana1.jpg|thumb|वामन को तीन पैरों वाला दर्शाया गया है। एक पैर धरती पर, दूसरा आकाश अर्थात् देवलोक पर तथा तीसरा बली के सिर पर।]]
[[भागवत पुराण|भागवत]] कथा के अनुसार विष्णु ने इन्द्र का [[देवलोक]] में अधिकार पुनः स्थापित करने के लिए यह अवतार लिया। देवलोक [[असुर]] राजा '''[[बली]]''' ने हड़प लिया था। बली [[विरोचन]] के पुत्र तथा [[प्रह्लाद]] के पौत्र थे और एक दयालु असुर राजा के रूप में जाने जाते थे। यह भी कहा जाता है कि अपनी [[तपस्या]] तथा ताक़त के माध्यम से बली ने [[त्रिलोक]] पर आधिपत्य हासिल कर लिया था।<ref name=vaamana>{{cite web|url = http://indianmythology.com/finish/seestory.php?storyID=18 | title = वामनावतार|date = |accessdate = 2012-04-11}}</ref> वामन, एक बौने ब्राह्मण के वेष में बली के पास गये और उनसे अपने रहने के लिए तीन कदम के बराबर भूमि देने का आग्रह किया। उनके हाथ में एक लकड़ी का छाता था। गुरु [[शुक्राचार्य]] के चेताने के बावजूद बली ने वामन को वचन दे डाला। <br/>
[[भागवत पुराण|भागवत]] कथा के अनुसार विष्णु ने इन्द्र का [[देवलोक]] में अधिकार पुनः स्थापित करने के लिए यह अवतार लिया। देवलोक [[असुर]] राजा '''[[बली]]''' ने हड़प लिया था। बली [[विरोचन]] के पुत्र तथा [[प्रह्लाद]] के पौत्र थे और एक दयालु असुर राजा के रूप में जाने जाते थे। यह भी कहा जाता है कि अपनी [[तपस्या]] तथा ताक़त के माध्यम से बली ने [[त्रिलोक]] पर आधिपत्य हासिल कर लिया था।<ref name=vaamana>{{cite web|url = http://indianmythology.com/finish/seestory.php?storyID=18 | title = वामनावतार|date = |accessdate = 2012-04-11}}</ref> वामन, एक बौने ब्राह्मण के वेष में बली के पास गये और उनसे अपने रहने के लिए तीन कदम के बराबर भूमि देने का आग्रह किया। उनके हाथ में एक लकड़ी का छाता था। गुरु [[शुक्राचार्य]] के चेताने के बावजूद बली ने वामन को वचन दे डाला। <br />
वामन ने अपना आकार इतना बढ़ा लिया कि पहले ही कदम में पूरा [[भूलोक]] ([[पृथ्वी]]) नाप लिया। दूसरे कदम में देवलोक नाप लिया। इसके पश्चात् [[ब्रह्मा]] ने अपने कमण्डल के जल से वामन के पाँव धोये। इसी जल से [[गंगा]] उत्पन्न हुयीं।<ref>{{cite web|url = http://www.sanatansociety.org/hindu_gods_and_goddesses/vamana.htm|title = देवगण|date = |accessdate = 2012-04-11|work = सनातन सोसाइटी}} </ref> तीसरे कदम के लिए कोई भूमि बची ही नहीं। वचन के पक्के बली ने तब वामन को तीसरा कदम रखने के लिए अपना सिर प्रस्तुत कर दिया। वामन बली की वचनबद्धता से अति प्रसन्न हुये। चूँकि बली के दादा प्रह्लाद विष्णु के परम् भक्त थे, वामन (विष्णु) ने बाली को [[पाताल]] लोक देने का निश्चय किया और अपना तीसरा कदम बाली के सिर में रखा जिसके फलस्वरूप बली पाताल लोक में पहुँच गये।<br/>
वामन ने अपना आकार इतना बढ़ा लिया कि पहले ही कदम में पूरा [[भूलोक]] ([[पृथ्वी]]) नाप लिया। दूसरे कदम में देवलोक नाप लिया। इसके पश्चात् [[ब्रह्मा]] ने अपने कमण्डल के जल से वामन के पाँव धोये। इसी जल से [[गंगा]] उत्पन्न हुयीं।<ref>{{cite web|url = http://www.sanatansociety.org/hindu_gods_and_goddesses/vamana.htm|title = देवगण|date = |accessdate = 2012-04-11|work = सनातन सोसाइटी}} </ref> तीसरे कदम के लिए कोई भूमि बची ही नहीं। वचन के पक्के बली ने तब वामन को तीसरा कदम रखने के लिए अपना सिर प्रस्तुत कर दिया। वामन बली की वचनबद्धता से अति प्रसन्न हुये। चूँकि बली के दादा प्रह्लाद विष्णु के परम् भक्त थे, वामन (विष्णु) ने बाली को [[पाताल]] लोक देने का निश्चय किया और अपना तीसरा कदम बाली के सिर में रखा जिसके फलस्वरूप बली पाताल लोक में पहुँच गये।<br />
एक और कथा के अनुसार वामन ने बली के सिर पर अपना पैर रखकर उनको अमरत्व प्रदान कर दिया।<ref name=trivikrama>{{cite web|url = http://www.vaikhari.org/vamana.html|title = त्रिविक्रम|date = |accessdate = 2012-04-11|work = वैखरी}}</ref> विष्णु अपने विराट रूप में प्रकट हुये और राजा को '''महाबली''' की उपाधि प्रदान की क्योंकि बली ने अपनी धर्मपरायणता तथा वचनबद्धता के कारण अपने आप को [[महात्मा]] साबित कर दिया था। विष्णु ने महाबली को आध्यात्मिक आकाश जाने की अनुमति दे दी जहाँ उनका अपने सद्गुणी दादा प्रहलाद तथा अन्य दैवीय आत्माओं से मिलना हुआ।<ref name=trivikrama/>
एक और कथा के अनुसार वामन ने बली के सिर पर अपना पैर रखकर उनको अमरत्व प्रदान कर दिया।<ref name=trivikrama>{{cite web|url = http://www.vaikhari.org/vamana.html|title = त्रिविक्रम|date = |accessdate = 2012-04-11|work = वैखरी}}</ref> विष्णु अपने विराट रूप में प्रकट हुये और राजा को '''महाबली''' की उपाधि प्रदान की क्योंकि बली ने अपनी धर्मपरायणता तथा वचनबद्धता के कारण अपने आप को [[महात्मा]] साबित कर दिया था। विष्णु ने महाबली को आध्यात्मिक आकाश जाने की अनुमति दे दी जहाँ उनका अपने सद्गुणी दादा प्रहलाद तथा अन्य दैवीय आत्माओं से मिलना हुआ।<ref name=trivikrama/>


==प्रतीकात्मकता==
== प्रतीकात्मकता ==
वामनावतार के रूप में विष्णु ने बली को यह पाठ दिया कि दंभ तथा अहंकार से जीवन में कुछ हासिल नहीं होता है और यह भी कि धन-सम्पदा क्षणभंगुर होती है। ऐसा माना जाता है कि विष्णु के दिये वरदान के कारण प्रति वर्ष बली धरती पर अवतरित होते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि उनकी प्रजा खु़शहाल है।<ref name=trivikrama/>
वामनावतार के रूप में विष्णु ने बली को यह पाठ दिया कि दंभ तथा अहंकार से जीवन में कुछ हासिल नहीं होता है और यह भी कि धन-सम्पदा क्षणभंगुर होती है। ऐसा माना जाता है कि विष्णु के दिये वरदान के कारण प्रति वर्ष बली धरती पर अवतरित होते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि उनकी प्रजा खु़शहाल है।<ref name=trivikrama/>
==रामायण में==
== रामायण में ==
अध्यात्म रामायण के अनुसार वामनावतार महाबली के ग्रह सुताल के द्वारपाल बन गये<ref>P. 281 ''The Adhyatma Ramayana: Concise English Version'' By Chandan Lal Dhody </ref><ref> P. 134 ''{{IAST|Srī Rūpa Gosvāmī's Bhakti-rasāmṛta-Sindhuh}}'' By Rūpagosvāmī, Bhakti Hridaya Bon </ref> और सदैव बने रहेंगे।<ref> P. 134 ''Sri Rūpa Gosvāmīs Bhakti-rasāmrta-sindhuh'' By Rūpagosvāmī </ref> [[तुलसीदास]] द्वारा रचित [[रामचरितमानस]] में भी इसका ऐसा ही उल्लेख है।<ref> P. 246 ''Complete Works of Gosvami Tulsidas'' By Satya Prakash Bahadur, Tulasīdāsa </ref>
अध्यात्म रामायण के अनुसार वामनावतार महाबली के ग्रह सुताल के द्वारपाल बन गये<ref>P. 281 ''The Adhyatma Ramayana: Concise English Version'' By Chandan Lal Dhody </ref><ref> P. 134 ''{{IAST|Srī Rūpa Gosvāmī's Bhakti-rasāmṛta-Sindhuh}}'' By Rūpagosvāmī, Bhakti Hridaya Bon </ref> और सदैव बने रहेंगे।<ref> P. 134 ''Sri Rūpa Gosvāmīs Bhakti-rasāmrta-sindhuh'' By Rūpagosvāmī </ref> [[तुलसीदास]] द्वारा रचित [[रामचरितमानस]] में भी इसका ऐसा ही उल्लेख है।<ref> P. 246 ''Complete Works of Gosvami Tulsidas'' By Satya Prakash Bahadur, Tulasīdāsa </ref>


==सन्दर्भ==
== सन्दर्भ ==
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[[श्रेणी: संस्कृत ग्रंथ]]
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[[श्रेणी:संस्कृत साहित्य]]

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[[श्रेणी:वामन]]
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18:07, 15 फ़रवरी 2013 का अवतरण

वामन कुएँ से पानी निकालने जाते हुए
वामन

वामन विष्णु के पाँचवे तथा त्रेता युग के पहले अवतार थे। इसके साथ ही यह विष्णु के पहले ऐसे अवतार थे जो मानव रूप में प्रकट हुए — अलबत्ता बौने ब्राह्मण के रूप में। इनको दक्षिण भारत में उपेन्द्र के नाम से भी जाना जाता है।

उत्पत्ति

वामन ॠषि कश्यप तथा उनकी पत्नी अदिति के पुत्र थे।[1] वह आदित्यों में बारहवें थे। ऐसी मान्यता है कि वह इन्द्र के छोटे भाई थे।

कथा

वामन को तीन पैरों वाला दर्शाया गया है। एक पैर धरती पर, दूसरा आकाश अर्थात् देवलोक पर तथा तीसरा बली के सिर पर।

भागवत कथा के अनुसार विष्णु ने इन्द्र का देवलोक में अधिकार पुनः स्थापित करने के लिए यह अवतार लिया। देवलोक असुर राजा बली ने हड़प लिया था। बली विरोचन के पुत्र तथा प्रह्लाद के पौत्र थे और एक दयालु असुर राजा के रूप में जाने जाते थे। यह भी कहा जाता है कि अपनी तपस्या तथा ताक़त के माध्यम से बली ने त्रिलोक पर आधिपत्य हासिल कर लिया था।[2] वामन, एक बौने ब्राह्मण के वेष में बली के पास गये और उनसे अपने रहने के लिए तीन कदम के बराबर भूमि देने का आग्रह किया। उनके हाथ में एक लकड़ी का छाता था। गुरु शुक्राचार्य के चेताने के बावजूद बली ने वामन को वचन दे डाला।
वामन ने अपना आकार इतना बढ़ा लिया कि पहले ही कदम में पूरा भूलोक (पृथ्वी) नाप लिया। दूसरे कदम में देवलोक नाप लिया। इसके पश्चात् ब्रह्मा ने अपने कमण्डल के जल से वामन के पाँव धोये। इसी जल से गंगा उत्पन्न हुयीं।[3] तीसरे कदम के लिए कोई भूमि बची ही नहीं। वचन के पक्के बली ने तब वामन को तीसरा कदम रखने के लिए अपना सिर प्रस्तुत कर दिया। वामन बली की वचनबद्धता से अति प्रसन्न हुये। चूँकि बली के दादा प्रह्लाद विष्णु के परम् भक्त थे, वामन (विष्णु) ने बाली को पाताल लोक देने का निश्चय किया और अपना तीसरा कदम बाली के सिर में रखा जिसके फलस्वरूप बली पाताल लोक में पहुँच गये।
एक और कथा के अनुसार वामन ने बली के सिर पर अपना पैर रखकर उनको अमरत्व प्रदान कर दिया।[4] विष्णु अपने विराट रूप में प्रकट हुये और राजा को महाबली की उपाधि प्रदान की क्योंकि बली ने अपनी धर्मपरायणता तथा वचनबद्धता के कारण अपने आप को महात्मा साबित कर दिया था। विष्णु ने महाबली को आध्यात्मिक आकाश जाने की अनुमति दे दी जहाँ उनका अपने सद्गुणी दादा प्रहलाद तथा अन्य दैवीय आत्माओं से मिलना हुआ।[4]

प्रतीकात्मकता

वामनावतार के रूप में विष्णु ने बली को यह पाठ दिया कि दंभ तथा अहंकार से जीवन में कुछ हासिल नहीं होता है और यह भी कि धन-सम्पदा क्षणभंगुर होती है। ऐसा माना जाता है कि विष्णु के दिये वरदान के कारण प्रति वर्ष बली धरती पर अवतरित होते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि उनकी प्रजा खु़शहाल है।[4]

रामायण में

अध्यात्म रामायण के अनुसार वामनावतार महाबली के ग्रह सुताल के द्वारपाल बन गये[5][6] और सदैव बने रहेंगे।[7] तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस में भी इसका ऐसा ही उल्लेख है।[8]

सन्दर्भ

  1. मनुस्मृति सन् १८४० ई. में होरेस हेमैन विल्सन द्वारा अनुवादित विष्णु पुराण की पुस्तक संख्या ३ अध्याय १ में श्लोक २६५:२२
  2. "वामनावतार". अभिगमन तिथि 2012-04-11.
  3. "देवगण". सनातन सोसाइटी. अभिगमन तिथि 2012-04-11.
  4. "त्रिविक्रम". वैखरी. अभिगमन तिथि 2012-04-11.
  5. P. 281 The Adhyatma Ramayana: Concise English Version By Chandan Lal Dhody
  6. P. 134 Srī Rūpa Gosvāmī's Bhakti-rasāmṛta-Sindhuh By Rūpagosvāmī, Bhakti Hridaya Bon
  7. P. 134 Sri Rūpa Gosvāmīs Bhakti-rasāmrta-sindhuh By Rūpagosvāmī
  8. P. 246 Complete Works of Gosvami Tulsidas By Satya Prakash Bahadur, Tulasīdāsa