"अहिल्या स्थान": अवतरणों में अंतर
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{{ज्ञानसन्दूक धार्मिक स्थल |
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| नाम = अहिल्या स्थान (अहियारी गाँव) |
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10:06, 17 दिसम्बर 2012 का अवतरण
{{ | नाम = अहिल्या स्थान (अहियारी गाँव) | चित्र = ahilya sthan.jpg }}दरभंगा जिले सदर अनुमंडल के अंतर्गत अहियारी गाँव है, जो अहिल्या स्थान के नाम से विख्यात है । कमतौल रेलवे स्टेशन से उतरकर यहाँ पहुंचा जाता है । यह स्थान सीता की जन्मस्थली सीतामढ़ी से 40 कि मी पूर्व में स्थित है । कहा जाता है कि ऋषि विश्वामित्र की आज्ञा से इसी स्थान पर राम ने अहिल्या का उद्धार किया था ।
डॉ राम प्रकाश शर्मा के अनुसार "इसमें कोई संदेह नहीं है कि अहिल्या-नगरी अथवा गौतम आश्रम मिथिला में ही था । भोजपुर में राम ने ताड़का -बध किया था । वहाँ सानुज राम ने ऋषि विश्वामित्र की यज्ञ की रक्षा उत्पाती राक्षसों का अपनी शक्ति से दमन कर की थी । मिथिला राज्य में प्रवेश कर पहले राम ने अहिल्या का उद्धार किया , और तत्पश्चात वहाँ से प्राग उत्तर दिशा (ईशान कोण) में चलकर वे ऋषि विश्वामित्र के साथ विदेह नागरी जनकपुर पहुंचे । [1]
रामायण में वर्णित कथा के अनुसार राम और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिलापुरी के वन उपवन आदि देखने के लिये निकले तो उन्होंने एक उपवन में एक निर्जन स्थान देखा। राम बोले, "भगवन्! यह स्थान देखने में तो आश्रम जैसा दिखाई देता है किन्तु क्या कारण है कि यहाँ कोई ऋषि या मुनि दिखाई नहीं देते?" विश्वामित्र जी ने बताया, यह स्थान कभी महर्षि गौतम का आश्रम था। वे अपनी पत्नी के साथ यहाँ रह कर तपस्या करते थे। एक दिन जब गौतम ऋषि आश्रम के बाहर गये हुये थे तो उनकी अनुपस्थिति में इन्द्र ने गौतम ऋषि के वेश में आकर अहिल्या से प्रणय याचना की। यद्यपि अहिल्या ने इन्द्र को पहचान लिया था तो भी यह विचार करके कि मैं इतनी सुन्दर हूँ कि देवराज इन्द्र स्वयं मुझ से प्रणय याचना कर रहे हैं, अपनी स्वीकृति दे दी। जब इन्द्र अपने लोक लौट रहे थे तभी अपने आश्रम को वापस आते हुये गौतम ऋषि की दृष्टि इन्द्र पर पड़ी जो उन्हीं का वेश धारण किये हुये था। वे सब कुछ समझ गये और उन्होंने इन्द्र को शाप दे दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी को शाप दिया कि रे दुराचारिणी! तू हजारों वर्षों तक केवल हवा पीकर कष्ट उठाती हुई यहाँ राख में पड़ी रहे। जब राम इस वन में प्रवेश करेंगे तभी उनकी कृपा से तेरा उद्धार होगा। तभी तू अपना पूर्व शरीर धारण करके मेरे पास आ सकेगी। यह कह कर गौतम ऋषि इस आश्रम को छोड़कर हिमालय पर जाकर तपस्या करने लगे। इसलिये विश्वामित्र जी ने कहा "हे राम! अब तुम आश्रम के अन्दर जाकर अहिल्या का उद्धार करो।" विश्वामित्र जी की बात सुनकर वे दोनों भाई आश्रम के भीतर प्रविष्ट हुये। वहाँ तपस्या में निरत अहिल्या कहीं दिखाई नहीं दे रही थी, केवल उसका तेज सम्पूर्ण वातावरण में व्याप्त हो रहा था। जब अहिल्या की दृष्टि राम पर पड़ी तो उनके पवित्र दर्शन पाकर एक बार फिर सुन्दर नारी के रूप में दिखाई देने लगी। नारी रूप में अहिल्या को सम्मुख पाकर राम और लक्ष्मण ने श्रद्धापूर्वक उनके चरण स्पर्श किये। [2]उससे उचित आदर सत्कार ग्रहण कर वे मुनिराज के साथ पुनः मिथिला पुरी को लौट आये। [3]