"कुण्डलिनी": अवतरणों में अंतर
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18:01, 12 दिसम्बर 2012 का अवतरण
आध्यात्मिक आर्य-वान्गमय मे योग शब्द जितनी बार और जितने विविध अर्थों में प्रयुक्त हुआ है,उतनी बार और उतने विविध अर्थों मे शायद ही और कोई शब्द प्रयुक्त हुआ हो.कहीं पर्मार्थिक साद्य को सूचित करने के लिये,यह शब्द आया है,तो कहीं उसका साधन इस शब्द से सूचित किया गया है.पतंजलि और उनके राजा भोज जैसे अनुयायी योग को वियोग समझते हैं,तो अद्वेत वेदान्ती इसे जीव-परमात्मा योग-मिलन मानते है.पतंजलि योग को चित्वॄत्तिनिरोध: कहा है तो भगवान कॄष्ण योग: कर्मसु कौशलम कहते हैं.ज्ञान-योग,कर्म-योग आदि शब्द-प्रयोगों मे,"योग" मौजूद है.और अर्जुन-विषाद-योग,दैवासुरसम्पद्विभाग-योग आदि में भी योग ही है.इस प्रकार विभिन्न अर्थों मे इस शब्द का प्रयोग होने से जब कभी यह शब्द सुनाई देता है,तब थोडी देर विचार करना ही पडता है,कि किस अभिप्राय से कहने वाले ने "योग" शब्द क प्रयोग किया है.इससे सामान्य लोगों की ऐसी भी एक धारणा सी हो गई है,कि योग कोई गूढ-सी गोरखधन्धे सी बात है.और कोई वक्ता जब गम्भीर सी मुद्रा बनाकर "योग" का नाम लेते हैं,तब तो उससे वह गूढता और भी गूढ हो जाती है.हमारे इस लेख का विषय भी तो योगान्गभूत कुन्डलिनी ही है,जो प्राच्य और प्रतीच्य साहित्यों मे रहस्यमय ही कही गई है.