"बाबू गुलाब सिंह": अवतरणों में अंतर

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== बाहरी कड़ियाँ ==
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* [http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttarpradesh/4_1_6289618_1.htmll क्रांति के गुलाब की महक अब तक] (जागरण समाचार)
* [http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttarpradesh/4_1_6289618_1.htmll क्रांति के गुलाब की महक अब तक] (जागरण समाचार)
* [[http://en.wikipedia.org/wiki/Babu_Gulab_Singh|विकिपीडिया पर बाबू गुलाब सिंह (अंग्रेज़ी में)]]
* [http://en.wikipedia.org/wiki/Babu_Gulab_Singh विकिपीडिया पर बाबू गुलाब सिंह (अंग्रेज़ी में)]


[[श्रेणी:स्वतंत्रता सेनानी]]
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13:04, 12 सितंबर 2012 का अवतरण

अमर शहीद क्रांतिकारी बाबू गुलाब सिंह एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे,जिनका जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जनपद के तरौल (तारागढ़) गाँव में हुआ था। पेशे से वें तालुकेदार थे।अवध क्षेत्र प्रतापगढ़ और प्रयाग में सन १८५७ की भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इनकी भूमिका अहम् रही।

जीवन परिचय

प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश) विकास खंड मानधाता से लगभग आठ किलोमीटर दक्षिण वेदों में वर्णित बकुलाही नदी के तट पर बसा ग्रामसभा तरौल अपने सीने में एक महान क्राँतिकारी का इतिहास छिपाए हुए है।स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वर्ष १८५७ के गदर में तरौल (तारागढ़) के तालुकदार महान क्रांतिकारी बाबू गुलाब सिंह ने अंग्रेजो के दांत खट्टे करे दिये थे।बाबू गुलाब सिंह एवं उनके भाई बाबू मेदनी सिंह की वीरता की गाथा आज भी लोग भूल नहीं पाए है।

१८५७ की क्रांति में योगदान

तरौल के तालुकेदार बाबू गुलाब सिंह ने अंग्रेजी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे।अंग्रेजी सेना छितपालगढ़ से तारागढ़ पर चढ़ाई की तो बाबू गुलाब सिंह व उनके भाई बाबू मेदनी सिंह ने हफ्तों तक अंग्रेजों से लोहा लिया।हालाकि उन्हें मालूम था कि अंग्रेजी सेना के सामने लड़ना मौत के मुँह मे जाना है,फिर भी भारत के सपूतों ने अंतिम समय तक किले के समीप अंग्रेजी सेना को फटकने नही दिया। जब इलाहाबाद से लखनऊ अंग्रेजी सैनिक क्रांतिकारियों के दमन के लिए जा रहे थे। तब उन्होंने अपनी निजी सेना के साथ मान्धाता क्षेत्र के कटरा गुलाब सिंह के पास बकुलाही नदी पर घमासान युद्ध करके कई अंग्रेजों को मार डाला था। बकुलाही का पानी अंग्रेजों के खून से लाल हो गया था। मजबूर होकर अंग्रेजी सेना को वापस लौटना पड़ा था। हालांकि इस लड़ाई में किले पर फिरंगी सैनिकों ने उनके कई सिपाही व उनकी महारानी को गोलियों से भून डाला था। मुठभेड़ में बाबू गुलाब सिंह गंभीर रूप से घायल हुए थे। उचित इलाज के अभाव में तीसरे दिन वह अमर गति को प्राप्त हो गए। ऐसे महान क्रांतिकारी की न तो कहीं समाधि बन पाई और न ही उनकी यादगार में स्मारक ही। क्षेत्र के लोगों को अपने वीर योद्धा पर आज भी फक्र है।

ग्राम स्थापना

क्रांतिकारी बाबू गुलाब सिंह ने पौराणिक नदी बकुलाही के किनारे एक गाँव की स्थापना की थी,जो की वर्तमान में उन्हीं के नाम पर "कटरा गुलाब सिंह के नाम से जाना जाता है।इनके भाई बाबू मेदनी सिंह ने नगर पंचायत कटरा मेदनीगंज की स्थापना की थी। उनके नाम पर बसाई गई कटरा गुलाब सिंह बाजार के लोग अब भी उनकी छाया महसूस करते हैं।

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