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==जीवन चरित==
==जीवन चरित==
हिन्दी के इस महान प्रणेता का जन्म सन 1897 में [[कानपुर]] के मंधना क्षेत्र के रामनगर नामक गॉंव में हुआ । आपने प्राथमिक शिक्षा गॉंव में और फिर [[संस्कृत]] की शिक्षा [[वृन्दावन]] में ली, तत्पश्चात् बनारस से प्रथमा की परीक्षा और फिर [[पंजाब विश्वविद्यालय]] से विशारद एवं शास्त्री की परीक्षाएँ ससम्मान उत्तीर्ण कीं । इसके बाद [[सोलन]] में ([[हिमाचल प्रदेश]]) अपना अध्यापकीय जीवन प्रारंम्भ किया । संस्कृत के आचार्य होते हुए भी, हिन्दी में भाषा परिष्कार की आवश्यकता देखते हुए, संस्कृत का क्षेत्र छोड हिन्दी का क्षेत्र स्वीकार किया । इसके लिये उन्होंने "[[हिन्दी साहित्य सम्मेलन]]' (इलाहबाद) से हिन्दी की विशारद एवं उत्तमा (साहित्य रत्न) की परीक्षाएँ दीं ।
हिन्दी के इस महान प्रणेता का जन्म सन 1897 में [[कानपुर]] के मंधना क्षेत्र के रामनगर नामक गॉंव में हुआ । आपने प्राथमिक शिक्षा गॉंव में और फिर [[संस्कृत]] की शिक्षा [[वृन्दावन]] में ली, तत्पश्चात् बनारस से प्रथमा की परीक्षा और फिर [[पंजाब विश्वविद्यालय]] से विशारद एवं शास्त्री की परीक्षाएँ ससम्मान उत्तीर्ण कीं । इसके बाद [[सोलन]] में ([[हिमाचल प्रदेश]]) अपना अध्यापकीय जीवन प्रारम्भ किया । संस्कृत के आचार्य होते हुए भी, हिन्दी में भाषा परिष्कार की आवश्यकता देखते हुए, संस्कृत का क्षेत्र छोड हिन्दी का क्षेत्र स्वीकार किया । इसके लिये उन्होंने "[[हिन्दी साहित्य सम्मेलन]]' (इलाहबाद) से हिन्दी की विशारद एवं उत्तमा (साहित्य रत्न) की परीक्षाएँ दीं ।


बाजपेयी जी ने न केवल संस्कृत हिन्दी के [[व्याकरण]] क्षेत्र को विभूषित किया अपितु [[आलोचना]] क्षेत्र को भी बहुत सुन्दर ढंग से संवारा । आपने साहित्य समीक्षा के शास्त्रीय सिद्धातों का प्रतिपादन कर नये मानदण्ड स्थापित किये । साहित्याचार्य [[शालिग्रम शास्त्री]] जी की ''[[साहित्य दर्पण]]'' में छपी "विमला टीका' पर बाजपेयी जी ने माधुरी में एक समीक्षात्मक लेख माला लिख डाली । इस लेख का सभी ने स्वागत किया और वे आलोचना जगत में चमक उठे । इसके बाद "[[माधुरी]]" में प्रकाशित "बिहारी सतसई और उसके टीकाकार" लेख माला के प्रकाशित होते ही वे हिन्दी साहित्य के आलोचकों की श्रेणी में प्रतिष्ठित हुए ।
बाजपेयी जी ने न केवल संस्कृत हिन्दी के [[व्याकरण]] क्षेत्र को विभूषित किया अपितु [[आलोचना]] क्षेत्र को भी बहुत सुन्दर ढंग से संवारा । आपने साहित्य समीक्षा के शास्त्रीय सिद्धातों का प्रतिपादन कर नये मानदण्ड स्थापित किये । साहित्याचार्य [[शालिग्रम शास्त्री]] जी की ''[[साहित्य दर्पण]]'' में छपी "विमला टीका' पर बाजपेयी जी ने माधुरी में एक समीक्षात्मक लेख माला लिख डाली । इस लेख का सभी ने स्वागत किया और वे आलोचना जगत में चमक उठे । इसके बाद "[[माधुरी]]" में प्रकाशित "बिहारी सतसई और उसके टीकाकार" लेख माला के प्रकाशित होते ही वे हिन्दी साहित्य के आलोचकों की श्रेणी में प्रतिष्ठित हुए ।

12:44, 15 जुलाई 2012 का अवतरण

आचार्य किशोरीदास वाजपेयी

आचार्य किशोरीदास वाजपेयी (१८९८-१९८१) हिन्दी के साहित्यकार एवं सुप्रसिद्ध व्याकरणाचार्य थे। हिन्दी की खड़ी बोली के व्याकरण की निर्मिति में पूर्ववर्ती भाषाओं के व्याकरणाचार्यो द्वारा निर्धारित नियमों और मान्यताओं का उदारतापूर्वक उपयोग करके इसके मानक स्वरूप को वैज्ञानिक दृष्टि से सम्पन्न करने का गुरुतर दायित्व पं. किशोरीदास वाजपेयी ने निभाया। इसीलिए उसे 'हिन्दी का पाणिनी' कहा जाता है। अपनी तेजस्विता व प्रतिभा से उन्होंने साहित्यजगत को आलोकित किया और एक महान भाषा के रूपाकार को निर्धारित किया।

आचार्य किशोरीदास बाजपेयी ने हिन्दी को परिष्कृत रूप प्रदान करने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । इनसे पूर्व खडी बोली हिन्दी का प्रचलन तो हो चुका था पर उसका कोई व्यवस्थित व्याकरण नहीं था । अत: आपने अपने अथक प्रयास एवं ईमानदारी से भाषा का परिष्कार करते हुए व्याकरण का एक सुव्यवस्थित रूप निर्धारित कर भाषा का परिष्कार तो किया ही साथ ही नये मानदण्ड भी स्थापित किये । स्वाभाविक है भाषा को एक नया स्वरूप मिला । अत: हिन्दी क्षेत्र में आपको "पाणिनि' संज्ञा से अभिहित किया जाने लगा ।

जीवन चरित

हिन्दी के इस महान प्रणेता का जन्म सन 1897 में कानपुर के मंधना क्षेत्र के रामनगर नामक गॉंव में हुआ । आपने प्राथमिक शिक्षा गॉंव में और फिर संस्कृत की शिक्षा वृन्दावन में ली, तत्पश्चात् बनारस से प्रथमा की परीक्षा और फिर पंजाब विश्वविद्यालय से विशारद एवं शास्त्री की परीक्षाएँ ससम्मान उत्तीर्ण कीं । इसके बाद सोलन में (हिमाचल प्रदेश) अपना अध्यापकीय जीवन प्रारम्भ किया । संस्कृत के आचार्य होते हुए भी, हिन्दी में भाषा परिष्कार की आवश्यकता देखते हुए, संस्कृत का क्षेत्र छोड हिन्दी का क्षेत्र स्वीकार किया । इसके लिये उन्होंने "हिन्दी साहित्य सम्मेलन' (इलाहबाद) से हिन्दी की विशारद एवं उत्तमा (साहित्य रत्न) की परीक्षाएँ दीं ।

बाजपेयी जी ने न केवल संस्कृत हिन्दी के व्याकरण क्षेत्र को विभूषित किया अपितु आलोचना क्षेत्र को भी बहुत सुन्दर ढंग से संवारा । आपने साहित्य समीक्षा के शास्त्रीय सिद्धातों का प्रतिपादन कर नये मानदण्ड स्थापित किये । साहित्याचार्य शालिग्रम शास्त्री जी की साहित्य दर्पण में छपी "विमला टीका' पर बाजपेयी जी ने माधुरी में एक समीक्षात्मक लेख माला लिख डाली । इस लेख का सभी ने स्वागत किया और वे आलोचना जगत में चमक उठे । इसके बाद "माधुरी" में प्रकाशित "बिहारी सतसई और उसके टीकाकार" लेख माला के प्रकाशित होते ही वे हिन्दी साहित्य के आलोचकों की श्रेणी में प्रतिष्ठित हुए ।

बाजपेयी जी न केवल साहित्यिक अपितु सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन में भी आजीवन अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे । योग्यता तो थी ही, उनकी निर्भीकता, स्पष्टवादिता और स्वाभिमान उनके जीवन का अभि अंग रहे । अपनी निर्भीकता के कारण वे "अक्खड कबीर" और स्वाभिमान के कारण "अभिमान मेरु" कहाये जाने लगे । बडे से बडे प्रलोभन उनके जीवन मूल्यों और सिद्धांतों को डिगा न सके । लोक मर्यादाओं का पूर्ण रूपेण पालन करते हुए दुरभिसंधियों पर जम कर प्रहार किया । साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि, "मैं हूँ, कबीर पंथी" साहित्यकार , किसी की चाकरी मंजूर नहीं, अध्यापकी कर लूंगा, नौकरी कर लूंगा पर आत्मसम्मान की कीमत पर नहीं ।

बाजपेयी जी ने स्वाधीनता संग्रम को भी अछूता नहीं छोडा । एक परम योद्धा बन कर जन साधारण में राष्टीय चेतना और देशप्रेम के प्राण फूंके । आपका पहला लेख "वैष्णव सर्वस्व" में छपा, जिससें साहित्य जगत को इनकी लेखन कला का परिचय मिला ।

फिर तो इनके लेखों की झडी ही लग गई जो "माधुरी' और "सुधा' में छपे । पं. सकल नारायण शर्मा का एक लेख "माधुरी" में छपा था जिसमें हिन्दी व्याकरण संबंधी अनेक जिज्ञासाएँ भी थीं। इस चुनौती भरे लेख के प्रत्युत्तर में बाजपेयी जी ने समाधान सहित एक महत्वपूर्ण लेख "माधुरी' में छपवाया । इस लेख पर "शर्मा जी' सहित किसी की भी कोई आपत्ती नहीं हुई, सर्वत्र स्वागत ही हुआ । अब भाषा परिष्कार एवं व्याकरण इनका प्रमुख क्षेत्र हो गया ।

बाजपेयी जी ने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अपना बेजोड सिक्का जमा दिया । "सच्चाई' और " खरी बात' ये दो उनके मूल मंत्र थे । "मराल' में जो समीक्षात्मक मासिक पत्रिका थी, यह कह कर कि, "तुम बिन कौन मराल करे जग, दूध को दूध औ पानी को पानी कह कर अपने उद्देश्य का ठप्पा लगा दिया । "मराल' के अतिरिक्त बाजपेयी जी "वैष्णव सर्वस्व' एवं "चॉंद' के सम्पादन से भी जुडे रहे ।

बाजपेयी जी सच्चे देशभक्त थे । जलियांवाला काण्ड से वे बेहद आहत हो उठे, उनकी राष्टीय चेतना मचल उठी और तब "अमृत में विष' नामक एक गद्य काव्य लिख डाला । "तरंगिणी' भी राष्टीय भावों की सजीव झांकी है जो बहुत ही प्रशंसित हुई ।

अपने अद्भुद कर्मठ व्यक्तित्व एवं सुदृढ विचारों से भरपूर कृतित्व के कारण उन्होंने भाषा-विज्ञान, व्याकरण, साहित्य, समालोचना एवं पत्रकारिता ने जिस क्षेत्र को भी छुआ अद्भुत क्रांति ला दी । भाषा को एक ठोस आधार भूमि प्रदान की । ऐसे सशक्त हिन्दी के पाणिनि ने 12 अगस्त 1981 को कनखल (हरिद्वार) में अपनी जीवन की इहलीला समाप्त कर दी किसी अगले विशेष कार्य के लिये ।

कृतियाँ

भाषाविज्ञान, भाषा परिष्कार एवं व्याकरण की दृष्टि से आपकी अच्छी हिन्दी, अच्छी हिन्दी का नमूना, हिन्दी शब्दानुशासन , लेखन कला, ब्रजभाषा का व्याकरण, राष्टभाषा का प्रथम व्याकरण, हिन्दी शब्द मीमांसा, हिन्दी की वर्तनी तथा शब्द विश्लेषण, भारतीय भाषा विज्ञान आदि प्रमुख पुस्तकें हैं ।

इनके अतिरिक्त "सहित्य जीवन के अनुभव और संस्करण ", "संस्कृति के पॉंच अध्याय', "मानव धर्म मीमांसा' सुभाष चन्द्र बोस , "द्वापर की राज्य क्रांति' "कॉंग्रेस का संक्षिप्त इतिहास' आदि पुस्तकें इतिहास, संस्कृति एवं साहित्य का रूप उजागर करती हैं ।

काव्य में रहस्यवाद , "रस और अलंकार', "काव्य और काव्य शास्त्र', काव्य शास्त्रीय सम्पत्ति है ।

  • हिंदी शब्दानुशासन,
  • हिंदी शब्द मीमांसा,
  • हिंदी निघंटु,
  • अच्छी हिंदी का नमूना,
  • हिंदी वर्तनी और शब्द विश्लेषण
  • अच्छी हिन्दी
  • भारतीय भाषा विज्ञान
  • हिन्दी की वर्तनी और शब्द प्रयोग मीमांसा
  • हिन्दी निरुक्त
  • हिन्दी शब्द मीमांसा
  • संस्कृति का पाँचवाँ अध्याय

बाहरी कड़ियाँ