"अष्टछाप": अवतरणों में अंतर

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* [[छीतस्वामी]] ( १४८१ ई. - १५८५ ई.)
* [[छीतस्वामी]] ( १४८१ ई. - १५८५ ई.)
* [[नन्ददास]] ( १५३३ ई. - १५८६ ई.)
* [[नन्ददास]] ( १५३३ ई. - १५८६ ई.)
* चतुर्भुजदास
* [[चतुर्भुजदास]]


इनमे सूरदास प्रमुख थे,अपनी निश्चल भक्ति के काराण ये लोग भगवान कृष्ण के सखा भी माने जाते थे, परम भागवत होने के कारण यह लोग भगवदीय भी कहे जाते थे,यह सब विभिन्न वर्णों के थे,परमानन्द कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे,कृष्णदास शूद्रवर्ण के थे,कुम्भनदास राजपूत थे,लेकिन खेती का काम करते थे,सूरदासजी किसी के मत से सारस्वत ब्राह्मण थे और किसी किसी के मत से ब्रह्मभट्ट थे,गोविन्ददास सनाढ्य ब्राह्मण थे,और छीत स्वामी माथुर चौबे थे,नन्ददासजी सनाढ्य ब्राह्मण थे,अष्टछाप के भक्तों में बहुत ही उदारता पायी जाती है,"चौरासी वैष्णव की वार्ता",तथा "दो सौ वैष्ण्वन की वार्ता",में इनका जीवनवृत विस्तार से पाया जाता है.
इनमे सूरदास प्रमुख थे,अपनी निश्चल भक्ति के काराण ये लोग भगवान कृष्ण के सखा भी माने जाते थे, परम भागवत होने के कारण यह लोग भगवदीय भी कहे जाते थे,यह सब विभिन्न वर्णों के थे,परमानन्द कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे,कृष्णदास शूद्रवर्ण के थे,कुम्भनदास राजपूत थे,लेकिन खेती का काम करते थे,सूरदासजी किसी के मत से सारस्वत ब्राह्मण थे और किसी किसी के मत से ब्रह्मभट्ट थे,गोविन्ददास सनाढ्य ब्राह्मण थे,और छीत स्वामी माथुर चौबे थे,नन्ददासजी सनाढ्य ब्राह्मण थे,अष्टछाप के भक्तों में बहुत ही उदारता पायी जाती है,"चौरासी वैष्णव की वार्ता",तथा "दो सौ वैष्ण्वन की वार्ता",में इनका जीवनवृत विस्तार से पाया जाता है.

03:54, 14 जुलाई 2012 का अवतरण

महाप्रभु श्री वल्लभाचार्य जी एवं उनके पुत्र श्री विट्ठलनाथ जी द्वारा संस्थापित ८ भक्तिकालीन कवि, जिन्होंने अपने विभिन्न पद एवं कीर्तनों के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण की विभिन्न लीलाओं का गुणगान किया ।

अष्टछाप कवि पुष्टिमार्गीय आचार्य वल्लभ के काव्यकीर्तनकार चार प्रमुख शिष्य थे,तथा उनके पुत्र विट्ठलनाथ के भी चार शिष्य थे,आठों ब्रजभूमि के निवासी थे,और श्रीनाथजी के समक्ष गान रचकर गाया करते थे,उनके गीतों के संग्रह को "अष्टछाप" कहा जाता है,जिनका शाब्दिक अर्थ आठ मुद्रायें है,उन्होने ब्रजभाषा में श्रीकृष्ण विषयक भक्तिरसपूर्ण कविताएँ रची,उनके बाद सभी कृष्ण भक्त कवि ब्रजभाषा में ही कविता रचने लगे,अष्टछाप के कवि जो हुये है,वे इस प्रकार से हैं:-

इनमे सूरदास प्रमुख थे,अपनी निश्चल भक्ति के काराण ये लोग भगवान कृष्ण के सखा भी माने जाते थे, परम भागवत होने के कारण यह लोग भगवदीय भी कहे जाते थे,यह सब विभिन्न वर्णों के थे,परमानन्द कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे,कृष्णदास शूद्रवर्ण के थे,कुम्भनदास राजपूत थे,लेकिन खेती का काम करते थे,सूरदासजी किसी के मत से सारस्वत ब्राह्मण थे और किसी किसी के मत से ब्रह्मभट्ट थे,गोविन्ददास सनाढ्य ब्राह्मण थे,और छीत स्वामी माथुर चौबे थे,नन्ददासजी सनाढ्य ब्राह्मण थे,अष्टछाप के भक्तों में बहुत ही उदारता पायी जाती है,"चौरासी वैष्णव की वार्ता",तथा "दो सौ वैष्ण्वन की वार्ता",में इनका जीवनवृत विस्तार से पाया जाता है.

सूरदास

परमानंद दास

नंद दास

चतुर्भुज दास

कृष्ण दास

कुंभन दास

छीत स्वामी

गोविंद दास