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"जुरैसिक कल्प": अवतरणों में अंतर

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नया पृष्ठ: मध्यजीव महाकल्प (Mesozoicra) के अंर्तगत तीन कल्प हैं, जिनमें जुरैसिक क...
 
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(Classification and correlationof Jurassic strata)
 
{| width="463" border="1" cellpadding="7" cellspacing="1"
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| valign="TOP" width="7%" | <p>भारत</p>
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|-
| valign="TOP" width="7%" | <p>इंग्लैंड</p>
| valign="TOP" width="7%" | <p>फ्रांस</p>
| valign="TOP" width="7%" | <p>जर्मनी</p>
| valign="TOP" width="7%" | <p>स्पिटी</p>
| valign="TOP" width="7%" | <p>शिमला</p>
| valign="TOP" width="7%" | <p>कच्छ</p>
| valign="TOP" width="7%" | <p>राजस्थान</p>
|-
| valign="TOP" width="7%" | <p>परबेकियन</p><p>किमरिजियन</p><p>ऑक्सफोर्डियन</p>
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| valign="TOP" width="7%" | <p>स्पिटी शेल्स</p><p>लोचंबेल</p><p>चिडामू</p><p>बेलमेनाई</p>
| valign="TOP" width="7%" | <p>ताल?</p><p>श्रेणी</p>
| valign="TOP" width="7%" | <p>उमिया</p><p>कंतरोला</p><p>चारी</p><p>पच्चम</p>
| valign="TOP" width="7%" | <p>जैसलमेर</p><p>बीकानेर</p><p>बदसार</p><p>परिहार आबूर</p>
|-
| valign="TOP" width="7%" | <p>कैलोवियन</p><p>बैथोनियन</p><p>बैजोसियन</p>
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|-
| valign="TOP" width="7%" | <p>टोअरसियन</p><p>साइन्स बेकियन</p><p>सिनेमुरियन</p><p>हिटेंगियन</p>
| valign="TOP" width="7%" | &nbsp;
| valign="TOP" width="7%" | &nbsp;
| valign="TOP" width="7%" | <p>कायटो श्रेणी</p><p>सलकेक्यूटस</p><p>टैगलिंग</p><p>मेगालोडान</p>
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|}<p></p><p></p>
 
==विस्तार==
15 करोड़ वर्ष पुराने ये शैल समूह मुख्य रूप से यूरोप, दक्षिणी-पूर्वी इंग्लैंड, उत्तरी अमरीका के पश्चिमी भाग, एशिया माइनर, हिमालय प्रदेश, उत्तरी बर्मा और अफ्रीका के पूर्वी तट पर मिलते हैं। इसके अतिरिक्त पश्चिमी आस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, दक्षिणी अमरीका एवं साइबीरिया में भी इस युग के शैल पाए जाते हैं। भारत में जुरैसिक प्रणाली के शैल उत्तर में स्पिटी, कश्मीर, हजारा, शिमलागढ़वाल और एवरेस्ट प्रदेश में पाए जाते हैं। इस युग के अपराह्न में हुए समुद्री अतिक्रमण के फलस्वरूप भारत के पश्चिमी भागों में भी जुरैसिक शिलाएँ पाई जाती हैं। ऐसा अनुमान है कि टेनिस जलसमूह की ही एक शाखा सॉल्टरेंज (पाकिस्तान) एवं बलूचिस्तान से होती हुई कच्छ और पश्चिमी राजस्थान तक खाड़ी के रूप में आई थी। भारत के स्तरशैल विद्या में कच्छ की जुरैसिक शिलाओं का स्थान महत्वपूर्ण है, क्योंकि इनमें पाए जानेवाले जीव-अवशेष इतने अधिक और विभिन्न वर्गों के हैं कि उनसे जीवों के विकास पर बहुत प्रकाश पड़ता है।