"चौरी चौरा कांड": अवतरणों में अंतर
छो →बाहरी कड़ियाँ: rm good articles cat |
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
[[चौरी चौरा]], [[उत्तर प्रदेश]] में [[गोरखपुर]] के पास का एक कस्बा है जहाँ 4 फ़रवरी 1922 को भारतीयों ने बिट्रिश सरकार की एक पुलिस चौकी को आग लगा दी थी जिससे उसमें छुपे हुए 22 पुलिस कर्मचारी जिन्दा जल के मर गए थे। इस घटना को '''चौरीचौरा काण्ड''' के नाम से जाना जाता है। इसके परिणामस्वरूप [[महात्मा गांधी|गांधीजी]] ने कहा था कि हिंसा होने के कारण [[असहयोग आन्दोलन]] उपयुक्त नहीं रह गया है और उसे वापस ले लिया था। |
[[चौरी चौरा]], [[उत्तर प्रदेश]] में [[गोरखपुर]] के पास का एक कस्बा है जहाँ 4 फ़रवरी 1922 को भारतीयों ने बिट्रिश सरकार की एक पुलिस चौकी को आग लगा दी थी जिससे उसमें छुपे हुए 22 पुलिस कर्मचारी जिन्दा जल के मर गए थे। इस घटना को '''चौरीचौरा काण्ड''' के नाम से जाना जाता है। इसके परिणामस्वरूप [[महात्मा गांधी|गांधीजी]] ने कहा था कि हिंसा होने के कारण [[असहयोग आन्दोलन]] उपयुक्त नहीं रह गया है और उसे वापस ले लिया था। |
||
==परिणाम== |
|||
इस घटना के तुरन्त बाद गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन को समाप्त करने की घोषणा कर दी। बहुत से लोगों को गांधीजी का यह निर्णय उचित नहीं लगा। विशेषकर क्रांतिकारियों ने इसका प्रत्यक्ष या परोक्ष विरोध किया। गया कांग्रेस में [[रामप्रसाद बिस्मिल]] और उनके नौजवान सहयोगियों ने गांधीजी का विरोध किया। १९२२ की गया कांग्रेस में [[प्रेमकृष्ण खन्ना|खन्नाजी]] ने व उनके साथियों ने बिस्मिल के साथ कन्धे से कन्धा भिड़ाकर गांधीजी का ऐसा विरोध किया कि कांग्रेस में फिर दो विचारधारायें बन गयीं - एक उदारवादी या लिबरल और दूसरी विद्रोही या रिबेलियन। गांधीजीजी विद्रोही विचारधारा के नवयुवकों को कांग्रेस की आम सभाओं में विरोध करने के कारण हमेशा हुल्लड़बाज कहा करते थे। |
|||
==बाहरी कड़ियाँ== |
==बाहरी कड़ियाँ== |
08:14, 8 फ़रवरी 2012 का अवतरण
चौरी चौरा, उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के पास का एक कस्बा है जहाँ 4 फ़रवरी 1922 को भारतीयों ने बिट्रिश सरकार की एक पुलिस चौकी को आग लगा दी थी जिससे उसमें छुपे हुए 22 पुलिस कर्मचारी जिन्दा जल के मर गए थे। इस घटना को चौरीचौरा काण्ड के नाम से जाना जाता है। इसके परिणामस्वरूप गांधीजी ने कहा था कि हिंसा होने के कारण असहयोग आन्दोलन उपयुक्त नहीं रह गया है और उसे वापस ले लिया था।
परिणाम
इस घटना के तुरन्त बाद गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन को समाप्त करने की घोषणा कर दी। बहुत से लोगों को गांधीजी का यह निर्णय उचित नहीं लगा। विशेषकर क्रांतिकारियों ने इसका प्रत्यक्ष या परोक्ष विरोध किया। गया कांग्रेस में रामप्रसाद बिस्मिल और उनके नौजवान सहयोगियों ने गांधीजी का विरोध किया। १९२२ की गया कांग्रेस में खन्नाजी ने व उनके साथियों ने बिस्मिल के साथ कन्धे से कन्धा भिड़ाकर गांधीजी का ऐसा विरोध किया कि कांग्रेस में फिर दो विचारधारायें बन गयीं - एक उदारवादी या लिबरल और दूसरी विद्रोही या रिबेलियन। गांधीजीजी विद्रोही विचारधारा के नवयुवकों को कांग्रेस की आम सभाओं में विरोध करने के कारण हमेशा हुल्लड़बाज कहा करते थे।