"लंबी चोंच का गिद्ध": अवतरणों में अंतर
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07:54, 4 फ़रवरी 2012 का अवतरण
लंबी चोंच का गिद्ध | |
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लंबी चोंच का गिद्ध | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | Animalia |
संघ: | Chordata |
वर्ग: | Aves |
गण: | Falconiformes (or Accipitriformes, q.v.) |
कुल: | Accipitridae |
वंश: | Gyps |
जाति: | G. tenuirostris |
द्विपद नाम | |
Gyps tenuirostris Hodgson (in Gray), 1844[2][3][4] | |
नीले में लंबी चोंच का गिद्ध का क्षेत्र | |
पर्यायवाची | |
लंबी चोंच का गिद्ध (Gyps tenuirostris) हाल ही में पहचानी गई जाति है। पहले इसे भारतीय गिद्ध की एक उपजाति समझा जाता था, लेकिन हाल के शोधों से पता चला है कि यह एक अलग जाति है। जहाँ भारतीय गिद्ध गंगा नदी के दक्षिण में पाया जाता है तथा खड़ी चट्टानों के उभार में अपना घोंसला बनाता है वहीं लंबी चोंच का गिद्ध तराई इलाके से लेकर दक्षिण-पूर्वी एशिया तक पाया जाता है और अपना घोंसला पेड़ों पर बनाता है। यह गिद्ध पुरानी दुनिया का गिद्ध है जो नई दुनिया के गिद्धों से अपनी सूंघने की शक्ति में भिन्न हैं।
पहचान
८०-९५ से.मी. लंबा यह मध्यम आकार का गिद्ध औसतन भारतीय गिद्ध जितना ही लंबा होता है। यह क़रीब पूरा ही स्लेटी रंग का होता है। जांघों में सफ़ेद पंख होते हैं। इसकी गर्दन लंबी, काली तथा गंजी होती है। कानों के छिद्र खुले हुये और साफ़ दिखाई देते हैं।
प्राकृतिक वास
यह भारत में गंगा से उत्तर में पश्चिम तक हिमाचल प्रदेश, दक्षिण में उत्तरी उड़ीसा तक, तथा पूर्व में असम तक पाया जाता है। इसके अलावा यह उत्तरी तथा मध्य बांग्लादेश, दक्षिणी नेपाल, म्यानमार तथा कंबोडिया में भी पाया जाता है।
अस्तित्व
इस जाति का अस्तित्व ख़तरे में है। वैसे तो इनकी थोड़ी आबादी पूर्वी भारत, दक्षिणी नेपाल, बांग्लादेश तथा म्यानमार में है लेकिन यह अनुमान लगाया गया है कि कंबोडिया में ही प्रजननशील ५०-१०० पक्षी बचे हैं। इसका कारण यह बताया जाता है कि कंबोडिया में पशुओं को डाइक्लोफिनॅक (diclofenac) दवाई नहीं दी जाती है। पशु दवाई डाइक्लोफिनॅक (diclofenac) है जो कि पशुओं के जोड़ों के दर्द को मिटाने में मदद करती है। जब यह दवाई खाया हुआ पशु मर जाता है, और उसको मरने से थोड़ा पहले यह दवाई दी गई होती है और उसको भारतीय गिद्ध खाता है तो उसके गुर्दे बंद हो जाते हैं और वह मर जाता है। अब नई दवाई मॅलॉक्सिकॅम (meloxicam) आ गई है और यह हमारे गिद्धों के लिये हानिकारक भी नहीं हैं। जब इस दवाई का उत्पादन बढ़ जायेगा तो सारे पशु-पालक इसका इस्तेमाल करेंगे और शायद हमारे गिद्ध बच जायें। एक अनुमान के मुताबिक सन् २००९ में अपने प्राकृतिक वास में इनकी आबादी लगभग १००० ही रह गई है और आने वाले दशक में यह प्राकृतिक पर्यावेश से विलुप्त हो जायेंगे।
संरक्षण
आज इन गिद्धों का प्रजनन बंदी हालत में किया जा रहा है। सन् २००९ में दो अण्डों से बच्चे निकले थे, जिनमें से एक को हरयाणा तथा एक को पश्चिम बंगाल में पाला जा रहा है।
संदर्भ
- ↑ IUCN redlist.
- ↑ Gray GR (1944) The Genera of Birds. volume 1:6
- ↑ Hume A O (1878) Stray Feathers 7:326
- ↑ (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
- ↑ Baker, ECS (1927) Bull. Brit. Orn. Club 47:151
- ↑ (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर