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तरबूज
ताजा हरा तरबूज
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: पादप
विभाग: मैग्नोलियोफायटा
वर्ग: मैग्नोलियोप्सीडा
गण: Cucurbitales
कुल: Cucurbitaceae
वंश: Citrullus
जाति: C. lanatus

द्विपद नाम
Citrullus lanatus
(Thunb.) Matsum. & Nakai

तरबूज ग्रीष्म ऋतु का फल है। यह हरे रंग के होते हैं। परन्तु यह अंदर से लाल, पानी से भरपूर एवं मीठे होते हैं।गर्मी के मौसम का आकर्षक और आवश्यक फल है तरबूज ।आवश्यक इसलिए क्योंकि यह शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है । इस मौसम में हमें वही फल ज्यादा खाने चाहिए जो शरीर में पानी की आपूर्ति भी करते रहें । तरबूज रक्तचाप को संतुलित रखता है और कई बीमारियाँ दूर करता है ।

तरबूज के फायदे

दिल्ली में बिकते हुए तरबूज

इसके और भी फायदे हैं जैसे [1]: -

  • खाना खाने के उपरांत तरबूज का रस पीने से भोजन शीघ्र पच जाता है। इससे नींद भी अच्छी आती है। इसके रस से लू लगने का अंदेशा भी नहीं रहता।
  • मोटापा कम करने वालों के लिए यह उत्तम आहार है।
  • पोलियो रोगियों को तरबूज का सेवन करना बहुत लाभकारी रहता है, क्योंकि यह खून को बढ़ाता है और उसे साफ भी करता है। त्वचा रोगों के लिए यह फायदेमंद है।
  • तपती गर्मी में जब सिरदर्द होने लगे तो तरबूज के आधा गिलास रस को पानी में मिलाकर पीना चाहिए।
  • पेशाब में जलन हो तो ओस या बर्फ में रखे हुए तरबूज का रस निकालकर सुबह शकर मिलाकर पीने से लाभ होता है।
  • गर्मी में नित्य तरबूज का ठंडा-ठंडा शरबत पीने से शरीर को शीतलता तो मिलती ही है । साथ ही चेहरे पर एक चमक भी आ जाती है। इसके लाल गूदेदार छिलकों को हाथ-पैर, गर्दन व चेहरे पर रगड़ने से सौंदर्य निखरता है।
  • सूखी खाँसी में तरबूज खाने से खाँसी का बार-बार चलना बंद होता है।
  • तरबूज की फाँकों पर काली मिर्च पाउडर, सेंधा व काला नमक बुरककर खाने से खट्टी डकारें आना बंद होती हैं।
  • धूप में चलने से बुखार आ गया है तो फ्रिज में ठंडा-ठंडा तरबूज खाने से फायदा होता है।
  • तरबूज का गूदा लें और इसे "ब्लैक हैडस" के प्रभावित जगह पर आहिस्ता-आहिस्ता रगड़ें। एक ही मिनट उपरांत चेहरे को गुनगुने पानी से साफ कर लें।
  • अपचन, भूख बढ़ाने तथा खून की कमी होने पर भी तरबूज बहुत लाभदायक सिद्ध होता है । एक बड़े तरबूज में थोड़ा-सा छेद करके उसमें एक ग्राम चीनी भर दें। फिर दिन तक उस तरबूज को धूप में तथा रात में चंद्रमा की रोशनी में रखें। उसके बाद अंदर से पानी निचोड़ लें और छानकर काँच की साफ बोतल में भर लें। यह तरल पदार्थ चौथाई कप की मात्रा में दिन में दो से तीन मर्तबा पीने से उपरोक्त तकलीफों में अत्यंत लाभकारी होता है।
  • पागलपन, दिमागी गर्मी, हिस्टीरिया, अनिद्रा रोगों में तरबूज का गूदा एक मिनट के लिए सिर पर रखना फायदेमंद होता है।
  • तरबूज में विटामिन ए, बी, सी तथा लौहा भी प्रचुर मात्रा में मिलता है, जिससे रक्त सुर्ख व शुद्ध होता है।

प्राकृतिक वायाग्रा

कच्चा तरबूज (खाद्य भाग)
पोषक मूल्य प्रति 100 ग्रा.(3.5 ओंस)
उर्जा 30 किलो कैलोरी   130 kJ
कार्बोहाइड्रेट     7.55 g
- शर्करा 6.2 g
- आहारीय रेशा  0.4 g  
वसा 0.15 g
प्रोटीन 0.61 g
पानी 91.45 g
विटामिन A equiv.  28 μg  3%
थायमीन (विट. B1)  0.033 mg   3%
राइबोफ्लेविन (विट. B2)  0.021 mg   1%
नायसिन (विट. B3)  0.178 mg   1%
पैंटोथैनिक अम्ल (B5)  0.221 mg  4%
विटामिन B6  0.045 mg 3%
फोलेट (Vit. B9)  3 μg  1%
विटामिन C  8.1 mg 14%
कैल्शियम  7 mg 1%
लोहतत्व  0.24 mg 2%
मैगनीशियम  10 mg 3% 
फॉस्फोरस  11 mg 2%
पोटेशियम  112 mg   2%
जस्ता  0.10 mg 1%
प्रतिशत एक वयस्क हेतु अमेरिकी
सिफारिशों के सापेक्ष हैं.
स्रोत: USDA Nutrient database

तरबूज मात्र एक स्वादिष्ट एवं पानी से भरपूर त्वरित उर्जा देने वाला फल ही नहीं होता है बल्कि यह गुणों से भरपूर भी है।[2] और अब एक भारतीय अमरीकी वैज्ञानिक ने दावा किया है कि तरबूज वायग्रा के जैसा असर भी पैदा करता है। टेक्सास के फ्रुट एंड वेजीटेबल इम्प्रूवमेंट सेंटर के वैज्ञानिक डॉ भिमु पाटिल के अनुसार,"जितना हम तरबूज के बारे में शोध करते जाते हैं, उतना ही और अधिक जान पाते हैं। यह फल गुणो की खान है और शरीर के लिए वरदान स्वरूप है। तरबूज में सिट्रुलिन नामक न्यूट्रिन होता है जो शरीर में जाने के बाद अर्जीनाइन में बदल जाता है। अर्जीनाइन एक एम्यूनो इसिड होता है जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाता है और खून का परिभ्रमण सुदृढ रखता है।

यह मोटापे और मधुमेह को भी रोकने का कार्य करता है। अर्जीनाइन नाइट्रिक ऑक्साइड को बढावा देता है, जिससे रक्त धमनियों को आराम मिलता है। यह कुछ कुछ वायग्रा जैसा ही कार्य करता है। इस प्रकार से इसे प्राकृतिक वायाग्रा कहा जा सकता है। हालाँकि इससे वायग्रा जितना असर तो नहीं होता लेकिन कोई साइड इफैक्ट भी नहीं होता।

किस्में व प्रजातियाँ

२००५ में तरबूज उत्पादन

तरबूज की कुछ उन्नत किस्में इस प्रकार से हैं:[3]

शुगर बेबी

यह संयुक्त राज्य अमेरिका से लाई गई किस्म है इस किस्म के फल बीज बोने के ९५-१०० दिन बाद तोङाई के लिए तैयार हो जाते है, जिनका औसत भार ४-६ किग्राम होता है इसके फल में बीज बहुत कम होते है बीज छोटे, भूरे और एक सिरे पर काले होते है उत्तर भारत में इस किस्म ने काफी लोकप्रियता हासिल कर ली है प्रति हे० २००-२५० क्विंटल तक उपज दे देती है छिलका नीले-काले रंग का ,गूदा लाल, मीठा होता है।

आशायी यामातो

यह जापान से लाई गई किस्म है इस किस्म के फल का औसत भार ७-८ किग्रा० होता है इसका छिलका हरा और मामूली धारीदार होता है इसका गूदा गहरा गुलाबी मीठा होता है इसके बीज छोटे होते है प्रति हे० २२५ क्विंटल तक उपज दे देती है।

न्यू हेम्पशायर मिडगट

यह एक उन्नत किस्म है इसके फलों का औसत भार १५-२० किग्रा० होता है इस किस्म के फल ८५ दिनों में खाने योग्य हो जाते है इसका छिलका हरा और हल्की धारियों वाला होता है यह किस्म गृह वाटिका में उगाने के लिए बहुत अच्छी है।

पूसा बेदाना

इस किस्म का विकास भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली द्वारा किया गया है इस किस्म की सबसे बङी विशेषता यह है कि इसके फलों में बीज नहीं होते हैं फल में गूदा गुलाबी व अधिक रसदार व मीठा होता है यह किस्म ८५-९० दिन में तैयार हो जाती है।

दुर्गापुरा केसर

इस किस्म का विकास उदयपुर वि०वि० के सब्जी अनुसंधान केन्द्र दुर्गापुर जयपुर, राजस्थान द्वारा किया गया है यह तरबूज की किस्मों के विकास में अत्यन्त महत्वपूर्ण उपलब्धि है फल का भार ६-७ किग्रा० तक होता है फल हरे रंग का होता है जिस पर गहरे हरे रंग की धारियाँ होती है गूदा केसरी रंग का होता है इसमें मिठास १० प्रतिशत होती है।

अर्का ज्योति

इस किस्म का विकास भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बंगलौर द्वारा एक अमेरिकन और एक देशी किस्म के संकरण से विकसित किया गया है फल का भार ६-८ किग्रा० तक होता है इसका गूदा चमकीले लाल रंग का होता है इसका खाने योग्य गूदा अन्य किस्मों की तुलना में अधिक होता है फलों की भण्डारण क्षमता भी अधिक होती है प्रति हे० ३५० क्विंटल तक पैदावार मिल जाती है।

अर्का मानिक

इस किस्म का विकास भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बंगलौर द्वारा किया गया है यह एन्थ्रेक्नोज, चूर्णी फफूंदी और मृदुरोमिल फफूंदी की प्रतिरोधी किस्म है प्रति हे० ६० टन तक उपज दे देती है।

डब्लू० १९

यह मध्यम समय (७५-८० दिन) में तैयार होने वाली किस्म है इसके फल पर हल्के-हल्के हरे से गहरे रंग की धारियाँ पाई जाती है इसका गूदा गहरा गुलाबी और ठोस होता है यह गुणवत्ता में श्रेष्ठ और स्वाद मीठा होता है यह किस्म उच्च तापमान सहिष्णु है यह किस्म एन०आर०सी०एच० द्वारा गर्म शुष्क क्षेत्रों में खेती के लिए जारी की गई है प्रति हे० ४६-५० टन तक उपज दे देती है।

संकर किस्में

मधु, मिलन, मोहिनी।

व्युत्पति

खेती व प्रयोग

तरबूज एक लम्बी अवधि वाली फसल है अधिक तापमान होने पर तरबूज की अधिक वृद्धि होती है इसलिए इसकी खेती अधिक तापमान वाले क्षेत्रों में की जाती है इसकी स्वाभाविक वृद्धि के लिए ३६.२२ से ३९.२२ सेल्सियस तापमान अनुकूल माना गया है। तरबूज की खेती अत्यधिक रेतीली मिट्टी से लेकर चिकनी दोमट मिट्टी तक में की जा सकती है विशेष रुप से नदियों के किनारे रेतीली भूमि में इसकी खेती की जाती है राजस्थान की रेतीली भूमि में तरबूज की खेती अच्छी होती है मैदानी क्षेत्रों में उचित जल निकास वाली रेतीली दोमट वाली भूमि सर्वोत्तम मानी गई है ५.५ से ७.० पी०एच० वाली भूमि इसके लिए उपयुक्त रहती है पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करे इसके उपरान्त २-३ बार हैरों या कल्टीवेटर चलाएँ। [4]

बोने का समय

  • नदियों के किनारे- अक्टूबर-नवम्बर।
  • मैदानी क्षेत्रों में- मध्य फरवरी-मध्य मार्च।
  • बीज की मात्रा- प्रति हे० ४ से ५ किग्रा० बीज पर्याप्त होता है।
बुवाई की विधि

मैदानी क्षेत्रों में इसकी बुवाई समतल भूमि में या डौलियों पर की जाती है, जबकि पर्वतीय क्षेत्रों में बुवाई कुछ ऊँची उठी क्यारियों में की जाती है क्यारियाँ २.५० मीटर चौङी बनाई जाती है उसके दोनों किनारों पर १.५ सेमी० गहराई पर ३-४ बीज बो दिये जाते है थामलों की आपसी दूरी भूमि की उर्वरा शक्ति पर निर्भर करती है वर्गाकार प्रणाली में ४ गुणा १ मीटर की दूरी रखी जाती है पंक्ति और पौधों की आपसी दूरी तरबूज की किस्मों पर निर्भर करता है।

संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

यह भी देखें