"भांग": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नया पृष्ठ: भांग (अँग्रजीःcannabis sativa) एक प्रकार का पौधा है जिसकी पत्तियों को पीस क...
 
No edit summary
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
भांग (अँग्रजीःcannabis sativa) एक प्रकार का पौधा है जिसकी पत्तियों को पीस कर भांग तैयार की जाती है। उत्तर भारत में इसका प्रयोग बहुतायत से हल्के नशे तथा दवाओं के लिए किया जाता है।
भांग (अँग्रजीःcannabis sativa) एक प्रकार का पौधा है जिसकी पत्तियों को पीस कर भांग तैयार की जाती है। उत्तर भारत में इसका प्रयोग बहुतायत से स्वास्थ्य, हल्के नशे तथा दवाओं के लिए किया जाता है। भांग की खेती प्राचीन समय में पणि कहे जानेवाले लोगों द्वारा की जाती थी। ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने कुमाऊँ में शासन स्थापित होने से पहले ही भांग के व्यवसाय को अपने हाथ में ले लिया था तथा काशीपुर के नजदीक डिपो की स्थापना कर ली थी। दानपुर, दसोली तथा गंगोली की कुछ जातियाँ भांग के रेशे से कुथले और कम्बल बनाती थीं। भांग के पौधे का घर गढ़वाल में चांदपुर कहा जा सकता है।

इसके पौधे की छाल से रस्सियाँ बनती हैं। डंठल कहीं-कहीं मशाल का काम देता है। पर्वतीय क्षेत्र में भांग प्रचुरता से होती है, खाली पड़ी जमीन पर भांग के पौधे स्वभाविक रुप से पैदा हो जाते हैं। लेकिन उनके बीज खाने के उपयोग में नहीं आते हैं। टनकपुर, रामनगर, पिथौरागढ़, हल्द्वानी, नैनीताल, अल्मोड़, रानीखेत, बागेश्वर, गंगोलीहाट में बरसात के बाद भांग के पौधे सर्वत्र देखे जा सकते हैं। नम जगह भांग के लिए बहुत अनुकूल रहती है। पहाड़ की लोक कला में भांग से बनाए गए कपड़ों की कला बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन पिछले अनेक वर्षों से इस शिल्प को ग्रहण लग रहा है। मशीनों द्वारा बुने गये बोरे, चटाई उत्यादि की पहुँच घर-घर में हो गयी है, भांग की खेती पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। महंगी भंगेली वस्तुओं की जगह कारखाने में बनी वस्तुएँ न केवल सस्ती होती है, अपितु उपलब्ध भी सरलता से हो जाती है। आनेवाले वर्षों में भांग के पौधे से बनी वस्तुएँ मिलनी दुर्लभ हो जायेंगी।

[[श्रेणी: वनस्पति]]
[[श्रेणी: वनस्पति]]

13:17, 10 मार्च 2008 का अवतरण

भांग (अँग्रजीःcannabis sativa) एक प्रकार का पौधा है जिसकी पत्तियों को पीस कर भांग तैयार की जाती है। उत्तर भारत में इसका प्रयोग बहुतायत से स्वास्थ्य, हल्के नशे तथा दवाओं के लिए किया जाता है। भांग की खेती प्राचीन समय में पणि कहे जानेवाले लोगों द्वारा की जाती थी। ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने कुमाऊँ में शासन स्थापित होने से पहले ही भांग के व्यवसाय को अपने हाथ में ले लिया था तथा काशीपुर के नजदीक डिपो की स्थापना कर ली थी। दानपुर, दसोली तथा गंगोली की कुछ जातियाँ भांग के रेशे से कुथले और कम्बल बनाती थीं। भांग के पौधे का घर गढ़वाल में चांदपुर कहा जा सकता है।

इसके पौधे की छाल से रस्सियाँ बनती हैं। डंठल कहीं-कहीं मशाल का काम देता है। पर्वतीय क्षेत्र में भांग प्रचुरता से होती है, खाली पड़ी जमीन पर भांग के पौधे स्वभाविक रुप से पैदा हो जाते हैं। लेकिन उनके बीज खाने के उपयोग में नहीं आते हैं। टनकपुर, रामनगर, पिथौरागढ़, हल्द्वानी, नैनीताल, अल्मोड़, रानीखेत, बागेश्वर, गंगोलीहाट में बरसात के बाद भांग के पौधे सर्वत्र देखे जा सकते हैं। नम जगह भांग के लिए बहुत अनुकूल रहती है। पहाड़ की लोक कला में भांग से बनाए गए कपड़ों की कला बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन पिछले अनेक वर्षों से इस शिल्प को ग्रहण लग रहा है। मशीनों द्वारा बुने गये बोरे, चटाई उत्यादि की पहुँच घर-घर में हो गयी है, भांग की खेती पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। महंगी भंगेली वस्तुओं की जगह कारखाने में बनी वस्तुएँ न केवल सस्ती होती है, अपितु उपलब्ध भी सरलता से हो जाती है। आनेवाले वर्षों में भांग के पौधे से बनी वस्तुएँ मिलनी दुर्लभ हो जायेंगी।