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तंजावुर तंजौर
—  city  —
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देश  भारत
राज्य तमिल नाडु
Municipal Chairperson Thenmozhi Jayabalan[1]
जनसंख्या
घनत्व
215,725 (2001 के अनुसार )
• 7,700/किमी2 (19,943/मील2)
क्षेत्रफल
ऊँचाई (AMSL)
36 km² (14 sq mi)
• 2 मीटर (7 फी॰)

निर्देशांक: 10°48′N 79°09′E / 10.8°N 79.15°E / 10.8; 79.15 तमिलनाडु के पूर्वी तट पर स्थित तंजावुर या तंजौर ऐतिहासिक शहर है। कावेरी के उपजाऊ डेल्टा क्षेत्र में होने के कारण इसे दक्षिण में चावल का कटोरा के नाम से भी जाना जाता हैं। 850 ई. में चोल वंश ने मुथरयार प्रमुखों को पराजित करके तंजावर पर अधिकार किया और इसे अपने राज्य की राजधानी बनाया। चोल वंश ने 400 वर्ष से भी अधिक समय तक तमिलनाडु पर राज किया। इस दौरान तंजावुर ने बहुत उन्नति की। इसके बाद नायक और मराठों ने यहां शासन किया। वे कला और संस्कृति के प्रशंसक थे। कला के प्रति उनका लगाव को उनके द्वारा बनवाई गई उत्‍कृष्‍ट इमारतों से साफ झलकता है।

मुख्य आकर्षण

बृहदीश्वर मंदिर

बृहदेश्वर मंदिर

इस मंदिर का निर्माण महान चोल राजा राजराज चोल ने करवाया था। यह मंदिर भारतीय शिल्प और वास्तु कला का अदभूत उदाहरण है। मंदिर के दो तरफ खाई है और एक ओर अनाईकट नदी बहती है। अन्य मंदिरों से अलग इस मंदिर में गर्भगृह के ऊपर बड़ी मीनार है जो 216 फुट ऊंची है। मीनार के ऊपर कांसे का स्तूप है। मंदिर की दीवारों पर चोल और नायक काल के चित्र बने हैं जो अजंता की गुफाओं की याद दिलाते हैं। मंदिर के अंदर नंदी बैल की विशालकाय प्रतिमा है। यह मूर्ति 12 फीट ऊंची है और इसका वजन 25 टन है। नायक शासकों ने नंदी को धूप और बारिश से बचाने के लिए मंडप का निर्माण कराया था। मंदिर में मुख्य रूप से तीन उत्सव मनाए जाते हैं- मसी माह (फरवरी-मार्च) में शिवरात्रि, पुरत्तसी (सितंबर-अक्टूबर) में नवरात्रि और ऐपस्सी (नवंबर-दिसंबर) में राजराजन उत्सव।

सरस्वती महल पुस्तकालय

इस पुस्तकालय में पांडुलिपियों का महत्वपूर्ण संग्रह है। इसकी स्थापना 1700 ईसवी के आस-पास की गई थी। इस संग्रहालय में भारतीय और यूरोपीयन भाषाओं में लिखी हुई 44000 से ज्यादा ताम्रपत्र और कागज की पांडुलिपियां देखने को मिलती हैं। इनमें से 80 प्रतिशत से अधिक पांडुलिपियां संस्कृत में लिखी हुई हैं। कुछ पांडुलिपियां तो बहुत ही दुर्लभ हैं। इनमें तमिल में लिखी औषधि विज्ञान की पांडुलिपियां भी शामिल हैं।

महल

सुंदर और भव्य इमारतों की इस श्रृंखला में से कुछ का निर्माण नायक वंश ने 1550 ई. के आसपास कराया था और कुछ का निर्माण मराठों ने कराया था। दक्षिण में आठ मंजिला गुडापुरम है जो 190 फीट ऊंचा है। इसका प्रयोग आसपास की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए किया जाता था। गुडापुरम के आगे महल की छत पर मडामलगाई नामक इमारत बनाई गई थी जो छ: मंजिला है।

स्वार्ट्ज चर्च

स्वार्ट्ज चर्च या क्राइस्ट चर्च तंजौर में औपनिवेशिक शासन की याद दिलाता है। यह शिवगंगा कुंड के पूर्व में स्थित है। इसकी स्थापना रवरेंड फ्रैडरिक क्रिश्चियन स्वार्ट्ज ने 1779 में की थी। 1798 में उनकी मृत्यु के पश्चात मराठा सम्राट सफरोजी ने उनकी याद में चर्च के पश्चिमी छोर पर संगमरमर का शिलाखंड लगवाया था।

रॉयल संग्रहालय

तंजावुर तमिलनाडु का एक प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र रहा है। इस संग्रहालय में पल्लव, चोल, पंड्या और नायक कालीन पाषाण प्रतिमाओं का संग्रह है। एक अन्य दीर्घा में तंजौर की ग्लास पेंटिंग्स प्रदर्शित की गई हैं। लकड़ी पर बनाई गई इन तस्वीरों में रंग-संयोजन देखते ही बनता है। यह संग्रहालय अपने कांस्य शिल्प के संग्रह के लिए प्रसिद्ध है।

शिवगंगा किला

इस किले का निर्माण नायक शासक सेवप्पा नायक ने 16वीं शताब्दी के मध्य में करवाया था। 35 एकड़ में बने इस किले की दीवारें पत्थर की बनी हैं जो संभवत: आक्रमणकारियों से बचने के लिए बनाई गई थीं। किले में स्थित वर्गाकार शिवगंगा कुंड शहर में पीने के पानी की आपूर्ति के लिए बनाया गया था। इस किले में ब्रहदीश्वरर मंदिर, स्वार्ट्ज चर्च और सार्वजनिक मनोरंजन पार्क भी है।

निकटवर्ती दर्शनीय स्थल

सिक्कल सिंगरवेलवर मंदिर

यह मंदिर तंजावुर से 80 किमी. दूर नागापट्टनम तिरुवरूर मुख्य मार्ग पर स्थित है। माना जाता है कि भगवान मुरुगन ने यहीं पर पार्वती से शक्ति वेल प्राप्त किया था और सूरन का वध किया था। यह मंदिर तमिलनाडु के उन कुछ मंदिरों में से एक है जहां शिव और विष्णु की मूर्ति एक साथ एक ही मंदिर में स्‍थापित हैं। तमिल पचांग के अनुसार लिप्पसी माह में वेल वैंकुंठल उत्सव यहां धूमधाम से मनाया जाता है।

स्वामीमलई

तंजावुर से 32 किमी. दूर स्वामीमलई उन छ: मंदिरों में से एक है जो भगवान मुरुगन को समर्पित है। भगवान मुरुगन ने ऊं मंत्र का उच्चारण किया था और इसलिए उनका नाम स्वामीनाथम पड़ गया। मंदिर की 60 सीढ़ियां तमिल पंचांग के 60 वर्षो की परिचायक हैं। प्रत्येक गुरुवार, स्वामीनाथ को विशेष प्रकार से सजाया जाता है।

तिरुवयरु

तंजावुर से 13 किमी. दूर इस स्थान पर संत त्यागराज ने अपना जीवन बिताया था और यहीं पर उन्होंने समाधि ली थी। तिरुवैयरु का प्रसिद्ध मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। संत त्यागराज की याद में यहां हर साल जनवरी में आठ दिन का संगीत समारोह आयोजित किया जाता है।

त्यागराजस्वामी मंदिर

तंजावुर से 55 किमी. दूर तिरुवरुर स्थित त्यागराजस्वामी मंदिर तमिलनाडु का सबसे बड़ा रथ शैली का मंदिर है। यहां त्यागराज, कमलंबा और वनमिक नथर का निवास है। मंदिर के स्तंभ और कमरें बहुत ही सुंदर हैं। राजराज चोलन त्यागराजस्वामी के परम भक्त थे। तिरुवरुर संत त्यागराज का जन्मस्थान भी है।

वैठीश्वरन कोवली

यह प्राचीन मंदिर शिव को समर्पित है। इस मंदिर का गुणगान अनेक संत कवियों ने अपनी रचनाओं में किया है। इसके स्तंभों और मंडपों की सुंदरता से आकर्षित होकर अनेक श्रद्धालु यहां आते हैं। कहा जाता है कि मंगल, कार्तिकेय और जटायु ने यहां भगवान शिव की स्तुति की थी। इस मंदिर को अगरकस्थानम भी माना जाता है।

उत्पाद

चित्र:Tanjore painting krishna.jpg
तंजौर चित्रकला का नमूना

तंजावुर पेंटिंग्स अपनी विशेष शैली के लिए प्रसिद्ध हैं। पर्यटक इन्हें खरीदना पसंद करते हैं। सही कीमत और अच्छी क्वालिटी के लिए गांधी रोड पर पुंपुहर की एंटीक शॉप से पेंटिंग्स खरीदी जा सकती हैं। इसके अलावा तंजौर प्लेट्स, पंचलोहा प्रतिमाएं, पूजा सामग्री भी यहां से ली जा सकती हैं।

आवागमन

हवाई मार्ग

यहां तंजावुर विमानक्षेत्र भी है। किंतु वहां से उड़ानें नहीं हैं। यहां का निकटतम हवाई अड्डा तिरुचिरापल्ली विमानक्षेत्र है जो यहां से 65 किमी. दूर है। इसके अलावा चैन्नई के रास्ते भी यहां पहुंच सकते हैं।

सड़क मार्ग

तंजावुर तमिलनाडु के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। इसके अतिरिक्त कोच्चि, एर्नाकुलम, तिरुवनंतपुरम और बैंगलोर से यहां सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है।

रेल मार्ग

तंजावुर का रेलवे जंक्शन त्रिची, चेन्नई और नागौर से सीधी रेलसेवा द्वारा जुड़ा हुआ है।

यह भी देखें

बाहरी कड़ियां

  1. The Hindu dated 29 October 2006