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कुछ खास भिन्नताओं को छोड़ सभी प्रकार की कोशिकाओं, पादप एवं जन्तु कोशिका की संरचना लगभग एक जैसी होती है। ये सजीव और निर्जीव दोनों तरह की इकाइयों से मिलकर बनी होती हैं। एक सामान्य कोशिका या प्रारूपिक कोशिका के मुख्य तीन भाग हैं, कोशिकावरण, कोशिका द्रव्य एवं केन्द्रक। कोशिकावरण कोशिका का सबसे बाहर का आवरण या घेरा है। पादप कोशिका में [[कोशिका भित्ति]] और [[कोशिका झिल्ली]] मिलकर कोशिकावरण का निर्माण करते हैं। जन्तु कोशिका में कोशिका भित्ति नहीं पाई जाती अतः कोशिका झिल्ली ही सबसे बाहरी आवरण है। कोशिका झिल्ली एवं केन्द्रक के बीच के भाग को कोशिका द्रव्य कहा जाता है, इसमें विभिन्न कोशिकांग होते हैं। केन्द्रक कोशिका के अन्दर पाये जाने वाली एक गोल एवं सघन रचना है। केन्द्रक को कोशिका का [[मस्तिष्क]] कहा जाता है। जिस प्रकार शरीर के सारे क्रियायों का नियंत्रण मस्तिष्क करता है ठीक उसी प्रकार कोशिका के सारे कार्यों का नियंत्रण केन्द्रक द्वारा होता है।
कुछ खास भिन्नताओं को छोड़ सभी प्रकार की कोशिकाओं, पादप एवं जन्तु कोशिका की संरचना लगभग एक जैसी होती है। ये सजीव और निर्जीव दोनों तरह की इकाइयों से मिलकर बनी होती हैं। एक सामान्य कोशिका या प्रारूपिक कोशिका के मुख्य तीन भाग हैं, कोशिकावरण, कोशिका द्रव्य एवं केन्द्रक। कोशिकावरण कोशिका का सबसे बाहर का आवरण या घेरा है। पादप कोशिका में [[कोशिका भित्ति]] और [[कोशिका झिल्ली]] मिलकर कोशिकावरण का निर्माण करते हैं। जन्तु कोशिका में कोशिका भित्ति नहीं पाई जाती अतः कोशिका झिल्ली ही सबसे बाहरी आवरण है। कोशिका झिल्ली एवं केन्द्रक के बीच के भाग को कोशिका द्रव्य कहा जाता है, इसमें विभिन्न कोशिकांग होते हैं। केन्द्रक कोशिका के अन्दर पाये जाने वाली एक गोल एवं सघन रचना है। केन्द्रक को कोशिका का [[मस्तिष्क]] कहा जाता है। जिस प्रकार शरीर के सारे क्रियायों का नियंत्रण मस्तिष्क करता है ठीक उसी प्रकार कोशिका के सारे कार्यों का नियंत्रण केन्द्रक द्वारा होता है।
== संदर्भ ==
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कोशिका -
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कोशा, जीवधारियों की संरचना एवं जैविक-क्रियाओं की एक इकाई है जो अवकलीय पारगम्य कला से घिरी होती है और जिसमें प्राय: स्वत: जनन की सामर्थ्य होती है। यह विभिन्न पदार्थों का वह छोटे-से-छोटा संगठित रुप है जिसमें वे सभी क्रियाएँ होती हैं जिन्हें सामूहिक रूप से हम जीवन कहतें हैं।
कोशा, जीवधारियों की संरचना एवं जैविक-क्रियाओं की एक इकाई है जो अवकलीय पारगम्य कला से घिरी होती है और जिसमें प्राय: स्वत: जनन की सामर्थ्य होती है। यह विभिन्न पदार्थों का वह छोटे-से-छोटा संगठित रुप है जिसमें वे सभी क्रियाएँ होती हैं जिन्हें सामूहिक रूप से हम जीवन कहतें हैं।
राबर्ट हुक ने 1665 में बोतल की कार्क की एक पतली परत के अध्ययन के आधार पर मधुमक्खी के छत्ते जैसे कोष्ठ देखे और इन्हें कोशा नाम दिया। यह तथ्य उनकी पुस्तक माइक्रोग्राफिया में छपा। राबर्ट हुक ने कोशा-भित्तियों के आधार पर कोशा शब्द प्रयोग किया। 1674 लुइवेनहाक ने जीवित कोशा का सर्वप्रथम अध्ययन किया। जबकि तदरोचित नामक वैज्ञानिक ने 1824 में कोशावाद का विचार प्रस्तुत किया, परन्तु इसका श्रेय वनवस्पति-विज्ञान-शास्त्री श्लाइडेन और जन्तु-विज्ञान-शास्त्री श्वान को दिया जाता है जिन्होंने ठीक प्रकार से कोशावाद को (1839 में) प्रस्तुत किया और बतलाया कि कोशाएँ पौधों तथा जन्तुओं की रचनात्मक इकाई हैं।
राबर्ट हुक ने 1665 में बोतल की कार्क की एक पतली परत के अध्ययन के आधार पर मधुमक्खी के छत्ते जैसे कोष्ठ देखे और इन्हें कोशा नाम दिया। यह तथ्य उनकी पुस्तक माइक्रोग्राफिया में छपा। राबर्ट हुक ने कोशा-भित्तियों के आधार पर कोशा शब्द प्रयोग किया। 1674 लुइवेनहाक ने जीवित कोशा का सर्वप्रथम अध्ययन किया। जबकि तदरोचित नामक वैज्ञानिक ने 1824 में कोशावाद का विचार प्रस्तुत किया, परन्तु इसका श्रेय वनवस्पति-विज्ञान-शास्त्री श्लाइडेन और जन्तु-विज्ञान-शास्त्री श्वान को दिया जाता है जिन्होंने ठीक प्रकार से कोशावाद को (1839 में) प्रस्तुत किया और बतलाया कि कोशाएँ पौधों तथा जन्तुओं की रचनात्मक इकाई हैं।

== संदर्भ ==
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== बाहरी कड़ियाँ ==
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09:25, 14 नवम्बर 2011 का अवतरण

कोशिका

कोशिका सजीवों के शरीर की रचऩात्मक और क्रियात्मक इकाई है। कोशिका का अंग्रेजी शब्द सेल (Cell) लैटीन भाषा के शेलुला शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ एक छोटा कमरा है। कुछ सजीव जैसे जीवाणुओं के शरीर एक ही कोशिका से बने होते हैं, उन्हें एककोशकीय कहते हैं जबकि कुछ सजीव जैसे मनुष्य का शरीर अनेक कोशिकाओं से मिलकर बना होता है उन्हें बहुकोशकीय सजीव कहते हैं। कोशिका का आविष्कार रॉबर्ट हूक ने १६६५ ई० में किया।[1] १९३९ ई० में श्लाइडेन तथा श्वान ने कोशिका सिद्धान्त प्रस्तुत किया जिसके अनुशार सभी सजीवों का शरीर एक या एकाधिक कोशिकाओं से मिलकर बना होता है तथा सभी कोशिकाओं की उत्पत्ति पहले से उपस्थित किसी कोशिका से ही होती है।

सजीवों की सभी जैविक क्रियाएँ कोशिकाओं के भीतर होती हैं। कोशिकाओं के भीतर ही आवश्यक आनुवांशिक सूचनाएँ होती हैं जिनसे कोशिका के कार्यों का नियंत्रण होता है तथा सूचनाएँ अगली पीढ़ी की कोशिकाओं में स्थानान्तरित होती हैं।[2] कोशिका दो प्रकार की होती हैं, प्रोकैरियोटिक कोशिका तथा यूकैरियोटिक कोशिका। प्रोकैरियोटिक कोशिका में कोई स्पष्ट केन्द्रक नहीं होता है। केन्द्रकीय पदार्थ कोशिका द्रव में बिखरे होते हैं। इस प्रकार की कोशिका जीवाणु तथा नीली हरी सैवाल में पायी जाती है। सभी उच्च श्रेणी के पौधों और जन्तुओं में यूकैरियोटिक प्रकार की कोशिका पाई जाती है। सभी यूकैरियोटिक कोशिकाओ में संगठित केन्द्रक पाया जाता है जो एक आवरण से ढका होता है।

कुछ खास भिन्नताओं को छोड़ सभी प्रकार की कोशिकाओं, पादप एवं जन्तु कोशिका की संरचना लगभग एक जैसी होती है। ये सजीव और निर्जीव दोनों तरह की इकाइयों से मिलकर बनी होती हैं। एक सामान्य कोशिका या प्रारूपिक कोशिका के मुख्य तीन भाग हैं, कोशिकावरण, कोशिका द्रव्य एवं केन्द्रक। कोशिकावरण कोशिका का सबसे बाहर का आवरण या घेरा है। पादप कोशिका में कोशिका भित्ति और कोशिका झिल्ली मिलकर कोशिकावरण का निर्माण करते हैं। जन्तु कोशिका में कोशिका भित्ति नहीं पाई जाती अतः कोशिका झिल्ली ही सबसे बाहरी आवरण है। कोशिका झिल्ली एवं केन्द्रक के बीच के भाग को कोशिका द्रव्य कहा जाता है, इसमें विभिन्न कोशिकांग होते हैं। केन्द्रक कोशिका के अन्दर पाये जाने वाली एक गोल एवं सघन रचना है। केन्द्रक को कोशिका का मस्तिष्क कहा जाता है। जिस प्रकार शरीर के सारे क्रियायों का नियंत्रण मस्तिष्क करता है ठीक उसी प्रकार कोशिका के सारे कार्यों का नियंत्रण केन्द्रक द्वारा होता है।

कोशिका - कोशा, जीवधारियों की संरचना एवं जैविक-क्रियाओं की एक इकाई है जो अवकलीय पारगम्य कला से घिरी होती है और जिसमें प्राय: स्वत: जनन की सामर्थ्य होती है। यह विभिन्न पदार्थों का वह छोटे-से-छोटा संगठित रुप है जिसमें वे सभी क्रियाएँ होती हैं जिन्हें सामूहिक रूप से हम जीवन कहतें हैं। राबर्ट हुक ने 1665 में बोतल की कार्क की एक पतली परत के अध्ययन के आधार पर मधुमक्खी के छत्ते जैसे कोष्ठ देखे और इन्हें कोशा नाम दिया। यह तथ्य उनकी पुस्तक माइक्रोग्राफिया में छपा। राबर्ट हुक ने कोशा-भित्तियों के आधार पर कोशा शब्द प्रयोग किया। 1674 लुइवेनहाक ने जीवित कोशा का सर्वप्रथम अध्ययन किया। जबकि तदरोचित नामक वैज्ञानिक ने 1824 में कोशावाद का विचार प्रस्तुत किया, परन्तु इसका श्रेय वनवस्पति-विज्ञान-शास्त्री श्लाइडेन और जन्तु-विज्ञान-शास्त्री श्वान को दिया जाता है जिन्होंने ठीक प्रकार से कोशावाद को (1839 में) प्रस्तुत किया और बतलाया कि कोशाएँ पौधों तथा जन्तुओं की रचनात्मक इकाई हैं।

संदर्भ

  1. "... I could exceedingly plainly perceive it to be all perforated and porous, much like a Honey-comb, but that the pores of it were not regular [..] these pores, or cells, [..] were indeed the first microscopical pores I ever saw, and perhaps, that were ever seen, for I had not met with any Writer or Person, that had made any mention of them before this. . ." – Hooke describing his observations on a thin slice of cork. Robert Hooke
  2. Maton, Anthea (1997). Cells Building Blocks of Life. New Jersey: Prentice Hall. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-13-423476-6. नामालूम प्राचल |coauthors= की उपेक्षा की गयी (|author= सुझावित है) (मदद)

बाहरी कड़ियाँ

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