"कान": अवतरणों में अंतर
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==बाहरी कड़ियाँ== |
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*[http://www.ayjnihh.nic.in/hindi/awareness/audiology.asp हम कैसे सुनते / बोलते हैं?] |
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*[http://www.ayjnihh.nic.in/ अली यावर जंग राष्ट्रीय श्रवण विकलांग संस्थान (भारत)] |
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07:02, 10 नवम्बर 2011 का अवतरण
कान | |
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मानव बाह्यकर्ण |
मानव व अन्य स्तनधारी प्राणियों मे कर्ण या कान श्रवण प्रणाली का मुख्य अंग है। कशेरुकी प्राणियों मे मछली से लेकर मनुष्य तक कान जीववैज्ञानिक रूप से समान होता है सिर्फ उसकी संरचना गण और प्रजाति के अनुसार भिन्नता का प्रदर्शन करती है। कान वह अंग है जो ध्वनि का पता लगाता है, यह न केवल ध्वनि के लिए एक ग्राहक (रिसीवर) के रूप में कार्य करता है, अपितु शरीर के संतुलन और स्थिति के बोध में भी एक प्रमुख भूमिका निभाता है.
"कान" शब्द को पूर्ण अंग या सिर्फ दिखाई देने वाले भाग के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है। अधिकतर प्राणियों में, कान का जो हिस्सा दिखाई देता है वह ऊतकों से निर्मित एक प्रालंब होता है जिसे बाह्यकर्ण या कर्णपाली कहा जाता है। बाह्यकर्ण श्रवण प्रक्रिया के कई कदमो मे से सिर्फ पहले कदम पर ही प्रयुक्त होता है और शरीर को संतुलन बोध कराने में कोई भूमिका नहीं निभाता। कशेरुकी प्राणियों मे कान जोड़े मे सममितीय रूप से सिर के दोनो ओर उपस्थित होते हैं। यह व्यवस्था ध्वनि स्रोतों की स्थिति निर्धारण करने में सहायक होती है।
भाग
मानवीय कान के तीन भाग होते हैं-
- बाह्य कर्ण
- मध्य कर्ण
- आंतरिक कर्ण
बाहरी कड़ियाँ
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