"अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार'": अवतरणों में अंतर
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74 साल के शहरयार का पूरा नाम कुंवर अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान है, लेकिन इन्हें इनके तख़ल्लुस या उपनाम 'शहरयार' से ही पहचाना जाना जाता है. 1961 में उर्दू में स्नातकोत्तर डिग्री लेने के बाद उन्होंने 1966 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में उर्दू के लेक्चरर के तौर पर काम शुरू किया.
वह यहीं से उर्दू विभाग के अध्यक्ष के तौर पर सेवानिवृत्त भी हुए. शहरयार ने गमन और आहिस्ता- आहिस्ता आदि कुछ हिंदी फ़िल्मों में गीत लिखे लेकिन उन्हें सबसे ज़्यादा लोकप्रियता 1981 में बनी फ़िल्म 'उमराव जान' से मिली.
वर्ष 2008 के लिए 44 वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजे गये शहरयार का जन्म 1936 में हुआ. बेहद जानकार और विद्वान शायर के तौर पर अपनी रचनाओं के जरिए वह स्व अनुभूतियों और खुद की कोशिश से आधुनिक वक्त की समस्याओं को समझने की कोशिश करते नजर आते हैं.
इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं, जुस्तजू जिस की थी उसको तो न पाया हमने, दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिये, कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता. जैसे गीत लिख कर हिंदी फ़िल्म जगत में शहरयार बेहद लोकप्रिय हुये हैं.
इस वक्त की जदीद उर्दू शायरी को गढ़ने में अहम भूमिका निभाने वाले शहरयार को उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, दिल्ली उर्दू पुरस्कार और फ़िराक सम्मान सहित कई पुरस्कारों से नवाजा गया.