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[[मीणा]] मुख्यतया [[भारत]] के [[राजस्थान]] [[राज्य]] में निवास करने वाली एक [[जनजाति]] है। मीणा जाति भारतवर्ष की प्राचीनतम जन-जातियों में से मानी जाती है । वेद पुराणों के अनुसार मीणा जनजाति [[मत्स्य]](मीन) [[भगवान]] की वंशज है। पुराणों के अनुसार चैत्र शुक्ला तृतीया को कृतमाला नदी के जल से मत्स्य भगवान प्रकट हुए थे। इस दिन को मीणा समाज जहां एक ओर मत्स्य जयन्ती के रूप में मनाया जाता है वहीं दूसरी ओर इसी दिन संम्पूर्ण [[राजस्थान]] में [[गणगौर]] का [[त्योहार]] बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। |
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मीणा जाति का [[गणचिह्न]] [[मीन]] (मछली) था। [[मछली]] को [[संस्कृत]] में मत्स्य कहा जाता है। प्राचीनकाल में मीणा जाति के राजाओं के हाथ में वज्र तथा ध्वजाओं में मत्स्य का चिह्न अंकित होता था, इसी कारण से प्राचीनकाल में मीणा जाति को मत्स्य माना गया। प्राचीन ग्रंथों में [[मत्स्य जनपद]] का स्पष्ट उल्लेख है जिसकी राजधानी [[विराट नगर]] थी,जो अब [[जयपुर]] [[वैराठ]] है। इस मस्त्य जनपद में [[अलवर]],[[भरतपुर]] एवं [[जयपुर]] के आस-पास का क्षेत्र शामिल था। आज भी मीणा लोग इसी क्षेत्र में अधिक संख्या में रहते हैं। |
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मीणा जाति के भाटों(जागा) के अनुसार मीणा जाति में 12 पाल,32 तड़ एवं 5248 [[गौत्र]] हैं किंतु इसकी प्रमाणित जानकारी कहीं भी उपलब्ध नहीं है। मीणा जाति प्रमुख रूप से निम्न वर्गों में बंटी हुई है:- |
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1.जमींदार या पुरानावासी [[मीणा]] : जमींदार या पुरानावासी [[मीणा]] वे हैं जो प्रायः खेती एवं पशुपालन का कार्य बर्षों से करते आ रहे हैं। ये लोग राजस्थान के [[सवाईमाधोपुर]],[[करौली]],[[दौसा]] व [[जयपुर]] जिले में सर्वाधिक हैं। |
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2.चौकीदार या नयावासी मीणा : चौकीदार या नयावासी मीणा वे मीणा हैं जो अपनी स्वछंद प्रकृति के कारण [[चौकीदारी]] का कार्य करते थे। इनके पास जमीनें नहीं थी,इस कारण जहां इच्छा हुई वहीं बस गये। उक्त कारणों से इन्हें नयावासी कहा जाता है। ये लोग [[राजस्थान]] के [[सीकर]],[[झुंझुनु]] व [[जयपुर]] जिले में सर्वाधिक संख्या में हैं। |
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12:16, 23 अगस्त 2007 का अवतरण
मीणा मुख्यतया भारत के राजस्थान राज्य में निवास करने वाली एक जनजाति है। मीणा जाति भारतवर्ष की प्राचीनतम जन-जातियों में से मानी जाती है । वेद पुराणों के अनुसार मीणा जनजाति मत्स्य(मीन) भगवान की वंशज है। पुराणों के अनुसार चैत्र शुक्ला तृतीया को कृतमाला नदी के जल से मत्स्य भगवान प्रकट हुए थे। इस दिन को मीणा समाज जहां एक ओर मत्स्य जयन्ती के रूप में मनाया जाता है वहीं दूसरी ओर इसी दिन संम्पूर्ण राजस्थान में गणगौर का त्योहार बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है।
मीणा जाति का गणचिह्न मीन (मछली) था। मछली को संस्कृत में मत्स्य कहा जाता है। प्राचीनकाल में मीणा जाति के राजाओं के हाथ में वज्र तथा ध्वजाओं में मत्स्य का चिह्न अंकित होता था, इसी कारण से प्राचीनकाल में मीणा जाति को मत्स्य माना गया। प्राचीन ग्रंथों में मत्स्य जनपद का स्पष्ट उल्लेख है जिसकी राजधानी विराट नगर थी,जो अब जयपुर वैराठ है। इस मस्त्य जनपद में अलवर,भरतपुर एवं जयपुर के आस-पास का क्षेत्र शामिल था। आज भी मीणा लोग इसी क्षेत्र में अधिक संख्या में रहते हैं। मीणा जाति के भाटों(जागा) के अनुसार मीणा जाति में 12 पाल,32 तड़ एवं 5248 गौत्र हैं किंतु इसकी प्रमाणित जानकारी कहीं भी उपलब्ध नहीं है। मीणा जाति प्रमुख रूप से निम्न वर्गों में बंटी हुई है:-
1.जमींदार या पुरानावासी मीणा : जमींदार या पुरानावासी मीणा वे हैं जो प्रायः खेती एवं पशुपालन का कार्य बर्षों से करते आ रहे हैं। ये लोग राजस्थान के सवाईमाधोपुर,करौली,दौसा व जयपुर जिले में सर्वाधिक हैं। 2.चौकीदार या नयावासी मीणा : चौकीदार या नयावासी मीणा वे मीणा हैं जो अपनी स्वछंद प्रकृति के कारण चौकीदारी का कार्य करते थे। इनके पास जमीनें नहीं थी,इस कारण जहां इच्छा हुई वहीं बस गये। उक्त कारणों से इन्हें नयावासी कहा जाता है। ये लोग राजस्थान के सीकर,झुंझुनु व जयपुर जिले में सर्वाधिक संख्या में हैं।
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