"कस्तूरी मृग": अवतरणों में अंतर
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19:33, 9 अप्रैल 2011 का अवतरण
कस्तूरी मृग | |
---|---|
Moschus moschiferus | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | जन्तु |
संघ: | रज्जुकी |
वर्ग: | स्तनधारी |
गण: | Artiodactyla |
कुल: | Moschidae (ग्रे, १८२१) |
वंश: | Moschus (Linnaeus, १७५८) |
कस्तूरी मृग सम-खुर युक्त खुरदार स्तनधारियों का एक समूह है। यह मोशिडे परिवार का प्राणी है। कस्तूरी मृगों की चार प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जो सभी आपस में बहुत समान हैं। कस्तूरी मृग, सामान्य मृग से अधिक आदिम है।
विशिष्टताएँ
कस्तूरी मृग एक छोटे मृग के समान नाटी बनावट का होता है और इनके पिछले पैर आगे के पैरों से अधिक लम्बे होते हैं। इनकी लम्बाई ८०-१०० से०मी० तक होती है, कन्धे पर ५०-७० से०मी०, और भार ७ से १७ किलो तक होता है। कस्तूरी मृग के पैर कठिन भूभाग में चढ़ाई के लिए अनुकूल होते हैं।
इनका दन्त सूत्र सामान्य मृग के समान ही होता है :
उत्तराखंड राज्य में पाए जाने वाले कस्तूरी मृग प्रकृति के सुंदरतम जीवों में से एक हैं। यह 2-5 हजार मीटर उंचे हिम शिखरों में पाया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम moschus Chrysogaster है। यह "हिमालयन मस्क डिअर" के नाम से भी जाना जाता है। कस्तूरी मृग अपनी सुन्दरता के लिए नहीं अपितु अपनी नाभि में पाए जाने वाली कस्तूरी के लिए अधिक प्रसिद्ध है। कस्तूरी केवल नर मृग में पायी जाती है जो इस के उदर के निचले भाग में जननांग के समीप एक ग्रंथि से स्रावित होती है। यह उदरीय भाग के नीचे एक थेलीनुमा स्थान पर इकट्ठा होती है। कस्तूरी मृग छोटा और शर्मीला जानवर होता है। इस का वजन लगभग १३ किलो तक होता है। इस का रंग भूरा और उस पर काले-पीले धब्बे होते हैं। एक मृग में लगभग ३० से ४५ ग्राम तक कस्तूरी पाई जाती है। नर की बिना बालों वाली पूंछ होती है। इसके सींग नहीं होते। पीछे के पैर आगे के पैर से लम्बे होते हैं। इस के जबड़े में दो दांत पीछे की और झुके होते हैं। इन दांतों का उपयोग यह अपनी सुरक्षा और जड़ी-बूटी को खोदने में करता है.
कस्तूरी मृग की घ्राण शक्ति बड़ी तेज होती है। कस्तूरी का उपयोग औषधि के रूप में दमा, मिर्गी, निमोनिया आदि की दवाऍं बनाने में होता है। कस्तूरी से बनने वाला इत्र अपनी खुशबू के लिए प्रसिद्ध है। कस्तूरी मृग तेज गति से दौड़ने वाला जानवर है, लेकिन दौड़ते समय ४०-५० मीटर आगे जाकर पीछे मुड़कर देखने की आदत ही इस के लिये काल बन जाती है। कस्तूरी मृग को संकटग्रस्त प्रजातियों में शामिल किया गया है।
कस्तूरा अभयारण्य
रूद्रप्रयाग जिले में पंचकेदारों में से एक तुंगनाथ महादेव के आस-पास कस्तूरा मृग अभयारण्य स्थित है। तुंगनाथ महादेव मंदिर के मार्ग में ही इस अभयारण्य का कस्तूरी मृग प्रजनन केन्द्र भी है। hi:कस्तूरी मृग