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ॐ नमः शिवाय आज से लगभग ८०० वर्ष पूर्व की बात है, भारत के उत्तर प्रदेश के जनपद सहारनपुर के क़स्बा देवबंद से उत्तर दिशा यानि देवबंद से रूडकी रोड पर ३ किलोमीटर पर एक स्थान सवयंभु लिंग भगवान श्री मंकेश्वर महादेव जी का मंदिर है, स्वयम्भू लिंग कैसे अवतरित हुए उसके बारे में एक कथा है जो यहाँ पर वर्णन कर रहे है, उस समय यह स्थान बिलकुल जंगल बियाबान था यहाँ एक मुस्लिम खेत से चिकनी मिटटी निकाल रहा था की अचानक से एक पत्थरनुमा शिवलिंग के आकार की आकृति उभर कर आयी, मुस्लिम ने जिघ्याशवाश उस ोाठर को वहां से हटाने का प्रयास किया परन्तु तीन दिन बीत जाने के बाद भी यह आकृति ताश से मैश नहीं हुइ और थक हार कर उस व्यक्ति ने उस आकृति पर फवदेनुमा अस्तर से तेज प्रहार कर दिया, प्रहार करने के बाद आकृति का आस पास का वातावरण घनघनाहट के साथ हलाहल और डरावना हो गया मुस्लिम तो यह सब देख दर कर भाग खड़ा हुआ, अचानक से उस कटे स्थान से फ़व्वारेनुमा रक्त निकलने लगा और थोड़ी देर बाद फिर गाय के दूध की वर्षा होने लगी देखते ही देखते समूचा वातावरण हराभरा मनमोहक शिवमय हो गया, उसी रात को निकट क़स्बा देवबंद के धनाढय सेठजी जिनका उस समय के राजा बादशाह के यहाँ एक मुकदमा चल रहा था, को ारधसव्पन में भगवान शिव ने दर्शन दिए और बताया की यहाँ से कुछ दूरी पर जंगल में हम विराजमान हो गए है, सेठजी ने प्रातः उठ उस स्थान की खोज कर वहां पर गए और मंदिर का निर्माण सहर्ष कराया , मंदिर बनाने के उपरांत सेठजी मुकदमे से बाइज़्ज़त बरी हो गए ,सवयंभु लिंग भगवन श्री मंकेश्वर महादेव मंदिर के नाम से विख्यात हुए , भोले नाथ की आकृति पर आज फावड़े से काटने का निशान है जिसमे लगभग ४ से ५ लीटर जल हमेशा ही रहता है, तभी से इस चमत्कारिक मंदिर पर अनेकोनेक चमत्कार देखना और सुनने को मिलते है, श्री मंकेश्वर महादेव मंदिर लगभग १ हैक्टर में फैला हुआ है,देवबंद रूड़की रोड से पश्चिम दिशा में लगभग पांच सो मीटर अंदर तक है,मुख्या सड़क पर दो विशाल गेट है अंदर आते ही दायी और एक विशाल १५ फुट ऊँची श्री हनुमान जी खड़ी आकृति विग्रह है , उसके बाद मंदिर का दूसरा मुख्य द्वार है ,के बाद प्रांगण और श्री गणेशजी का मंदिर साथमे श्री राम दरबार से सुशोभित है, फिर तीसरे द्वार से प्रवेश करते ही नंदी भगवान सामने गर्भग्रह में सुशोभित सवयंभु लिंग भगवन भोले नाथ को निहार रहे है, अब चौथा द्वार गर्भग्रह का है जिसमे सामने श्री मंकेश्वर महादेव अपने परिवार संग श्री गणेश, नंदीजी, माता पार्वती जी,श्री कार्तिकेय जी व हनुमानजी के साथबहुत ही सूंदर मनमोहक अवस्था में विराजमान है , गर्भग्रह से दर्शन करने के बाद बहार प्रांगण में मंदिर के मुख्य महंत पुजारी श्री गोसाई जी की प्राचीन गद्दी है, बराबर में एक हॉल है जिसमे संतोषी माता, अन्नपूर्णा माता ,काली माता एवं दुर्गा जी माता विराजमान है, मंदिर के पीछे एक वाटिका और साथ में एक बहुत बड़ा प्राचीन धुंना है जो १९८३ में श्री गोविंदानंद जी महाराज की प्रेरणा से निर्मित है जिसे श्री महाराज जी ने काफी सालो तक घोर जप तप करके स्थान को और अधिक सिद्ध और चेतन किया, इस मंदिर पर आज भी चालीस दिन तक भगवन भोले नाथ की आराधना पूजा असमरण इत्यादि करते है तो उनके समस्त रोगो और समस्याओ का निवारण शत प्रतिशत होता है, मात्र मंदिर पर आने भर से ही प्राणी धनात्मक ऊर्जा,शिवमय से ओतप्रोत हो जाता है , इस चमत्कारिक मंदिर की एक बहुत ही प्रचलित और विस्वाश योग्य बात है, निःसंतान को मात्र एक कद्दू व भोग चढ़ाने से संतान की प्राप्ति और अविवाहित को विवाहित,रोगी को निरोगी, बेरोज़गार को रोज़गार इसके अलावा समस्त समस्याओ का निवारण अपने भक्तो की करते है, ऐसा आये दिन देखने को मिलता है, मंदिर पर इस तरह की दो लाइन भी भोले नाथ के ऊपर सटीक और मंदिर पर लिखी हुए है "इच्छा ले जो आयेगा", "शिव भोले के द्वार" l "खाली नहीं वह जायेगा", "यह ऐसा दरबार" ll भगवान मंकेश्वर महादेव जी के मंदिर की स्थापना के समय से ही शास्त्रोनुसार गोसाईं गिरी ही मंदिर की पूजा पाठ देखरेख व महंताई का कार्य कर रहे है जिसमे इन महंतो को समय समय पर भगवनजी ने साक्षात् दर्शन दिए, सन १९८३ में मंदिर के महंत श्री श्री १०८ फौजी गिरिजी महाराज को भरी सर्दी की रात को साक्षात् दिव्या मिठाइयों को खिलाकर दर्शन दिए, क्योकि उस दिन महंतजी भूखे सो रहे थे, मंदिर धुनें पर एक युवा संत श्री श्री १०८ स्वामी गोविंदानंद जी महाराज जी ने मंदिर की महत्वता को देखते हुए मंदिर पर कड़ी तपस्या की जिसके फलस्वरूप श्री मंकेश्वर महादेव भगवन जी ने कई चमत्कार दिखाए जो बाद में ऋषिकेश स्थित आश्रम के महामण्डलेश्वर नियुक्त हुए , ॐ नमः शिवाय, जिग्ग्याशावश पत्थर फावड़े अस्त्र