भवसागर

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भवसागर का शाब्दिक अर्थ है घटनाओं का सागर , भव अर्थात होना या घटित होना, भव का अर्थ उत्पत्ति , और जन्म मरण भी है। भवसागर वह स्थान है जहाँ सृष्टि की घटनाएँ घटित होती हैं , जहाँ जन्म मरण होता है अर्थात ये संसार। भारतीय मान्यताओं के अनुसार जीवन मरण में के चक्र में बंधी आत्मा भवसागर में रह रही होती है। अर्थात जन्म होना , इन्द्रियों के प्रयोग से संसार के सुख और दुःख का अनुभव होना , जीवन के कष्ट भोगना , वृद्ध होना , मृत्यु होना , फिर जन्म , और सुख दुःख का चक्र यही भवसागर है। [1][2]

इस चक्र से मुक्ति अर्थात मोक्ष की प्राप्ति को ही भवसागर से पार उतरना कहा गया है।

भवसागर के काव्य में प्रयोग[संपादित करें]

अब तो निभायां सरेगी बांह गहे की लाज।
समरथ शरण तुम्हारी सैयां सरब सुधारण काज॥
भवसागर संसार अपरबल जामे तुम हो जहाज।
गिरधारां आधार जगत गुरु तुम बिन होय अकाज॥
जुग जुग भीर हरी भगतन की दीनी मोक्ष समाज।
मीरा शरण गही चरणन की लाज रखो महाराज॥
 - मीराबाई 


इस अपार संसार सिन्धु में राम नाम आधार।
जिसने मुख से राम कहा उस जन का बेड़ा पार है।
इस भवसागर में तृष्णा नीर भरा है।
फिर कामादि जल-जीवों का पहरा॥
  -  बिन्दु जी


बिना भजन भगवान राम बिनु के तरिहें भवसागर हो  - टेकमन राम

ये भी देखें[संपादित करें]

टिप्पणियाँ[संपादित करें]

  1. शब्दसागर. "भव का अर्थ".
  2. शब्दसागर. "भवसागर का अर्थ".