प्रतिलोम समस्या

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विज्ञान में ऐसी समस्याओं को प्रतिलोम समस्या (inverse problem) कहते हैं जो कुछ प्रेक्षणों की सहायता से उनको (उन आकड़ों को) उत्पन्न करने वाले कारणों की गणना करतीं हैं। उदाहरण के लिये धरती के गुरुत्वीय क्षेत्र के आंकडों के आधार पर धरती के अन्दर विभिन्न बिन्दुओं पर घनत्व निकालना एक प्रतिलोम समस्या है।

इनकों प्रतिलोम समस्या इसलिये कहते हैं कि यह परिणामों से शुरू होतीं हैं और 'उल्टा' चलकर उपयुक्त कारण की खोज करतीं हैं जिनसे ऐसे परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। अतः यह अनुलोम समस्या (forward problem) का उल्टा है जो कारण से शुरू होकर परिणाम की गणना करती है।

प्रतिलोम समस्या की गणना, गणित और विज्ञान की कुछ सर्वाधिक महत्वपूर्ण समस्याओं में होती है। ये इसलिये महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे उन प्राचलों (पैरामीटर) के बारे में बताने का प्रयास करतीं हैं जिनको सीधे मापा नहीं जा सकता। इनका उपयोग प्रकाशिकी, राडार, ध्वनिकी, संचार सिद्धान्त, संकेत प्रसंस्करण, मेडिकल इमेजिंग, कम्प्यूटर दृष्टि, भूभौतिकी, समुद्रविज्ञान, खगोलिकी, सुदूर संवेदन, मशीन लर्निंग, प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण, अविनाशी परीक्षण (nondestructive testing) तथा अन्य अनेकानेक क्षेत्रों में किया जाता है।

महत्वपूर्ण बातें[संपादित करें]

  • प्रतिलोम समस्याएँ अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। इनका उपयोग विज्ञान के लगभग सभी क्षेत्रों में अनुप्रयुक्त समस्याओं के हल के लिए किया जाता है।
  • प्रतिलोम समस्याएँ सर्वव्यापी (ubiquitous) हैं।
  • अधिकांश प्रतिलोम समस्याएँ कु-वर्णित (ill-posed) होतीं हैं और उनके हल अस्थिर (unstable) होते हैं।
  • विशेषज्ञ लोग प्रतिलोम एवं कु-वर्णित समस्याओं के गुणों का अध्ययन करते हैं तथा उनके विनियमितीकरण (regularization) की विधियों का अध्ययन करते हैं।

सन्दर्भ[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]