पदानुक्रम

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पदानुक्रम, अधिक्रम या पदसोपान (hierarchy) वस्तुओं का ऐसा विन्यास है जिसमें वस्तुएँ एक दूसरे के सापेक्ष 'ऊपर', 'नीचे', या 'समान स्तर पर' रखी जातीं हैं। ये वस्तुएं नाम, मान (वैल्यू), श्रेणी आदि हो सकती हैं।

किसी भी संगठन की कार्यकुशलता एवं लक्ष्य प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि संगठन की रचना करते समय कुछ आधारभूत सिद्धान्त अपनाए जाएं। संगठन के सिद्धान्त से तात्पर्य, प्रशासनिक संगठनों की उन प्रक्रियाओं तथा नियमो से है, जिसsopanrajuar









के अनुसार प्रशासनिक संगठनों का संचालन होता है। इन सिद्धान्तों में पदसोपान, आदेश की एकता, नियंत्रण का क्षेत्र, नेतृत्व, पर्यवेक्षण, प्रत्यायोजन, समन्वय, सत्ता तथा उत्तरदायित्व इत्यादि सम्मिलित हैं।

पदसोपान का अर्थ[संपादित करें]

'पदानुक्रम', अंग्रेजी शब्द हायरार्की का हिन्दीकरण है। 'हायरार्की' का अर्थ है – सत्ता या प्रस्थिति की निम्नतम से उच्चतम तक एक व्यवस्था। यह सिद्धान्त सर्वव्यापी है। पदसोपान के बिना किसी प्रशासनिक संगठन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अधिकांश संगठन पिरेमिड आकार के होते हैं। संगठन में कार्यों तथा उत्तरदायित्वों का विभाजन इकाई और उप इकाई के मध्य किया जाता है। यह विभाजन क्षैतिज तथा लम्ब रूप दोनों ही प्रकार से किया जाता है। लम्ब रूप में विभाजन के परिणामस्वरूप शीर्ष प्रबंध, मध्य स्तरीय प्रबंध, निरीक्षकों तथा विशिष्ट कार्यों के स्तरों का गठन किया जाता है।

पदसोपान के अनुसार सोपान संगठन में निम्नतम पद से सर्वोच्च पद तक सोपान (सीढी) के अनुसार पदों का क्रम होता है। संगठन में निर्णय प्रक्रिया इन्हीं पदों या स्तरों से होकर गुजरती है। जिस समय संगठन का निर्माण किया जाता है, उस समय विभिन्न स्तरों के संबंध में संगठन निर्माताओं के मस्तिष्क में उच्चता या निम्नता का कोई विचार नहीं होता है। लेकिन विभिन्न पदो के वेतनक्रम, विभिन्न स्तरों के दायित्वों की प्रकृति तथा विभिन्न प्रशासकीय स्तरों पर कार्यरत कार्मिकों की योग्यता में अन्तर के कारण संगठन व्यवहार में उच्च तथा निम्न या अधीनस्थों के संबंध विकसित हो जाते हैं।

हायरार्की (Hierarchy) का शाब्दिक अर्थ होता है निम्नतर पर उच्चतर का शासन या नियंत्रण। व्यवहार में इस शब्द का आशय एक ऐसे संगठन से है, जो सीढ़ी या सोपान की भांति पदों के एक उत्तरोतर क्रम के अनुसार संगठित किया गया हो, जिस प्रकार सीढ़ी में एक के बाद दूसरा डंडा होता है, उसी के अनुरूप पद सोपान में एक के बाद दूसरा पद होता है। इस पदक्रम में प्रत्येक निचला पद या स्तर अपने से निकटतम उच्च पद के तथा उस पद के माध्यम से उससे भी ऊपर के पद तथा उसी प्रकार सबसे ऊपर के पद अथवा पदों के आधीन होता है।

पदसोपान का यह मान्य सिद्धान्त है कि उच्च अधिकारी नीचे के स्तर पर सम्पर्क करते समय मध्यस्थ पदाधिकारी की उपेक्षा नहीं कर सकता। ठीक उसी प्रकार कोई भी निम्न पदाधिकारी उच्च अधिकारी से सम्पर्क स्थापित करते समय मध्यस्थ अधिकारी की अवहेलना नहीं कर सकता। सीढी पर चढ़ते या उतरते समय किसी भी डंडे को लांघना खतरे से खाली नहीं होता। ठीक उसी प्रकार प्रशासन में किसी स्तर को लांघना भी संगठन में प्रशासनिक परेशानी उत्पन्न कर सकता है। संगठन में समस्त कार्मिकों से सदैव उचित माध्यम के द्वारा कार्य करनेकी अपेक्षा की जाती है। संगठन में जब भी कोई पत्र व्यवहार या फाइल चलती है, तो ऊपर की ओर या नीचे की ओर जाते समय प्रत्येक स्तर पर होते हुए गुजरती है। पदसोपान की इस क्रमिक प्रक्रिया को 'उचित माध्यम' (Through Proper Channel) भी कहा जाता है।

पद सोपान एक ऐसी व्यवस्था है जिसकी सहायता से किसी संगठन के विभिन्न व्यक्तियों के कार्यों को एक दूसरे से जोडा जाता है। संगठन में उच्च अधिकारी अपने निकटतम अधीनस्थ अधिकारी या कर्मचारी को आदेश देता है, अधीनस्थ अधिकारी उच्च अधिकारी के आदेशों का पालन करता है। निम्न अधिकारी अपने निकटतम अधिकारी को आदेश देसकता है। उत्तरदायित्वों के अनेक स्तरों के माध्यम से सं गठन में स्वत: ही वरिष्ठ तथा अधीनस्थों के मध्य संबंध स्थापित हो जाते हैं। संगठन में इन उच्च तथा अधीनस्थों के संबंधों का पिरामिडनुमा ढांचा विकसित हो जाता है। मूने तथा रैली ने पद सोपान को सीढीनुमा प्रक्रिया (Scalar Process) या सीढीनुमा सिद्धान्त (Scalar Principle) नाम दिया है। मूने तथा रैली का कहना है कि जहां कहीं भी वरिष्ठ और अधीनस्थ के संबंधों से बना लोगों का संगठन होगा, वहीं सीढ़ीनुमा सिद्धान्त भी लागू होगा। मूने के अनुसार यह सिद्धान्त सभी संगठनों में पाया जाता है।

पदसोपान को परिभाषित करतेहुए एल . डी. ह्वाइट कहते हैं – पद सोपान उपर से नीचे तक उत्तरदायित्वों के कई स्तरों के कारण उत्पन्न वरिष्ठ अधीनस्थ का वह सम्बन्ध है, जो सभी जगह लागू होता है।

अर्ल लैथम के अनुसार पद सोपान उच्च तथा निम्न पदों की ऐसी सुनियोजित व्यवस्था है, जो उपर से नीचे तक फैली हुई है। इस व्यवस्था में सर्वोच्च अधिकारी अपनेपद पर विराजमान रहते हुए पैनी दृष्टि से सबसे निम्नतम पद धारक कर्मियों के दिलो को टटोल सकते हैं तथा उनकी गतिविधियों को अपने आदेशानुसार जैसा चाहे ढाल सकता है। इस प्रकार पद सोपान में संगठन की गतिविधियों को मार्गदर्शन तथा उन पर नियंत्रण रखने हेतु सभी इकाईयों को संयुक्त करके एक बडी इकाई बना दिया जाता है।

जे. डी मिलेट के अनुसार पद सोपान एक ऐसी पद्धति है जिसमें विभिन्न व्यक्तियों (कार्मिकों) के प्रयासों को आपस में जोड़ दिया जाता है।

मूने तथा रैली ने पदसोपान व्यवस्था को सीढ़ीनुमा प्रक्रिया का सिद्धान्त (Scalar Process) नाम दिया है तथा है फेयोल ने इसे सोपानात्मक शृंखला कहा हैं। उनके अनुसार जहां कहीं भी उच्च तथा अधीनस्थों के संबंधों से बना संगठन होगा, वहीं पर यह सीढ़ीनुमा प्रक्रिया भी अवश्य होगी। किसी भी संगठन में कार्यों तथा उत्तरदायित्वों का वितरण आडी (क्षैतिजिक) और खडी (उर्ध्वाधर) दोनों दिशाओं में होता है। संगठन में उर्ध्वाधर (Vertical) विभाजन में शीर्ष पद, मध्यम पद तथा निम्न पदों की स्थिति होती है। जब सं गठन में नये पद एवं स्तर जोडे जाते हैं तो यह उर्ध्वाधर वृद्धि होती है, जबकि क्षैतिजिक (Horizontal) विभाजन में पद सोपान के स्तरों में वृद्धि किए बिना ही नए नए कार्य या स्थान जोड़ दिए जाते हैं।

वस्तुतः पदसोपान व्यवस्था कार्मिकों के वेतन, उत्तरदायित्व, योग्यता तथा प्रस्थिति में असमानता होने के कारण बनानी पडती है। एक समान योग्यता, कार्य एवं प्रस्थिति के पद एक स्तर पर होते हैं। पॉल. एच. एपलबी की दृष्टि में – संसाधनों के विभाजन कार्मिकों के चयन तथा कार्य–विभाजन, कार्यों के संचालन, समीक्षा तथा सुधार के क्रम में पदसोपान एक साधन है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]