पत्नी

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"कारोबारी की बीवी" पेंटिंग (1918)

पत्नी या बीवी एक शादीशुदा औरत होती है। एक बीवी तब तक कानूनी शादीशुदा रहती है जब तक तलाक नहीं हो जाता। पती के मरने पर पत्नी विध्वा कहलाती है। समाज और कानून में बीवी के हक और कर्तव्य जगह और वक्त के साथ अलग-अलग होते है।

व्युत्पत्ति[संपादित करें]

महर्षि पाणिनि का सूत्र है- 'पत्युन यज्ञ-संयोगे' पति शब्द से 'न' प्रत्यय के योग से स्त्रीलिंग में पत्नी शब्द 'यज्ञ संयोग' के अर्थ में निष्पन्न होता है । यह शब्द उस विवाहिता स्त्री का उद्बोधन करता है जो पति के साथ उसके याज्ञिक कार्यों में भी भाग ले सकती हो ; पाणिनि की अष्टाध्यायी अनुसार यज्ञ में पति का साथ देने के ही कारण स्त्री को पत्नी कहा गया है । पत्नी की यज्ञ की स्वामिनी के रूप में व्याख्या है। 'पत्नी' शब्द भारतीय संस्कृति की गरिमा का विशिष्टबोधक है ।[1][2]

वेद मे पत्नी शब्द[संपादित करें]

वेद मे अनेक बार पत्नी शब्द आया हुआ है। ऋग्वेद में निम्नलिखित मंत्र है -

  • तान्यजत्राँ ऋतावृधोऽग्ने पत्नीवतस्कृधि। मध्वः सुजिह्व पायय॥ (१/१४/७) अर्थात् हे प्रभो  ! तमन्त्रों में वर्णित उन उपासकों को यज्ञों के द्वारा अपना त्राण करनेवाले अपने जीवन में ऋत का वर्धन करनेवाले , अर्थात् बड़े व्यवस्थित जीवनवाले तथा (पत्नीवतः) - उत्तम पत्नीवाले कीजिए । पत्नी वही है जिसका सम्बन्ध यज्ञ के लिए होता है । पत्नी के स्वभाव पर यह बात निर्भर है कि घर में यज्ञिय वृत्ति का वर्णन होता है या भोगवृत्ति का ।[3]
  • अस्मा इदु ग्नाश्चिद्देवपत्नीरिन्द्रायार्कमहिहत्य ऊवुः। परि द्यावापृथिवी जभ्र उर्वी नास्य ते महिमानं परि ष्टः ॥ (१/६१/८) अर्थात् हे सभापति ! जैसे यह सूर्य्य प्रकाश और भूमि को धारण करता वा जिसके वश में बहुधा रूपप्रकाशयुक्त पृथिवी है जिस इस सभाध्यक्ष के मेघों के हनन व्यवहार में प्रकाश भूमि की हिमा के सब प्रकार छेदन को समर्थ नहीं हो सकते, वैसे उस इस ऐश्वर्य प्राप्त करनेवाले सभाध्यक्ष के लिये ही (देवपत्नीः) विद्वानों से पालनीय पतिव्रता स्त्रियों के सदृश वेद वणीव्य गुणुसम्पन्न अर्चनीय वीर पुरुष को सब प्रकार तन्तुओं के समान विस्तृत करती हैं, वही राज्य करने के योग्य होता है ॥ ८ ॥[4][5]
  • सनायुवो नमसा नव्यो अर्कैर्वसूयवो मतयो दस्म दद्रुः। पतिं न पत्नीरुशतीरुशन्तं स्पृशन्ति त्वा शवसावन्मनीषाः ॥ (१/६२/११) अर्थात् हे बलयुक्त अविद्यान्धकारविनाशक सभापते ! तू जैसे सनातन कर्म के करनेवालों के समान आचरण करते अन्न वा नमस्कार तथा मन्त्र अर्थात् विचारों के साथ वर्त्तमान अपने लिये विद्या, धनों और विज्ञानों के इच्छा करने सबको जाननेवाले विद्वान् लोग जैसे नवीन काम की चेष्टा से युक्त पत्नी काम की इच्छा करनेवाले पति का आलिङ्गन करती हैं और जैसे कुटिल गति को प्राप्त होनेवालों को जानते हैं, वैसे तुझको प्रजा सेवें ॥ अर्थात्म मनुष्यों को समझना चाहिये कि जैसे स्त्री-पुरुषों के साथ वर्त्तमान होने से सन्तानों की उत्पत्ति होती है, वैसे ही रात-दिनों के एक-साथ वर्तमान होने से सब व्यवहार सिद्ध होते हैं। और जैसे सूर्य का प्रकाश और पृथिवी की छाया के विना रात और दिन का सम्भव नहीं होता, वैसे ही स्त्री पुरुष के बिना मैथुनी सृष्टि नहीं हो सकती ॥ ११ ॥[4][6]
  • उत न ईं मतयोऽश्वयोगा: शिशुं न गावस्तरुणं रिहन्ति। तमीं गिरो जनयो न पत्नी: सुरभिष्टमं नरां नसन्त ॥ (१/१८६/७) अर्थात् जैसे घुड़चढ़ा शीघ्र एकस्थान से दूसरे स्थान को वा जे गौयें बछड़ों को वा स्त्रीव्रत जन अपनी अपनी पत्नियों को प्राप्त होते हैं, वैसे विद्वान् जन विद्या और श्रेष्ठ विद्वानों की वाणियों को प्राप्त होते हैं ॥ ७ ॥[7][4]
  • पूषा त्वेतो नयतु हस्तगृह्याश्विना त्वा प्र वहतां रथेन । गृहान्गच्छ गृहपत्नी यथासो वशिनी त्वं विदथमा वदासि ॥ (१०/८५/२६) अर्थात् विवाह हो चुकने पर पाणिग्रहणकर्ता पति वधू को सम्मान के साथ अच्छे यान में बिठाकर अपने घर ले जावे, वहाँ पहुँचकर वह गृहस्वामिनी बनकर पति के प्रति सुख पहुँचानेवाले वचन को बोले ॥२६॥[8]

ये भी देखें[संपादित करें]

संदर्भ[संपादित करें]

  1. ठाकुर, लक्ष्मीदत्त (1965). प्रमुख स्मृतियों का अध्ययन. Hindī Samiti, Sūcanā Vibhāga. पृ॰ 143. ..यह शब्द उस विवाहिता स्त्री का उद्बोधन करता है जो पति के साथ उसके याज्ञिक कार्यों में भी भाग ले सकती हो ; पाणिनि की अष्टाध्यायी में इसी को स्पष्ट करते हुये कहा गया है— “ पत्युन यज्ञ संयोगे " ; यज्ञ में पति का साथ देने के ही कारण स्त्री को पत्नी कहा गया है ।
  2. Pahalā sūraja, eka samagra mulyāṅkana. Ayana Prakāśana. 1989. पृ॰ 27. ' पत्नी ' शब्द भारतीय संस्कृति की गरिमा का विशिष्टबोधक है । महर्षि पाणिनि का सूत्र है- ' पत्युन यज्ञ - संयोगे – ' पति ' शब्द से ' न ' प्रत्यय के योग से स्त्रीलिंग में ' पत्नी ' शब्द ' यज्ञ संयोग के अर्थ में निष्पन्न होता है ।
  3. Solutions, Aum Web. "Rigveda/1/14/7 | Vedic Scriptures | Online Vedas". vedicscriptures.in (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-09-29.
  4. Arya Pratinidhi Sabha. Rigveda With Bhashya By Maharshi Dayananda Saraswati Mandal 1 Vol. 1 Arya Pratinidhi Sabha (Sanskrit और Hindi में). अभिगमन तिथि 2021-02-02.सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  5. Solutions, Aum Web. "Rigveda/1/61/8 | Vedic Scriptures | Online Vedas". vedicscriptures.in (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-09-29.
  6. Solutions, Aum Web. "Rigveda/1/62/11 | Vedic Scriptures | Online Vedas". vedicscriptures.in (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-09-29.
  7. Solutions, Aum Web. "Rigveda/1/186/7 | Vedic Scriptures | Online Vedas". vedicscriptures.in (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-09-29.
  8. Solutions, Aum Web. "Rigveda/10/85/26 | Vedic Scriptures | Online Vedas". vedicscriptures.in (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-09-29.