पट्टाभि सीतारमैया

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पट्टाभि सीतारमैया (24 नवम्बर सन् 1880 - 1959) भारतीय कांग्रेस के भूतपूर्व अध्यक्ष, गांधीबाद के प्रख्यात आचार्य एवं व्याख्याता, उच्च कोटि के लेखक तथा मध्य प्रदेश के प्रथम राज्यपाल थे। डाक्टर पट्टाभि सीतारमैया का नाम आधुनिक भारत के इतिहास में उल्लेखनीय है।

जीवनी[संपादित करें]

पट्टाभि सीतारमैया का जन्म आंध्र प्रदेश में 24 नवम्बर सन् 1880 ईसवी को हुआ था। बी.ए. परीक्षा में उत्तीर्ण होकर आपने मेडिकल कालेज में अध्ययन किया। आपने मछलीपट्टम में चिकित्साकार्य आरंभ किया किंतु सन् 1920 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के समय आप उसे छोड़कर स्वाधीनता संग्राम के सैनिक बन गए। राष्ट्रीयता का प्रचार प्रसार करने तथा जनता में देश को स्वतंत्र करने के लिये त्याग की भावना भरने के निमित्त आपने "जन्मभूमि" नामक अंग्रेजी साप्ताहिक प्रकाशित किया। सन् 1930 में अपने क्षेत्र में सविनय अवज्ञा आंदोलन के सूत्रधार आप ही थे। आंदोलन में भाग लेने के कारण आपको ढाई वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई। इस समय तक आप देश के प्रमुख कांग्रेस नेताओं की पंक्ति में आ चुके थे। सन् 1929 से अनेक वर्षों तक आप लगातार कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य चुने जाते रहे। सन् 1932-33 में भी आपने जेलयात्रा की। सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों के साथ आप भी गिरफ्तार कर नजरबंद कर दिए गए।

कांग्रेस संघटन के अतिरिक्त आपने देशी राज्य प्रजापरिषद् की कार्यसमिति में वर्षों रहकर राष्ट्रीय जागरण का कार्य किया। आपकी सेवओं का संमान आपको अध्यक्ष बनाकर किया गया। आपमें जन्मजात नेता तथा महान संघटनकर्ता के गुण थे। यही कारण है कि आपने प्रारंभ में ही आंध्र के सहकारिता आंदोलन में जहाँ भाग लिया वहीं जीवन बीमा व्यवस्था की प्रगति में भी उल्लेखनीय योगदान किया। सन् 1925 में आपने आंध्र इंश्योरेंस कंपनी की स्थापना की और इसके संचालक मंडल के अध्यक्ष बने। इसके बाद आपने आंध्र बैंक, भारत लक्ष्मी इंश्योरेंस कंपनी, हिंदुस्तान म्युच्युएल इंश्योरेंस कंपनी आदि की स्थापना कर आर्थिक एवं औद्योगिक प्रगति के निमित्त ऐतिहासिक कार्य किया।

गाँधी पर अटूट विश्वास तथा उसके अन्यतम व्याख्याता के रूप में आप देश में प्रसिद्ध थे। महात्मा गांधी का आपपर अत्यधिक विश्वास एवं स्नेह था। यही कारण है कि सन् 1939 में जब आप कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव में श्री सुभाषचंद्र बसु के विरुद्ध खड़े हुए तो महात्मा गांधी ने कहा था कि पट्टाभि सीतारमैया की हार मेरी हार होगी। उस समय तो आप न जीत सके किंतु सन् 1948 ई. में आप जयपुर कांग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गए। इसी अधिवेशन में भारतीय कांग्रेस का वह ऐतिहासिक प्रस्ताव स्वीकृत हुआ था जिसके अनुसार कांग्रेस को विश्वशांति तथा मैत्री और राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक समानता के आधार पर भारतीय राष्ट्र एवं जनता को प्रगतिपथ पर अग्रसर करने का लक्ष्य सुनिश्चित किया गया था। अपनी सुदीर्घ तथा उल्लेख्य राष्ट्रसेवा तथा नेतृत्व के गुणों के कारण 1952 में डाक्टर पट्टाभि सीतारमैया मध्यप्रदेश के राज्यपाल नियुक्त हुए। सन् 1957 में उस प्रदेश के पुनर्गठित होने पर भी आप वहाँ के राज्यपाल बने रहे।

आप सदय एवं सौम्य प्रकृति के अत्यंत प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। संघटन की तो आपमें अपूर्व क्षमता थी। पत्रकार तथा लेखक के रूप में भी आपका कृतित्व उल्लेखनीय है। अंग्रेजी पर आपका असाधारण अधिकार था पर आप राष्ट्रभाषा हिंदी के भी भक्त थे। मार्च, 1957 में जब आपकी पुस्तक "गांधी तथा गांधीवाद" का प्रकाशन हुआ तो आपने उसकी भूमिका में लिखा - "हिंदी आज राजभाषा बन चुकी है और वस्तुत: भारत की राष्ट्रभाषा के गौरवमय पद पर प्रतिष्ठित हो चुकी है"।

रचनाएँ[संपादित करें]

आपकी अन्य रचनाओं के नाम इस प्रकार हैं -

(1) आन खद्दर,

(2) इंडियन नेशनल कांग्रेस,

(3) सिक्सटी इयर्स ऑव कांग्रेस

(4) फेदर्स एंड स्टोन्स,

(5) नेशनल एजुकेशन,

(6) इंडियन नेशनलिज्म,

(7) रिडिस्ट्रीब्यूशन ऑव प्राविंसेज आन ए लैंग्वेज बेसिस।

कांग्रेस की स्वर्ण जयंती पर आपने भारतीय कांग्रेस का जो विस्तृत इतिहास लिखा वह आपकी अत्यंत प्रसिद्ध रचना है। इस प्रामाणिक ग्रंथ में घटनाओं का वर्णन एव विश्लेषण निष्पक्ष भाव से किया गया है। इसकी देश में ही नहीं, विदेशों में भी प्रशंसा हुई है और विभिन्न भाषाओं में इसके अनुवाद प्रकाशित हुए हैं।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]