दौलत सिंह कोठारी

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
दौलत सिंह कोठारी
जन्म 6 जुलाई 1906
उदयपुर[1]
मौत 4 फ़रवरी 1993 Edit this on Wikidata
दिल्ली[2] Edit this on Wikidata
नागरिकता ब्रिटिश राज, भारत Edit this on Wikidata
शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय Edit this on Wikidata
पेशा भौतिक विज्ञानी Edit this on Wikidata
पुरस्कार पद्म भूषण Edit this on Wikidata
उल्लेखनीय कार्य {{{notable_works}}}

डॉ दौलत सिंह कोठारी (1906–1993) भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की विज्ञान नीति में जो लोग शामिल थे उनमें डॉ॰ कोठारी, होमी भाभा, डॉ॰ मेघनाथ साहा और सी.वी. रमन थे। डॉ॰ कोठारी रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार रहे। 1961 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष नियुक्त हुए जहां वे दस वर्ष तक रहे। १९६४ में उन्हें राष्ट्रीय शिक्षा आयोग का अध्यक्ष बनाया गया।

प्रशासकीय सेवा के क्षेत्र में योगदान के लिये उन्हें सन १९६२ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। १९७३ में उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया।

जीवन परिचय[संपादित करें]

दौलत सिंह कोठारी का जन्म उदयपुर (राजस्थान) में एक अत्यन्त निर्धन परिवार में हुआ था। वे मेवाड़ के महाराणा की छात्रवृत्ति से आगे पढ़े। 1940 में 34 वर्ष की आयु में दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हुए। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में जाने-माने भौतिकशास्त्री मेघनाद साहा के विद्यार्थी रहे। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से लार्ड रदरफोर्ड के साथ पीएच.डी. पूरी की।

1961 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष नियुक्त हुए जहां वे दस वर्ष तक रहे। डा. कोठारी ने यू.जी.सी. के अपने कार्यकाल में शिक्षकों की क्षमता, प्रतिष्ठा से लेकर केन्द्रीय विश्वविद्यालय और उच्च कोटि के अध्ययन केन्द्रों को बनाने में विशेष भूमिका निभाई। स्कूली शिक्षा में भी उनकी लगातार रुचि रही। इसीलिए उन्हें राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (1964-1966) का अध्यक्ष बनाया गया। आजाद भारत में शिक्षा पर संभवतः सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज, जिसकी दो बातें बेहद चर्चित रही हैं। पहली – समान विद्यालय व्यवस्था (common school system) और दूसरे देश की शिक्षा स्नातकोत्तर स्तर तक अपनी भाषाओं में दी जानी चाहिए।

प्रशासन, शिक्षा, विज्ञान के इतने अनुभवी व्यक्ति को भारत सरकार ने उच्च प्रशासनिक सेवाओं के लिये आयोजित सिविल सेवा परीक्षा की रिव्यू के लिए कमेटी का 1974 में अध्यक्ष बनाया। इस कमेटी ने 1976 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी जिसके आधार पर 1979 से भारत सरकार के उच्च पदों आई.ए.एस., आई.पी.एस. और बीस दूसरे विभागों के लिए एक सार्वजनिक (कॉमन) परीक्षा का आयोजन प्रारंभ हुआ। सबसे महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी कदम जो इस कमेटी ने सुझाया वह था – अपनी भाषाओं में (संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित सभी भारतीय भाषाओं ) और अंग्रेजी में उत्तर देने की छूट और दूसरा उम्र सीमा के साथ-साथ देश भर में परीक्षा केन्द्र भी बढ़ाये जिससे दूर देहात-कस्बों के ज्यादा-से-ज्यादा बच्चे इन परीक्षाओं में बैठ सकें और देश की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाएं देश के प्रशासन में समान रूप से हाथ बटाएं। भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, तकनीकी शब्दावली आयोग और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के 1981 से 1991 तक कुलाधिपति (चांसलर) भी रहे।

गांधी, लोहिया के बाद आजाद भारत में भारतीय भाषाओं की उन्नति के लिए जितना काम डॉ॰ कोठारी ने किया उतना किसी अन्य ने नहीं। यदि सिविल सेवाओं की परीक्षा में अपनी भाषाओं में लिखने की छूट न दी जाती तो गाँव, देहात के गरीब आदिवासी, अनुसूचित जाति, जनजाति के लोग उच्च सेवाओं में कभी भी नहीं आ सकते थे। अपनी भाषाओं में उत्तर लिखने की छूट से इन वंचितों में एक आत्मविश्वास तो जगा ही भारतीय भाषाओं के प्रति एक निष्ठा भी पैदा हुई। [3]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Error: Unable to display the reference properly. See the documentation for details.
  2. Error: Unable to display the reference properly. See the documentation for details.
  3. "शिक्षा, भाषा मनीषी : डॉ कोठारी". मूल से 12 अप्रैल 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]