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देवानंप्रिय

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अशोक के विभिन्न स्तम्भों पर अंकित "देवानंपिय पियदसी"
अशोक के लुम्बिनी लघु स्तंभ शिलालेख में "देवानंपिय"


देवानंपियस अशोक विशेषण रूप में "ईश्वर का प्रिय", ब्राह्मी लिपि में अशोक का नाम, अशोक के मस्की शिलालेख में मौजूद

गुजर्रा अभिलेख में पूर्ण उपाधि देवानंपियस पियदसिनो अशोकराज (𑀤𑁂𑀯𑀸𑀦𑀁𑀧𑀺𑀬𑀲 𑀧𑀺𑀬𑀤𑀲𑀺𑀦𑁄 𑀅𑀲𑁄𑀓𑀭𑀸𑀚)।[1]

देवानंप्रिय एक सम्मानसूचक विशेषण था जिसका उपयोग सम्राट अशोक के लिए किया गया था।[2] "देवानंप्रिय" का अर्थ है "देवताओं का प्रिय"। इसका उपयोग अक्सर अशोक द्वारा प्राकृत भाषा के प्रियदसी (प्रियदर्शी) उपाधि के साथ किया गया है, जिसका अर्थ है "सबको प्रिय देखने या समझनेवाला / सबसे स्नेह करनेवाला / मनोहर"।[3]

हालाँकि, इस उपाधि का उपयोग श्री लंका के बौद्ध राजाओं ने भी किया था।[4]

प्रमुख शिलालेख 8 के कलसी संस्करण में पिछले राजाओं का वर्णन करने के लिए "देवानंप्रिय" शीर्षक का भी उपयोग किया गया है (जहां अन्य संस्करणों में "लाजा" "रानो" शब्द का उपयोग किया गया था, यह सुझाव देते हुए कि "देवानंप्रिय" उपाधि का उपयोग व्यापक था।[5][6]

1837 में, जॉर्ज टर्नोर ने श्रीलंकाई पांडुलिपियों (दीपवंश, या "द्वीप इतिहास") की खोज की, जो अशोक के साथ पियदसी को जोड़ती हैं।

द्वे सतानि च बस्सानि अट्ठारसाधिकानि च ।
सम्बुद्धे परिनिब्बुते अभिसित्तो पियदस्सनो ।।१।
चन्दंगुत्तस्सायं नत्ता बिन्दुसारस्स अत्रजो । राजपुत्तो तदा आसि उज्जेनिकरमोलिनो ॥१६।
—षष्ठ परिच्छेद, दीपवंश[7][8]
भगवान् बुद्ध के महापरिनिर्वाण के दो सौ अट्ठारह (२१८) वर्ष बाद, प्रियदर्शी अशोक राज्यसिंहासन पर अभिषिक्त (आरूढ) हुए ।।१।।
चन्द्रगुप्त के पौत्र एवं बिन्दुसार के पुत्र प्रियदर्शी जब राजपुत्र ही थे, तब पिता ने उनको उज्जयिनी नगरी का शासक बना दिया था ।।१६।।

इसके अलावा दीपवंश के पञ्चम परिच्छेद में इनके शासनकाल भी दिए गए है :

चन्दगुत्तो रज्जं कारेसि बस्सानि चतुवीसति । तस्मि चुद्दसवस्सम्हि सिग्गयो परिनिब्बुतो ॥४१॥ बिन्दुसारस्स यो पुत्तो धम्मासोको । महायसो । वस्सानि सत्ततिंसं पि रज्जं कारेसि खत्तियो ॥४२॥ असोकस्स छवीसति वस्से मोग्गलिपुत्तसव्हयो । सासनं जोतयित्वान निब्बुतो आयुसङ्घये ॥४३॥
—पञ्चम परिच्छेद, दीपवंश[9]
सम्राट् चन्द्रगुप्त ने चौबीस (२४) वर्ष राज्य किया। इसके शासन के चौदहवे वर्ष में सिग्गव स्थविर परिनिर्वृत हुए ।।४१।।
राजा बिन्दुसार के पुत्र हुए महान् यशस्वी धर्माशोक । इन्होंने सैतीस (३७) वर्ष तक राज्य किया ।।४२।।

अशोक के साथ "देवनामप्रिय प्रियदर्शी" का संबंध उनके विभिन्न शिलालेखों के माध्यम से स्पष्ट है, और विशेष रूप से गुर्जरा और मस्की में खोजे गए शिलालेख में पुष्टि की गई थी, जिसमें अशोक को देवनामप्रिय के साथ जोड़ा गया था[2][10]

देवनमप्रिय अशोक की एक घोषणा। ढाई वर्ष पूर्ण हुए, मुझे बुद्ध-शाक्य....हुए। एक वर्ष से कुछ अधिक जब मैं श्रद्धा से संघ में गया। वे देव जो कभी जम्बूद्वीप में मानवों से नहीं मिला करते थे, अब उनसे घुल-मिल गए हैं। यह ध्येय किसी भी छोटे-से-छोटा व्यक्ति पा सकता है जो धर्म को समर्पित हो। ऐसा कोई न समझे कि यह केवल कोई बड़ा व्यक्ति ही पा सकता है। छोटे और बड़े दोनो से कहो: यदि ऐसा करोगे, दशा सम्पन्न और दीर्घजीवी होगी, और सभी विकास करेंगे।
—सम्राट अशोक का मस्की शिलालेख[11]

ऐतिहासिक उपयोग

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  • अनुराधापुर के देवानम्पिय तिस्स (मृत्यु 267 ई. पू.) श्रीलंका के शासक जो 307 से 267 ई. पू. तक शासन किए।
  • अशोक महान (304-232 ई. पू.) मौर्य राजवंश के तीसरे भारतीय सम्राट
  • दशरथ मौर्य (232 से 224 ई. पू.) अशोक के पोते, अपने बाराबर गुफा शिलालेखों में, "देवनामपिय दशरथ" के रूप में नाम वर्णित किए।

सन्दर्भ

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  1. Sircar, D. C. (1979). अशोक संबंधी अध्ययन.
  2. The Cambridge Shorter History of India (अंग्रेज़ी में). CUP Archive. पृ॰ 42.
  3. प्रियदर्शी (हिन्दी विकिकोश)
  4. Nicholas, C.W (1949). The titles of Sinhalese kings. University of Ceylon Review.'Pages 235-248' http://dlib.pdn.ac.lk/bitstream/123456789[मृत कड़ियाँ]/947/1/Mr.Nicholas%2CC.W.pdf
  5. Beckwith, Christopher I. (2015). Greek Buddha: Pyrrho's Encounter with Early Buddhism in Central Asia (अंग्रेज़ी में). Princeton University Press. पपृ॰ 235–236. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781400866328.
  6. Inscriptions of Asoka. New Edition by E. Hultzsch (Sanskrit में). 1925. पृ॰ 37 Note 3.सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  7. Mina Balay. Dipavamsa, Swami Dwarikadas Sastri. पृ॰ 89.
  8. Allen, Charles (2012). Ashoka: The Search for India's Lost Emperor (अंग्रेज़ी में). Little, Brown Book Group. पृ॰ 79. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781408703885.
  9. Mina Balay. Dipavamsa, Swami Dwarikadas Sastri. पृ॰ 85.
  10. Gupta, Subhadra Sen (2009). Ashoka (अंग्रेज़ी में). Penguin UK. पृ॰ 13. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788184758078.
  11. Inscriptions of Asoka. New Edition by E. Hultzsch. 1925. पपृ॰ 174–175.

इन्हें भी देखें

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