टिण्डल प्रभाव

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पृथ्वी का वायुमंडलीय शूक्ष्म काणो का एक विषमांगी मिश्रन है इन कणों में दुआ, जल की शूक्ष्म बंदे, धूल के कण तथा वायु के अणु में सम्मिलित होते हैं जब प्रकाश किरण कुंज इन शूक्ष्म काणो से टकराता है तो किरण कुंज का मार्ग दिखाई देने लगता है तो इसे टिंडल प्रभाव कहते हैं

पानी में घुले सफेद आटे के गिलास का रंग नीला दिखता है। इसका कारण यह है कि देखने वाले की आँख तक केवल प्रकीर्णित प्रकाश ही पहुँचता है। तथा नीला रंग आटे के कणों द्वारा लाल रंग किया जाता है।
कोहरे को चीरकर आती हुई प्रकाश किरणें। वास्तव में जिन्हें हम 'किरणें' समझते हैं वे पानी के कण हैं जो टिण्डल प्रभाव के कारण दिखाई पड़ते हैं।

किसी कोलायडी विलयन में उपस्थित कणों द्वारा प्रकाश का प्रकीर्णन होने की परिघटना टिण्डल प्रभाव (Tyndall effect) कहलाती है। यह प्रभाव छोटे-छोटे निलम्बित कणों वाले विलियन द्वारा भी देखा जा सकता है। टिण्डल प्रभाव को 'टिंडल प्रकीर्णन' (Tyndall scattering) भी कहा जाता है। इस प्रभाव का नाम १९वीं शताब्दी के भौतिकशास्त्री जॉन टिण्डल के नाम पर पड़ा है। टिण्डल प्रकीर्णन, इस दृष्टि से रैले प्रकीर्णन (Rayleigh scattering), जैसा ही है कि प्रकीर्ण प्रकाश की तीव्रता प्रकाश के आवृत्ति के चतुर्थ घात के समानुपाती होता है। नीला प्रकाश, लाल प्रकाश की तुलना में बहुत अधिक प्रकीर्ण होता है क्योंकि नीले प्रकाश की आवृत्ति अधिक होती है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]