जॉन मिल्टन

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जॉन मिल्टन
मिल्टन का चित्र
जन्म9 दिसम्बर 1608
ब्रेड स्ट्रीट, चीपसाइड, लंदन, इंग्लैण्ड
मौत8 नवम्बर 1674(1674-11-08) (उम्र 65)
बनहिल, लंदन, इंग्लैण्ड
कब्रसेंट गाइल्स चर्च
पेशाकवि, लेखक, नौकरशाह
भाषाअंगरेजा, लैटिन, फ्रेंच, जर्मन, ग्रीक, हिब्रू, इतालवी, स्पेनिश
राष्ट्रीयताअंगरेज
उच्च शिक्षाक्राइस्ट कॉलेज, कैंब्रिज

हस्ताक्षर

जॉन मिल्टन (John Milton) [1608-1674] पैराडाइज लॉस्ट नामक अमर महाकाव्य के रचयिता जॉन मिल्टन अंग्रेजी के सार्वकालिक महान् कवियों में परिगणित हैं।

कलाप्रेमी पिता की संतान होने से आरंभ से ही सुसंस्कृत मिल्टन ने उच्च शिक्षा भी प्राप्त की। इसके साथ ही तीव्र अध्यवसाय की स्वाभाविक प्रवृत्ति ने उन्हें परम पांडित्य प्रदान किया, जिसका सहज प्रभाव उनके साहित्य पर भी पड़ा। राजनीतिक सक्रियता के बाद सत्ता में उच्च पद प्राप्त करने तथा उच्च वर्गीय महिला से विवाह करने के बावजूद दोनों ही स्थितियाँ मिल्टन के लिए अंततः अत्यधिक दुःखद सिद्ध हुई। पूर्णतः नेत्रहीन हो जाने तथा विविध कष्टों को झेलने के बावजूद उन्होंने अपने दुःख को भी रचनात्मकता का पाथेय बना डाला और इस तरह एक दुःखपूर्ण जीवन की परिणति दुःखान्त न होकर सुखान्त हो गयी। ये एक महान कवि है। इनकी निजी सोनेट ऑन हिज़ ब्लाइंडनेस (उनका अंधापन) है जो स्वयं के नेत्रहीन होने पर आधारित है। [1]

आरंभिक जीवन[संपादित करें]

जॉन मिल्टन का जन्म लंदन की चीपसाइड बस्ती ब्रेडस्ट्रीट में 9 दिसंबर 1608 ई० को हुआ था। उनके पिता कठोर प्यूरिटन होते हुए भी साहित्य एवं कला के प्रेमी थे, जिस कारण बालक मिल्टन को एक सुसंस्कृत परिवार के सभी लाभ प्राप्त हुए। मिल्टन की शिक्षा सेंट पॉल स्कूल तथा केंब्रिज विश्वविद्यालय के क्राइस्ट कॉलेज में हुई। क्राइस्ट कॉलेज में वे 7 वर्ष रहे। 1629 ई० में उन्होंने स्नातक पास किया और 1632 में स्नातकोत्तर। परंतु कॉलेज की पढ़ाई समाप्त होने के बाद भी उनका नियमित एवं सुनियोजित अध्ययन जारी रहा। उनके पिता की इच्छा थी कि वह चर्च में नौकरी करे अर्थात् पादरी बने, परंतु अपने अंतर्मन से मिल्टन कभी यह बात स्वीकार नहीं कर पाये। किसी अन्य व्यवसाय में जाने की भी उनकी रुचि नहीं थी। स्वाभाविक रूप से वे आत्मिक उन्नति की बात सोचते हुए काव्यरचना में लग गये। पिता की अच्छी आर्थिक स्थिति होने के कारण ऐसा करने में उनको कठिनाई की अनुभूति भी नहीं हुई। कैम्ब्रिज छोड़ने के बाद वे अपने ग्रामीण निवास पर रहने लगे, जो लंदन से करीब 17 मील दूर बकिंघमशायर में हॉर्टन में था। मिल्टन बाल्यावस्था से ही अध्ययन में इस कदर निमग्न रहते थे कि प्रायः आधी रात तक पढ़ते ही रह जाते थे। विश्वविद्यालय में भी उनकी यह अध्ययन-निष्ठा बनी रही और ग्रामीण निवास के एकांतवास में स्वाभाविक रूप से उनका अध्ययन अबाध गति से चलता रहा। इस प्रकार पहले से ही रखी हुई दृढ़ नींव पर अपने पाण्डित्य में अनवरत वृद्धि करके मिल्टन बड़ा भारी विद्वान् बन गया। यह बात सावधानीपूर्वक ध्यान में रखना आवश्यक है, न केवल इसलिए कि अपने पांडित्य की विशालता एवं विशुद्धता में वह हमारे अन्य सभी कवियों से कहीं ज्यादा बढ़ चढ़ कर है, बल्कि इसलिए भी कि उसके पाण्डित्य ने सर्वत्र उसके साहित्य का पोषण किया है जिसके फलस्वरूप उसका साहित्य उसके पाण्डित्य से ओतप्रोत है।[2]

राजनीतिक सक्रियता एवं विवाह : तनावपूर्ण जीवन[संपादित करें]

30 वर्ष की आयु में यात्रा का निश्चय करके मिल्टन लंदन से पेरिस होते हुए इटली तक गये; परंतु स्वदेश में संकटपूर्ण स्थिति के समाचार प्राप्त होने के बाद उन्हें यात्रा करना अनैतिक जान पड़ा। अगस्त 1639 में वे लंदन लौट आये और 1640 के बाद सत्ता के विरुद्ध प्यूरिटनों के सहायक के रूप में क्रियाशील रहे। कॉमनवेल्थ की स्थापना होने पर वे विदेशी मामलों की समिति के लिए लैटिन सेक्रेटरी नियुक्त हुए। 1643 में उन्होंने राजपक्ष के एक सदस्य रिचर्ड पावेल की युवती कन्या मेरी पाॅवेल से विवाह किया, परंतु यह विवाह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण सिद्ध हुआ। इस युवती को लगा कि मिल्टन के साथ जीवन-यात्रा अंधकारमय है और इसलिए वह महीने भर बाद ही अपने पिता से मिलने गयी और वहाँ से लौटने से इन्कार कर दिया। इसी के बाद मिल्टन ने 'तलाक के सिद्धांत तथा अनुशासन' पर एक पुस्तिका (1643 ई०) लिखी थी। 1645 ई० में पुनः उनकी पत्नी लौट आयी और तीन पुत्रियों की माँ बनने के बाद 1652 में उसका निधन हो गया।[3] 1652 के आरंभ में ही अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण रूप से वे बिल्कुल अंधे हो गये। अत्यधिक परिश्रम के कारण पहले ही उनकी दृष्टि काफी कमजोर हो चुकी थी। 3 वर्ष बाद उन्होंने पुनः विवाह किया परंतु उनकी पत्नी कैथरीन वुडकॉक 15 महीने के अंदर ही मर गयी। राजसत्ता के पुनः संस्थापन (1660) के बाद मिल्टन को कैद कर लिया गया और उनकी दो पुस्तकों को राजकीय आज्ञा से जला दिया गया। परंतु शीघ्र ही वे मुक्त हुए और धीरे-धीरे उनकी राजनीतिक प्रसिद्धि समाप्त हो गयी। अब वे अंधे तो थे ही, साथ ही निर्धन और अकेले भी थे। जिस निमित्त उन्होंने इतना परिश्रम और बलिदान किया था उसकी असफलता से उन्हें महान् क्लेश हो रहा था। उन्होंने तीसरा विवाह (1663 में) एलिजाबेथ मिन्शल से किया था, जिससे वृद्धावस्था में उन्हें आराम मिल रहा था, तथापि पहली पत्नी की पुत्रियों के कृतघ्नतापूर्ण व्यवहार के कारण उन्हें महान कष्ट भी झेलना पड़ रहा था। ऐसी अंधकारमय एवं दुःखपूर्ण परिस्थिति में उन्होंने महान् काव्यात्मक योजनाओं को अपनाया और इसी क्षेत्र में जीवन की चरम सफलता प्राप्त करके 8 नवंबर 1674 को उनका देहांत हो गया।

दुःख की रचनात्मक परिणति[संपादित करें]

दृष्टिहीन हो जाने पर लोगों की घृणा तथा उपहास सहते हुए भी मिल्टन ने अपनी आजीवन संचित कामना का प्रतिफल पैराडाइज लॉस्ट (स्वर्ग से निष्कासन) के रूप में सृजित किया। अपनी इस अमर कृति में मिल्टन ने एक साथ काव्य, नाटक, व्यंग्य, राजनीति, धर्म-दर्शन -- सबकी समेकित अभिव्यक्ति कर डाली है। बाइबल की कथावस्तु पर आधारित इस महाकाव्य में उन्होंने तत्कालीन राजनीतिक उत्थान-पतन की छायात्मक पुट देते हुए अपने परिपक्व वैचारिक निष्कर्षों को उपस्थापित किया, साथ ही विभिन्न ज्ञान-विज्ञान के विषयों को भी अंतर्निहित कर दिया है।[4] यह सार्वकालिक महान् महाकाव्य 1667 ई० में प्रकाशित हुआ तथा पैराडाइज रिगेण्ड (स्वर्ग की पुनःप्राप्ति) और सैम्सन एगोनिस्टिस दोनों साथ-साथ 1671 ई० में।

पैराडाइज लॉस्ट की वास्तविक समाप्ति पैराडाइज रिगेण्ड में हुई है। पैराडाइज लॉस्ट की तुलना में यह चार सर्गों का अल्पकाय खण्डकाव्य है। इस खण्डकाव्य की परिसमाप्ति पूर्णतया धर्म-दर्शन की विवेचना करते हुए सुखान्त रूप में हुई है। पूर्व महाकाव्य में आदम के निर्वासन रूपी दुःखान्त के बाद यहाँ नाटकीय रूप से शैतान की पराजय तथा मसीहा की विजय के वर्णन से समस्त काव्यकृति की सुखान्त परिणति हुई है।

यह बात प्रायः निःसंदिग्ध रूप से मान्यताप्राप्त है कि शेक्सपियर के बाद मिल्टन ही अंग्रेजी का महानतम कवि है। दूसरे शब्दों में इसका आशय है कि वह नाट्य साहित्य के बाहर अंग्रेजी का महानतम कवि है।[5]

प्रमुख रचनाएँ[संपादित करें]

मिल्टन ने कॉलेज में अध्ययन के समय से ही रचना शुरू कर दी थी। उन्होंने गद्य एवं पद्य दोनों विधाओं में लिखा है। सुचिंतित पद्य लिखने एवं लंबे समय तक राजनीतिक तथा धार्मिक विवादों में पड़ने के कारण मिल्टन की पद्य रचना संख्या में अधिक नहीं है। कुल जमा लगभग एक दर्जन साॅनेट की रचना ही उन्होंने की है। राजनीतिक एवं धार्मिक विवादों में पड़ने के बाद लगभग 20 वर्षों तक मिल्टन गद्य रचना करते रहे, जिनमें से एरियोपैजिटिका को छोड़कर लगभग सभी निरर्थक माने गये हैं। उनका शाश्वत महत्त्व काव्य-रचना के कारण ही है।

आरंभिक काव्य (कॉलेज युग)[संपादित करें]

  1. ऑन द मॉर्निंग ऑव क्राइस्ट्स नेटिविटी (ईसा के जन्म की सुबह) - 1629ई०
  2. ऐट ए सालेम म्यूजिक (पवित्र गान के समय)
  3. ऐन एपिटाफ ऑन विलियम शेक्सपियर (शेक्सपियर का समाधिलेख)
  4. ऑन अराइविंग द एज ऑफ ट्वेंटी थ्री (तेईस वर्ष mein ttf की उम्र होने पर)

प्रौढ़ काव्य (हाॅर्टन युग) [1633 से 1639 ई०][संपादित करें]

  1. ल लेग्रो ('एल' अलेग्रो') [प्रसन्न मानव] - 1633
  2. इलपेन्सेरोज़ो (दुखी मानव) - 1633
  3. आर्केडिस - 1633
  4. कोमस - 1634
  5. लिसिडस - 1637 ( सहपाठी एडवर्ड किंग की मृत्यु पर लिखा गया क्लासिकल शोकगीत)

गद्य रचना[संपादित करें]

एरियोपैजिटिका ( हिंदी अनुवाद साहित्य अकादमी, नयी दिल्ली से प्रकाशित)

उत्तरकालीन काव्य[संपादित करें]

  1. पैराडाइज लॉस्ट - 1667
  2. पैराडाइज रिगेण्ड - 1671
  3. सैम्सन एगोनिस्टिस - 1671

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 16 अगस्त 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 अगस्त 2018.
  2. अंग्रेजी साहित्य का इतिहास, विलियम हेनरी हडसन, अनुवादक- जगदीश बिहारी मिश्र, हिंदी समिति, सूचना विभाग, उत्तर प्रदेश, संस्करण-1963, पृ०-92.
  3. हिंदी विश्वकोश, नवम खंड, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, संस्करण-1967, पृ०-281.
  4. स्वर्गच्युति ओ पुनरपि लभते स्वर्गम्, प्रकाशक-साहित्यिकी; प्राप्ति-स्थल- श्री रतिनाथ झा, ग्राम-हाटी, पोस्ट-सरिसब पाही, जिला-मधुबनी, पिन-847424; पृ०-7.
  5. अंग्रेजी साहित्य का इतिहास, पूर्ववत्, पृ०-99.