ज़कात

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

ज़कात (अरबी: زكاةzakāt, "पाक या शुद्धी करने वाला", और ज़कात अल-माल زكاة ألمال, "सम्पत्ती पर ज़कात ",[1] या "ज़काह"[2]) इस्लाम में एक प्रकार का "दान देना" है, जिसको धार्मिक रूप से ज़रूरी और कर के रूप में देखा और माना जाता है। [3][4] कुरआन में सलात (नमाज़) के बाद ज़कात ही का मक़ाम है. [5] शरीयत में ज़कात उस माल को कहते हैं जिसे इंसान अल्लाह के दिए हुए माल में से उसके हकदारों के लिए निकालता है।

इस्लाम धर्म के अनुसार पांच मूल स्तंभों में से एक माना जाता है, और हर मुस्लमान को अपने धन में से ज़कात की अदायगी ज़रूरी है। यह दान धर्म नहीं बल्कि धार्मिक कर या टैक्स माना जाता है और फ़र्ज़ भी है.[6][7] शरीयत में ज़कात उस माल को कहते हैं जिसे इंसान अल्लाह के दिए हुए माल में से उसके हकदारों के लिए निकालता है। इस्लाम की शरीयत के मुताबिक हर एक समर्पित मुसलमान को 52.5 तोला चाँदी (612.36 ग्राम) या 7.5 तोला (87.48 ग्राम) सोना या इसके बराबर रक़म (सोने या चाँदी में जिसकी भी मौजूदा क़ीमत कम हो उसके बराबर रक़म) या व्यवसाय के इरादे से ख़रीदी हुई वस्तु, माल, ज़मीन वग़ैरह वग़ैरह पर इस तरह मालिक होने की सूरत में कि एक हिजरी साल गुज़र जाये तो उसको साल (चन्द्र वर्ष) में अपनी कुल सालाना बचत (रक़म, व्यावसायिक माल, सोना , चाँदी वग़ैरह वग़ैरह) का 2.5 % हिस्सा ग़रीबों को दान में देना उस मुसलमान का इस्लामी कर्तव्य है । इस दान को ज़कात कहते हैं।

क़ुरआन में ज़कात :[संपादित करें]

क़ुरआन में शब्द "ज़कात" 33 बार इस्तेमाल हुआ है और ज़्यादातर नमाज़ के साथ साथ ज़कात का ज़िक्र हुआ है। ज़कात के स्थान पर सदक़ा लफ्ज़ का भी जगह जगह प्रयोग किया गया है। और क़ई जगह इंफाक़ का लफ़्ज़ भी इस्तेमाल हुआ है।

"निस्संदेह जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए और नमाज़ क़ायम की और ज़कात दी, उनके लिए उनका बदला उनके रब के पास है, और उन्हें न कोई भय हो और न वे शोकाकुल होंगे" (क़ुरआन 2:277)
"जब ये चीज़े फलें तो उनका फल खाओ और उन चीज़ों के काटने के दिन ख़ुदा का हक़ (ज़कात) दे दो और ख़बरदार फज़ूल ख़र्ची न करो - क्यों कि वह (ख़ुदा) फुज़ूल ख़र्चे से हरगिज़ उलफत नहीं रखता" (क़ुरआन 6:141)

हदीस में ज़कात[संपादित करें]

नबी ने कहा: पाँच औकिया (52 तोला 6 मासा) से कम चाँदी पर ज़कात नहीं है, और पाँच ऊंट से कम पर ज़कात नहीं है और पाँच अवाक (खाद्यान्नों का एक विशेष माप,34 मन गल्ला) से कम पर ज़कात नहीं है। ( सही बुखारी , हदीस नंबर 1447)
"नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया कि मैं तुम्हें चार कामों का हुक्म देता हूं और चार कामों से रोकता हूं। मैं तुम्हें ईमान बिल्लाह का हुक्म देता हूं तुम्हें मालूम है कि ईमान बिल्लाह क्या है? उसकी गवाही देना है कि अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं और नमाज कायम करना और ज़कात देने और गनीमत में पांचवा हिस्सा देने का हुक्म देता  हूं" (सही बुख़ारी, 7556)

ज़कात का मक़सद[संपादित करें]

ज़कात का मक़सद ये है कि ज़रूरतमंदों की मदद करके उन्हें भी ज़कात देने के लायक़ और क़ाबिल बनाना.

ज़कात कौन देता है?, किसको देना है?, किसको नहीं देना है?[संपादित करें]

ज़कात कौन देता है[संपादित करें]

ज़कात हर मुसलमान का फ़र्ज़ है।

  • बालिग़ हो
  • कमाने के लायक़ हो

ज़कात किसको दे सकते हैं[संपादित करें]

ज़कात इनको दे सकते हैं

  • क़रीबी (रिश्तेदार,पड़ोसी,दोस्त
  • यतीम
  • मिस्कीन
  • फ़क़ीर (गरीब और मजबूर)
  • ज़कात और सदक़ात की वसूली करने वाले
  • तालीफ़े क़ल्ब (जिनका मन मोहना हो)
  • क़ैदियों को छुड़ाने के लिए
  • क़र्ज़दारों की मदद करने में
  • अल्लाह के रास्ते में (अल्लाह के दीन को फैलाने के लिए
  • मुसाफ़िर
  • सवाल करने वाले (मांगने वाले)

(देखें सूरह 002 अल बक़रह आयत 177 और सूरह 009 अत तौबा आयत 60) (अबु अदीम फ़लाही)

ज़कात किसको नहीं दे सकते[संपादित करें]

ज़कात इन लोगों को नहीं दे सकते, क्योंकि इन को देखभाल करने की ज़िम्मेदारी होती है, इनकी देखभाल करना बेटों, पति और बाप की होती है, इस लिए व्यक्ती को निम्न लोगों को ज़कात देने की अनुमती नहीं है।

  • बाप
  • माँ
  • बीवी
  • बच्चे


सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Zakat Al-Maal (Tithing)". Life USA. मूल से 2016-10-06 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 August 2016.
  2. "Zakah". www.islam101.com. मूल से 11 जून 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2017-04-20.
  3. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  4. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  5. Hallaq, Wael (2013). The impossible state: Islam, politics, and modernity's moral predicament. New York: Columbia University Press. पृ॰ 123. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780231162562.
  6. Muḥammad ibn al-Ḥasan Ṭūsī (2010), Concise Description of Islamic Law and Legal Opinions, ISBN 978-1904063292, pp. 131–135
  7. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]