घी

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घी

घी (संस्कृत : घृत), एक विशेष प्रकार का मक्खन है जो भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीन काल से भोजन के एक अवयव के रूप में प्रयुक्त होता रहा है। भारतीय भोजन में खाद्य तेल के स्थान पर भी प्रयुक्त होता है। यह दूध के मक्खन व मलाई से बनाया जाता है। दक्षिण एशिया एवं मध्य पूर्व के भोजन में यह एक महत्वपूर्ण अवयव है।

परिचय[संपादित करें]

गाय का घी हमारे पुराने साहित्य और आयुर्वेद के अनुसार, एक रामबाण उपाय है जो स्वास्थ्य को समृद्धि और ऊर्जा से भर देता है। इसमें अनगिनत आयुर्वेदिक गुण होते हैं जो हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में मदद करते हैं। इस लेख में, हम जानेंगे कि गिर गाय के घी का नियमित सेवन करने से हमें कैसे अनगिनत लाभ हो सकता है।


घी वसा पदार्थ है, जो गाय, भैंस आदि के दूध से बनाया जाता है। बकरी और भेड़ के दूध से भी घी बनाया जा सकता है, पर ऐसा दूध कम मिलता है। इस कारण इससे घी नहीं बनाया जाता। दूध से पहले मक्खन और फिर मक्खन से घी बनाया जाता है। घी बनाने की देशी रीति दूध का दही जमाकर, उसकी मलाई को मथकर घी निकालने की है। भारत, अन्य ऐशियाई देशों तथा मिस्र में केवल दो प्रति शत मक्खन मक्खन के रूप में व्यवहृत होता है। शेष ६८ प्रतिशत मक्खन से घी बनाया जाता है।

घी का उपयोग भारत में वैदिक काल के पूर्व से होता आ रहा है। पूजा पाठ मे घी का उपयोग अनिवार्य है। अनेक ओषधियों के निर्माण में घी काम आता है। घी, विशेषत: पुराना घी, यहाँ आयुर्वेदिक चिकित्सा में दवा के रूप में भी व्यवहृत होता है। मक्खन और घी मानव आहार के अत्यावश्यक अंग हैं। इनसे आहार में पौष्टिकता और गरिष्ठता आती है ओर भार की दृष्टि से सर्वाधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है।

घी का प्राचीन काल से ही पारंपरिक और आर्थिक दोनों महत्व है, आयुर्वेद में शताधौत घृत जैसी कई सामयिक औषधियों को बनाने के लिए गाय के शुद्ध घी का उपयोग किया जाता है। यह विभिन्न आयुर्वेदिक मालिश और उपचारों में उपयोग किए जाने वाले त्वचा देखभाल उपचार के लिए बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है।[1]

संसार के प्राय: सभी देशों में मक्खन और घी उत्पन्न होते और व्यवहार में आते हैं। देश की समृद्धि वस्तुत: मक्खन और घी की खपत से आँकी जाती है। आजकल ऐसा कहा जाने लगा है कि मक्खन और घी के अत्यधिक उपयोग से हृदय के रोग होते हैं। ऐसे कथन का प्रमाण यह दिया जाता है कि जिस देश में मक्खन और घी का अधिक उपयोग होता है, वहीं के लोग हृदयरोग से अधिक संख्या में आक्रांत होते पाऐ गए हैं।

मक्खन बहुत दिनों तक नहीं टिकता। उसका किण्वन होकर वह पूतिगंधी हो जाता है; पर घी यदि पूर्णतया सूखा है तो बहुत दिनों तक टिकता है। घी के स्वाद और गंध ग्राह्य होते हैं। यह जल्द पचता भी है। घी में विटामिन "ए', विटामिन "डी' और विटामिन "ई' रहते हैं। विटामिनों की मात्रा सब ऋतुओं में एक सी नहीं रहती। जब पशुओं को हरी घास अधिक मिलती है तब, अर्थात्‌ बरसात और जाड़े के घी, में, विटामिन की मात्रा बढ़ जाती है।

घी के विशेष प्रकार की गंध होती है, जो दूध में नहीं होती। यह गंध किण्वन और आक्सीकरण के करण 'डाइऐसीटिल' नामक कार्बानिक यौगिक बनने के कारण उत्पन्न होती है।

घी के सघंटक अम्ल (भार प्रतिशत)[संपादित करें]

[[Image:Diwali Diya.jpg|right|thumb|350px|दीपावली के अवसर पर देशी घी से जलते हुए दीए]

अम्लों के नाम गाय भैंस
ब्यूटिरिक २.६-४.४ ४.१-४.३
कैप्रॉइक १.४-२.२ १.३-१.४
कैप्रिलिक ०.८-२.४ ०.४-०.९
कैप्रिक १.८-३.८ १.७
लौरिक २.२-४.३ २.८-३.०
मिरिस्टिक ५.८-१२.९ ७.३-१०.१
पामिटिक २१.८-३१.३ २६.१-३१.१
स्टीएरिक ०.०-१.० ०.९-३.३
ओलिइक २८.६-४१.३ ३३.२-३५.८

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

फिजी का 'चॉयस घी'

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  1. negi, vivek (28 अप्रैल 2021). "घी से बनी आयुर्वेदिक औषधि".