एक इकाई व्यवस्था

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स्वतंत्रता पश्चात पाकिस्तानी भूमि का मानचित्र, पाकिस्तान के दोनों भागों को दखा जा सकता है।

एक इकाई व्यवस्था या नीति, (अथवा वन-यूनिट् सिस्टम्), पाकिस्तान की एक पुर्वतः परवर्तित प्रशासनिक व्यवस्था थी, जिसके अंतर्गत, तत्कालीन पाकिस्तानी भूमि के दोनों भिन्न टुकड़ों को "एक प्रशासनिक इकाई" के रूप में ही शासित किये जाने की योजना रखी गई थी। इस तरह की प्रशासनिक नीति को अपनाने का मुख्य कारण, सर्कार द्वारा, पाकिस्तानी अधिराज्य के दो विभक्त एवं पृथक भौगोलिक आंचलों की एक ही केंद्रीय व्यवस्था के अंतर्गत शासन में आने वाली घोर प्रशासनिक असुविधाएँ, एवं भौगोलिक कठिनाईयाँ बताई गई थी। अतः इस भौगोलिक व प्रशासनिक विषय के समाधान के रूप में, सरकार ने इन दो भौगोलीय हिस्सों को ही, एक महासंघीय ढांचे के अंतर्गत, पाकिस्तान के दो वाहिद प्रशासनिक इकाइयों के रूप में स्थापित करने की नीति बनाई गई। इस्के तहत, तत्कालीन मुमलिकात-ए-पाकिस्तान के, पूर्वी भाग में मौजूद स्थिति के अनुसार ही, पश्चिमी भाग के पाँचों प्रांतों व उनकी प्रांतीय सरकारों को भंग कर, एक प्रांत, पश्चिमी पाकिस्तान गठित किया गया, वहीं पूर्वी भाग (जो अब बांग्लादेश है) को पूर्वी पाकिस्तान कह कर गठित किया गया। तत्प्रकार, पाकिस्तान, एक इकाई योजना के तहत, महज दो प्रांतों में विभाजित एक राज्य बन गया।

वन यूनिट योजना की घोषणा प्रधानमंत्री मोहम्मद अली बोगरा के शासनकाल के दौरान 22 नवंबर 1954 को की गई, और 14 अक्टूबर 1955 को देश के पश्चिमी भाग के सभी प्रांतों को एकीकृत कर, पश्चिमी पाकिस्तान प्रांत गठित किया गया, जिसमें, सभी प्रांतों के अलावा तत्कालीन, राजशाहियों और कबाइली इलाके भी शामिल थे। इस प्रांत में 12 प्रमंडल थे, और इसकी राजधानी लाहौर थी। दूसरी ओर पूर्वी बंगाल के प्रांत को पूर्वी पाकिस्तान का नाम दिया गया, जिसकी राजधानी ढाका थी। संघीय राजधानी(कार्यपालिका) को वर्ष 1959 में कराँची से रावलपिंडी स्थानांतरित किया गया, जहां सेना मुख्यालय था, और नई राजधानी, इस्लामाबाद के पूरा होने तक यहां मौजूद रहा जबकि संघीय विधानपालिका को ढाका में स्थापित किया गया।

इस नीति का उद्देश्य बज़ाहिर प्रशासनिक सुधार लाना था लेकिन कई लिहाज से यह बहुत विनाशकारी कदम था। पश्चिमी पाकिस्तान में मौजूद बहुत सारी राज्यों ने इस आश्वासन पर विभाजन के समय पाकिस्तान में शामिल हो गए थे कि उनकी स्वायत्तता कायम रखी जाएगी लेकिन वन इकाई बना देने के फैसले से सभी स्थानीय राज्यों का अंत हो गया। इस संबंध में बहावलपुर, खीरिपोर और कलात के राज्य विशेषकर उल्लेखनीय हैं। मामले इस समय अधिक गंभीर समय 1958 ई। के तख्तापलट के बाद मुख्यमंत्री का पद समाप्त कर दिया गया और राष्ट्रपति ने पश्चिमी पाकिस्तान के विकल्प अपने पास रख लिए। राजनीतिक विशेषज्ञों यह भी समझते हैं कि पश्चिमी पाकिस्तान के सभी प्रांतों को एकजुट करने के उद्देश्य पूर्वी पाकिस्तान की भाषाई और राजनीतिक इकाई का जोर तोड़ना था।

अंततः एक जुलाई 1970 को राष्ट्रपति याह्या खान ने एक इकाई का सफाया करते हुए पश्चिमी पाकिस्तान के सभी प्रांतों बहाल कर दिया।

पृष्ठभूमि[संपादित करें]

1950 के दषक के पश्चिमी पाकिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों की मानचित्र

पाकिस्तान की स्थापना पाकिस्तान आंदोलन का परिणाम था, जिसे मुहम्मद अली जिन्नाह् के नेत्रित्व में, तथाकथित रूप से, भारतिय उपमहाद्वीप के मुसलमान आबादी के लिये किया गया था। सन 1947 में भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के पारित होने के साथ ही, भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान की स्थापना हुई थी। इस विभाजन के तहत ब्रिटिश भारत के पूर्वी व पष्चिमी छोरों पर मुस्लिम बहुल इलाकों को पाकिस्तान में शामिल कर दिया गया। साथ ही इसी विभाजन के तहत, ब्रिटिश-भारत के पंजाब एवं बंगाल प्रांतों को भी विभाजित कर दिया गया और पूर्वी बंगाल और पश्चिमी पंजाब को पाकिस्तान में सम्मिलित कर दिया गया।

इसके भूक्षेत्र में ब्रिटिश-शासित भारत के पाँच प्रांत थे: पूर्वी बंगाल(मौजूदा बांग्लादेश), पश्चिमी पंजाब, बलूचिस्तान, सिंध और उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत। हर प्रांत के शासनप्रभार के लिये, पाकिस्तान के महाराज्यपाल द्वारा, एक राज्यपाल को नियुक्त किया जाता था। साथ ही कुछ रियासतों ने भी पाकिस्तानी संध में शामिल होने का प्रस्ताव स्वीकार किया था। यह रियासतें थीं: भावलपुर रियासत, ख़ैरपुर, स्वात, दिर, हुंज़ा, चित्राल, मकरान और कलात। कुख्यात एवं विवादात रैडक्लिफ़ रेखा वह रेखा थी जिसे भारत गणराज्यइस्लामिक गणराज्य पाकिस्तान के बीच की अंतर्राष्ट्रीय सीमा के रूप में दोनों पक्षों द्वारा माना गया था। यह रेखा पश्चिम में गुजरात एवं राजस्थान की सीमा से एवं पंजाब को विभाजित करते हुए उसके बीच से गुज़रती थी। पूर्व में यह रेखा बंगाल को विभाजित करती थी। विभाजन के बाद, धर्म के नाम पर लाखों लोगों ने इस रेखा के दोनो पार पलायन किया था।

इतिहास[संपादित करें]

हालाँकि, पाकिस्तान की कल्पना, मुहम्मद इक़बाल ने 1930 में भारत के उत्तर पश्चिम के चार प्रांतों और क़बाइली इलाकों के मेल से की थी, धीरे-धीरे, मुस्लिम लीग की ये राजनीति बढ़ती गई और भारत के कई मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में उसे समर्थन मिला(मुख्यतः पश्चिमोत्तर और पूर्वी बंगाल के मुस्लिम बहुल इलाकों में)। 1946 के चुनाव में पूर्वी बंगाल में भी मुस्लिम लीग ने बहुमत प्राप्त किया, और इसी के साथ यह भी साफ हो गया की पूर्वी बंगाल भी पाकिस्तान में शामिल किया जाएगा। पाकिस्तान की स्थापना पाकिस्तान आंदोलन का सीधा परिणाम था, जिसके रहनुमा मुहम्मद अली जिन्नाह थे। तत्पश्चात, क्योंकि उस देश में कोई भी संविधान नहिं था, इसीलिए पाकिस्तान को 1935 के भारत सरकार अधिनियम के अंतर्गत शासित किया जा रहाथा। विभाजन व पाकिस्तान की स्थापना के पश्चात्‌ व्यवस्थापिका को पाकिस्तान के दो पृथक भागों को, जो करीब हजार मील की भारतीय भूमि से अलग-थलग थे, को एक ही जगह से, प्रशासित करने में खासी असुविधा का सामना करना पड़ रहा था। इसके अलावा, पश्चिमी भाग स्वयं ही चार प्रांतों, कबाइली इलाके एवं विभिन्न रियासतों में विभाजित था, जबकी पूर्वी भाग को एक प्रांत था। इसके अलावा, पूर्वी भाग में पश्चिमी भाग के मुकाबले, व्यवस्था, नौकरशाही व सैन्य सुरक्षा की अति निष्पर्याप्ती थी। तथा, पश्चिमी भाग तुलनात्मक रूप से अधिक विकसित था एवं उसके पास बड़ी सेना व पर्याप्त नौकरशाही व व्यवस्थापिका थी। अतः पूर्वी भाग, जो पश्चिम के ही तुलनात्मक जनसंख्या रखता था, के लिये विकास व सम्पन्नता का रास्ता कठिन एवं पश्चिम के मुकाबले असाम्य था। ऐसी स्थिति में पूर्वी हिस्से की नेत्रित्व के मन में भाषा व सांस्कृतिक मुद्दों के अलावा, शक्तियों व सुविधाओं के बंटवारे व सामरिक व आर्थिक समानता के विषय को लेकर गंभीर प्रश्न थे।[1]

इस भौगोलिक स्थिति से उपजी प्रशासनिक व असमानता की कठिनाई, व आर्थिक नाउम्मीदी के समाधान के लिए इस एक इकाई व्यवस्था का मसौदा तैयार किया गया, जिसके तहत दोनों हिसों में केवल एक ही प्रांत होगा, अतः दोनों को बराबर की राजनीतिक शक्ति प्राप्त होगी। साथ ही, इस योजना में अन्य विकस नीतियों को भी शामिल किया गया था। प्रधानमंत्री चौधरी मुहम्मद अली ने 14 अक्टूब 1955 को, 30 सितंबर 1955 मे पाकिस्तान की राष्ट्रीय सभा में पारित, पश्चिमी पाकिस्तान के सभी प्रांतों को मिला देने के अधिनियम को कार्यान्वित कर, वन युनिट सिस्टम को लागू कर दिया। तत्पूर्व, प्रधानमंत्री मोहम्मद अली बोगरा ने 22 नवंबर 1954 को इसकी आधिकारिक घोषणा की थी।[2]

न कोई बंगाली होगा, न पंजाबी, न सिंधी, ना पठान, ना बलोच, ना बहवालपुरी, ना खैरपुरी। इन छोटे कुनबों के ग़ायब होने से पाकिस्तान की सालमियात(एकता) को मज़बूत करेगा।

इस्कंदर मिर्ज़ा द्वारा इस योजना को अपनाने के लिए सदन को यह कारण पेश किये गए थे:

  • यह क्षेत्रीय महत्वाकांषाओं को नष्ट करेगा
  • यह पिछड़े इलाक़ो के विकास को बढ़ावा देगा
  • इससे प्रशासनिक खर्च काम होंगे
  • ऐसा करने से नए संविधान को बनाने में सुविधा होगी
  • यह पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान को अधिकतम ख़ुदमुखतरि(स्वायत्तता) देगा[3]

परंतु इस एक इकाई की स्थापना सरल कार्य नहीं था, क्योंकि, इसे कई गुठों द्वारा विरोध का सामना करा पड़ा था, विशेष कर प्रांतीय सरकारों से। सिंध विधानसभा ने प्रांतों के सम्मिलन से एक प्रान्त बनाने के उपाय के विरोध में वोट किया था, जिसके बाद सिंध के तत्कालीन मुख्यमंत्री पीरज़ादा अब्दुल सत्तर को ग़ुलाम मुहम्मद द्वारा निलंबित कर दिया गया था। इसके अलावा, पूर्वी बंगाल को स्वयं इस योजना से आपत्ति थी, क्योंकी उन्हें इससे जनसांख्यिकीय बदलाव का डर था। बहरहाल, इन सारी रुकावटों के हल के पश्चात् अंत्यतः इस एक इकाई योजना को लागू कर दिया गया।

इसके तहत, पश्चिमी भाग के सभी प्रांतों को एकीकृत कर, पश्चिमी पाकिस्तान प्रांत गठित किया गया, जिसमें, सभी तत्कालीन प्रांतों के अलावा तत्कालीन, राजशाहियों और कबाइली इलाके भी शामिल थे। इस प्रांत में 12 प्रमंडल थे, और इसकी राजधानी लाहौर थी। दूसरी ओर पूर्वी बंगाल के प्रांत को पूर्वी पाकिस्तान का नाम दिया गया, जिसकी राजधानी ढाका थी। संघीय राजधानी(कार्यपालिका) को वर्ष 1959 में कराँची से रावलपिंडी स्थानांतरित किया गया, जहां सेना मुख्यालय था, और नई राजधानी, इस्लामाबाद के पूरा होने तक यहां मौजूद रहा जबकि संघीय विधानपालिका को ढाका में स्थापित किया गया।

आलोचना व परिणाम[संपादित करें]

हालाँकि, इस नीति का मुख्य उद्देश्य बज़ाहिर प्रशासनिक सुधार लाना था लेकिन परंतु भाषाई एवं क्षेत्रीय-जातिगत अस्मिता व विकास लिहाज से यह बहुत विनाशकारी कदम था। तथा, पूर्वकथित, सिंध एवं पूर्वी बंगाल जैसे प्रांतों की प्रांतीय सरकारों के अतिरिक्त, इसे भशवादि व क्षेत्रीय-राष्ट्रवादी विचर्धारियों व राजनीतिज्ञों की आलोचना एवं पुरज़ोर विरोध का भी सामना करना पड़ा। इनमें वे राजघराने व रियासतें भी शमिल थें, जिन्होंने इस आश्वासन पर ही विभाजन के समय पाकिस्तान में शामिल होने का निर्णय किया था कि उनकी स्वायत्तता कायम रखी जाएगी लेकिन वन यूनिट के आने से इन सभी स्थानीय राज्यों का भी अंत कर, पश्चिमी पाकिस्तान में सम्मिलित कर दिया था। इस संबंध में बहावलपुर, ख़ैरपुर और कळात के राज्य विशेषकर उल्लेखनीय हैं। मामले उस समय अधिक गंभीर हो गए जब 1958 के तख्तापलट के बाद मुख्यमंत्री का पद समाप्त कर दिया गया और राष्ट्रपति ने पश्चिमी पाकिस्तान के सारे शासनाधिकार अपने हाथों में ले लिए। कई राजनीतिक विशेषज्ञों का यह भी मानना हैं कि पश्चिमी पाकिस्तान के सभी प्रांतों को एकजुट करने के उद्देश्य पूर्वी पाकिस्तान की भाषाई और राजनीतिक इकाईयो का जोर तोड़ना भी था।

कई राजनीतिज्ञों का यह भी प्रयास था की पाकिस्तान के विभिन्न क्षेत्रीय परम्पराओं व संस्कृतीयो को खत्म कर के पाकिस्तान को एक राष्ट्रीय संस्कृति के तरफ ले जाया जाये। अतः विभिन्न क्षेत्रीय प्रांतों के अंत से पूरे देश को एक सांस्कृतिक इकाई बनाने में सुविधा होती। अतः इस नीति को प्रांतीय व क्षेत्रीय संस्कृतियों को खत्म कर, एक राष्ट्रीय संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए भी लाया गया था।

ऐसा भी कहा जाता है की इस योजना के पीछे की असल कारण प्रशासनिक से अधिक "राजनीतिक" थी, इस के अनुसार, इस चाल का मूख्य उद्देश्य, पश्चिमी पाकिस्तान को बुसंख्यक पूर्वी हिस्से से बराबर की राजनैतिक शक्ति के स्तर पर लाना था। हालाँकि, जनसँख्या के आधार पर पपोरवि पाकिस्तान की आबादी अधिक थी, परंतु पाकिस्तान की सियासत में, पश्चिमी पाकिस्तानियों, और विशेष कर पंजाबियों की पकड़ व पैंठ ज़्याद थी। परंतु राजनीतिक रहनुमाओं के मन में यह भय था की यदि लोकतान्त्रिक आदर्शों के अनुसार, सीधे सीधे, जनसँख्या के आधार पर राजनीतिक प्रतिदिधित्व की व्यवस्था स्थापित हो गयी, तो, पाकिस्तान की पूरी सियासी ताकत, पूर्व में केंद्रित हो जायेगी। अतः इस स्थिति से बचने के लिए, पश्चिमी पाकिस्तान के सारे राज्यों को सम्मिलित कर, एक प्रान्त बना दिया गया, ताकि उसकी कुल आबादी, पूर्वी पाकिस्तान से अधिक बहुल हो। ऐसा कहा जाता है की यह योजना, केवल, पूर्वी हिस्से के वोटों को पुनरसंतुलित करने के लिए लायी गयी थी।

अंत[संपादित करें]

पाकिस्तान में दूसरा मार्शल लॉ(सैन्यशासन), 26 मार्च 1969 को लगाया गया था जब राष्ट्रपति अयूब खान ने 1962 के संविधान को निराकृत किया और सेना के कमांडर-इन-चीफ जनरल आगा मोहम्मद याह्या खान को सत्ता सौंप दिया। राष्ट्रपति पद संभालने पर, जनरल याह्या खान पश्चिम पाकिस्तान में लोकप्रिय मांग पर एक इकाई व्यवस्था को खत्म कर दिया और एक आदमी एक वोट के सिद्धांत पर आम चुनाव का आदेश दिया।[4] इस्सी के साथ एक इकाई व्यवस्था का अंत हुआ, और पकुस्तन के पूर्व प्रांतों को बहाल कर दिया गया।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 4 जुलाई 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 जून 2016.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 11 अप्रैल 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 जून 2016.
  3. The History And Culture of Pakistan, Nigel Kelly, Retrieved 16 August 2015
  4. The Second Martial Law Archived 2014-05-30 at the वेबैक मशीन Islamic Pakistan

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • Formation of One Unit , storyofpakistan.com website, West Pakistan Established as 'One Unit' province on 30 Sept.1955. Retrieved 16 August 2015