इस्लामी वास्तुकला

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ताज महल इस्लामिक वास्तुकला की एक अनुपम कृति

इस्लामी वास्तुकला एक प्रकार की वास्तु कला है जो की इस्लाम धर्म से प्रभावित है और इस्लामिक शासकों एवं सरकारों द्वारा दुनिया भर में प्रचारित की गयी।

मुख्य तत्त्व[संपादित करें]

इस्लामी भवन निर्माण को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है; धार्मिक एवं गैर धार्मिक इमारतें।[1]

धार्मिक इमारतें[संपादित करें]

कुरान में नमाज को विशेष महत्त्व दिया गया है और कुरान यह भी निर्देश देती है कि नमाज मक्का की दिशा में ही पड़ी जा सकती है। इसलिए हर इस्लामी धार्मिक इमारत उस धुरी (किबला) पर ही बनायी गयी। मज्जिदों में मक्का की दिशा में नमाज पड़ने के लिए एक बड़ी आयताकार जगा होती है जिसे मिहराब कहा जाता है। मिहराब के कोने में मीनारे होती है जो स्तंभ नुमा होती है।

मकबरा या समाधि अन्य प्रकार की धार्मिक इमारत है। इस्लामी प्रभाव के पूर्व भारत में इस प्रकार की इमारतें नहीं हुआ करती थी। शुरुआत में सूफी संतो की कब्र के ऊपर इस प्रकार की इमारत को बनया जाता था परन्तु कालांतर में विभिन्न शासकों ने भी अपने मृत्यु के बाद मकबरों का निर्माण कराया। इस इमारत में एक बहुत बड़ा गुम्बज कब्र के ऊपर कई स्तंभों पर टिका होता है।.

गैर धार्मिक इमारतें[संपादित करें]

इस्लामी शासकों ने अपने राज्य की रक्षा के लिए कीलो एवं दीवारों का निर्माण कराया था।

मुगल वास्तुकला[संपादित करें]

मुगल वंश आरंभ हुआ बादशाह बाबर से 1526 में। बाबर ने पानीपत में एक मस्जिद बनवाई, इब्राहिम लोदी पर अपनी विजय के स्मारक रूप में। एक दूसरी मस्जिद, जिसे बाबरी मस्जिद कहते हैं, अयोध्या में बनवाई। एक तीसरी मस्जिद उसने सम्भल, मुरादाबाद जिले में बनवाई।

बुलंद दरवाजा, फतेहपुर सिकरी, आगरा

बादशाह अकबर (1556-1605) ने बहुत निर्माण करवाया, एवं उसके काल में इस शैली ने खूब विकास किया। गुजरात एवं अन्य शैलियों में, मिस्लिम एवं हिंदु लक्षण, उसके निर्माण में दिखाई देते हैं। अकबर ने फतेहपुर सीकरी का शाही नगर 1500 में बसाया, जो कि आगरा से 26 मील (42 कि मी) पश्चिम में है। फतेहपुर सीकरी का अत्यधिक निर्माण, उसकी कार्य शैली को सर्वाधिक दर्शाता है। वहाँ की वृहत मस्जिद, उसकी कार्य शैली को सर्वोत्तम दर्शाती है, जिसका कि कोई दूसरा जोड़ मिलना मुश्किल है। यहाँ का दक्षिण द्वार, अति प्रसिद्ध है, एवं इसका कोई जोड़ पूरे भारत में नहीं है। यह विश्व का सर्वाधिक ऊँचा द्वार है, जिसे बुलन्द दरवाज़ा कहते हैं। मुगलों ने प्रभाचशाली मकबरे बनवाए, जिनमें अकबर के पिता हुमायूँ का मकबरा, दिल्ली में, एवं अकबर का मकबरा, सिकंदरा, आगरा के पास स्थित है। यह दोनों ही अपने आप में बेजोड़ हैं।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "इस्लामी प्रभाव". मूल से 14 जनवरी 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 अगस्त 2009.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]