आटो फॉन बॉटलिंक

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आटो फॉन बॉटलिंक

आटो फॉन बॉटलिंक (Otto von Böhtlingk; १८१५-१९०४) जर्मनी के भारतविद तथा संस्कृत के प्रकांड पंडित थे जिन्होंने संस्कृत साहित्य का विधिपूर्वक अध्ययन करके, वर्षों के परिश्रम के पश्चात् 'संस्कृत वार्टरबुख' (Sanskrit-Wörterbuch) नामक एक विशाल शब्दकोश सात भागों में प्रकाशित किया। यह आज भी अद्वितीय ग्रंथ है।

परिचय[संपादित करें]

बाटलिंक का जन्म ३० मई १८१५ को रूस के लेनिनग्राद नगर में हुआ था। बर्लिन तथा बॉन में उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की। बॉन उस समय यूरोप में संस्कृत का बड़ा केंद्र था। बर्लिन में फ्रांसिस बॉप नामक संस्कृत विद्वान् भी इनके गुरु थे। विद्वानों के साथ संसर्ग तथा वातावरण के प्रभाव ने इनके अध्ययन को नया मोड़ दिया।

यद्यपि आरंभ से विश्वविद्यालय में इनका विषय अरबी तथा फारसी था, तथापि यह संस्कृत की ओर झुके और आगे चलकर इसी विषय को लेकर इन्हें विश्वख्याति मिली। १८४० में इन्होंने 'ग्रामेर संस्कृत' नामक ग्रंथ लिखा जो पाणिनि की 'अष्टाध्यायी' पर आधारित था। १८४३ में इसी विषय को लेकर इनका विस्तृत ग्रंथ 'पाणिनि ग्रामेटिक' प्रकाशित हुआ जिसमें सूत्रों पर सरल जर्मन भाषा में टीका की गई है। इनका एक ग्रंथ फ्रांसीसी में 'डिजरटेशियाँ सर ला एक्सेंट संस्कृत' नाम से प्रकाशित हुआ और फिर जर्मन में कालिदास के शाकुन्तल का अनुवाद मूल सहित निकला। १८११ में 'क्रिस्ट्रोमैथिए संस्कृत' नामक ग्रंथ प्रकाशित हुआ। इनका 'संस्कृत वार्टरबुख' १८५२ से ७५ तक के कठिन परिश्रम का प्रयास है। इसमें इनका हाथ रॉथ तथा वेबर ने बँटाया था। इस ग्रंथ में प्रत्येक शब्द की पूर्ण रूप से व्याख्या की गई है तथा संपूर्ण संस्कृत साहित्य में जहाँ भी उसका उल्लेख है, अंकित कर दिया गया है। इससे मूल ग्रंथों में उनको सरलता से ढूँढ़ा जा सकता है। सन् १९०४ में जर्मनी के लाइपज़िग नगर में इस विद्वान् का देहान्त हो गया।

सन्दर्भ ग्रन्थ[संपादित करें]

  • वकलैंड : डिक्शनरी ऑव इंडियन बायोग्राफी; इंसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]