अलंकार

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[1]परिभाषा - काव्य का सौंदर्य व शोभा बढ़ाने वाले तत्त्व अलंकार कहलाते हैं।

आभूषण जो शरीर का सौंदर्य बढ़ाने के लिए धारण किए जाते हैं। ” काव्यशोभा करान धर्मानअलंकारान प्रचक्षते ।” अर्थात् वह कारक जो काव्य की शोभा बढ़ाते हैं अलंकार कहलाते हैं। जिस प्रकार शरीर के बाहरी भाग को सजाने-संवारने के लिए ब्यूटी पार्लर, व्यायाम शालाएं, हेयर कटिंग सैलून, प्रसाधन सामग्री, आभूषणों की दुकानें हैं तथा आंतरिक भाग को सजाने के लिए शिक्षण-संस्थाएं, धार्मिक संस्थाएं, महापुरुषों के प्रवचन आदि हैं। उसी प्रकार साहित्य के बाहरी रूप को सजाने के लिए शब्दालंकार और आंतरिक रूप को सजाने के लिए अर्थालंकार का प्रयोग किया जाता है।

  • आकाश पिप्पल के अनुसार-किसी भी काव्य अथवा काव्यांस में जो सुंदरता पाई जाती है उसका पर्याय अलंकार है

अलंकारों के मुख्यत: तीन वर्ग किए गए हैं-

१. शब्दालंकार- शब्द के दो रूप होते हैं- ध्वनि और अर्थ। ध्वनि के आधार पर शब्दालंकार की सृष्टि होती है। इस अलंकार में वर्ण या शब्दों की लयात्मकता या संगीतात्मक्ता होती है अर्थ का चमत्कार नहीं। शब्दालंकार कुछ वर्णगत होते हैं कुछ शब्दगत और कुछ वाक्यगत होते हैं।

शब्दालंकारों की श्रेणी में निम्न को परिगणित किया जाता है - अनुप्रास, यमक, श्लेष, वक्रोक्ति, पुनरुक्ति प्रकाश, पुनरुक्ति वदाभास, वीप्सा आदि।

२. अर्थालंकार-अर्थ को चमत्कृत या अलंकृत करने वाले अलंकार अर्थालंकार कहलाते हैं। जिस शब्द से जो अलंकार सिद्ध होता है, उस शब्द के स्थान पर दूसरा पर्यायवाची शब्द रख देने पर भी वही अलंकार सिद्ध होगा क्योंकि अलग अर्थालंकारों का संबंध शब्द से न होकर अर्थ से होता है।

अर्थालंकारों में निम्न अलंकार शोभायमान होते हैं - उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अतिश्योक्ति, उदाहरण, दृष्टांत, विरोधाभास, भ्रांतिमान, संदेह, विभावना, विशेषोक्ति, प्रतीप, मानवीकरण, उल्लेख, स्मरण, परिकर, आक्षेप, प्रतीप, काव्यलिंग, अन्योक्ति, उपेमेयोपमा आदि।

३. उभयालंकार- जहाँ अलंकार का चमत्कार अर्थ और शब्द दोनों में प्रस्फुटित हो, वहाँ उभयालंकार सिद्ध होता है। शब्दालंकार और अर्थालंकार का मिश्रण स्वरुप उभयालंकार के रूप में जाना जाता है।

उभयालंकार में मुख्य ये अलंकार हैं - श्लेष अलंकार जिसमें - 1.शब्द के आधार पर श्लेष और 2.अर्थ के आधार पर श्लेष आदि।

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  1. डबास, डॉ. जयदेव (2016). हिंदी भाषा शिक्षण. 1688, Nai Sarak, Delhi-110006: Doaba House. पपृ॰ 210, 211. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-83232-55-0.सीएस1 रखरखाव: स्थान (link)
  2. डबास, डॉ. जयदेव (2016). हिंदी भाषा शिक्षण. 1688, Nai Sarak, Delhi-110006: Doaba House. पपृ॰ 210, 211. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-83232-55-0.सीएस1 रखरखाव: स्थान (link)