अरुण गवली

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अरुण गवली
जन्म अरुण गुलाब अहीर
17 जुलाई 1955 (1955-07-17) (आयु 68)
कोपरगाव, अहमदनगर जिला, महाराष्ट्र
राष्ट्रीयता  भारत
पेशा राजनेता व समाजसेवा
कार्यकाल 1970 - मौजूद
पदवी डैडी
राजनैतिक पार्टी आखिल भारतीय सेना
धर्म हिंदू
जीवनसाथी अाशा गवली
बच्चे महेश गवली (बेटा)
गीता गवली (बेटी)
क्रुतिका अहीर (पुत्र-वधू)
संबंधी

सचिन अहीर (भतीजा)

हुकुमचंद यादव (चाचा)
वंदना गवली (भाभी)
आपराधिक मुकदमें हत्याएं, रिश्वतखोरी, उत्पीड़न, धमकी देकर मांगने वाली, गनर्मिंग, चोरी, अनुबंध की हत्या, मनी लॉन्ड्रिंग, नकली, धोखाधड़ी
उल्लेखनीय कार्य {{{notable_works}}}

अरुण गवली (जन्म : अरुण गुलाब अहीर, 17 जुलाई 1955) को उनके समर्थकों के बीच "डैडी" के नाम से जाना जाता है। वह एक माफिया सरगना है, जो भारत के मुंबई से राजनीतिज्ञ बन गया।

वे मुंबई में सातरस्ता के भायखला में दगडी चाल में रहते हैं। २००४ में उनको अखिल भारतीय सेना उम्मीदवार के रूप में मुंबई चिंचपोकली संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से एक विधायक चुना गया।

व्यक्तिगत जीवन[संपादित करें]

अरुण गवली का जन्म 17 जुलाई 1955 को कोपरगाव, अहमदनगर जिला, महाराष्ट्र में हुआ। उनके पिता गुलाबराव मिल में काम करके घर चलाते थे। अरुण गवली की शादी पुणे जिले के वडगाँँव पांचपीर के मोहम्मद शेख लाल मुजावर उर्फन्हानु भाई की बेटी से हुई, जिन्होंने विवाह के बाद हिंदू धर्म अपना लिया पत्नी ने अपना नाम आयशा बानो से बदल कर आशा गवली रखा। जिसे लोग प्यार से मम्मी भी कहते हैंं। उसके दो बच्चे महेश गवली और गीता गवली हैं।

मुंबई में 1970-1988 समय[संपादित करें]

ऐसा माना जाता है कि एक स्थानीय बालक के रूप में उनकी "देसी जड़ों" के यहीं बसे होने के कारण ही गवली का महत्त्व इस क्षेत्र में इतना बढ़ गया है, यही विशेषता उन्हें अधिकांश अन्य गैर-मराठी भाषी सरगनाओं से विभेदित करती है।

मुंबई अंडरवर्ल्ड में, गवली ने सक्रियता से अपहरण और गैर क़ानूनी काम किये और माना जाता था कि मुंबई से दाऊद इब्राहिम की उड़ान के द्वारा निर्मित निर्वात के बाद कुछ शक्तिशाली राजनेताओं और नौकरशाहों से उन्हें समर्थन प्राप्त हुआ। जब धीरे धीरे वे प्रासंगिकता खोने लगे, गवली ने राजनीति की मुख्यधारा में कदम रखा, अपने पुराने आकाओं के साथ सम्बन्ध ख़त्म करने शुरू कर दिए।

जाने माने अपराधी या "गुंडे"- जैसे अरुण गवली, रामभाई नायक, बाबुभाई रेशीम, गुरु साटम उर्फ़ मामा, अशोक चौधरी उर्फ़ छोटा बाबू, अनिभाई परब और तान्या कोली- 1970 में मुंबई की कुख्यात कॉटन टेक्सटाइल मिल की हड़ताल के बाद सामने आये, जिसमें लाखों मजदूर बेरोजगार हो गए थे।

केवल गवली को छोड़कर उपर्युक्त सभी की उनके माफिया प्रतिद्वंद्वियों के द्वारा क्रूरतापूर्वक हत्या कर दी गयी।

बेरोजगारी और भुखमरी से पीड़ित, ये मजदूर गरीबी से जकड़े हुए थे और बाद में इनके बच्चे भी अपराधी बन गए।

दगडी चाल सिंडिकेट मूल रूप से डी-कंपनी के साथ गठबंधित थी लेकिन बाद में अंदरूनी झगड़ों के बाद इनमें विभाजन हो गया।

किसी समय भायखला-महालक्ष्मी-अग्रीपाड़ा-परेल/नायगंव-चिंचपोकली क्षेत्र में एक छोटे समय के लिए चार्ज-शीटर (आरोपी) रहा, अल्पार्थक गवली अब दगडी चाल का निर्विवाद डान है और मुंबई के कुछ भागों में उसके कहे शब्द ही कानून हैं।[1]

गवली को स्वर्गीय रामभाई नायक के द्वारा आश्रय दिया गया था, जिसने 1986 में सुपारी-किंग करीम लाला के भतीजे, खूंखार समद खान को बंदूक की नोक पर मार डाला था और दाऊद इब्राहिम के लिए मुंबई अंडरवर्ल्ड का निर्विवादित डान बनने का रास्ता खोल दिया। इसके कुछ ही समय बाद रामनायक खुद भी 1988 में नागपाड़ा पुलिस के पी एस आई राजन कटधरे के साथ एक 'मुठभेड़ (एनकाउन्टर)' में मारा गया, कथित तौर पर यह दाऊद इब्राहिम के कहने पर हुआ था, लेकिन आज भी गवली और उसके गुर्गे भायखला के दगडी चाल के मूल गोडफादर (गुरु) के रूप में उसकी पूजा करते हैं।

शुरूआती कैरियर[संपादित करें]

मिल में काम करने वाले इस मजदूर के बेटे ने एक कारखाने में काम करने की कोशिश की किन्तु वह कुछ समय बाद बन्द हो गई और वह धैर्य नहीं रख पाया।

इसके बाद वह एक छोटे किले में स्थित अपने दगडी चाल वाले घर में लौट आया और दाऊद इब्राहिम और छोटा राजन के साथ सम्बन्ध बनाने शुरू किये।

जब पापा गवली को उसके पूर्व सहयोगियों ने मार डाला, उसने गवली गिरोह शुरू कर लिया, जिसने संपत्ति के विवादों और ख़त्म होती हुई मिलों में मजदूर संघों पर फसाद खड़े किये।

यहाँँ तक कि जब 1990 के दशक में उसने अपना जेल का कार्यकाल पूरा किया- आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधि अधिनियम के तहत 1993 उस पर आरोप लगाये गए और चार साल की सज़ा सुनाई गयी-उसे मुंबई के केन्द्रीय जेल में रखा गया।

गवली 1997 में जेल से मुक्त हो गया और उसने शिव सेना से नाता तोड़ कर अखिल भारतीय सेना बनायी। 1997 और 2004 के बीच, गवली को 15 से अधिक मामलों में गिरफ्तार किया गया है-लेकिन इनमें से किसी में भी उसे दोषी नहीं ठहराया गया। जाहिर तौर पर उसने अपराध को छोड़ दिया है, फिर भी वह मुंबई में रहने वाला एकमात्र डोन है।[2]

शिवसेना मेंं भी डर[संपादित करें]

1993 बम विस्फोटों के बाद, गवली अचानक हिन्दू डोन बन गया। जिसे शिव सेना अपना सकती थी और जिसके बाद गवली को बाल ठाकरे का सक्रिय समर्थन प्राप्त हुआ।

बाल ठाकरे ने कहा था :

अगर पाकिस्तान के पास दाऊद है, तो हमारे पास गवली है

परन्तु बाद में ठाकरे और शिवसेना के साथ उनके संबंध टूट गए, जब गवली के लड़कों ने निर्दयता से कई शिवसेना विधायकों और पार्टी कार्यकर्ताओं को मार दिया।

अब तक निडर रहने वाले शिवसेना के सदस्य बहुत बुरी तरह डर गए और गवली ने शिवसेना के छक्के छुड़ा दिए थे। उन्होंने अपने आप को अपनी स्वयं की आतंक रणनीति के अंत में पाया। जिसके बाद शिव सेना ने गवली से नाता तोड़ने में ही भलाई समझी।

इन सबकी वजह से कई बार गवली जेल भी गए, लेकिन शिवसेना कोर्ट में कुछ साबित नहींं कर सकी।

राजनीति और जेल[संपादित करें]

"डेडी" कई बार जेल में आता जाता रहा है और उसने 10 साल से ज्यादा समय न्यायिक हिरासत में बिताया है, परन्तु वास्तव में उसे कभी भी दोषी नहीं ठहराया गया है।

मोबाइल फोन और अपनी इच्छुक जेल और पुलिस अधिकारियों की मदद के साथ, गवली नासिक, पुणे और येरावाडा में जेल में से ही अपहरण, जबरन वसूली और हत्या के आपराधिक साम्राज्य को बड़ी कुशलता और बेरहमी के साथ चलाता रहा। यहीं पर, अन्य दलों से आये अपराधियों और असंतुष्ट नेताओं से उसका राजनीतिक दल, अखिल भारतीय सेना तैयार हो गया।

जेल भी उसके लिए एक सुरक्षित अड्डा था, जहाँँ से उसे अपने प्रतिद्वंदियों दाऊद इब्राहिम/ छोटा शकील और छोटा राजन गिरोहों के द्वारा किये गए हत्या के प्रयासों को रोकने में मदद मिली।

राजनीती में प्रवेश करने और महाराष्ट्र विधान सभा में सदस्य बनने के उसके फैसले ने सुनिश्चित किया कि अब उसे पुलिस के द्वारा "एनकाउन्टर या मुठभेड़" में मारा नहीं जा सकता।

गवली के राजनीतिक डिजा़इन को एक झटके का सामना करना पड़ा जब उसका भतीजा और पार्टी का विधायक, सचिनभाऊ अहीर, खुले तौर पर उसके विरोध में खडा़ हो गया और शरद पवार की एन सी पी में शामिल हो गया। उसके बाद उसने एनसीपी टिकेट पर लोक सभा चुनाव में गवली के खिलाफ़ चुनाव लड़ा, जिसमें दोनों की हार हुई, लेकिन सेना के एमपी मोहन रावले की जीत हुई। उसकी बेटी को हाल ही में बृहन्मुंबई नगर निगम की पार्षद चुना गया है।

इन सभी आरोपों के बावजूद, गवाहों की कमी के कारण, आज भी गवली एकव्यक्ति है। लेकिन उसे तो जेल में दिखाया गया है

गवली को कमलाकर जमसंदेकर (शिवसेना) की हत्या के मामले में जेल हुई थी।

फिल्मों में लोकप्रिय[संपादित करें]

2015 में मराठी फिल्म "दगडी चाल" में, मकरंद देशपांडे ने डैडी का रोल किया है मुख्यतः अरुण गवळी के जीवन पर आधारित है। अंकुश चौधरी ने प्रमुख भूमिका निभाई जो अरुण गवली के लेफ्ट हैंड थे। 2017 की हिंदी फिल्म "डैडी" गवली के जीवन पर आधारित है, जिसमें अर्जुन रामपाल को गवली के रूप में दिखाया गया है। [3][4]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Najm, Quaied (2003-03-16). "Reporters' Diary: In the don's lair". The Week. Malayala Manorama Group. मूल से 11 फ़रवरी 2005 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2006-10-19.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 10 जनवरी 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 दिसंबर 2010.
  3. "Makrand Deshpande as Arun Gawli - Times of India". indiatimes.com. मूल से 10 नवंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 December 2016.
  4. "WATCH: Makrand as Arun Gawli - Times of India". indiatimes.com. मूल से 23 सितंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 December 2016.