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हेनरी बेवरीज

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हेनरी बेवरिज (Henry Beveridge १८३७-१९२९) भारत में अंग्रेजी राज के समय का अईसीएस अधिकारी तथा भारतविद था। उसका बेटा विलियम बेवरीज प्रसिद्ध ब्रिटिश अर्थशास्त्री हुआ। उसका दादा नानाबाई था और पिता, हेनरी बेवरिज, क्रमश: पादरी, बैरिस्टर, दिवालिया और भाड़े का लेखक रहा। उसकी पुस्तक, 'कॉम्प्रीहेन्सिव हिस्ट्री ऑव इंडिया' तीन जिल्दों में १८६२ में छपी। अत:, शैशवकाल से ही हेनरी बेवरिज (छोटा) घर में भारत की चर्चा सुनता रहता था।

शिक्षा क्वींस कालेज, बेलफास्ट में हुई। भारतीय सिविल सर्विस की तृतीय परीक्षा में वह सर्वप्रथम रहा और १८५७ में भारत आया। यहीं १८७५ में उसने अपनी दूसरी पत्नी आनेट (१८४२-१९२९) से शादी की। बंगाल की सिविल सर्विस के न्याय विभाग में ३५ वर्ष सेवा करने के बाद १८९२ में बिना हाईकोर्ट का जज बने, उसने अवकाश ग्रहण कर लिया। तरक्की न पाने का एक कारण यह था कि उसे भारत तथा भारतवासियों से शुरू से ही सहानुभूति थी। १८८८ में भारतीय सेवाओं के लिए इंग्लैंड से आए आयोग के सम्मुख गवाही में उसने इस बात को न्यायसंगत बताया था कि इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा इंग्लैंड में नहीं होनी चाहिए। वह धर्म में भी अधिक विश्वास नहीं रखता था।

अवकाश ग्रहण करने के बाद हेनरी और उसकी धर्मपत्नी आनेट ने भारतीय इतिहास के अध्ययन में ही सारा समय लगाया। आनेट ने पचास वर्ष की उम्र में अपने पति के प्रोत्साहन से फारसी सीखी और गुलबदन बेगम के हुमायूँनामा का अंग्रेजी में अनुवाद (१९०२) किया और बाद में बाबरनामा का तुर्की से अनुवाद (१९२२)। हेनरी की प्रथम पुस्तक, 'हिस्ट्री ऑव बाकरगंज' १८७६ में छपी, 'ट्रायल ऑव नंदकुमार' १८८६ में। १९११ में उसके मआसिर-उलउमरा (खंड १) का अंग्रेजी अनुवाद एशियाटिक सोसायटी ऑव बंगाल ने छापा और 'तुजक-ए-जहाँगीरी' का संशोधित संस्करण १९०९-१९१४ के बीच। उसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य अबुल फ़जल के अकबरनामा का अंग्रेजी अनुवाद है। यह कार्य उसने १४ वर्ष के परिश्रम के बाद १९२९ में पूरा किया और एशियाटिक सोसायटी ऑव बंगाल ने इसे १९३९ में छापा।

इसके अलावा बेवरिज के कतिपय लेख कलकत्ता रिव्यू, एशियाटिक रिव्यू, जर्नल ऑव दी रायल एशियाटिक सोसायटी और एशियाटिक सोसायटी ऑव बंगाल में छपे। १८९९ में हस्तलिखित पुस्तकों की खोज में वह दुबारा भारत आया। मृत्यु, ८ नवम्बर १९२९ को इंग्लैंड में हुई।