हिमनदीय भू-आकृतियाँ
हिमनदीय भू-आकृतियाँ वे स्थलाकृति हैं जो हिमनदों की गति और क्षरण क्रिया से निर्मित होती हैं। अधिकांश हिमनदीय आकृतियाँ चतुर्थक युग में विशाल हिम चादरों के खिसकने से बनीं। ये फेनोस्कैंडिया और दक्षिणी एंडीज़, सहारा जैसे दुर्लभ स्थानों में और प्राचीन जीवाश्म के रूपों में पाई जाती हैं।
प्रकार
[संपादित करें]अपरदनकारी भू-आकृतियाँ
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जब हिमनद फैलते हैं, तो उनका बढ़ता हुआ भार चट्टानों पर अत्यधिक दबाव डालता है, जिससे वे घिसकर अनेक भू-आकृतियाँ बनाते हैं। इन भू-आकृतियों में धारियाँ, सर्क, यू-आकार की घाटियाँ, अति-गहन तथा लटकती घाटियाँ इसके प्रमुख उदाहरण हैं[1],
निक्षेपण भू-आकृतियाँ
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जब हिमनद पीछे हटते हैं, तो वे अपने साथ लाई हुई कुचली हुई चट्टानों, मिट्टी और रेत के भारी मिश्रण को पीछे छोड़ देते हैं, इन अवशाद के जमाने से निक्षेपण भू-आकृतियाँ बनती हैं। ये भू-आकृतियाँ प्रायः हिमनदों के जमने से निर्मित होती हैं, जो बिना छांटे गए विविध आकार के तलछटों से लेकर महीन रेत तक मिलकर बनी होती हैं।[2]
हिमनद की विशेषताएं
[संपादित करें]हिमनद केवल भू-आकृतियाँ नहीं बनाते, बल्कि खुद भी अद्भुत विशेषताएँ प्रदर्शित करते हैं, ध्रुवीय क्षेत्रों में पाये जाने वाले हिमनद इसके उदाहरण हैं, घाटियों की दीवारें हिमनद के प्रवाह को सीमित करती हैं। जिससे घाटीयों के ऊपरी हिस्से में बर्फ की चादर जम जाती है, लगातार जमाव के कारण उसमें दरारें पड़ जाती हैं जिससे बर्फ झरनों की भांति गिरने लगती है। इस प्रकार का दृश्य हिमनद की गतिशीलता और ध्रुवीय भू-भाग की विविधता को दर्शाती हैं।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]संदर्भ
[संपादित करें]- ↑ क्रॉस्बी, बेंजामिन; व्हिपल, केलिन; गैसपरिनी, निकोल; वोबस, कैमरून (अगस्त 2007). "लटकती घाटियों का निर्माण : सिद्धांत और अनुकरण". जर्नल ऑफ जियोफिजिकल रिसर्च: अर्थ सरफेस. 112 (F3) – via AGU.
- ↑ आइल्स, निक (अगस्त 2006). "हिमनद प्रक्रियाओं में पिघले हुए जल की भूमिका भूमिका". तलछटी भूविज्ञान. 190 (1–4): 257–268 – via एल्सेवियर साइंस डायरेक्ट.