हिन्दू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

प्रारम्भिक

1. संक्षिप्त नाम और विस्तार-(1) यह अधिनियम हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम, 1956 कहा जा सकेगा ।

(2) इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय सम्पूर्ण भारत पर है ।

2. अधिनियम का लागू होना-यह अधिनियम लागू है-

(क) ऐसे किसी भी व्यक्ति को जो हिन्दू धर्म के किसी भी रूप या विकास के अनुसार, जिसके अन्तर्गत वीरशैव, लिंगायत अथवा ब्राह्मों समाज, प्रार्थना-समाज या आर्य समाज के अनुयायी भी आते हैं, धर्मतः हिन्दू हो;

(ख) ऐसे किसी भी व्यक्ति को जो धर्मतः बौद्ध, जैन या सिक्ख हो; तथा

(ग) ऐसे किसी भी अन्य व्यक्ति को जो धर्मतः मुस्लिम, क्रिश्चियन, पारसी या यहूदी न हो, जब तक कि यह साबित न कर दिया जाए कि यदि यह अधिनियम पारित न किया गया होता तो कोई भी ऐसा व्यक्ति एतस्मिन् उपबन्धित किसी भी बात के बारे में हिन्दू विधि या उस विधि की भागरूप किसी रूढ़ि या प्रथा द्वारा शासित न होता ।

               स्पष्टीकरण-निम्नलिखित व्यक्ति धर्मतः, यथास्थिति, हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिक्ख हैं :-
                               (क) कोई भी अपत्य, धर्मज या अधर्मज, जिसके माता-पिता, दोनों ही धर्मतः हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिक्ख हों;

(ख) कोई अपत्य, धर्मज या अधर्मज, जिसके माता-पिता में से कोई एक धर्मतः हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिक्ख हो और जो उस जनजाति, समुदाय, समूह या कुटुम्ब के सदस्य के रूप में पला हो जिसका वह माता-पिता सदस्य है या था; ***


[(खख) कोई अभी अपत्य, धर्मज या अधर्मज, जो अपने पिता और माता दोनों द्वारा परित्यक्त कर दिया गया हो अथवा जिसकी जनकता ज्ञात न हो, और जो दोनों में से किसी भी दशा में हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिक्ख के रूप में पला                   हो; तथा]

(ग) ऐसा कोई भी व्यक्ति जो हिन्दू, जैन या सिक्ख धर्म में संपरिवर्तित या प्रतिसंपरिवर्तित हो गया हो ।

(2) उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट कोई भी बात किसी ऐसी जनजाति के सदस्यों को, जो संविधान के अनुसार अनुच्छेद 366 के खंड (25) के अर्थ के अन्तर्गत अनुसूचित जनजाति हो, लागू न होगी जब तक कि केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा अन्यथा निर्दिष्ट न कर दे ।

(3) इस अधिनियम के किसी भी प्रभाग में आए हुए, हिन्दू" पद का अर्थ ऐसा लगाया जाएगा मानो उसके अन्तर्गत ऐसा व्यक्ति आता हो जो यद्यपि धर्मतः हिन्दू नहीं है तथापि ऐसा व्यक्ति है जिसे यह अधिनियम इस धारा में अन्तर्विष्ट उपबन्धों के आधार पर लागू होता है ।

3. परिभाषाएं-इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-

(क) "रूढ़ि" और प्रथा" पद ऐसे किसी भी नियम का संज्ञान कराते हैं जिसने दीर्घकाल तक निरन्तर और एकरूपता से अनुपालित किए जाने के कारण किसी स्थानीय क्षेत्र, आदिम-जनजाति समुदाय, समूह या कुटुम्ब के हिन्दुओं में विधि का बल अभिप्राप्त कर लिया हो :

परन्तु यह तब जब कि वह नियम निश्चित हो, और अयुक्तियुक्त या लोकनीति के विरुद्ध न हो : तथा

परन्तु यह और भी कि ऐसे नियम की दशा में जो एक कुटुम्ब को ही लागू हो, उसकी निरन्तरता उस कुटुम्ब द्वारा बन्द न कर दी गई हो;

(ख) "भरण-पोषण" के अन्तर्गत-


(i) सब दशाओं में भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा और चिकित्सा परिचर्या और इलाज के लिए उपबन्ध आता है;

(ii) अविवाहित पुत्री की दशा में उसके विवाह के युक्तियुक्त और प्रासंगिक व्यय भी आते हैं;

(ग) अप्राप्तवय" से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जिसने अपनी अठारह वर्ष की आयु पूरी न की हो ।

4. अधिनियम का अध्यारोही प्रभाव-इस अधिनियम में अभिव्यक्त रूप से अन्यथा उपबन्धित के सिवाय,-

(क) हिन्दू विधि का कोई ऐसा शास्त्र-वाक्य, नियम या निर्वचन या उस विधि की भाग-रूप कोई भी रूढ़ि या प्रथा, जो कि इस अधिनियम के प्रारम्भ होने से अव्यवहित पूर्व प्रवृत्त रही हो, ऐसे किसी भी विषय के बारे में जिसके लिए कि इस अधिनियम में उपबन्ध किया गया है, प्रभावहीन हो जाएगी;

(ख) इस अधिनियम के प्रारम्भ से अव्यवहित पूर्व से प्रवृत्त किसी भी अन्य विधि का हिन्दुओं को लागू होना वहां तक बन्द हो जाएगा जहां तक कि वह इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट उपबन्धों में से किसी से भी असंगत हो ।

अध्याय 2

दत्तक

5. दत्तक इस अध्याय द्वारा विनियमित होंगे-(1) किसी हिन्दू के द्वारा या निमित्त कोई भी दत्तक इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् इस अध्याय में अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अनुसार किए जाने के सिवाय नहीं किया जाएगा और उक्त उपबन्धों के उल्लंघन में किया गया कोई भी दत्तक शून्य होगा ।


(2) किसी ऐसे दत्तक से, जो शून्य है, न तो दत्तक कुटुम्ब में किसी भी व्यक्ति के पक्ष में किसी ऐसे अधिकार का सृजन होगा जिसे वह दत्तक के कारण अर्जित करने के सिवाय अर्जित नहीं कर सकता था और न किसी भी व्यक्ति के वे अधिकार ही नष्ट होंगे जो उसे अपने जन्म के कुटुम्ब में प्राप्त हैं ।

6. विधिमान्य दत्तक संबंधी अपेक्षाएं-कोई भी दत्तक विधिमान्य नहीं होगा जब तक कि-

(i) दत्तक लेने वाला व्यक्ति दत्तक लेने की सामर्थ्य और अधिकार न रखता हो;

(ii) दत्तक देने वाला व्यक्ति ऐसा करने की सामर्थ्य न रखता हो;

(iii) दत्तक-व्यक्ति दत्तक में लिए जाने योग्य न हो; और

(iv) दत्तक इस अध्याय में वर्णित अन्य शर्तों के अनुवर्तन में न किया गया हो ।

7. हिन्दू पुरुष की दत्तक लेने की सामर्थ्य-किसी भी हिन्दू पुरुष को जो स्वस्थ चित्त हो और अप्राप्तवय न हो यह सामर्थ्य होगी कि वह पुत्र या पुत्री दत्तक ले :

परन्तु यदि उसकी पत्नी जीवित हो तो जब तक कि पत्नी पूर्ण और अन्तिम रूप से संसार का त्याग न कर चुकी हो या वह हिन्दू न रह गई हो या सक्षम अधिकारिता वाले किसी न्यायालय ने उसके बारे में यह घोषित न कर दिया हो कि वह विकृतचित्त की है तब तक वह अपनी पत्नी की सहमति के बिना दत्तक नहीं लेगा ।

स्पष्टीकरण-यदि किसी व्यक्ति की एक से अधिक पत्नियां दत्तक के समय जीवित हों तो जब तक कि पूर्ववर्ती परन्तुक में विनिर्दिष्ट कारणों में से किसी के लिए उनमें से किसी की सम्मति अनावश्य न हो, सब पत्नियों की सम्मति आवश्यक होगी ।


[8. हिन्दू नारी की दत्तक लेने की सामर्थ्य-कोई भी हिन्दू नारी, जो स्वस्थचित्त है और अप्राप्तवय नहीं है, पुत्र या पुत्री को दत्तक लेने की सामर्थ्य रखती है :

परंतु यदि उसका पति जीवित है तो वह अपने पति की सहमति के सिवाय किसी पुत्र या पुत्री को तब तक दत्तक ग्रहण नहीं करेगी जब तक पति पूर्ण और अंतिम रूप से संसार का त्याग न कर चुका हो या हिन्दू न रह गया हो या सक्षम अधिकारिता वाले किसी न्यायालय ने उसके बारे में यह घोषित न कर दिया हो कि वह विकृतचित्त का है ।]

9. दत्तक देने के लिए सक्षम व्यक्ति-(1) अपत्य के पिता या माता या संरक्षक के सिवाय कोई व्यक्ति अपत्य को दत्तक देने की सामर्थ्य नहीं रखेगा ।

[(2) उपधारा (4) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, पिता या माता को, यदि जीवित हैं, तो किसी पुत्र या पुत्री को दत्तक देने का समान अधिकार होगा :

परंतु ऐसे अधिकार का प्रयोग उनमें से किसी एक द्वारा अन्य की सहमति के सिवाय तब तक नहीं किया जाएगा जब तक उनमें से एक पूर्ण और अंतिम रूप से संसार का त्याग न कर चुका हो या हिन्दू न रह गया हो या सक्षम अधिकारिता वाले किसी न्यायालय ने उसके बारे में यह घोषित न कर दिया हो कि वह विकृतचित्त का/की है ।]

।                                             ।                                              ।                                              ।                                              ।
[(4) जहां माता और पिता दोनों मर चुके हों या पूर्ण और अन्तिम रूप से संसार का त्याग कर चुके हों या अपत्य को त्याग चुके हों या सक्षम अधिकारिता वाले किसी न्यायालय ने उनके बारे में यह घोषित कर दिया हो कि वे विकृतचित्त हैं या जहां कि अपत्य की जनकता ज्ञात न हो, तो उस अपत्य का संरक्षक न्यायालय को पूर्व अनुज्ञा से उस अपत्य को किसी भी व्यक्ति को जिसके अन्तर्गत स्वयं वह संरक्षक भी आता है, दत्तक दे सकेगा ।ट

(5) न्यायालय किसी संरक्षक को उपधारा (4) के अधीन अनुज्ञा देने के पूर्व इस बात को ध्यान में रखकर कि अपत्य की आयु और समझने की शक्ति कितनी है दत्तक दिए जाने के संबंध में अपत्य की इच्छा पर सम्यक् विचार करके अपना इस बारे में समाधान कर लेगा कि दत्तक दिया जाना अपत्य के लिए कल्याणकर होगा या नहीं और यह कि दत्तक देने के प्रतिफल स्वरूप कोई संदाय या इनाम ऐसे किसी संदाय या इनाम के सिवाय, जैसा कि न्यायालय मंजूर करे, अनुज्ञा के लिए, आवेदन करने वाले ने न तो प्राप्त किया है और न प्राप्त करने का करार किया है और न किसी भी व्यक्ति ने आवेदन करने वाले को किया या दिया है और न ही करने या देने के लिए करार उससे किया है ।

स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए-


(i) “माता" और पिता" पदों के अन्तर्गत दत्तक माता और दत्तक पिता नहीं आते हैं, ***

[(iक) “संरक्षक" से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जिसकी देखरेख में किसी अपत्य का शरीर या उसका शरीर और सम्पत्ति दोनों हों और इसके अन्तर्गत आते हैं-

(क) अपत्य के पिता या माता की विल द्वारा नियुक्त संरक्षक; तथा

(ख) किसी न्यायालय द्वारा नियुक्त या घोषित संरक्षक; तथाट

(ii) “न्यायालय" से ऐसा नगर सिविल न्यायालय या जिला न्यायालय अभिप्रेत है जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के अन्दर दत्तक लिया जाने वाला अपत्य मामूली तौर पर निवास करता है ।

10. व्यक्ति जो दत्तक लिए जा सकते हैं-कोई भी व्यक्ति दत्तक लिए जाने के योग्य न होगा जब तक कि निम्नलिखित शर्तें पूरी न हों, अर्थात् :-

(i) वह हिन्दू है;

(ii) वह पहले ही से दत्तक नहीं लिया जा चुका है, या ली जा चुकी है;

(iii) उसका विवाह नहीं हुआ है, तब के सिवाय जब कि पक्षकारों को लागू होने वाली ऐसी रूढ़ि या प्रथा हो जो विवाहित व्यक्तियों का दत्तक लिया जाना अनुज्ञात करती हो;


(iv) उसने पन्द्रह वर्ष की आयु पूरी नहीं की है तब के सिवाय जब कि पक्षकारों को लागू होने वाली कोई ऐसी रूढ़ि या प्रथा हो जो ऐसे व्यक्तियों का, जिन्होंने पन्द्रह वर्ष की आयु पूरी कर ली हो, दत्तक लिया जाना अनुज्ञात करती हो ।

11. विधिमान्य दत्तक की अन्य शर्तें-हर दत्तक में निम्नलिखित शर्तें पूरी की जानी होंगी :-

(i) यदि पुत्र का दत्तक है तो दत्तक लेने वाले पिता या माता, जिनके द्वारा दत्तक लिया जाए, कोई हिन्दू पुत्र, पुत्र का पुत्र या पुत्र के पुत्र का पुत्र (चाहे धर्मज-रक्त नातेदारी से हो या दत्तक से) दत्तक के समय जीवित न हो;

(ii) यदि पुत्री का दत्तक है तो दत्तक लेने वाले पिता या माता की, जिनके द्वारा दत्तक लिया जाए, कोई हिन्दू पुत्री, या पुत्र की पुत्री (चाहे धर्मज-रक्त नातेदारी से हो या दत्तक से) दत्तक के समय जीवित न हो;

(iii) यदि दत्तक किसी पुरुष द्वारा लिया जाना है और दत्तक में लिया जाने वाला व्यक्ति नारी है तो दत्तक पिता दत्तक लिए जाने वाले व्यक्ति से आयु में कम से कम इक्कीस वर्ष बड़ा हो;

(iv) यदि दत्तक किसी नारी द्वारा लिया जाना है और दत्तक लिया जाने वाला व्यक्ति पुरुष है तो दत्तक माता दत्तक लिए जाने वाले व्यक्ति से आयु में कम से कम इक्कीस वर्ष बड़ी हो;

(v) वही अपत्य एक साथ दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा दत्तक नहीं लिया जा सकेगा;

(vi) दत्तक लिया जाने वाला अपत्य सम्पृक्त जनकों या संरक्षक द्वारा या उसके प्राधिकार के अधीन उस अपत्य के कुटुम्ब से जहां वह जन्मा हो [अथवा परित्यक्त अपत्य की दशा में या ऐसे अपत्य की दशा में जिसकी जनकता ज्ञात न हो, उस स्थान या कुटुम्ब से जहां वह पला हो,ट उसका दत्तक लेने वाले कुटुम्ब में उसे अन्तरित करने के आशय से वस्तुतः दिया और लिया जाएगा :

परन्तु दत्त होमम् का किया जाना किसी दत्तक की विधिमान्यता के लिए आवश्यक नहीं होगा ।


12. दत्तक के परिणाम-दत्तक अपत्य दत्तक की तारीख से अपने दत्तक पिता या माता का अपत्य समस्त प्रयोजनों के लिए समझा जाएगा और ऐसी तारीख से यह समझा जाएगा कि उस अपत्य के अपने जन्म के कुटुम्ब के साथ समस्त बन्धन टूट गए हैं और उनका स्थान उन बन्धनों ने ले लिया है जो दत्तक कुटुम्ब में दत्तक के कारण सृजित हुए हों :

परन्तु-

(क) वह अपत्य किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह नहीं कर सकेगा जिससे कि यदि वह अपने जन्म के कुटुम्ब में ही बना रहा होता तो वह विवाह न कर सकता था;

(ख) कोई भी सम्पत्ति जो दत्तक अपत्य में दत्तक के पूर्व निहित थी, ऐसी सम्पत्ति के स्वामित्व से संलग्न बाध्यताओं के, यदि कोई हों, अध्यधीन, जिनके अन्तर्गत उसके जन्म के कुटुम्ब में के, नातेदारों का भरण-पोषण करने की बाध्यता भी आती है, ऐसे व्यक्ति में निहित बनी रहेगी;

(ग) दत्तक अपत्य किसी व्यक्ति को उस सम्पदा से निर्निहित नहीं करेगा जो उस व्यक्ति में दत्तक के पूर्व निहित हो गई है ।

13. दत्तक जनकों का अपनी सम्पत्तियों के व्ययन का अधिकार-तत्प्रतिकूल करार के अध्यधीन यह है कि कोई दत्तक किसी दत्तक पिता या माता को अपनी सम्पत्ति जीवाभ्यन्तर अन्तरण द्वारा या विल द्वारा व्ययनित करने की शक्ति से वंचित नहीं करता ।

14. कुछ दशाओं में दत्तक माता का अवधारण-(1) जहां कोई हिन्दू, जिसकी पत्नी जीवित है, किसी अपत्य को दत्तक लेता है वहां वह दत्तक माता समझी जाएगी ।

(2) जहां दत्तक एक से अधिक पत्िनयों की सम्मति से किया गया है वहां उनमें से सबसे पूर्व विवाहित दत्तक माता समझी जाएगी और अन्य सौतेली माताएं समझी जाएंगी ।

(3) जहां कोई विधुर या कुंवारा किसी अपत्य को दत्तक लेता है वहां ऐसी कोई पत्नी, जिससे वह तत्पश्चात् विवाह करे, दत्तक अपत्य की सौतेली माता समझी जाएगी ।


(4) जहां कोई विधवा या अविवाहित नारी किसी अपत्य को दत्तक लेती है वहां कोई पति, जिससे वह तत्पश्चात् विवाह करे, दत्तक अपत्य का सौतेला पिता समझा जाएगा ।

15. विधिमान्य दत्तक रद्द न किया जाएगा-कोई भी दत्तक जो विधिमान्यतः किया गया है, दत्तक पिता या माता द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा रद्द न किया जा सकेगा और न दत्तक अपत्य अपनी ऐसी हैसियत का त्याग कर सकेगा और न वह अपने कुटुम्ब में वापस जा सकेगा ।

16. दत्तक से संबंधित रजिस्ट्रीकृत दस्तावेजों के बारे में उपधारणा-जब कभी भी तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन रजिस्ट्रीकृत कोई ऐसी दस्तावेज जिसमें किसी किए गए दत्तक का अभिलिखित होना तात्पर्यित हो और जो अपत्य को दत्तक देने और लेने वाले व्यक्तियों द्वारा हस्ताक्षरित हो, किसी न्यायालय के समक्ष पेश किया जाए तब जब तक कि और यदि उसे नामावित न कर दिया जाए वह न्यायालय यह उपधारणा करेगा कि वह दत्तक इस अधिनियम के उपबंधों के अनुपालन में किया गया है ।

17. कुछ संदायों का प्रतिषेध-(1) किसी व्यक्ति के दत्तक के प्रतिफलस्वरूप कोई भी व्यक्ति कोई संदाय या अन्य इनाम न तो प्राप्त करेगा और न प्राप्त करने के लिए, करार करेगा और न ही कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को कोई ऐसा संदाय करेगा या इनाम देगा या करने या देने के लिए करार करेगा जिसका प्राप्त करना इस धारा द्वारा प्रतिषिद्ध है ।

(2) यदि कोई व्यक्ति उपधारा (1) के उपबन्धों का उल्लंघन करेगा तो वह ऐसे कारावास से, जो छह मास तक का हो सकेगा, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडनीय होगा ।

(3) इस धारा के अधीन कोई भी अभियोजन राज्य सरकार की या राज्य सरकार द्वारा तन्निमित्त प्राधिकृत किसी आफिसर की पूर्व मंजूरी के बिना संस्थित नहीं किया जाएगा ।

अध्याय 3

भरण-पोषण

               18. पत्नी का भरण-पोषण-(1) इस धारा के उपबन्धों के अध्यधीन यह है कि हिन्दू पत्नी, चाहे वह इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व या पश्चात् विवाहित हो अपने जीवनकाल में अपने पति से भरण-पोषण पाने की हकदार होगी ।


(2) हिन्दू पत्नी अपने भरण-पोषण के दावे को समपहृत किए बिना अपने पति से पृथक् रहने के लिए निम्नलिखित किसी भी दशा में हकदार होगी-

(क) यदि उसका पति अभित्यजन, अर्थात् युक्तियुक्त कारण के बिना और उसकी सम्मति के बिना या उसकी इच्छा के विरुद्ध उसका परित्याग करने का या जानबूझकर उसकी उपेक्षा करने का दोषी है;

(ख) यदि उसका पति उसके साथ ऐसी क्रूरता का व्यवहार करे जिससे उसके अपने मन में इस बात की युक्तियुक्त आशंका पैदा हो कि उसके पति के साथ रहना अपहानिकर या क्षतिकारक होगा;

(ग) यदि उसका पति उग्र कुष्ठ से पीड़ित है;

(घ) यदि उसके पति की कोई अन्य पत्नी जीवित है;

(ङ) यदि उसका पति उसी गृह में जिसमें उसकी पत्नी निवास करती है कोई उपपत्नी रखता है या किसी उपपत्नी के साथ अन्य किसी स्थान में अभ्यासतः निवास करता है;

(च) यदि उसका पति कोई अन्य धर्म में संपरिवर्तित होने के कारण हिन्दू नहीं रह गया है; और

(छ) यदि उसके पृथक् होकर रहने का कोई अन्य न्यायोचित कारण है ।

(3) यदि कोई हिन्दू पत्नी असती है या किसी अन्य धर्म में संपरिवर्तित होने के कारण हिन्दू नहीं रह गई है तो वह अपने पति से पृथक् निवास करने और भरण-पोषण प्राप्त करने की हकदार नही होगी ।


19. विधवा पुत्रवधू का भरण-पोषण-(1) कोई हिन्दू पत्नी, चाहे वह इस अधिनियम के प्रारम्भ से पूर्व या पश्चात् विवाहित हो, अपने पति की मृत्यु के पश्चात् अपने श्वसुर से भरण-पोषण प्राप्त करने की हकदार होगी :

परन्तु यह तब जब कि और उस विस्तार तक जहां तक कि वह स्वयं अपने अर्जन से या अन्य सम्पत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो या उस दशा में जहां उसके पास अपनी स्वयं की कोई भी सम्पत्ति नहीं है, वह निम्नलिखित में किसी से अपना भरण-पोषण अभिप्राप्त करने में असमर्थ हो-

               (क) अपने पति या अपने पिता या माता की सम्पदा से, या
               (ख) अपने पुत्र या पुत्री से यदि कोई हो, या उसकी सम्पदा से ।

(2) यदि श्वसुर के अपने कब्जे में की ऐसी सहदायिकी सम्पत्ति से, जिसमें से पुत्रवधू को कोई अंश अभिप्राप्त नहीं हुआ है श्वसुर के लिए ऐसा करना साध्य नहीं है, तो उपधारा (1) के अधीन किसी बाध्यता का प्रवर्तन नहीं कराया जा सकेगा और ऐसी बाध्यता का पुत्रवधू के पुनर्विवाह पर अंत हो जाएगा ।

20. अपत्यों और वृद्ध जनकों का भरण-पोषण-(1) इस धारा के उपबन्धों के अध्यधीन रहते हुए यह है कि कोई हिन्दू अपने जीवनकाल के दौरान अपने धर्मज या अधर्मज अपत्यों और वृद्ध या शिथिलांग जनकों का भरण-पोषण करने के लिए आबद्ध है ।

(2) जब तक कि कोई धर्मज या अधर्मज अपत्य अप्राप्तवय रहे वह अपने पिता या माता से भरण-पोषण पाने के लिए दावा कर सकेगा ।

(3) किसी व्यक्ति को अपने वृद्ध या शिथिलांग जनकों का या किसी पुत्री का, जो अविवाहिता हो भरण-पोषण करने की बाध्यता का विस्तार वहां तक होगा जहां तक कि जनक या अविवाहिता पुत्री, यथास्थिति, स्वयं अपने उपार्जनों या अन्य सम्पत्ति से अपना भरण पोषण करने में असमर्थ हो ।

स्पष्टीकरण-इस धारा में जनक" के अन्तर्गत निःसंतान सौतेली माता भी आती है ।


21. आश्रितों की परिभाषा-इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए आश्रितों" से मृतक के निम्नलिखित नातेदार अभिप्रेत हैं-

(i) उसका पिता;

(ii) उसकी माता;

(iii) उसकी विधवा, जब तक कि वह पुनर्विवाह न कर ले;

(iv) उसका पुत्र, या उसके पूर्वमृत पुत्र का पुत्र या उसके पूर्वमृत पुत्र के पूर्वमृत पुत्र का पुत्र जब तक कि वह अप्राप्तवय रहे; परन्तु यह जब तब कि और उस विस्तार तक जहां तक कि वह पौत्र की दशा में अपनी माता या पिता की सम्पदा से और प्रपौत्र की दशा में अपने पिता या माता की या पिता के पिता या पिता की माता की सम्पदा से, भरण-पोषण अभिप्राप्त करने में असमर्थ हो;

(v) उसकी अविवाहिता पुत्री या उसके पूर्वमृत पुत्र की अविवाहिता पुत्री या उसके पूर्वमृत पुत्र के पूर्वमृत पुत्र की अविवाहिता पुत्री जब तक कि वह अविवाहिता रहती है; परन्तु यह तब जब कि और उस विस्तार तक जहां तक कि वह पौत्री की दशा में अपने पिता या माता की सम्पदा से और प्रपौत्री की दशा में अपने पिता या माता की या पिता के पिता या पिता की माता की सम्पदा से, भरण-पोषण अभिप्राप्त करने में असमर्थ हो;

(vi) उसकी विधवा पुत्री; परन्तु यह तब जब कि और उस विस्तार तक जहां तक कि वह निम्नलिखित में से किसी से अपना भरण-पोषण अभिप्राप्त करने में असमर्थ हो-

               (क) अपने पति की सम्पदा से; या
               (ख) अपने पुत्र या पुत्री से, यदि कोई हो, या उस की सम्पदा से; या


(ग) अपने श्वसुर या उसके पिता से, या उन दोनों में से किसी की सम्पदा से;

(vii) उसके पुत्र की या पूर्वमृत पुत्र के पुत्र की कोई विधवा, जब तक कि वह पुनर्विवाह न कर ले; परन्तु यह तब जब कि और उस विस्तार तक जहां तक कि वह अपने पति की सम्पदा से, या अपने पुत्र या पुत्री से, यदि कोई हो, या उसकी सम्पदा से या पौत्र की विधवा की दशा में अपने श्वसुर की सम्पदा से भी भरण-पोषण अभिप्राप्त करने में असमर्थ हो;

(viii) उसका अप्राप्तवय अधर्मज पुत्र, जब तक कि वह अप्राप्तवय रहे;

(ix) उसकी अधर्मज पुत्री, जब कि वह अविवाहिता रहे ।

22. आश्रितों का भरण-पोषण-(1) उपधारा (2) के उपबंधों के अध्यधीन यह है कि मृत हिन्दू के वारिस मृतक से विरासत में प्राप्त सम्पदा से मृतक के आश्रितों का भरण-पोषण करने के लिए आबद्ध हैं ।

(2) जहां कि किसी आश्रित ने इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् मृत हिन्दू की सम्पदा में कोई अंश वसीयती या निर्वसीयती उत्तराधिकार द्वारा अभिप्राप्त नहीं किया है वहां इस अधिनियम के उपबंधों के अध्यधीन यह है कि वह आश्रित उन व्यक्तियों से भरण-पोषण प्राप्त करने का हकदार होगा जो उस सम्पदा को लेते हैं ।

(3) जो व्यक्ति सम्पदा लेते हैं उनमें से हर एक का दायितव अपने द्वारा ली गई सम्पदा के अंश या भाग के मूल्य के अनुपात में होगा ।

(4) उपधारा (2) या उपधारा (3) में किसी बात के अन्तर्विष्ट होते हुए भी, कोई भी व्यक्ति, जो स्वयं एक आश्रित है, अन्यों के भरण-पोषण के लिए अभिदाय करने का दायी न होगा, यदि जो अशं या भाग उसे अभिप्राप्त हुआ हो उसका मूल्य उससे जो उसे भरण-पोषण के रूप में उस अधिनियम के अधीन अधिनिर्णीत हो, कम हो या कम हो जाएगा यदि अभिदाय करने के दायित्व का प्रवर्तन किया जाए ।

23. भरण-पोषण की रकम-(1) इस बात को अवधारित करना न्यायालय के विवेकाधिकार में होगा कि क्या कोई भरण-पोषण इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन दिलवाया जाए और यदि दिलवाया जाए तो, कितना और ऐसा करने में न्यायालय, यथास्थिति, उपधारा (2) या उपधारा (3) में उपवर्णित बातों को, जहां तक कि वे लागू हैं सम्यक् रूप से ध्यान में रखेगा ।


(2) पत्नी, अपत्यों, वृद्ध या शिथिलांग जनकों को यदि कोई भरण-पोषण की रकम इस अधिनियम के अधीन दो जानी हो तो उसका अवधारण करने में निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखा जाएगा :-

               (क) पक्षकारों की स्थिति और प्रास्थिति को;

(ख) दावेदार की युक्तियुक्त आवश्यकताओं को;

(ग) यदि दावेदार पृथक्तः निवास कर रहा है तो इस बात को कि क्या दावेदार का ऐसा करना न्यायोचित है;

(घ) दावेदार की सम्पत्ति के मूल्य को, और ऐसी सम्पत्ति से या दावेदार के निजी उपार्जनों से या किसी अन्य स्त्रोत से व्युत्पन्न किसी आय को;

(ङ) इस अधिनियम के अधीन भरण-पोषण के हकदार व्यक्तियों की संख्या को ।

(3) इस अधिनियम के अधीन किसी आश्रित को यदि कोई भरण-पोषण की रकम दी जानी है, तो उस रकम के अवधारण करने में निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखा जाएगा-

(क) मृतक के ऋणों के संदाय का उपबंध करने के पश्चात् उसकी सम्पदा के शुद्ध मूल्य को;

(ख) मृतक की बिल के अधीन उस आश्रित के बारे में किए गए उपबंध को, यदि कोई हो;


(ग) दोनों के बीच के नातेदारी की डिग्रियों को;

(घ) उस आश्रित की युक्तियुक्त आवश्यकताओं को;

(ङ) उस आश्रित और मृतक के बीच के भूतपूर्व संबंधों को;

(च) उस आश्रित की सम्पत्ति के मूल्य को और ऐसी सम्पत्ति से, या उस आश्रित के निजी उपार्जन से या किसी अन्य स्त्रोत से व्युत्पन्न किसी आय को;

(छ) इस अधिनियम के अधीन भरण-पोषण के हकदार आश्रितों की संख्या को ।

24. भरण-पोषण के दावेदार को हिन्दू होना चाहिए-कोई भी व्यक्ति यदि वह किसी अन्य धर्म में संपरिवर्तित होने के कारण हिन्दू न रह गया हो तो इस अध्याय के अधीन भरण-पोषण का दावा करने का हकदार न होगा ।

25. परिस्थितियों में तब्दली होने पर भरण-पोषण की रकम में परिवर्तन किया जा सकेगा-यदि परिस्थितियों में कोई ऐसी तात्त्विक तब्दली हो जाए जिससे भरण-पोषण की रकम में परिवर्तन करना न्यायोचित हो तो भरण-पोषण की रकम, चाहे वह इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व या पश्चात् न्यायालय की डिक्री द्वारा या करार द्वारा निश्चित की गई हो, तत्पश्चात् परिवर्तित की जा सकेगी ।

26. ऋणों को पूर्विकता दी जाएगी-धारा 27 में अन्तर्विष्ट उपबंधों के अध्यधीन यह है कि मृतक द्वारा हर प्रकार के संविदाकृत या संदेय ऋणों को उसके अपने आश्रितों के इस अधिनियम के अधीन भरण-पोषण के दावों पर पूर्विकता दी जाएगी ।

27. भरण-पोषण कब भार होगा-इस अधिनियम के अधीन किसी आश्रित का भरण-पोषण का दावा, मृतक की सम्पदा या उसके किसी प्रभाग पर तब के सिवाय भार नहीं होगा जब कि मृतक की विल द्वारा, न्यायालय की डिक्री द्वारा, आश्रित और सम्पदा या उसके प्रभाग के स्वामी के बीच करार द्वारा या अन्यथा ऐसा कोई भार सृष्ट न किया गया हो;


28. भरण-पोषण के अधिकार पर सम्पत्ति के अन्तरण का प्रभाव-जहां कि आश्रित को किसी सम्पदा में से भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार है और ऐसी सम्पदा या उसका कोई भाग अन्तरित किया जाता है तो यदि अन्तरिती को उस अधिकार की सूचना है या यदि वह अन्तरण आनुग्रहिक है तो भरण-पोषण प्राप्त करने के अधिकार का प्रवर्तन अन्तरिती के विरुद्ध कराया जा सकेगा किन्तु ऐसे अन्तरिती के विरुद्ध नहीं जो सप्रतिफल अन्तरिती है और जिसे उस अधिकार की सूचना नहीं है ।

अध्याय 4

निरसन और व्यावृत्ति

29. [निरसित ।] निरसन और संशोधन अधिनियम, 1960 (1960 का 58) की धारा 2 और अनुसूची 1 द्वारा निरसित ।

30. व्यावृत्तियां-इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट कोई भी बात इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व किए गए किसी भी दत्तक पर प्रभाव नहीं डालेगी तथा ऐसे किसी भी दत्तक की विधिमान्यता और प्रभाव का अवधारण ऐसे किया जाएगा मानो यह अधिनियम पारित न किया गया हो