हिन्दुओं का उत्पीड़न
गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य के बादहिन्दुओं का उत्पीडन हिन्दुओं के शोषण, जबरन धर्मपरिवर्तन, सामूहिक नरसहांर, गुलाम बनाने तथा उनके धर्मस्थलों, शिक्षणस्थलों के विनाश के सन्दर्भ में है। मुख्यतः भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा मलेशिया आदि देशों में हिन्दुओं को उत्पीडन से गुजरना पड़ा था। आज भी भारतीय उपमहाद्वीप के कुछ हिस्सो में ये स्थिति देखने में आ रही है।
मध्यकाल
[संपादित करें]इसकी शुरुआत मध्यकाल में अरब आक्रांताओ के भारत पर आक्रमण से हुयी जब ७१३ ई: में मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर हमला करके राजा दहिर को मारा और सिन्ध के मन्दिरों को तोड कर उनमें स्थापित मूर्तियों को खण्डित कर दिया।
महमूद ग़ज़नवी
[संपादित करें]महमूद ग़ज़नवी ने ११वीं शताब्दी में भारत के उत्तर पश्चिम पर हमला किया। उसके आक्रमण धर्मस्थलों को तोडने, मूर्तियों को खण्डित करने के लिये प्रसिद्ध थे। इनमें सोमनाथ का प्रसिद्ध मन्दिर और मथुरा, थानेसर,उज्जैन के मन्दिर विशेष हैं। उसके दरबार के इतिहासकार अल-उत्बि के अनुसार वें आक्रमण इस्लाम के प्रसार और गैर-इस्लामिक प्रथाओं के विरुध एक जिहाद का हिस्सा थे।[1][2][3] केवल मथुरा से ही उसने ५००० हिन्दुओं को गुलाम बनाया।[4]
सामरिक इतिहासकार विक्टोरिया स्कोफील्ड के मुताबिक ९८० ई. तक गान्धार इलाके पर हिन्दु शाही राजाओं का राज था जिनके आखिरी राजा जयपाल को सबुक्ताजिन ने परास्त किया।"[5] इतिहासकार इब्न बतूता ने लिखा है कि, हिन्दूकुश पर्वत के नाम के पीछे वहाँ अनेकों हिन्दूओं की मौत है जो भारत से बंधुआ गुलाम के तौर पर अरब देशों को ले जाते हुए, सर्द हवाओं और बर्फ से इन पहाडियों में हुयी थी।
अल बरुनी, जोकि महमूद का समकालीन था उसके अनुसार महमूद ने इस इलाके को इतना प्रभावित किया कि सभी हिन्दू इस इलाके को छोड़ कर चले गये और कश्मीर,वाराणसी व अन्य स्थानो में चले गये जहां हमारे हाथ नहीं पहुँच सकते।[5]
सोमनाथ के मन्दिर को १०२४ महमूद ग़ज़नवी ने लूटा और वहाँ स्थापित शिवलिङ्ग को अपने हाथों से भंग कर दिया। ये सोमनाथ के मन्दिर के अपमान की दूसरी घटना थी, इससे पहले अरब के जुनैद ने मन्दिर को ढहाया था। । [6][7]
मोहम्मद ग़ोरी
[संपादित करें]मोहम्मद ग़ोरी ने 1191/92 ई. में पाटण पर हमला करके बहुत से मंदिरों को तोडा और हिन्दूओं का नरसंहार किया। इसकी मृत्यु गजनी जाते हुए खोखर गुज्जरों के द्वारा वर्तमान पाकिस्तान के झेलम इलाके में हुई
कुतुब-उद-दीन ऐबक
[संपादित करें]मुस्लिम इतिहासकार मौलाना हाकिम सैयद अब्दुल हाजी के विवरण के अनुसार ऐबक के शासन में धर्मान्धता के अन्तर्गत हिन्दू,जैन,बौद्ध पूजास्थलों को तोडा गया। दिल्ली की पहली मस्जिद क़ुव्वत अल इस्लाम के निर्माण में २० हिन्दू, जैन मन्दिरों के अवशेषो का इस्तेमाल किया गया था।[9][10][11] क़ुतुब मीनार के आसपास भी पुरातन मन्दिर के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं।
ख़िलजी वंश
[संपादित करें]खिलजी शासन के दौर में भी धार्मिक अत्याचार का दौर चलता रहा।[12] जलालुद्दीन, फिरोज़ शाह और अलाउद्दीन खिलजी के सेना प्रमुख जैसे उलुघ खान, नुसरत खान, खुसरो खान व मलिक काफूर के भारतीय गैर-मुस्लिम आबादी के नरसंहार, उनको गुलाम बनाने और हिन्दू नारियों को बेइज्जत करने के कई उदाहरण हैं। खिलजी इतिहासकार के अनुसार हिन्दूओं ने सल्तनत के कई हिस्सों जैसे पंजाब, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, में विद्रोह कर दिया। इन विद्रोहों को सामूहिक नरसंहार के द्वारा कुचल दिया गया। सभी ८ साल व उस से ऊपर की उम्र के मर्दों को मार दिया गया। [13]
अल्लाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खान ने विद्रोहियों के औरतों और बच्चों को कैद कर लिया। अन्य जगह उसने सन्दिग्धों की पत्नीयों को सार्वजनिक स्थलों पर सरेआम शोषित किया। बच्चों को उनकी माँओ के सामने काट दिया गया।[13] पुरुषों के अपराध के बदले में उनकी बीवीयों और बच्चों को उठा ले जाने की ये प्रथा यहीं से शुरु हुयी।इस से पहले दिल्ली में कभी भी औरतों और बच्चों को उनके परिवार के पुरुषों की सज़ा नही मिलती थी।
धार्मिक हिंसा का ये प्रक्ररण न केवल सेना के द्वारा रचा गया, अपि तु मुफ्ती, क़ाज़ी और अन्य दरबारियों ने भी धार्मिक आधार पर इसे मान्यता दी। क़ाज़ी मुघीसुद्दीन बयाना ने अल्लाउद्दीन को सलाह दी कि "हिन्दूओं को कुचल कर अपने अधीन रखना धर्मसंगत है क्योंकि वो पैगंबर(मोहम्मद) के सबसे बडे दुश्मन रहे हैं और पैगंबर के आदेशानुसार हमें उन्हें मारना, लूटना और क़ैद करना चाहिये। या वो इस्लाम को स्वीकार करें या मार दिये जायें, गुलाम बना दिये जाये और उनकी संपत्ति को नष्ट कर दिया जाये।"[14]
मलिक काफूर, जो कि खुद एक जबरन धर्मांतरित हिन्दू था, के नेतृत्व में खिलजी की सेना ने दक्षिण भारत में दो (१३०९, १३११ ई:) अभियान किये जिन में हज़ारों हिन्दू मारे गये। हैलेबिडु मन्दिर के अलावा कई मन्दिरों को नष्ट कर दिया गया। वहां से लूटा गया खज़ाना इतना अधिक था कि उसको लाने के लिये १,००० ऊंट लगाये गये,[15] इस लूट में प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा भी था जो कि वहॉं के भद्रकाली मन्दिर की देवी की आँखों में जडा था।
तुग़लक़ राजवंश
[संपादित करें]तुग़लक़ राजवंश, खिलजी साम्राज्य के बाद स्थापित हुआ और इस काल में भी धर्मान्धता का दौर रहा। उलूघ खान ने दक्षिण भारत पर हमला करके श्रीरंगपट्टनम १२००० निहत्थे साधुओं को मार दिया और मन्दिर को ध्वस्त कर दिया। वैष्ण्व दार्शनिक श्री वेदान्त देशिक ने लाशों के बीच छुप कर अपने-आप, श्री सुदर्शन सूरी कृत ग्रंथ व उनके २ पुत्रों को बचाया।[16][17][18][19][20]
फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ के समय में लिखे गये तारीख-ए-फिरोज़ में विवरण है कि किस तरह उसके शासनकाल में हिन्दूओं को सुनियोजियत तरीके से सताया गया।[21] जबरन गुलाम बनाना आम बात थी। फिरोज़ शाह की मौत पर उसके गुलामों को एकसाथ मार कर उनकी लाशों का ढेर लगा दिया।[22] उसके द्वारा पीडित हिन्दू ब्राह्मण भी थे जिन्होंने इस्लाम क़ुबूल करने से मना कर दिया था। तारीख-ए-फिरोज़ शाही में वर्णन है कि -
एक फरमान के तहत एक ब्राह्मण को सुलतान के समक्ष पेश किया गया। उसको सच्चे धर्म(इस्लाम) के बारे में बताया गया, लेकिन उसने उसे स्वीकार नहीं किया। उस काफ़िर के हाथ-पैर बांध कर लकडियों के ढेर पर फ़ेंक दिया गया और दोनों और से आग लगा दी गयी। आग पहले उसके पैरों पर पहुँची जिस से वो चीखा। जल्द ही आग उसके चारों और फ़ैल गयी।- तारीख-ए-फिरोज़ शाही[21][22]
तुगलक़ के शासनकाल में हिन्दूओं से जबरन जज़िया कर वसूला जाता था उनको काफिर के तौर पर दर्ज किया जाता था और उनकी निरन्तर निगरानी की जाती थी। जो हिन्दू मुर्तिस्थापन या मन्दिर निर्माण करते थे या फिर सार्वजनिक तौर पर अपने धर्म का अनुसरण कुण्ड के आसपास करते थे, उनको क़ैद करके महल में मार दिया जाता था।[21][23]
फ़िरोज़ शाह तुगलक़ ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि-
- कुछ हिन्दूओं ने गॉंव कोहाना में एक मूर्तिस्थल स्थापित करके वहॉं मूर्तिपूजा आदि करनी शुरू कर दी। इन लोगों को पकड़ कर मेरे सामने पेश किया गया। मैंने इसे सार्वजनिक तौर पर विकृत प्रथा करार देते हुए उन लोगों को महल के दरवाजे के बाहर मार दिये जाने का निर्देश दिया। इसके अलावा उन सभी गैर-इस्लामिक पुस्तकों, मूर्तियों और पूजासामग्री को जला देने का हुक़्म दिया। बचे हुए लोगों को दण्ड और धमकी के द्वारा काबू कर लिया, ताकि सब को ये पता चल जाये कि, एक मुसलमान राज्य में ऐसी गैर-इस्लामिक प्रथाऍं वर्जित हैं।
- फिरोज़ शाह तुगलक़, फुतुहात-ए-फिरोज़ शाही[23]
तैमूरलंग
[संपादित करें]अपनी जीवनी 'तुजुके तैमुरी' में तैमूरलंग कुरान की इस आयत से ही प्रारंभ करता है 'ऐ पैगम्बर काफिरों और विश्वास न लाने वालों से युद्ध करो और उन पर सखती बर्तों।' वह आगे भारत पर अपने आक्रमण का कारण बताते हुए लिखता है-
हिन्दुस्तान पर आक्रमण करने का मेरा ध्येय काफिर हिन्दुओं के विरुद्ध धार्मिक युद्ध करना, आगे वर्णित है (जिससे) इस्लाम की सेना को भी हिन्दुओं की दौलत और मूल्यवान वस्तुएँ मिल जायें।
आगे वर्णित है कि 'थोड़े ही समय में दुर्ग के तमाम लोग तलवार के घाट उतार दिये गये। घंटे भर में १०,००० (दस हजार) लोगों के सिर काटे गये। इस्लाम की तलवार ने काफिरों के रक्त में स्नान किया। उनके सरोसामान, खजाने और अनाज को भी, जो वर्षों से दुर्ग में इकठ्ठा किया गया था, मेरे सिपाहियों ने लूट लिया। मकानों में आग लगा कर राख कर दिया। इमारतों और दुर्ग को भूमिसात कर दिया गया।
दूसरा नगर सरसुती था, जिस पर आक्रमण हुआ। 'सभी काफिर हिन्दू कत्ल कर दिये गये। उनके स्त्री और बच्चें और संपत्ति हमारी हो गई। तैमूर ने जब जाटों के प्रदेश में प्रवेश किया। उसने अपनी सेना को आदेश दिया कि 'जो भी मिल जाये, कत्ल कर दिया जाये।' और फिर सेना के सामने जो भी ग्राम या नगर आया, उसे लूटा गया। पुरुषों का कत्ल कर दिया गया और कुछ लोगों, स्त्रियों और बच्चों को बंदी बना लिया गया।'
दिल्ली के पास लोनी हिन्दू नगर था। किन्तु कुछ मुसलमान भी बंदियों में थे। तैमूर ने आदेश दिया कि मुसलमानों को छोड़कर शेष सभी हिन्दू बंदी इस्लाम की तलवार के घाट उतार दिये जायें। इस समय तक उसके पास हिन्दू बंदियों की संख्या एक लाख हो गयी थी। जब यमुना पार कर दिल्ली पर आक्रमण की तैयारी हो रही थी उसके साथ के अमीरों ने उससे कहा कि, इन बंदियों को शिबिर में नहीं छोड़ा जा सकता और इन इस्लाम के शत्रुओं को स्वतंत्र कर देना भी युद्ध के नियमों के विरुद्ध होगा। तैमूर लिखता है-
इसलिये उन लोगों को सिवाय तलवार का भोजन बनाने के कोई मार्ग नहीं था। मैंने कैम्प में घोषणा करवा दी कि तमाम बंदी कत्ल कर दिये जायें और इस आदेश के पालन में जो भी लापरवाही करे उसे भी कत्ल कर दिया जाये और उसकी सम्पत्ति सूचना देने वाले को दे दी जाये। जब इस्लाम के गाजियों (काफिरों का कत्ल करने वालों को आदर सूचक नाम) को यह आदेश मिला तो उन्होंने तलवारें सूत लीं और अपने बंदियों को कत्ल कर दिया। उस दिन एक लाख अपवित्र मूर्ति-पूजक काफिर कत्ल कर दिये गये। भारत की महान वीरांगना रामप्यारी गुर्जरी ने चालीस हजार महिला शक्ति के साथ तैमूरलंग को भारत से खदेड़ा।।
सिकन्दर बुतशिकन
[संपादित करें]सिकन्दर शाह मीरी ने कश्मीर में इस्लामिक कट्टरता की ऐसी मिसाल कायम की कि उसका नाम ही 'बुतशिकन' (मूर्तियों को तोडने वाला) पड गया। उसने अनेक हिन्दू, बौद्ध धार्मिक स्थलों को तोडा और उनको इस्लाम स्वीकारने या कश्मीर छोडने पर बाधित किया।[24] उसने गैर-इस्लामिक लोगों के रिवाज़ जैसे पूजा-अर्चना, नृत्य, गायन, संगीत, शराब पीने और धार्मिक उत्सवों पे पाबंदी लगा दी। बहुत से हिन्दूओं ने इस उत्पीडन से बचने के लिये या तो इस्लाम स्वीकार कर लिया या फिर कश्मीर से पलायन कर दिया। बहुत से मारे भी गये।
सैय्यद राजवंश
[संपादित करें]तैमूरलंग के सामूहिक नरसंहार के बाद, दिल्ली सल्तनत में पूरी तरह से अराजकता और अभाव का राज था। इस काल में सैय्यद राजवंश के दौर में भी इस्लाम और हिन्दू धर्म के बीच में तनाव बना रहा।
लोधी वंश
[संपादित करें]लोधी वंश के सिकदंर लोधी व बहलोल खान के शासन में हिन्दुओं को जला के मारने जैसी घटना हुयी, १४९९ ईː में एक बंगाली ब्राह्मण के उदार विचारों से प्रभावित हो कर बहुत से हिन्दू व मुसलमान उसके अनुयायी बन गये, उसका मत था कि हिन्दू व इस्लाम, दोनों धर्म सच्चे हैं केवल ईश्वर तक पहोंचने का इनका मार्ग अलग-अलग है।
सिकदंर ने इस बारे में अपने इस्लामिक विशेषज्ञों से सलाह ली जिन्होंने ऐसी धारणा को गलत बताया और सिकदंर को उस ब्राह्मण को इस्लाम अपनाने या मारे जाने में से एक चुन लेने के लिये कहा। सिकदंर ने जब ऐसा ही किया पर ब्राह्मण ने अपना मत बदलने से इन्कार कर दिया और तब उसे मार दिया गया। [25]
उत्तर प्रदेश के एक समकालीन इतिहासकार ने लिखा है कि - लोधी इतना कट्टर मुसलमान था कि, उसने काफिरों के पूजास्थलों को बड़े पैमाने पर नष्ट किया। मथुरा जो कि मूर्तिपूजा का प्रमुख गढ़ था, वहां के मन्दिरों को पूरी तरह नष्ट कर दिया। वहां स्थापित मूर्तियों को कसाईयो को मांस तौलने के काम में लेने के लिये दे दिया। सभी हिन्दुओं के सिर और दाढ़ी मूण्डने पर पाबन्दी लगा दी। इस तरह पूरा शहर इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार चलने लगा। - तारीख-ए-दाउदी [26]
मुग़ल साम्राज्य
[संपादित करें]बाबर, हुमायुं, सुरी साम्राज्य (1526-1556)
[संपादित करें]बाबर की आत्मकथा 'तुज़ुक-ए-बाबरी के मुताबिक बाबर के युधाभियान में हिन्दू व सिख नागरिकों और गैर-सुन्नी मुसलमानों को निशाना बनाया गया। अनेक नरसंहार हुए और मुस्लिम शिविर 'काफिरों के सिरों की मीनारों' के रूप में जाने जाने लगे।[27] बाबर ने भारत पर आक्रमण को और खासकर राणा सांगा के साथ युद्ध को एक इस्लामिक जिहाद के तौर पर लिखा और वो अपने आप को गाज़ी मानता था। बाबरनामा में कयी हिन्दू नरसंहारों का उल्लेख है।बहुत से राष्ट्रवादीओ का मानना है की रामजन्मभूमि पर स्थापित मन्दिर को तोड कर वहाँ बाबरी मस्जिद भी उसके सिपहसालार मीर बाकी ने बनवायी थी।
औरंगजेब
[संपादित करें]औरंगजेब काे सर्वाधिक असहिष्णु और कट्टर मुस्लिम शासकों में से एक माना जाता है।
दक्षिण एशिया
[संपादित करें]दक्षिण एशिया में मुस्लिम और हिन्दू समुदाय मुस्लिम शासन के अन्त के बाद से नाजुक संतुलन में रहे हैं। हिंसक झड़पें अक्सर सामने आई हैं, और 1947 में भारत के विभाजन ने इन टकरावों को ही कायम रखा है।
माप्पिला दंगे (1836-1921)
[संपादित करें]माप्पिला दंगे या माप्पिला प्रकोप 19वीं शताब्दी में दक्षिण भारत के मालाबार के माप्पिला (मोपला) मुसलमानों द्वारा और 20वीं सदी की शुरुआत में (सी.1836-1921) मूल हिन्दुओं और देश के विरुद्ध दंगों की एक शृंखला को सन्दर्भित करता है।[28] 1921 के मालाबार विद्रोह को अक्सर मप्पिला दंगों की परिणति माना जाता है। माप्पिला ने प्रकोप के दौरान हिन्दुओं के विरुद्ध कई अत्याचार किए।[29][30] एनी बेसेण्ट ने बताया कि मुस्लिम मप्पिलास ने जबरन कई हिन्दुओं का धर्मांतरण किया और उन सभी हिन्दुओं को मार डाला या भगा दिया जो धर्मत्याग नहीं करेंगे, कुल प्रेरित लोगों की संख्या एक लाख (100,000) है।[31]
भारत का विभाजन
[संपादित करें]सिखों और अन्य धार्मिक समूहों के सदस्यों की तरह हिन्दुओं ने भारत के विभाजन से जुड़े बड़े पैमाने पर आबादी के आदान-प्रदान के दौरान गम्भीर अव्यवस्था और हिंसा का अनुभव किया, क्योंकि विभिन्न समुदायों के सदस्य उस क्षेत्र की सापेक्ष सुरक्षा की उम्मीद में चले गए जहाँ उनका धार्मिक बहुमत होगा। हिन्दू उन 2,00,000 से 10,00,000 के बीच थे, जो दंगों और विभाजन से जुड़ी अन्य हिंसा के दौरान मारे गए थे।[32]
मीरपुर नरसंहार और राजौरी नरसंहार
[संपादित करें]त्रुटि: कोई पृष्ठ नहीं दिया गया (सहायता).
जम्मू और कश्मीर की पूर्व रियासत में हिन्दुओं और सिखों का मीरपुर नरसंहार और राजौरी नरसंहार, भारत के विभाजन के कुछ महीनों बाद नवम्बर 1947 में शुरू हुआ था। राजौरी नरसंहार 1948 की शुरुआत में समाप्त हुआ, जब भारतीय सैनिकों ने राजौरी शहर को वापस ले लिया।
1971 बांग्लादेश नरसंहार
[संपादित करें]1971 के बांग्लादेश नरसंहार के दौरान बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान, पाकिस्तान का एक प्रान्त) में नागरिकों की व्यापक हत्याएँ और जातीय सफाई के कार्य हुए, और पाकिस्तानी सेना द्वारा मानवाधिकारों का व्यापक उल्लंघन किया गया, जिसे राजनीतिक और धार्मिक द्वारा समर्थित किया गया था। बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान मिलिशिया। बांग्लादेश में, अत्याचारों की पहचान एक नरसंहार के रूप में की जाती है। टाइम पत्रिका ने रिपोर्ट किया कि "हिन्दुओं, जो शरणार्थियों के तीन-चौथाई और मृतकों के बहुमत के लिए जिम्मेदार हैं, मुस्लिम सेना की नफरत का खामियाजा भुगतना पड़ा है।"[33]
संयुक्त राज्य सरकार के केबलों ने नोट किया कि हिन्दू पाकिस्तानी सेना के विशिष्ट लक्ष्य थे।[34][35] हिन्दू पुरुषों की व्यापक हत्याएँ और महिलाओं के बलात्कार हुए। प्रलेखित घटनाएँ जिनमें बड़ी संख्या में हिन्दुओं का नरसंहार किया गया था, उनमें जतिभंगा हत्याकाण्ड, [उद्धरण वांछित] चुकनगर नरसंहार और शंखरीपारा नरसंहार शामिल हैं।[36] भारत भाग जाने वाले बंगाली शरणार्थियों में 60% से अधिक हिन्दू थे। यह आरोप लगाया गया है कि हिन्दुओं के खिलाफ यह व्यापक हिंसा पूर्वी पाकिस्तान को हिन्दू और भारतीय प्रभावों के रूप में देखे जाने की नीति से प्रेरित थी।
भारत
[संपादित करें]भारत में मुस्लिम उग्रवादियों द्वारा हिन्दू मन्दिरों और हिन्दुओं पर हाल ही में कई और हमले हुए हैं। उनमें से प्रमुख हैं 1998 का चम्बा हत्याकाण्ड, 2002 में रघुनाथ मन्दिर पर फिदायीन हमले, 2002 अक्षरधाम मन्दिर पर हमला, जिसे कथित तौर पर इस्लामिक आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने अंजाम दिया था,[37] और 2006 का वाराणसी बम विस्फोट (माना जाता है कि लश्कर-ए-तैयबा द्वारा अंजाम दिया गया था)। जिसके परिणामस्वरूप कई मौतें हुईं और चोटें आईं।
27 फरवरी 2002 को गोधरा ट्रेन में आग लगने से 59 लोगों की मौत हो गई थी, जिसमें 25 महिलाएँ और 15 बच्चे हिन्दू तीर्थयात्री शामिल थे। 2011 में, न्यायिक अदालत ने 31 लोगों को यह कहते हुए दोषी ठहराया कि यह घटना "पूर्व नियोजित साजिश" थी।[38][39][40]
त्रिपुरा में नेशनल लिबरेशन फ़्रण्ट ऑफ़ त्रिपुरा (एनएलएफटी) ने एक हिन्दू मन्दिर पर हमला किया और वहाँ एक आध्यात्मिक नेता की हत्या कर दी। वे हिन्दुओं को जबरदस्ती ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के लिए जाने जाते हैं।[41][42]
असम में, मुख्य रूप से ईसाई हमार जातीय समूह के सदस्यों ने मन्दिरों में रक्तरंजित क्रॉस लगाए हैं और हिन्दुओं को बन्दूक की नोक पर धर्मान्तरण के लिए मजबूर किया है।[43]
मेघालय में, हाइनीवट्रेप नेशनल लिबरेशन काउंसिल (HNLC) ने बंगाली हिन्दुओं को इचामती और मजई क्षेत्रों को छोड़ने की धमकी दी।[44]
ऑपरेशन ब्लू स्टार के आसपास पंजाब में विद्रोह की अवधि में पुलिस के साथ सिख उग्रवादियों के साथ-साथ हिन्दू-निरंकारी समूहों के साथ संघर्ष हुआ, जिसके परिणामस्वरूप कई हिन्दू मारे गए। 1987 में पंजाब के लालरू के पास सिख उग्रवादियों ने 32 हिन्दुओं को एक बस से खींच लिया और गोली मार दी।[45]
2 मई 2003 को, केरल के कोझीकोड जिले के मराड समुद्र तट पर मुस्लिम भीड़ द्वारा आठ हिन्दुओं की हत्या कर दी गई थी। हमलावरों में से भी एक मारा गया। घटना की जाँच करने वाले न्यायिक आयोग ने निष्कर्ष निकाला कि कई राजनीतिक दलों के सदस्य हत्या की योजना बनाने और उसे अंजाम देने में सीधे तौर पर शामिल थे। आयोग ने पुष्टि की "एक स्पष्ट साम्प्रदायिक साजिश, जिसमें मुस्लिम कट्टरपन्थी और आतंकवादी संगठन शामिल थे"। 2009 में नरसंहार के लिए अदालतों ने 62 मुसलमानों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
कश्मीर
[संपादित करें]राज्य में दो पान्थिक समुदायों के मध्य सदियों से चली आ रही शान्ति के विपरीत, हाल के वर्षों में जम्मू और कश्मीर के मुस्लिम बहुल क्षेत्र में रहने वाली कश्मीरी पण्डित आबादी इस्लामी आतंकवादियों से खतरे में आ गई है। इतिहासकारों ने सुझाव दिया है कि इनमें से कुछ हमले बाबरी मस्जिद के विध्वंस और 2002 के गुजरात दंगों के दौरान हिन्दुत्व आन्दोलन द्वारा प्रचारित मुस्लिम विरोधी हिंसा के प्रतिशोध में हुए हैं।[48] यह खतरा कश्मीर घाटी में अशान्ति की अवधि के दौरान घोषित किया गया है, जैसे कि 1989 में। हिन्दुओं के साथ, मुस्लिम आबादी के बड़े हिस्से पर भी हमला किया गया है, जाहिरा तौर पर भारतीय राज्य के साथ "सहयोग" करने के लिए। कुछ लेखकों को इस बात के प्रमाण मिले हैं कि इन उग्रवादियों को पाकिस्तानी सुरक्षा प्रतिष्ठान का समर्थन प्राप्त था।[49][50]
संयुक्त राज्य अमेरिका
[संपादित करें]संयुक्त राज्य अमेरिका की कुल जनसंख्या में 0.7% हिन्दू हैं।[51] वे सबसे समृद्ध धार्मिक समूह भी हैं।[52][53] अमेरिका में हिन्दुओं को कानूनी और वास्तविक कानूनी समानता दोनों का अधिकार है। हालाँकि, 1987 में न्यू जर्सी में "डॉटबस्टर्स" नामक एक स्ट्रीट गैंग द्वारा भारतीय मूल के लोगों के विरुद्ध धमकियों और हमलों की एक शृंखला की गई थी। यह नाम पारम्परिक रूप से भारतीय महिलाओं द्वारा माथे पर पहनी जाने वाली बिन्दी से उत्पन्न हुआ था।[54]
अक्टूबर 1987 में, युवाओं के एक समूह ने पारसी मूल के एक भारतीय व्यक्ति नवरोज मोदी पर हमला किया, जिसे गलती से हिन्दू समझ लिया गया था, जब वह अपने दोस्त के साथ गोल्ड कोस्ट कैफे छोड़ कर कोमा में पड़ गया था। चार दिन बाद मोदी की मौत हो गई। हमले के चार दोषी लुइस एसेवेडो, राल्फ गोंजालेज और लुइस पाडिला थे - जिन्हें गम्भीर हमले का दोषी ठहराया गया था; और विलियम एसेवेडो - जिन्हें साधारण हमले का दोषी ठहराया गया था। हमला मुट्ठी और पैरों के साथ और एक अज्ञात वस्तु के साथ किया गया था जिसे या तो बेसबॉल बैट या ईंट के रूप में वर्णित किया गया था, और समूह के सदस्यों के बाद हुआ था, जिसके बारे में अनुमान लगाया गया था कि दस और बारह युवाओं के बीच, मिस्टर मोदी को घेर लिया था और ताना मारा था। उनके गंजेपन के लिए उन्हें "कोजक" या "बाल्डी" कहा जाता है। मोदी के पिता, जमशेद मोदी ने बाद में न्यू जर्सी के होबोकेन शहर और पुलिस बल के विरुद्ध आरोप लगाए, यह दावा करते हुए कि "चौदहवें संशोधन के तहत एशियाई भारतीयों के विरुद्ध हिंसा के कृत्यों के प्रति होबोकन पुलिस की उदासीनता ने नवरोज मोदी के समान सुरक्षा अधिकारों का उल्लंघन किया"।[55] मोदी केस हार गए; अदालत ने निर्णय सुनाया कि हमला घृणा अपराध साबित नहीं हुआ है, न ही शहर की पुलिस या अभियोजक द्वारा कोई दुर्भावना साबित हुई है।[55]
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]- गैर-इस्लामी पूजा-स्थलों का मस्जिद में परिवर्तन
- हिन्दू टेम्पल्स : ह्वाट हैपेन्ड टु देम (Hindu Temples: What Happened to Them)
- द हिस्ट्री ऑफ इंडिया, ऐस टोल्ड बाय इट्स ओन हिस्टोरियन्स (The History of India, as Told by Its Own Historians)
- हिन्दू-विरोध
- १९४७ में मुस्लिम लीग द्वारा पंजाब में सिखों एवं हिन्दुओं पर आक्रमण
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Chopra, P. N.; Puri, B. N.; Das, M. N.; Pradhan, A. C. (2003). A Comprehensive History of India, Vol. 2 — Medieval India. New Delhi: Sterling Publishers. p. 13. ISBN 8120725085.
- ↑ Bostom, Andrew G., ed. (2010). The Legacy of Jihad: Islamic Holy War and the Fate of Non-Muslims. Prometheus Books. p. 82. ISBN 9781615920174.
- ↑ Saunders, Kenneth James. A Pageant of India. H. Milford, Oxford University Press pg. 162.
- ↑ Growse, F. S. (2000). Mathura-Brindaban — The Mystical Land Of Lord Krishna. New Delhi: Diamond Pocket Books. p. 51. ISBN 8171824439.
- ↑ अ आ "Columbia University Libraries: Alberuni's India (v. 1)". www.columbia.edu (अंग्रेज़ी में). मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2017-06-20.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 25 मार्च 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 जून 2017.
- ↑ https://archive.org/stream/cu31924073036729/cu31924073036729_djvu.txt Archived 2012-02-12 at the वेबैक मशीन APPENDIX. 469
- ↑ Elliot, Henry Miers (1953). The History of India: as told by its own historians; the Muhammadan period (Excerpt from Jamiu'l-Hikayat). University of Michigan
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 5 जुलाई 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 जून 2017.
- ↑ Maulana Hakim Saiyid Abdul Hai "Hindustan Islami Ahad Mein" (Hindustan under Islamic rule), Eng Trans by Maulana Abdul Hasan Nadwi
- ↑ Index_1200-1299 Archived 2017-11-14 at the वेबैक मशीन,Columbia.edu
- ↑ Holt et al., The Cambridge History of Islam - The Indian sub-continent, south-east Asia, Africa and the Muslim west, ISBN 978-0521291378
- ↑ अ आ Elliot and Dowson, The History of India, as Told by Its Own Historians - The Muhammadan Period Archived 2016-04-10 at the वेबैक मशीन, Vol. 3, Trubner & Co., London, pages 164-165, 104-107
- ↑ Elliot and Dowson, The History of India, as Told by Its Own Historians - The Muhammadan Period Archived 2016-04-10 at the वेबैक मशीन, Vol. 3, Trubner & Co., London, pages 183-185
- ↑ Hermann Kulke and Dietmar Rothermund, A History of India, 3rd Edition, Routledge, 1998, ISBN 0-415-15482-0, pp 160-161
- ↑ Narasimhachary, M. (2004). Śrī Vedānta Deśika (1st ed.). New Delhi: Sahitya Academi. pp. 25–28. ISBN 8126018909
- ↑ L. Renganathan (26 January 2013). "Regal glorification for Lord Ranganatha at Srirangam" Archived 2018-04-05 at the वेबैक मशीन
- ↑ "Koil Ozhugu, authentic documentation of history" Archived 2014-11-29 at the वेबैक मशीन. The Hindu. Retrieved 27 May 2013
- ↑ "Sri Venkateswara University Oriental Journal". 10. 1967: 48–50.
- ↑ Journal of South Asian Literature. Asian Studies Center, Michigan State University. 23–24: 102. 1988
- ↑ अ आ इ Banerjee, Jamini (1967). History of Firuz Shah Tughluq. Munshiram Manoharlal.
- ↑ अ आ Elliot and Dowson, The History of India, as Told by Its Own Historians - The Muhammadan Period Archived 2016-04-10 at the वेबैक मशीन, Vol. 3, Trubner & Co., London, page 365
- ↑ अ आ Elliot and Dowson, The History of India, as Told by Its Own Historians - The Muhammadan Period, p. 381, at Google Books, Vol. 3, Trubner & Co., London, pages 381-382
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 25 मार्च 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 जून 2017.
- ↑ https://archive.org/stream/cambridgehistory035492mbp#page/n279/mode/2up Archived 2016-03-16 at the वेबैक मशीन पेज २४०
- ↑ https://archive.org/stream/cu31924073036745#page/n459/mode/2up Archived 2017-10-18 at the वेबैक मशीन पेज ४४७
- ↑ Tuzak-i Babari: The Autobiography of Babur, Republished in 2006 as: ISBN 978-9693518733, Translators: Elliot and Dowson
- ↑ Miller, R. E.। (1988)। "Mappila". The Encyclopedia of Islam (New) Volume VI: 461। E. J. Brill।
- ↑ Pg 179–183, Kerala district gazetteers: Volume 4 Kerala (India), A. Sreedhara Menon, Superintendent of Govt. Presses
- ↑ Desai, A. R. (1979). Peasant struggles in India. Oxford University Press. पृ॰ 622. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-19-560803-8.
- ↑ Besant, Annie (1 June 2006). The Future of Indian Politics: A Contribution to the Understanding of Present-Day Problems. Kessinger Publishing, LLC. पृ॰ 252. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-4286-2605-8.
They murdered and plundered abundantly, and killed or drove away all Hindus who would not apostatize. Somewhere about a lakh of people were driven from their homes with nothing but the clothes they had on, stripped of everything. Malabar has taught us what Islamic rule still means, and we do not want to see another specimen of the Khilafat Raj in India.
- ↑ White, Matthew. "Secondary Wars and Atrocities of the Twentieth Century". Twentieth Century Atlas - Death Tolls and Casualty Statistics for Wars, Dictatorships and Genocides. अभिगमन तिथि 1 October 2017.
- ↑ "Pakistan: The Ravaging of Golden Bengal" Archived 2007-03-11 at the वेबैक मशीन. Time. 2 August 1971.
- ↑ U.S. Consulate (Dacca) Cable, Sitrep: Army Terror Campaign Continues in Dacca; Evidence Military Faces Some Difficulties Elsewhere, 31 March 1971, Confidential, 3 pp
- ↑ "Telegram 978 From the Consulate General in Dacca to the Department of State, March 29, 1971, 1130Z" (PDF). अभिगमन तिथि 20 January 2019.
- ↑ Bose, Sarmila (2011). Dead Reckoning: Memories of the 1971 Bangladesh War. London: Hurst and Co. पपृ॰ 73, 122. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-84904-049-5.
- ↑ "Bajrang Dal launches campaign". The Tribune. 21 October 2002.
- ↑ Mahurkar, Uday (22 July 2002). "Fuelling the Fire". India Today. अभिगमन तिथि 13 April 2014.
- ↑ Dasgupta, Manas (6 March 2011). "It was not a random attack on S-6 but kar sevaks were targeted, says judge". The Hindu. अभिगमन तिथि 22 May 2013.
- ↑ "Godhra verdict: 31 convicted, 63 acquitted". NDTV. 1 March 2011.
- ↑ "Hindu preacher killed by Tripura rebels". BBC News. 28 August 2000.
- ↑ "National Liberation Front of Tripura, India". South Asia Terrorism Portal. मूल से 1 April 2015 को पुरालेखित.
- ↑ "Christianity threat looms over Bhuvan Pahar". Assam Times. 23 June 2009. मूल से 26 June 2009 को पुरालेखित.
- ↑ "Meghalaya: HNLC issues 'leave Ichamati, Majai' notice to Hindu-Bengalis". अभिगमन तिथि 5 March 2020.
- ↑ "Gunment Slaughter 38 on Bus in India in Bloodiest Attack of Sikh Campaign". The Philadelphia Inquirer. 7 July 1987. पृ॰ A03.
- ↑ Hindu temples were felled to the ground and for one year a large establishment was maintained for the demolition of the grand Martand temple. But when the massive masonry resisted all efforts, it was set on fire and the noble buildings cruelly defaced.-Firishta, Muhammad Qãsim Hindû Shãh; John Briggs (translator) (1829–1981 Reprint). Tãrîkh-i-Firishta (History of the Rise of the Mahomedan Power in India). New Delhi
- ↑ Keay 2000, पृष्ठ 288: "The normally cordial pattern of Hindu–Muslim relations was interrupted in the early fifteenth century. The great Sun temple of Martand was destroyed and heavy penalties imposed on the mainly Brahman Hindus".
- ↑ Guha, Ramachandra (2007). India After Gandhi. MacMillan. पपृ॰ 640–680.
- ↑ Gill, Kanwar Pal Singh. "The Kashmiri Pandits: An Ethnic Cleansing the World Forgot". South Asian Terrorism Portal. अभिगमन तिथि 26 August 2006.
- ↑ "Under renewed threats, pandits may flee the Valley". Hindustan Times. 17 November 2009. मूल से 12 October 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 August 2012.
- ↑ Lakshman, Narayan (14 May 2015). "Hindus' population share in U.S. doubles in 7 years". The Hindu.
- ↑ "America's Changing Religious Landscape". Pew Research Center. 12 May 2015.
- ↑ Hilburn, Matthew (30 July 2012). "Hindu-Americans Rank Top in Education, Income". VOA.
- ↑ Marriott, Michel (12 October 1987). "In Jersey City, Indians Protest Violence". The New York Times. पृ॰ 1.
- ↑ अ आ Verdict Archived 10 मार्च 2012 at the वेबैक मशीन of the Third Circuit Court of Appeals in Mody v. City of Hoboken (959 F.2d 461)