हिन्दी ग्रन्थ अकादमी
भारत सरकार के निर्णयानुसार देश के समस्त विश्वविद्यालयों के छात्रों को अपनी प्रादेशिक भाषाओं में पाठ्यपुस्तकें और संदर्भ ग्रन्थ सुलभ कराने के उद्देश्य से देश के अठारह राज्यों में हिन्दी ग्रन्थ अकादमियों और बुक प्रोड्क्शन बोर्ड्स की स्थापना सन् 1969-1970 में की गयी ।
भारतीय संविधान के अनुछेद 351 के अन्तर्गत यह प्रावधान किया गया कि भारत में विश्वविद्यालय स्तर पर शिक्षा एवं परीक्षा का माध्यम (Medium of Instruction ) हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाएँ होनी चाहिए । इस संदर्भ में भारत सरकार द्वारा गठित शिक्षा आयोग (1964-65), राज्य शिक्षामंत्री सम्मेलन (अप्रैल, 1967), में शिक्षा पर संसद सदस्यों की समिति (जुलाई, 1967), भारत के कुलपतियों का सम्मेलन (सितम्बर, 1967) तथा देश के प्रमुख शिक्षाविदों की सम्मति के अनुसार शिक्षा-संबंधी राष्ट्रीय शिक्षा-नीति संकल्प के रूप में यह स्वीकार किया गया कि भारतीय भाषाओं एवं हिन्दी को विश्वविद्यालय स्तर पर शिक्षा के माध्यम के रूप में विकसित किया गया कि भारतीय भाषाओं एवं हिन्दी को विश्वविद्यालय स्तर पर शिक्षा के माध्यम के रूप में विकसित किया जाय, ताकि अंग्रेजी पुस्तकों पर हमारी निर्भरता कम हो सके और विश्वविद्यालय के छात्र अपनी राष्ट्रीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा ग्रहण कर सकें ।
बिहार ग्रन्थ अकादमी
[संपादित करें]भारत सरकार के उपर्युक्त निर्णय के आलोक में अन्य राज्यों की भॉंति बिहार में भी बिहार सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा अपने संकल्प संº 453 दिनांक 13 फरवरी, 1970 को बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी की एक स्वायत्तशासी संस्था के रूप में स्थापना की गई । इसके पदेन अध्यक्ष राज्य के मानव संसाधन विकास मंत्री होते हैं । यह संस्था बिहार सरकार के मानव संसाधन विकास उच्च शिक्षा विभाग के सामान्य प्रशासनिक देखरेख में कार्य करती है।