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हास्यचित्र

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हास्यचित्र‌ (कार्टून) एक दृश्य कला का रूप है जिसमें चित्रों, रेखाचित्रों या एनीमेशन के माध्यम से विचार, हास्य, व्यंग्य या मनोरंजन प्रस्तुत किया जाता है। यह शब्द मूल रूप से इतालवी शब्द “cartone” से निकला है, जिसका अर्थ होता है मोटे कागज पर बना रेखाचित्र। प्रारंभिक काल में इसका उपयोग चित्रकला और भित्तिचित्रों के प्रारूप के रूप में किया जाता था, किंतु समय के साथ यह व्यंग्य और हास्य का लोकप्रिय माध्यम बन गया। आज के समय में हास्यचित्र‌ न केवल बच्चों के मनोरंजन का साधन है, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक टिप्पणी का भी एक सशक्त माध्यम है।

जो व्यक्ति कार्टून अर्थात हास्यचित्र‌ बनाता है उसे कार्टूनिस्ट कहा जाता है, और जो व्यक्ति हास्यचित्र‌ को गति देकर चलायमान रूप में प्रस्तुत करता है, अर्थात् एनीमेशन तैयार करता है, उसे एनिमेटर कहा जाता है।[1] शब्दों में, कार्टूनिस्ट स्थिर चित्रों के माध्यम से विचार और हास्य व्यक्त करता है, जबकि एनिमेटर उन्हीं चित्रों को जीवंत बनाकर उन्हें चलती हुई छवियों के रूप में प्रस्तुत करता है।

प्रारंभिक काल में “हास्यचित्र‌” अर्थात (कार्टून) शब्द का उपयोग चित्रकारों और मूर्तिकारों द्वारा बड़ी कलाकृतियों के प्रारूप या रेखांकन के लिए किया जाता था। १९वीं सदी में यह शब्द समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशित राजनीतिक व्यंग्य चित्रों के लिए लोकप्रिय हो गया। ब्रिटेन के पंच नामक पत्रिका ने १८४) के दशक में “हास्यचित्र‌” शब्द को व्यंग्य चित्रों के संदर्भ में उपयोग करना प्रारंभ किया, जिसके बाद यह विश्वभर में प्रसिद्ध हो गया।

राजनीतिक हास्यचित्र‌ ने समाज में जनमत निर्माण में अहम भूमिका निभाई। कलाकारों ने नेताओं, नीतियों और सामाजिक घटनाओं पर व्यंग्य के माध्यम से टिप्पणी की। भारत में भी हास्यचित्र‌ परंपरा काफी पुरानी है — आर. के. लक्ष्मण, शंकर पिल्लई, अबू अब्राहम जैसे कार्टूनिस्टों ने सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को जनसामान्य तक पहुँचाने में अहम योगदान दिया।

ललित कला

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ललित कला में “हास्यचित्र” (इतालवी शब्द cartone और डच शब्द karton से) का अर्थ होता है मोटे या मजबूत कागज पर बनाया गया एक पूर्ण आकार का रेखाचित्र, जो किसी पेंटिंग, सना हुआ काँच या टेपेस्ट्री के लिए प्रारूप या डिज़ाइन के रूप में उपयोग किया जाता है। प्राचीन समय में कलाकार इसे भित्तिचित्र बनाने में प्रयोग करते थे ताकि विभिन्न भागों को गीले प्लास्टर पर सटीकता से जोड़ा जा सके। ऐसे हास्यचित्रों में प्रायः डिज़ाइन की रूपरेखा के साथ छोटे-छोटे छेद बनाए जाते थे, जिन पर राख या कालिख की थैली से हल्के थपके देकर दीवार पर बिंदुओं के रूप में निशान छोड़े जाते थे, जिसे “पाउंसिंग” कहा जाता था। प्रसिद्ध चित्रकार जैसे राफेल, फ्रांसिस्को गोया, और लियोनार्डो दा विंची के कार्टून स्वयं में अत्यंत मूल्यवान कलाकृतियाँ मानी जाती हैं। टेपेस्ट्री कला में ये रंगीन हास्यचित्र करघे के पीछे लगाए जाते थे ताकि बुनकर उस डिज़ाइन की प्रतिलिपि तैयार कर सके।[2][3]

जनसंचार माध्यम

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अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी में हास्यचित्र समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में लोकप्रिय हुआ। यह समाज, राजनीति, संस्कृति और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर टिप्पणी करने का एक सशक्त माध्यम बन गया। "दी पंच" पत्रिका (१८४१) ब्रिटेन में राजनीतिक व्यंग्य हास्यचित्र के लिए प्रसिद्ध हुई। समय के साथ हास्यचित्र जनसंचार माध्यमों में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करने लगा, जिससे आम जनता तक जटिल सामाजिक संदेश भी सहज रूप से पहुँचने लगे।

राजनीतिक हास्यचित्र

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राजनीतिक हास्यचित्र समाज में व्यंग्य के माध्यम से शासन, नीति और राजनेताओं की आलोचना या प्रशंसा का कार्य करता है। यह लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम माना जाता है। भारत में आर.के. लक्ष्मण जैसे प्रसिद्ध कार्टूनिस्टों ने "दी कॉमन म्यान' चरित्र के माध्यम से समाज की सच्चाइयों को उजागर किया। राजनीतिक हास्यचित्र आज भी समाचार पत्रों और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्मों पर व्यापक रूप से देखे जाते हैं।

विलियम होगार्थ के चित्रात्मक व्यंग्य को १८वीं शताब्दी के इंग्लैंड में राजनीतिक हास्यचित्र के विकास का प्रारंभिक रूप (पूर्वगामी) माना जाता है।[4] जॉर्ज टाउन्सेंड ने १७५० के दशक में कुछ शुरुआती स्पष्ट रूप से राजनीतिक हास्यचित्र और कैरिकेचर (व्यंग्यचित्र) बनाए थे।[4][5]

एनिमेशन और हास्यचित्र‌ का विकास

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२०वीं सदी की शुरुआत में हास्यचित्र‌ स्थिर चित्रों से आगे बढ़कर गतिमान चित्रों में परिवर्तित हुआ, जिसे “एनिमेटेड कार्टून” कहा गया। वॉल्ट डिज़्नी ने इस क्षेत्र में क्रांति ला दी। मिकी माउस, डोनाल्ड डक, गूफी और टॉम एंड जेरी जैसे पात्रों ने विश्वभर के बच्चों को आकर्षित किया। धीरे-धीरे हास्यचित्र‌ फिल्मों और टेलीविज़न कार्यक्रमों का निर्माण बढ़ता गया और यह मनोरंजन उद्योग का प्रमुख हिस्सा बन गया।

एनिमेशन की तकनीकें भी समय के साथ विकसित हुईं। प्रारंभ में “हैंड-ड्रॉन एनिमेशन” (हाथ से बने चित्र) प्रचलित थे, जिनमें प्रत्येक फ्रेम को अलग-अलग बनाया जाता था। बाद में “सैल एनिमेशन” और “स्टॉप मोशन” तकनीकें आईं। १९९० के दशक के बाद कंप्यूटर जनित चित्रण (CGI) ने इस क्षेत्र में नई दिशा दी और पिक्सर, ड्रीमवर्क्स जैसी कंपनियों ने डिजिटल एनिमेशन का युग प्रारंभ किया।

हास्यचित्र‌ की विशेषताएँ

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हास्यचित्र‌ का प्रमुख उद्देश्य मनोरंजन, हास्य और संदेश देना होता है। इसमें पात्रों के चेहरों, शारीरिक संरचनाओं और परिस्थितियों को अतिरंजित रूप में दिखाया जाता है। बड़ी आँखें, भावपूर्ण चेहरे और हास्यास्पद स्थितियाँ इसकी मुख्य पहचान हैं। कुछ हास्यचित्र‌ केवल हास्य प्रदान करते हैं, जबकि कुछ सामाजिक, राजनीतिक या नैतिक संदेश भी देते हैं।

हास्यचित्र‌ की सफलता उसकी सरलता और सजीवता में निहित होती है — यह बिना अधिक शब्दों के गहरी बात कह देता है। एक अच्छा हास्यचित्र‌ दर्शक को हँसाते हुए सोचने पर मजबूर करता है।

  1. "Webster's Dictionary", Wikipedia (अंग्रेज़ी भाषा में), 2025-10-01, अभिगमन तिथि: 2025-10-05
  2. Adelson 1994, p. 330.
  3. Becker 1959
  4. 1 2 Press 1981, p. 34.
  5. Chris Upton. "Birth of England's pocket cartoon". The Free Library.