हरि विष्‍णु कामथ

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Source: [http://loksabhaph.nic.in/writereaddata/biodata_1_12/776.htmhttps://forwardbloc.org/1940/06/22/general-secretary-hari-vishnu-kamat-1940/]
श्री हरिविष्‍णु कामथ

कार्यकाल
1977–1980
पूर्वा धिकारी चौधरी नीतिराज सिंह
उत्तरा धिकारी रामेश्‍वर नीखरा
कार्यकाल
1962–1967
उत्तरा धिकारी चौधरी नितीराज सिंह
कार्यकाल
1952–1957
चुनाव-क्षेत्र [होशंगाबाद (लोक सभा)|होशंगाबाद]], मध्‍य प्रदेश

जन्म 13 जुलाई 1907
मंगलौर, मद्रासप्रांत, ब्रिटिश भारत (अब कर्नाटक्‍, भारत)
मृत्यु 1982
राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी
अन्य राजनीतिक
संबद्धताऐं
प्रजा सोशलिस्‍ट पार्टी
समिति संंविधान निर्मात्री सभा के सदस्‍य
धर्म हिन्‍दू

श्री हरि विष्णु कामथ (स्वतंत्रता सेनानी और लोक सभा सांसद)[संपादित करें]

विचारों और आदर्शो के प्रति मतभेद रखने वाले लोग भी श्री हरि विष्णु कामथ के जीवन के तेजस्विता त्याग और तपस्या के प्रति आभारी होते रहे हैं। श्री कामथ में अनेक गुण थे, जबकि आज हमारे राष्ट्रीय जीवन से नैतिकता लोप हो रही है। आदशों की व्यक्तिगत साधना आज के जन नेताओं के हाथ में उपहास का विषय बन गई है। श्री कामथ का जन्म 13 जुलाई 1907 में मंगलूर, कर्नाटक प्रांत में हुआ था। 1930 में यह आई.सी.एस. परीक्षा पास कर एक अफसर के रूप में स्थापित हुए थे। उस समय गुलामी का जमाना था इस प्रकार की परीक्षा उच्च कोटि के लोग पाना चाहते थे। ताकि वह अंग्रेजों की गुलामी कर भारत वासियों पर अपना प्रभाव दिखा सके। श्री कामथ अपनी योग्यता के बल पर प्रतियोगिता के आधार पर इस पद के लिये चुने गये थे। लंदन में शिक्षा पाकर जब वह भारत लौटे तब उनके मन में गुलाम होने के कारण बड़ी ग्लानि थी। वह अपनी मात्र भूमि से प्रेम करते थे और यह चाहते थे कि भारत आजाद हो। नरसिंहपुर जिले के डिप्टी कमिश्नर के रूप में कार्यरत रहते हुए जब यह नेताजी सुभाष चंद्र बोस से त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन के बाद नरसिंहपुर स्टेशन पर मिले तब अंग्रेजी हुकूल ने उनके इस कार्य को बगावत माना और उन्होंने उसी समय आई.सी.एस. के पद से त्याग पत्र दे दिया। उन्हें अंग्रेजी सरकार ने भारत सुरक्षा कानून के अंतर्गत जेल में बंद कर दिया। उन्हीं दिनों नेताजी सुभाषचंद्र बोस अज्ञातवास में रहते हुए देश से बाहर चले गये थे और उन्होंने आजाद हिन्द फौज का गठन कर देश की लड़ाई लड़ी थी। कामथ जी नेताजी से बड़े प्रभावित थे और उन्हें आदर्श नेताजी के दल फारवर्ड ब्लाक Archived 2022-10-08 at the वेबैक मशीन में चले गये, उन्होंने नेताजी के नेतृत्व में देश में जन जागरण अभियान जारी रखा। यह 1941 में युद्ध विरोधी भाषण देने के लिए गिरफ्तार हुए थे। बाद में भारत छोड़ो आंदोलन के सिलसिले में 1942 में गिरफ्तार कर जबलपुर जेल में भेजे गये। 1945 में वह जेल से रिहा हुए उस समय देश में आजाद हिन्द फौज की काफी चर्चा थी और वह आजाद हिन्द फौज के इस गाने को

कदम कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा,

यह जिन्दगी है कौम की, तू कौम पर लुटाये जा |

तू शेर ए दिल आगे बढ़, मौत से जरा न डर,

जो सामने तेरे अड़े, तू ठोकरें लगाये जा

इस गीत का भावार्थ उन्होंने अपने संपूर्ण जीवन में राष्ट्र के लिये समर्पित कर एक सेनानी का जीवन विताया था। वे राष्ट्र के लिये जिये थे और राष्ट्र के लिए ही मर गये। उनकी दृष्टि में मातृभूमि धूल मिट्टी नहीं वरन पूरे देश की आत्मा का प्रतीक थी। उनका दृष्टिकोण व्यापक, उदार एवं राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत रहा है। वे प्रत्येक बात में राष्ट्रीय द्रष्टिकोण से विचारते थे। उनका अध्यात्‍म में भारी विश्वास था। सभी धर्म के प्रति उनके मन में आदर भाव था। संकीर्णता उनमें लेश मात्र भी नहीं थी। सभी धर्मों के प्रति वह आदर भाव रखते थे।

वह बहुत स्पष्टवादी वक्ता थे। वे निर्भीक कटु सत्य कहने के आदी थे। वह अपने प्रतिद्वंदी के प्रति भी आदर भाव रखते थे। छोटे से छोटे कार्यकर्ता का ख्याल रखना उनकी आदत थी। उनकी वेश-भूषा सादी तथा उनके विचार उच्च कोटि के थे। देश के शिक्षित जगत में उनका भारी सम्मान था। वह देश विदेश की पत्रिकाओं में अपने विचार भी लिखते रहे हैं संसद में उनके भाषण ध्यान और आदर से सुने जाते थे।

लोकसभा में उनके द्वारा उठाये गये प्रश्न बड़े चुटीले और जनहित में होते थे, जैसे जीप स्केन्डल, सांसद मुद्रा कांड, भूतपूर्व रक्षा मंत्री कृष्णन मेनन का फौजी घोटाला आदि। कानूनी मुद्दे और संसदीय प्रणाली में उनकी अच्छी खासी पकड़ थी और इसी कारण वे संसद में रहते थे तब सत्ता पक्ष उनसे बड़ा भयभीत रहता था। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से उनकी संसद की नोक-झोक की आज भी चर्चा का विषय है। वह सफल आयोजक थे, भारत की प्रतिरक्षा एवं उत्तर पूर्व व पश्चिम के सीमा क्षेत्रों के लिए वह हमेशा चिन्तित रहते थे और इस संदर्भ व उन्होंने अनेक बार प्रश्न भी उठाये थे।

उनके देश-विदेश में अनेक मित्र थे जो उनकी संघर्ष और साधना के बीच उन्हें सहायता देते थे। वह सत्ता के पीछे कभी नहीं भागे तथा सदेव विपक्ष में रहे। पं. जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें अनेक बार कांग्रेस में शामिल करने का प्रयास किया था, किंतु उनका कहना था कि वह ऐसे दल में जहां बहुमत में लोग भ्रष्टाचार में डूबे हों, वहां मेरा सांस लेना मुश्किल है। इस कारण वह सदैव विपक्ष में रहे। हालांकि पं. जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें योग्यता के आधार पर संविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया था और उन्होंने डॉ. अम्बेडकर के साथ सहयोग कर संविधान को प्रजातंत्रीय बनाने में काफी योगदान दिया था। राष्ट्रपति के अधिकार के संबंध में संविधान की धारा 356 का विवाद आज भी चल पड़ा है। श्री चंद्रशेखर ने तमिलनाडु सरकार को भंग किया था। कांग्रेस सरकार ने मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश सरकारों को भंग कर एक विशिष्ट स्थिति का निर्माण किया, जो आज भी ओलाचना के विषय हैं। वह होशंगाबाद जिले से 3 बार प्रजा समाजवादी पार्टी से सांसद निर्वाचित हुए और बाद में जनता पार्टी की ओर से सन् 1977 में दो लाख से अधिक वोटों से जीतकर वह संसद में गये थे। होशंगाबाद में सुरक्षा कागज कारखाना, तवाबांध और इटारसी में पुल उनके प्रयासों का नतीजा है। अपने संसदीय क्षेत्र की समस्याओं के लिए सदैव प्रयत्नशील व सचेत रहेते थे। पचमढ़ी सुरक्षा संगठन एक छोटा सा संगठन था, फिर उन्होंने इसके संबंध में लोकसभा में अनेक प्रश्न उठाये थे जिसमें आर्मी हेड क्वाटर में खलबली मच गई थी।

वह जीवन भर अविवाहित रहे, उनका कोई घर बार नहीं था। उन्होंने अपनी सारी संपत्ति जो शायद पांच लाख रुपयों की थी, कर्नाटक विश्वविद्यालय के लिय वसीयत कर दी थी। वह विशिष्ट प्रकार के कपड़े पहनते थे उनकी दाढ़ी बड़ी होने के कारण लोग उन्हें पंडित या मुल्ला समझ लेते थे। 9 अक्टूबर 1982 को वह नागपुर रेलवे स्टेशन से बेंगलूर जा रहे थे कि हृदय गति रुकने से उनकी मृत्यु हो गई। इटारसी एवं आसपास के क्षेत्रों के लोग उनकी शव यात्रा में शामिल होने के लिये जाने ही वाले थे कि रेडियो पर यह समाचार प्रसारित हुआ कि नागपुर के पत्रकारों और बुद्धिजीवियों ने उनके पार्थिव शरीर को अग्नि में समर्पित कर दिया।

वह भारत में लोकतंत्र के मूल्यों के महान प्रेरणी थे, उनके निधन से एक योग्य सांसद हमने खोया है, जिसकी क्षतिपूर्ति संभव नहीं है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी, भूलाभाई देसाई एवं अन्य इसी कोटि के राष्ट्र के नेता थे। हम उनके आदर्शों का अनुसरण करें तो एक भारी परिवर्तन समाज में आ सकता है।

  1. Lok sabha Debate (PDF) (Third Session Lok sabha संस्करण). New Delhi. 1962. पृ॰ 8-48. पाठ "10" की उपेक्षा की गयी (मदद); पाठ "28" की उपेक्षा की गयी (मदद)
  2. "6th Lok Sabha Members Bioprofile". https://loksabhaph.nic.in/. |website= में बाहरी कड़ी (मदद)
  3. "General Secretary : Hari Vishnu Kamat (1940)". All India Forward Bloc. मूल से 8 अक्टूबर 2022 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 अक्टूबर 2022.