सौर ज्वाला

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He II 304 Å में देखी गई एक प्रस्फुटित होती हुई सौर ज्वाला  , आकार की तुलना के लिए बृहस्पति और पृथ्वी की छवियों साथ में दिखाई गई हैं।

सौर ज्वाला, सूर्य की सतह से बाहर की ओर फैली एक बड़ी, चमकीली, गैसीय आकृति है, जो अक्सर एक पाश या लूप आकार में होती है। सौर पटल के साथ जोड़कर देखते हुए इसे सौर तंतु भी कहा जाता है। सौर जवालाएँ प्रकाशमंडल में सूर्य की सतह से जुड़ी हुई होती हैं , और सौर कोरोना में बाहर की ओर फैली हुई होती हैं। एक और कोरोना में अत्यधिक गर्म प्लाज्मा नाम की आयनित गैसें होती हैं , जो दृश्य-प्रकाश का अधिक उत्सर्जन नहीं करती हैं , वहीँ सौर ज्वाला का प्लाज्मा कम गर्म और संरचना में वर्णमंडल के समान होता है। सौर ज्वाला का प्लाज्मा आमतौर पर कोरोना के प्लाज्मा की तुलना में सौ गुना अधिक चमकदार और घना होता है।

सभी सौर ज्वालाएँ विपरीत प्रकाशमंडलीय चुंबकीय ध्रुवता के क्षेत्रों की सीमाओं के ऊपर तंतु बना लेती हैं जिन्हें ध्रुवता प्रतिलोमन रेखाएँ (polarity inversion lines -PIL), ध्रुवता उत्क्रमण सीमाएँ (polarity reversal boundaries -PRB) या तटस्थ रेखाएँ कहा जाता है। वे लगभग एक दिन के समय में बनते हैं और कई हफ्तों या महीनों तक कोरोना में बने रह सकते हैं, अंतरिक्ष में सैकड़ों-हजार किलोमीटर की दूरी तक जा सकते हैं। कुछ सौर ज्वालाएँ टूटकर अलग हो जाती हैं और फिर कोरोनिक द्रव्य उद्गार को जन्म दे सकती हैं। वैज्ञानिक वर्तमान में शोध कर रहे हैं कि सौर ज्वाला कैसे और क्यों बनती है।

एक सामान्य सौर ज्वाला कई हज़ार किलोमीटर तक फैली हुई होती है; सबसे बड़ी दर्ज सौर ज्वाला का 800,000 किमी (500,000 मील) लम्बी होने अनुमान लगाया था , [1] ये दूरी मोटे तौर पर सौर त्रिज्या के बराबर है ।

ऐतिहासिक[संपादित करें]

सूर्य ग्रहण के दौरान सूर्य के किनारे के आसपास दिखाई देने वाली सौर ज्वाला (लाल रंग में)।

सौर ज्वालाओं पहला विस्तृत वर्णन १४ वीं शताब्दी के लॉरेंटियन कोडेक्स(Laurentian Codex) में मिलता है , जिसमें १ मई ११८५ के सूर्य ग्रहण का वर्णन है। इसको "जलते कोयले की ज्वाला सी जीभ" कहा गया था।

सौर ज्वालाओं की तस्वीर पहली बार 18 जुलाई, 1860 के सूर्य ग्रहण के दौरान एंजेलो सेकची द्वारा ली गई थीं। इन तस्वीरों से ऊंचाई, उत्सर्जन और कई अन्य महत्वपूर्ण प्राचल पहली बार प्राप्त हो पाए थे। [2]

18 अगस्त, 1868 के सूर्य ग्रहण के दौरान, स्पेक्ट्रोस्कोप पहली बार सौर ज्वालाओं में उत्सर्जन रेखाओं की उपस्थिति का पता लगाने में सक्षम थे। हाइड्रोजन रेखा की खोज ने पुष्टि की कि सौर ज्वाला प्रकृति में गैसीय थी। पियरे जेनसेन ने ऐसी उत्सर्जन रेखा का पता जिसका सम्बन्ध उस समय के अज्ञात तत्व से था इसे अब हीलियम के नाम से जाना जाता है। अगले दिन, जेनसेन ने अब खुले सूर्य से (ग्रहण के बिना ही) उत्सर्जन लाइनों को रिकॉर्ड करके अपने माप की पुष्टि की, एक ऐसा कार्य जो पहले कभी नहीं किया गया था। उनकी नई तकनीकों का उपयोग करके, खगोलविद प्रतिदिन सौर ज्वालाओं का अध्ययन करने में सक्षम हुए । [3]

वर्गीकरण[संपादित करें]

सौर पटल की एच-अल्फ़ा छवि ऊपरी बाईं ओर (मोटे, गहरे रंग के झुरमुट) और दाईं ओर सक्रिय क्षेत्र सौर ज्वाला (पतली, गहरी रेखाएं) पर मौन सौर ज्वालाएँ दिखाती है।

आजकल सौर ज्वालाओं के वर्गीकरण के कई अलग-अलग पद्धतियाँ प्रचलित हैं। सबसे व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली और बुनियादी पद्धति में से एक सौर ज्वालाओं को उस चुंबकीय वातावरण के आधार पर तीन वर्गों में विभाजित करती है जिसमें उसका जन्म हुआ। इन तीन वर्गों को सक्रिय क्षेत्र सौर ज्वाला, मौन सौर ज्वाला और मध्यवर्ती सौर ज्वाला के रूप में जाना जाता है। [4] सक्रिय क्षेत्र की सौर ज्वाला को उन ज्वालाओं के रूप में परिभाषित किया जाता है जो सक्रिय क्षेत्रों के केंद्रों पर अपेक्षाकृत प्रबल चुंबकीय क्षेत्र में बनते हैं, जबकि, इसके विपरीत, मौन सौर ज्वाला को किसी भी सक्रिय क्षेत्र से दूर कमजोर पृष्ठभूमि क्षेत्र में गठित होने वाली सौर ज्वाला के रूप में परिभाषित किया जाता है। इन दोनों के बीच में मध्यवर्ती सौर जवालाएँ हैं।


विस्फोट[संपादित करें]

एक सौर ज्वाला का प्रस्फुटन.

कुछ सौर ज्वालाएँ इतनी शक्तिशाली होती हैं कि वे सूर्य से पदार्थ को ६०० किमी/सेकंड से १००० किमी/सेकंड तक की गति से अंतरिक्ष में फेंक देती हैं. [5]

यह भी देखें[संपादित करें]

 

आगे की पढाई[संपादित करें]

  • (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  • (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  • Golub, L.; Pasachoff J.M. (1997). The Solar Corona. Cambridge University Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-521-48535-5.
  • Tandberg-Hanssen, Einar (1995). The Nature of Solar Prominences. Dordrecht: Kluwer Acad. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0792333746.


सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Atkinson, Nancy (6 August 2012). "Huge Solar Filament Stretches Across the Sun". Universe Today. अभिगमन तिथि 11 August 2012.
  2. Secchi, Angelo (1870). Le Soleil, Part 1. Paris. पृ॰ 378.
  3. Vial, Jean-Claude (2015). Solar Prominences. Cham: Springer. पपृ॰ 1–29. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-3-319-10415-7.
  4. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  5. "About Filaments and Prominences". solar.physics.montana.edu. अभिगमन तिथि 2 January 2010.