सौरभ कालिया

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कैप्टन
सौरभ कालिया
जन्म 29 जून 1976
अमृतसर, पंजाब
देहांत 9 जून 1999(1999-06-09) (उम्र 22)
कारगिल, जम्मू-कश्मीर में
निष्ठा भारत भारत गणराज्य
सेवा/शाखा Flag of Indian Army.svg भारतीय थलसेना
सेवा वर्ष 1998–1999
उपाधि Captain of the Indian Army.svg कैप्टन
दस्ता Rgt-jat.gif4 जाट
युद्ध/झड़पें कारगिल युद्ध

कैप्टन सौरभ कालिया (1976 – 1999) भारतीय थलसेना के एक अफ़सर थे जो कारगिल युद्ध के समय पाकिस्तानी सिक्योरिटी फोर्सेज़ द्वारा बंदी अवस्था में मार दिए गए।[1] गश्त लगाते समय इनको व इनके पाँच अन्य साथियों को ज़िन्दा पकड़ लिया गया और उन्हें कैद में रखा गया , जहाँ इन्हें यातनाएँ दी गयीं और फिर मार दिया गया।[1][2] पाकिस्तानी सेना द्वारा प्रताड़ना के समय इनके कानों को गर्म लोहे की रॉड से छेदा गया, आँखें फोड़ दी गयीं और निजी अंग काट दिए गए। [3] [4]

प्रारंभिक वर्ष[संपादित करें]

सौरभ कालिया का जन्म 29 जून 1976 को अमृतसर, भारत में हुआ था। इनकी माता का नाम विजया व पिता का नाम डॉ॰ एन॰ के॰ कालिया है।[5] इनकी प्रारंभिक शिक्षा डी॰ए॰वी॰ पब्लिक स्कूल पालमपुर से हुई। इन्होंने स्नातक उपाधि (बी॰एससी॰ मेडिकल) एच.पी कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर, हिमाचल प्रदेश से सन् 1997 में प्राप्त की। वे अत्यंत प्रतिभाशाली छात्र थे, और अपने विद्यालयीन वर्षों में कई छात्रवृत्तियाँ प्राप्त कर चुके थे। [6]

सैन्य सेवा[संपादित करें]

अगस्त 1997 में संयुक्त रक्षा सेवा परीक्षा द्वारा सौरभ कालिया का चयन भारतीय सैन्य अकादमी में हुआ, और 12 दिसंबर 1998 को वे भारतीय थलसेना में कमीशन अधिकारी के रूप में नियुक्त हुए। उनकी पहली तैनाती 4 जाट रेजिमेंट (इन्फ़ॅण्ट्री) के साथ कारगिल सॅक्टर में हुई। 31 दिसंबर 1998 को जाट रेजिमेंटल सेंटर, बरेली में प्रस्तुत होने के उपरांत वे जनवरी 1999 के मध्य में कारगिल पहुँचे।

कारगिल युद्ध[संपादित करें]

प्रतिक्रिया[संपादित करें]

गर्व है हमें ऐसे वीर जवानों पर जय हिन्द जय भारत

सौरभ की नौकरी को कुछ ही महीने हुए थे. वह कारगिल में अपने साथियों के साथ अपनी पोस्ट पर मुस्तैद थे. इसी बीच 15 मई 1 999 (Link in English) को उन्हें एक इनपुट मिला. इसके तहत उन्हें जानकारी दी गई कि दुश्मन सेना के लोग भारतीय सीमाओं की ओर बढ़ रहे थे. यह इनपुट बहुत महत्वपूर्ण था. दुश्मन सेना के सैनिक किसी बड़ी घटना को अंजाम दे सकते थे. सौरभ ने इसको गंभीरता से लेते हुए अपनी तफ्तीश शुरु कर दी. वह अपने पांच अन्य सैनिकों अर्जुन राम, भंवरलाल बागारीया, भिका राम, मूल राम और नरेश सिंह के साथ पेट्रोलिंग पर निकल गये. उन्हें इस बात की फिक्र नहीं थी कि दुश्मन कितनी संख्या में है. उन्हें तो बस अपने देश की चिंता सताये जा रही थी.

तेजी से उन तक पहुंचने के लिए सौरभ अपने साथियों के साथ आगे बढ़े. वह जल्द ही वहां पहुंच गये जहां दुश्मन के होने की खबर थी. पहले तो सौरभ को लगा कि उन्हें मिला इनपुट गलत हो सकता है, लेकिन दुश्मन की हलचल ने अपने होने पर मुहर लगा दी. वह तेजी से दुश्मन की ओर बढ़े. तभी दुश्मन ने उन पर हमला कर दिया. दुश्मन संख्या में बहुत ज्यादा था.

दुश्मन तकरीबन 200 की संख्या में था. सौरभ ने स्थिति को समझते हुए तुरंत अपनी पोजीशन ले ली. दुश्मन सैनिकों के पास भारी मात्रा में हथियार थे. वह ए.के 47, ग्रेनेड जैसे विस्फोटक थे. इधर सौरभ और उनके साथियों के पास ज्यादा हथियार नहीं थे. इस लिहाज से वह दुश्मन की तुलना में बहुत कमजोर थे, पर उनका ज़ज्बा दुश्मन के सारे हथियारों पर भारी था.


वह कभी पकड़े नहीं जाते, मगर…[संपादित करें]

सौरभ ने सबसे पहले दुश्मन की सूचना अपने आला अधिकारियों को दी. फिर उन्होंने अपनी टीम के साथ तय किया कि वह आंखिरी सांस तक दुश्मन का सामना करेंगे और उन्हें एक इंच भी आगे बढ़ने नहीं देंगे.

फिर तो सौरभ अपने साथियों के साथ दुश्मन की राह का कांटा बन कर खड़े रहे. उनकी रणनीतियों के सामने दुश्मन की बड़ी संख्या भी पानी मांगने लगी थी. हालांकि, दोनों तरफ की गोलाबारी में सौरभ और उनके साथी बुरी तरह ज़ख़्मी जरूर हो गये थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. वह मोर्चे पर वीरता के साथ डटे हुए थे.

दुश्मन बौखला चुका था, इसलिए उसने पीठ पर वार करने की योजना बनाई. इसमें वह सफल रहा. उसने चारों तरफ से सौरभ को उसकी टीम के साथ घेर लिया था. वह कभी दुश्मन के हाथ नहीं आते, लेकिन उनकी गोलियां और बारुद खत्म हो चुके थे. दुश्मन ने इसका फायदा उठाया और उन्हें बंदी बना लिया.

…यातनाएं भी नहीं तोड़ पाईं हौंसला![संपादित करें]

दुश्मन सौरभ और उनके साथियों से भारतीय सेना की खुफिया जानकारी जानना चाहता था, इसलिए उसने लगभग 22 दिनों तक अपनी हिरासत (Link in English) में रखा. उसकी लाख कोशिशों के बावजूद कैप्टन सौरभ ने एक भी जानकारी नहीं दी. इस कारण दुश्मन ने यातनाओं का दौर शुरु कर दिया.

सभी अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए सौरभ कालिया के कानों को गर्म लोहे की रॉड से छेदा गया. उनकी आंखें निकाल ली गई. हड्डियां तोड़ दी गईं. यहां तक की उनके निजी अंग भी दुश्मन ने काट दिए थे.

बावजूद इसके वह सौरभ का हौसला नहीं तोड़ पाए थे. आखिरी वक्त तक उन्हें अपना देश याद रहा. उन्होंने सारे दर्द का हंसते-हंसते पी लिया. अंत में जब वह दर्द नहीं झेल सके तो उन्होंने मौत को गले लगा लिया.

परिवार के प्रयास[संपादित करें]

स्मारक[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Pakistan 'tortured Indians to death'". The Independent. 12 June 1999. मूल से 17 जुलाई 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 March 2012.
  2. Singh, Mohinder. Punjab 2000: Political and Socio-economic Developments. Anamika Pub & Distributors, 2001. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788186565902.
  3. Pakistan Army punctured eyes, cut off genitals of Captain Saurabh Kalia and his soldiers but Centre refuses to act Archived 2015-07-09 at the Wayback Machine www.ibnlive.com
  4. Pakistani soldier confesses to killing Capt Saurabh Kalia Archived 2015-05-07 at the Wayback Machine indiatoday.intoday.in
  5. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; hindu_parent नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  6. "Kangra War Heroes" [काँगड़ा युद्ध वीर]. मूल से 5 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि मार्च 17, 2016.