सेन्टर फॉर सोशिअल अक्ट्श्न्

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से


परिचय[संपादित करें]

सेन्टर फार सोशिअल अक्टन (सीएसए) क्राइस्ट विश्वविद्यालय क एक खास केन्द्र है जहाँ विध्यार्थी समुदायों को दरिद्र और कमजोर वर्गों को प्रभावित करने वाली विषयों के प्रति सुग्राहीकृत किया जाता है। यह इसलिए बनाया गया है ताकि वे गरीबों और शोषितों के जीवन में स्थायी बदलाव ला सकें। सीएसए छात्रों को अपने आसपास के सामाजिक वास्तविकताओं के बारे में बताते हुए गरीब वर्गों के उत्थान में अपना योगदान देने में सक्षम बनाता है।

यह राष्ट्रीय सेवा योजना की एक शाखा के रूप में, प्रबंधन, संकाय और क्राइस्ट विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा 1999 में स्थापित किया गया था। यह बुनियादी मूल्यों और विश्वविद्यालय के मिशन की परिकल्पना के अनुसार, छात्रों के अन्दर सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति जागरुक करने के इरादे से शुरू किया गया था। आज, देश कई पर्यावरण, आर्थिक और सामाजिक के मुद्दों का सामना कर रहा है। सीएसए यह विश्वास करता है कि छात्र समुदाय एक सकारात्मक बदलाव लाने मैं सफल रहेगा। यह अपनी विभिन्न विकास परियोजनाओं और सामाजिक संवेदीकरण कार्यक्रमों में अपनी सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरणा बनी हुई है। इस प्रकार, सीएसए बड़े पैमाने पर समाज के लिए लगातार काम करने की कोशिश करती है। सीएसए अपने कार्यक्रमों को बच्चों, महिलाओं, युवाओं और छात्र समुदाय शहरी मलिन बस्तियों में, ग्रामीण और आदिवासी गांवों और शैक्षिक संस्थानों जैसे समूहों पर केंद्रित करता है।

उद्देश्य[संपादित करें]

  • सामाजिक कार्य में छात्रों को शामिल करके उनके समग्र विकास पर ध्यान देना।
  • विश्वविद्यालय के मध्याम से समाज के वंचित वर्गों के जीवन की गुणवत्ता में ठोस सुधार लाना।
  • विश्वविद्यालय समुदाय संबंधों को मजबूत बनाने में अभिनव प्रथाओं की सुविधा करना।

सीएसए की सभी गतिविधियों की ताकत उसकी दृष्टि और मिशन से मिलती है। वे ढांचा और गतिविधि कार्यान्वयन के लिए आधार बनेगी.

हमारी दृष्टि[संपादित करें]

"हर छात्र, जागरूक संवेदनशील और समाज में स्थायी परिवर्तन करने के लिए योगदान दे रहा है।"

हमारा मिशन[संपादित करें]

"सीएसए "स्वयंसेवा को बढ़ावा देने के लिए और छात्रों को सामाजिक रूप से जिम्मेदार नागरिकों में विकसित करने के लिए सक्षम करने के लिए एक केंद्र है।

गतिविधियाँ[संपादित करें]

राजेंद्र नगर[संपादित करें]

राजेन्द्रनगर कोरमंगला ब्लॉक, बैंगलोर में राजेंद्रनगर बस्ती में कार्यान्वित बच्चे के प्रायोजन के लिए सीएसए के पहले पहलों में से एक था। यह परियोजना सन 1999 में शुरू किया गया था। छात्र समुदाय ने वंचित बच्चों के शैक्षिक विकास के लिए पैसे इकट्ठे किया। वर्तमान में लगभग 200 बच्चों को हर साल सहारा दिया जा रहा है। बच्चों के 'समग्र विकास' सुनिश्चित करने के लिए, बच्चों के लिए गतिविधियों की एक विस्तृत श्रृंखला परिपलित किय गया है जैसे:-

पूरक शैक्षिक केन्द्र[संपादित करें]

यह वंचित स्कूल जाने वाले बच्चों को गतिविधि केंद्र द्वारा जीवन कौशल विकास सिखाते हैं। गतिविधि केंद्र दैनिक 5-7 बजे शाम को आयोजित किया जाता है और अंग्रेजी बोलचाल सामान्य ज्ञान, गृहकार्य को पूरा करने मे मदद करना, उच्च ग्रेड के लिए ट्यूशन क्लासेस, खेल, सांस्कृतिक और रचनात्मक कौशल आदि सिखाया जाता है। यह बच्चों में अपनी पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन करने में मदद करता है और साथ ही उनके रवैया और व्यवहार में विकास लाने में अपना सहयोग देते हैं।

लाइब्रेरी केंद्र (शाम)[संपादित करें]

एक पुस्तकालय केन्द्र शुरू किया गया और बच्चों को दैनिक पढ़ने की आदत ङाली गई जिससे उनकी शब्दावली, उच्चारण, धाराप्रवाह पढ़ने में सुधार लाया जा सके।

कंप्यूटर सेंटर (शाम)[संपादित करें]

बुनियादी कम्प्यूटर क्लासिस उच्चतर ग्रेड 8-10 वीं कक्षा के प्रायोजित बच्चों के लिए नियमित रूप से आयोजित किया जाता है। यह ज्ञान उनको अपनी पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन करने में सहायता करता है।

  • महिला सशक्तिकरण और सामाजिक - आर्थिक विकास भी बच्चों की उच्च शिक्षा की स्थिरता के लिए सुनिश्चित है। महिला स्वयं सहायता समूहों को बनाया गया और विभिन्न पहलुओं के बारे में नियमित रूप से क्षमता निर्माण के माध्यम से उस समूह को मजबूत किया जा रहा है। 25 स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा दिया गया और आज सीएसए के समर्थन के बिना स्वतंत्र रूप से कार्य कर रहे हैं। अपनी बचत के माध्यम से स्वयं द्वारा माइक्रो फाइनेंसिंग के कारोबार अब समूहों की अपनी उम्र के आधार पर 20-40 लाख के आसपास है। प्रत्येक सदस्य के बचत (5-8 वर्ष की उम्र के समूह) 10,000 / ऊपर है - और 300 महिलाओं को स्वयं सहायता समूह की सदस्यता के माध्यम से लाभान्वित कर रहे हैं।

एल.आर. नगर[संपादित करें]

एल.आर. नगर झुग्गी हिंदू, मुस्लिम और ईसाई आबादी के साथ एक बहु धार्मिक क्षेत्र है। इस क्षेत्र के लोगों को तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे पड़ोसी राज्यों से विस्थापित हुए हैं। इन झुग्गी बस्ती के लोगों का मुख्य व्यवसाय दिहाड़ी मजदूर या एक सहायक के रूप में कार्यरत हैं। बहुमत महिलाएँ घर नौकरानी के रूप में काम करती हैं। परिवारों की मासिक औसत आय ₹८,०००- ₹२५,००० है। इस बस्ती में लिंग भेद किया जाता है। अधिक वरीयता महिला से पुरुष बच्चों के लिए दिया जाता है। पुरुष बच्चों की पढाई अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में होती है परन्तु लड़कियों को अधिकतम पास वाले सरकार स्कूल में भेजा जाता हैं और वह भी केवल ज्यादातर मामलों में प्राथमिक स्तर तक ही।

वंचित बच्चों की शिक्षा की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए और रोजगार के लिए गरीब महिलाओं की मदद करने के लिए, एक एकीकृत सामुदायिक विकास परियोजना जीएमआर वरलक्ष्मी फाउंडेशन के समर्थन से जून 2010 वर्ष में शुरू किया गया था। उनकी शिक्षा और जीवन कौशल विकास की दिशा में 100 बच्चों का समर्थन किया गया है। वर्तमान में, इस परियोजना का विस्तार हो रहा है और क्राइस्ट विश्वविद्यालय, बेंगलुरु के छात्रों के प्रायोजन के साथ 215 से वंचित बच्चों के लिए समर्थन प्रदान किया गया है। गतिविधि केन्द्र, छोड़ने वालों बच्चों के लिए ट्रांजिट स्कूल, एक दिन देखभाल केंद्र (18 माह से 3 वर्ष के बच्चे) की तरह की गतिविधियों में रोजगार पाने के लिए महिलाओं का समर्थन किया गया है। बच्चों के पुस्तकालय द्वारा उनको सामान्य ज्ञान, शब्दावली, पढ़ना प्रवाह आदि में सुधार करने कार्यान्वित किया गया है। इसका लक्ष्य "स्लम बच्चों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार और महिलाओं के बीच सामाजिक - आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है।"