सेंट्रल विस्टा जीर्णोद्धार परियोजना
Location | रायसीना पहाड़ी,नई दिल्ली, भारत |
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Proposer | भारत सरकार |
Status | Under construction |
Type | Reconstruction and renovation of administrative buildings |
Cost estimate | ₹13,450 करोड़ (US$1.96 अरब) |
Start date | December 2020 |
सेंट्रल विस्टा जीर्णोद्धार परियोजना भारत सरकार द्वारा प्रायोजित, रायसीना पहाड़ी से इंडिया गेट तक, राजपथ के किनारे स्थित भारत की राजधानी नई दिल्ली के केंद्रीय प्रशासनिक क्षेत्र, जिसे "सेंट्रल विस्टा" कहा जाता है, को पुनर्जीवित करने के लिए चल रही पुनर्विकास परियोजना है।[1]
सुरक्षा चिंताओं और आगामी आवश्यकताओं के बीच, आजादी के बाद नई संरचनाओं के प्रस्ताव सामने आने लगे। 2020 और 2024 के बीच अनुसूचित, 2020 के रूप में परियोजना का उद्देश्य राष्ट्रपति भवन और इंडिया गेट के बीच 3 किमी (1.9 मील) लंबे राजपथ को पुनर्जीवित करना है, सभी मंत्रालयों को घर देने के लिए एक नया आम केंद्रीय सचिवालय बनाकर उत्तर और दक्षिण ब्लॉक को सार्वजनिक रूप से सुलभ संग्रहालयों में परिवर्तित करें। उत्तर और दक्षिण ब्लाकों के निकट उप राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री के लिए भविष्य के विस्तार, नए निवास और कार्यालय के लिए बैठने की क्षमता में वृद्धि के साथ वर्तमान के पास एक नया संसद भवन।[1]
सेंट्रल विस्टा जीर्णोद्धार परियोजना की लागत, जिसमें एक सामान्य केंद्रीय सचिवालय और विशेष सुरक्षा समूह (एसपीजी) भवन भी शामिल है, का अनुमान ₹13,450 करोड़ (US$1.96 अरब) पर लगाया गया है।[2][3][4] इस योजना में प्रस्तावित पीएमओ शामिल नहीं था क्योंकि लंबित भूमि-उपयोग परिवर्तन और मुकदमेबाजी के मुद्दे थे।
इतिहास[संपादित करें]
दिल्ली सदियों से सत्ता का एक प्रमुख केंद्र रहा है, जिसने अनेक राजशाहियों का उदय और पतन देखा है। इन्ही राजवंशो ने अलग अलग समय में यहाँ नए शहर या राजधानियां स्थापित करीं। इनमे से जिन सात शहरों का नाम ख़ास तौर पर लिया जाता है वो हैं लालकोट, महरौली, सिरी, तुगलकाबाद, फिरोजाबाद, दीन पनाह और शाहजहानाबाद।
इन सात शहरों के बाद एक आठवां शहर बनाया गया जिसका नाम रखा गया नई दिल्ली। जब ब्रिटिश हुकूमत ने अपनी राजधानी कलकत्ता से स्थान्तरित करने का निर्णय लिया तो किंग्सवे कैंप के निकट तीसरा दिल्ली दरबार लगाया गया और उस समय के शासक किंग जॉर्ज पंचम ने 12 दिसंबर 1911 में वहाँ इसकी आधारशिला रखी। बाद में उस स्थान को उपयुक्त ना मानते हुए नींव का पत्थर रायसीना की पहाड़ियों में स्थापित किया गया। इस नए शहर योजना बनायी थी ब्रिटिश वास्तुकार सर एडविन लुटियंस और सर हरबर्ट बेकर ने। इस योजना को पूरा करने में दो दशक लग गए थे, जिसके बाद 13 फरवरी 1931 को दिल्ली को आधिकारिक तौर पर राजधानी घोषित किया गया।
विवाद[संपादित करें]
सेंट्रल विस्टा जीर्णोद्धार परियोजना को लेकर अनेक विवाद भी सामने आये। कुछ विपक्षी दलों, पर्यावरणविद और हेरिटेज प्रेमियों द्वारा इस पर अनेक सवाल उठाये गए जैसे महामारी काल में देश पर अतिरिक्त बोझा डालना, या 100 साल से पुराने पेड़ों का उखाड़ा जाना और पारदर्शिता का अभाव इत्यादि।[1][2]
दिल्ली हाई कोर्ट में इस परियोजना पर रोक लगाने के लिए याचिका भी डाली गई, जिसे कोर्ट ने 1 लाख रूपए के जुर्माने के साथ खारिज कर दिया।[3]
दिल्ली को समय समय पर वर्ल्ड हेरिटेज सिटी का दर्ज़ा दिलवाने की मांग की जाती रही है। सन 2008 से इसके प्रयास भी किये गए। 2014 में राज्य सरकार और INTACH द्वारा UNESCO में आधिकारिक तौर पर दस्तावेज़ जमा करवाए गए, मगर 2015 में केंद्र सरकार द्वारा नामांकन को वापस ले लिया गया। 2018 में अहमदाबाद को भारत का पहली वर्ल्ड हेरिटेज सिटी होने का गौरव प्राप्त हुआ। [4]
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ अ आ Friese, Kai (May 23, 2020). "We are turning over a fortress to the people". India Today (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2021-02-04.
- ↑ "PM house in new Central Vista given green clearance".
- ↑ "Central Vista project: New PM residence to be ready by Dec 2022".
- ↑ "Central Vista Projects: What can be deferred & what not".
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत लगभग लागत 970 करोड़ रुपया है।
और इस नए ससंद भवन में लोकसभा की सीट 888 और राज्यसभा की सीट 348 है। निर्माणकर्ता कम्पनी टाटा कम्पनी है