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सूर्यवर्मन प्रथम

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सूर्यवर्मन प्रथम (मरणोपरांत नाम निर्वाणपाद) सन 1006 से सन 1050 ख्मेर साम्राज्य के सम्राट थें।[1]:134–135 सूर्यवर्मन ने सम्राट उदयादित्यवर्मन प्रथम के सिंहासन छीनकर, उनके सैन्य शक्ति को सन 1002 में हराया। इस के पश्चात उदयादित्य के उत्तराधिकारी, जयवर्मन, के साथ लंबे समय तक युद्ध हुआ।[2] उसे हराकर सन 1010 में सूर्यवर्मन ने अपने आप को सम्राट घोषित कर दिया। सूर्यवर्मन तांब्रलिंग के राजा के पुत्र थें,[3] जो थाईलैंड में राज करने वाले एक बौद्ध राजा और अंगकोर के शत्रु, श्रीविजय, के सामंत थें। सूर्यवर्मन की माता ख्मेर राजवंश के सदस्य थें। ख्मेर में वैष्णवों की संख्या अधिक थी, लेकिन सूर्यवर्मन महायान बौद्ध थें।[1]:134 उन्होंने थेरवाद बौद्धों को समान माना, जिनकी संख्या तब बढ़ रही थी।

सूर्यवर्मन प्रथम सन 1012 चोला राजवंश से भी राजनैतिक नाता जोड़ लिए।[1]:136 सूर्यवर्मन प्रथम ने चोला सम्राट राजराज प्रथम को एक रथ भेंट किया।[4] इतिहासकारों का मानना है की राजराज चोला से तांब्रलिंग राज्य के विरुद्ध सैन्य सहायता की मांग किया था। इस समाचार के पश्चात तांब्रलिंग ने श्रीविजय के राजा संग्राम विजयतुंग वर्मन के साथ गठबंधन बनाया।[5][6] इस प्रकार चोला साम्राज्य का श्रीविजय साम्राज्य के साथ युद्ध आराम्भ हुआ जिसमें तांब्रलिंग और श्रीविजय का भारी नष्ट हुआ।[5][7]

उनका शासनकाल 40 वर्षों तक चला जिसमें अधिकतर समय राज्य की रक्षा में बिताया। उनको उत्तमन्याय कर्ता का नाम मिला है। उन्होंने 4000 साकारी कर्मचारियों राजमहल को बुलाया जहां उन्होंने राजा की सौगंध लिया। सूर्यवर्मन बौद्ध धर्म के थें, लेकिन हिन्दुधर्म पर कोई पाबंदी नहीं लगाया। उनका राजमहल अंगकोर थोम के समीप था और वे पहले ऐसे शासक थे जिन्होंने महल के इर्दगिर्द दीवार बनाया।

सूर्यवर्मन प्रथम ने अपना राज्य का पश्चिमी ओर लोपबुरि तक विस्तार किया, जिसमें में घाटी भी शामिल था, और पूर्वी ओर मीकोंग घाटी विस्तार तक किया।[1]:136–137

प्रिय खान कोमपोंग स्वय का निर्माण सम्भवतः सूर्यवर्मन ने आरम्भ किया, और बंटाय श्रेय, वाट एक फ्नोम एवं फ्नोम चिसोर का विस्तार किया।[8]:95–96 उनके शासनकाल के महत्त्वपूर्ण थें दंग्रेक पर्वत पर प्रसत प्रिय विहार, और फिमेअनकस एवं ता केओ का पूरण।[1]:135–136 सूर्यवर्मन प्रथम ने अंगकोर का दूसरा जलाशय का भी निर्माण किया जो 8 कि मि लंबा और 2.1 कि मि चौड़ा था।[9]:371 इसमें 12.3 करोड़ लीटर पानी संग्रहित हो सकता था।[10] एहि ख्मेर साम्राज्य का सबसे बड़ा जलाशय है जो आज भी बरकरार है। कुछ आधारों के अनुसार सूर्यवर्मन प्रथम ने राजेंद्र चोला को भी भेंट किया ताकि दोनों राज्य के बीच वाणिज्य जारी रहे।[11]

सूर्यवर्मन का देहांत 1050 में हुआ और मरणोपरांत उन्हें बौद्ध धर्म के अनुसार निर्वाणपाद का नाम दिया गया। उनके पश्चात उनके पुत्र उदयादित्यवर्मन द्वितीय 1066 तक राज किया और हर्षवर्मन तृतीय 1080 तक चाम राज्य के साथ युद्ध किया और कई विद्रोह कुचल दिया।

राजसी उपाधियाँ
पूर्वाधिकारी
जय वीर वर्मन
अंगकोर सम्राट
1006–1050
उत्तराधिकारी
उदयादित्यवर्मन द्वितीय

सन्दर्भ

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  1. Coedès, George (1968). Walter F. Vella (संपा॰). The Indianized States of Southeast Asia. trans.Susan Brown Cowing. University of Hawaii Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-8248-0368-1.
  2. "Suryavarman I". Encyclopædia Britannica। (2014)। अभिगमन तिथि: February 24, 2014
  3. Quaritch, H. G. (1965). Angkor and Rome: A Historical Comparison. Wales. London: Bernard Quaritch, Ltd.
  4. Indian History by Reddy: p.64
  5. Kenneth R. Hall (October 1975), "Khmer Commercial Development and Foreign Contacts under Sūryavarman I", Journal of the Economic and Social History of the Orient 18 (3), pp. 318-336, Brill Publishers
  6. R. C. Majumdar (1961), "The Overseas Expeditions of King Rājendra Cola", Artibus Asiae 24 (3/4), pp. 338-342, Artibus Asiae Publishers
  7. R. C. Majumdar (1961), "The Overseas Expeditions of King Rājendra Cola", Artibus Asiae 24 (3/4), pp. 338-342, Artibus Asiae Publishers
  8. Higham, C., 2001, The Civilization of Angkor, London: Weidenfeld & Nicolson, ISBN 9781842125847
  9. Higham, C., 2014, Early Mainland Southeast Asia, Bangkok: River Books Co., Ltd., ISBN 9786167339443
  10. Freeman, Michael; Jacques, Claude (2006). Ancient Angkor. River Books. पृ॰ 188. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 974-8225-27-5.
  11. Economic Development, Integration, and Morality in Asia and the Americas by Donald C. Wood p.176

बाहरी कड़ियाँ

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