सूरह अन-नास
सूरह अन-नास | |
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![]() सूरह अन-नास की कलात्मक प्रस्तुति |
सूरह अन-नास (अरबी: سورة الناس) क़ुरआन के अंतिम भाग (30वां पारा) की 114वीं और अंतिम सूरह है। इसमें कुल 6 आयतें हैं। इस सूरह में अल्लाह से प्रार्थना की जाती है कि वह हर प्रकार की बुराई और शैतानी विचारों से सुरक्षा प्रदान करे।[1]
नाम का अर्थ और विषयवस्तु
[संपादित करें]"अन-नास" का अर्थ है "लोग"। इस सूरह में अल्लाह को लोगों के पालनहार, राजा और ईश्वर के रूप में पुकारा गया है। यह सूरह अल-मुअव्विधतैन का हिस्सा है, जो सुरक्षा के लिए पढ़ी जाने वाली दो सूरहों का समूह है।[2]
सूरह का पाठ और अनुवाद
[संपादित करें]अरबी: قُلْ أَعُوذُ بِرَبِّ ٱلنَّاسِ * مَلِكِ ٱلنَّاسِ * إِلَٰهِ ٱلنَّاسِ * مِن شَرِّ ٱلْوَسْوَاسِ ٱلْخَنَّاسِ * ٱلَّذِى يُوَسْوِسُ فِى صُدُورِ ٱلنَّاسِ * مِنَ ٱلْجِنَّةِ وَٱلنَّاسِ
इस्लामिक परंपरा में महत्व
[संपादित करें]सूरह अन-नास का उपयोग मुसलमानों द्वारा बुरी शक्तियों और शैतानी विचारों से सुरक्षा के लिए किया जाता है। इसे सुबह और शाम के समय अन्य प्रार्थनाओं के साथ पढ़ा जाता है। यह विशेष रूप से मानसिक शांति और आत्मिक सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।[3]
ऐतिहासिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण
[संपादित करें]इस सूरह को मदीना में नाज़िल होने वाली सूरह माना जाता है। इसमें इंसानों के अंदर और बाहर के दुश्मनों से बचने के लिए निर्देश दिए गए हैं। नबी मुहम्मद ने इसे नियमित रूप से पढ़ने की सिफारिश की।