सुदीप्ता सेनगुप्ता

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सुदीप्ता सेन गुप्ता, जादवपुर विश्वविद्यालय में संरचनात्मक भूविज्ञान में एक प्रोफेसर है तथा एक प्रशिक्षित पर्वतारोही भी हैं। वह अंटार्टिका में कदम रखने वाली पहली भारतीय महिला में से है अदिति पन्त के साथ।[1] वह भारत में अपनी पुस्तक अंटार्टिका(जो बंगाली में है) के लिए भी जानी जाती है तथा भूविज्ञान में कई सारे लेखो और टेलीविज़न साक्षात्कारों के लिए भी लोकप्रिय है। उन्होंने व्यापक रूप से संरचनात्मक भूविज्ञान के अंतर्राष्ट्रीय सहकर्मी-समीक्षा पत्रिकाओं में प्रकाशित किये हैं।

शुरूआती करियर[संपादित करें]

प्रोफेसर सेनगुप्ता कलकत्ता के ज्योति रंजन सेनगुप्ता और पुष्पा सेनगुप्ता के जन्मे ३ बच्चो में से सबसे छोटी बेटी थी। उनके पिता एक मौसम वैज्ञानिक थे और उनके परिवार ने भारत और नेपाल में बहुत समय बिताया है। प्रोफेसर सेनगुप्ता ने जाधवपुर विश्वविद्यालय से बीएससी और एमएससी में स्नातक किया। पीएचडी की डिग्री उन्होंने जाधवपुर यूनिवर्सिटी से प्रोफेसर सुबीर घोष की देखरेख में प्राप्त की। १९७०-१९७३ के बीच में उन्होंने भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण में एक भूवैज्ञानिक के तौर पे काम किया। १९७३ में, उन्होंने यू.के। से १८५१ के प्रदर्शनी के लिए रॉयल कमिशन की प्रतिष्ठित छात्रवृत्ति प्राप्त की और लंदन के इंपीरियल कॉलेज,में अगले तीन वर्षों के लिए डॉक्टरेट के अनुसंधान के बाद काम किया। १९७७ में उन्होंने उप्साला विश्वविद्यालय, स्वीडन में छह महीने के लिए डॉस के रूप में संस्थान के भूविज्ञान में शामिल हुए और उसके बाद अंतर्राष्ट्रीय भौगोलिकिकी परियोजना के संबंध में एक विज़िटिंग वैज्ञानिक के रूप में शोध किया, जो कि प्रोफेसर हंस रामबर्ग की निगरानी में किया गया। १९७९ में भारत लौटने पर, वह एक वरिष्ठ भूवैज्ञानिक के रूप में भारत के भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण में शामिल हो गए। १९८२ में, उन्होंने जादवपुर विश्वविद्यालय में एक व्याख्याता के रूप में प्रवेश किया जहां वह वर्तमान में प्रोफेसर के रूप में काम कर रहे हैं।[2]

पर्वतारोहण[संपादित करें]

सुदीप्ता सेनगुप्ता एक विशेषज्ञ परवातारोही है और उन्होंने हिमालय परव्तारोहन संस्थान में उन्नत पर्वतारोही में तेनजिंग नोर्गे द्वारा प्रशिक्षण लिया। उन्होंने भारत और यूरोप में कई पर्वतारोहण अभियानों में हिस्सा लिया है। जिसमें लाहौल क्षेत्र में अज्ञात कुंवारी शिखर भी शामिल है, जिसके बाद उसे माउंट ललोना नामित किया।

अंटार्कटिक अभियान और अनुसन्धान[संपादित करें]

१९८३ में, सुदीप्ता सेनगुप्ता को अंटार्कटिका के तीसरे भारतीय अभियान में सदस्य के रूप में चुना गया था व पूर्व अंटार्कटिका के शिरशेखर पहाड़ियों में अग्रणी भूवैज्ञानिक अध्ययन का भी आयोजन किया था। सुदिप्ता और डॉ अदिति पंत, एक समुद्री जीवविज्ञानी अंटार्कटिक अभियान में भाग लेने वाली पहली महिला वैज्ञानिक थी। १९८९ में उन्होंने अंटार्कटिका में नौवीं भारतीय अभियान के सदस्य के रूप में दूसरी बार अंटार्कटिका की यात्रा की।उन्हें भारत सरकार द्वारा विज्ञान में उत्कृष्टता के लिए भारत सर्कार द्वारा सम्मानित किया गया है। [3]

प्रकाशन और पुरस्कार[संपादित करें]

प्रोफेसर सेनगुप्ता ने भारतीय और अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में कई सारे पत्र प्रकाशित किये। उन्हें भारत सरकार द्वारा विज्ञान में उत्कृष्टता के लिए भटनागर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. उन्हें भारत सरकार द्वारा विज्ञान में उत्कृष्टता के लिए भटनागर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  2. Sengupta, Sudipta. Antarctica. Ananda Publisher, 1989, ISBN 81-7066-091-2
  3. Chaturvedi, Arun (2004). "Indian Women in Antarctic Expeditions: A Historical Perspective". Department of Ocean Development, Technical Publication. 17: 277–279.